हम जो भी सोचते हैं और जो भी करते है वह सभी हमारे अंतःकरण से जुड़ी हुई होती है। सुबह के समय एक बिस्तर में से उठते ही एक स्त्री कहती है ओह भगवान! फिर से सबेरा हो गया। अब फिर कोल्हू के बैल की तरह काम में जुटना पड़ेगा। ये मेरी कोई जिंदगी है। इस स्त्री का जो पति है वह किसान था। उसने कहा ओह भगवान! सुबह हो गई। सारा दिन फिर काम में चला जाएगा, पता ही नहीं चलेगा। पूरे दिनभर काम में डूबकर मै दिन भर आनंद करुंगा। इसमे प्रसंग मे जो उसकी स्त्री की भूमिका है वह उस व्यक्ति की है जहां बहुत से लोगों को दुखी होने तथा दुखी रहने में मानसिक शांति प्राप्त होती है। इसीलिए बहुॅत से लोग जब भी और जहां भी उन्हे मौका मिले मौका मिलते ही अपनी आपबीती विस्तार पूर्वक सुनाने लगते है। उन्हे यह बात याद रखने मे कोई रुचि नहीं होती कि उन्हें जिंदगी में कितना कुछ प्राप्त हुआ है और जो उन्हे प्राप्त हुआ है कितनो को तो वह भी नशीब नहीं हुआ है बलकी वे यह बताने के लिए उत्सुक होते हैं कि उन्होंने क्या कुछ और कितना कुछ खोया है।
इसमे जो दूसरा किरदार है वह उन व्यक्तियों का है जो इनसे बिलकुल विपरीत ऐसे लोगों से है जो जन्मजात खुशी के ही सौदागर होते हैं। और अपने मे ही मस्तमौला होते है जिन्हे छोटी-छोटी बांतो मे खुशी मिल जाती है उन्हें जो भी प्राप्त होता है उसमें अपने मन को प्रसन्न रखते हैं तथा उसे ही अपना जीवन सूत्र मानते हैं।
मेरे जैसे दुःख झेलने वाला और कोई नहीं हो सकता लोग ये स्वीकारते है और अधिकतर लोगों की सोंच कुछ इसी प्रकार का होता है, इसीलिए अपने दुःखों का राग अलापने के लिए तत्पर रहते हैं। जो लोग दुःखी रहना ही अपना जन्मसिध्द अधिकार मानते हैं, उन्हें आखिर कौन सुखी बना सकता है। जीवन को प्रसन्नतापूर्ण दृष्टिकोण से देखना भी एक ऐसी महान कला है जिसे आत्मसात करना आवश्यक है। हमें दुःख इसलिए सताते हैं क्योंकि हम शुध्द व सही तरीके से विचार नहीं करते। महान गणितज्ञ तथा चिंतक प्लेटो के घर के दरवाजे पर लिखा था न जानने वाले किसी भी मनुष्य के लिए इस घर में प्रवेष बंद है। यानि गणित शास्त्र के अभ्यास का यह महत्व है कि हम शुध्द और सही तरीके से विचार कर सकते है।
प्रत्येक वस्तु तथा व्यक्ति के लिए गलत सोच रखना एक खतरनाक रोग है। जिसे किसी प्रकार से सही नही ठहराया जा सकता है। वाशिंगटन ने तेरह वर्ष की नन्ही सी उम्र में ही सभ्यता तथा सदाचार के तेरह नियम लिख रखे थे तथा वह अपनी सभी आदतों में इन नियमों का पालन करने का विशेष ध्यान रखता था। प्रत्येक मनुष्य को अपने घर के दरवाजे पर लिखना चाहिए यह एक सुखी मनुष्य का घर है। जो उसके सकारात्मक सोंच को प्रदर्शित करे जो मनुष्य स्वयं को दुःखी समझता है उसके जैसा अभागा कोई नहीं होता और ना ही कोई उसे उचित राह नहीं दिखा सकता। जो मनुष्य किसी भी वस्तु व्यक्ति अथवा परिस्थिति को अनचाहा नहीं समझता वही सदाबहार रह सकता है।
हम बहुत से स्थानों पर ऐसे कितने ही लोगों को देखते हैं जो प्रत्येक वस्तु की टीका-टिप्पणी करते रहते हैं। जैसे की देखा नल है पर पानी नहीं है सीढ़ी तो है पर टूटी हुई है, होटल का बोर्ड तो कितना बड़ा है पर ओटल बिलकुल बकवास है। यह मनुष्य का एक स्वभाव है समाज में प्रतिष्ठा के उच्च पद पर आसीन मनुष्य के मन मे मैल है आखिर चरित्र जैसा है ही कहॉ। चोरी लूटपाट बलात्कार होते हैं तब कहॉ होती है पुलिस। सड़कें टूटी पड़ी हैं, प्रशासन चैन की नींद सो रहा है। व्यक्ति मन का लड्डू खा रहा है। आज का यह आदमी जहॉ-जहॉ जाता है वहॉ पर दोषपूर्ण निरीक्षण करके बेकार में स्वयं भी दुःखी होता है और दूसरों को भी दुःखी करता है। जो उसके मन के मैल को दिखाता है।
यदि प्रसन्न रहना चाहते है तो छोटे बच्चे को अपना गुरु बनाएं। बच्चा सुखी रह सकता है क्योंकि वह सुख या दुःख की परिभाषा के झंझट में पड़ता ही नहीं है। वह अपने मन की लड्डू खाता है। बढ़ती उम्र मनुष्य की प्रसन्नता रुपी संपत्ति की लुटेरी है। बड़ों को बड़प्पन का आनंद मिलता है इसकी जगह यदि बचपन छिनने का गम होता तो, बचपन भीतर से विकसित होता है जब कि बड़प्पन उपर से ओढ़ी हुई होती है।
जब तक आप चुनौतियों को झेलने के लिए तैयार नहीं होंगे तब तक प्रसन्न नहीं रहा जा सकता। चुनौतियां हर मनुष्य के जीवन मे आती है बस देखना ये होता है की आप उस चुनौतियों का सामना किस प्रकार करते हैं। क्या आपमे उस चुनौती को तौर पर अलग कर पाने की वह दिव्य क्षमता हैं की उसका आपके सामाजिक क्षेत्रों मे प्रभाव ना पड़े। यह कुछ हद तक आपके व्यवहार पर भी निर्भर करता है।
इन्हे भी देखें
1. मन की पराकाष्ठा
2. चरित्रशीलता