आओ मेरी निंदा करो – ESSAY IN HINDI

आओ मेरी निंदा करों निबंध में ऐसे व्यक्तियों के बारे में बताने का प्रयास किया गया है जो अपने निंदा करने की अवगुण को अपना गुण मान लेते हैं। संसार में बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो किसी की उपस्थिति में उसके लिए बहुत सोने जैसे सुंदर वचन कहते हैं और उसकी उनुपस्थिति में लोहे, सीसे या फिर धूल जैसी बातें करते हैं। ऐसे लोगो की यदि हम बात करें तो वास्तव में ऐसे लोगों को यह भ्रम रहता है कि उनमें सूक्ष्म अवलोकन करने की शक्ति है और वे जो बोलते है वह किसी के उपर बिलकुल सटिक बेठती है। परंतु वो जिसे अपना गुण समझने की भूल करते है वास्तव में वे उनके दुर्गुण होते है और जो अपने उन दुर्गुणों के प्रति आकर्षित होते हैं।

दूसरों के दोंषों की माला बनाकर उसके मनकों फिराना तो कहीं से भी सही कार्य प्रदर्षित नहीं होता है और यह तो एक प्रकार का शैतानी काम है। इसके लिये हम यदि ये कहें की आप शैतान के स्वभाव का बारीकी से निरिक्षण करेंगे तो आप भी उसके जैसे ही बन जाएंगे तो कोई गलत नहीं है।
एक राजा था जिसका नाम थियोडासियस था जिसके बारे मे कहा जाता है कि वह एक क्षमाशील तथा उदार सम्राट था। उसके शब्दकोष के बारे में कहें तो उसमे बैरभाव जैसा काई शब्द ही नहीं था। यदि उसके शब्दो मे विचार करे तो उसके शब्द कबीर के शब्दों में कहें तो वह निंदक नियरे राखिए में विश्वास करता था। उसने अपने राज्य मे जगह-जगह पर निम्न प्रकार के आज्ञापत्र अंकित करवाए थे जैसे – मेरी निंदा करने वाले किसी भी व्यक्ति को सजा नहीं मिलेगा क्योंकि यदि किसी ने मजाक के लिए निंदा की हो तो उसे हंसकर उड़ा देना चाहिए। यदि किसी ने विरोध के भाव से निंदा की हो तो उसे क्षमा कर देना चाहिए। और यदि वह निंदा सत्य हो तो उसका आभार मानना चाहिए। इस प्रकार के विचार एक विलक्षण सोंच को प्रदर्शित करते हैं जो उस राजा के उदार भाव को दिखाते हैं।

एक व्यक्ति की सलाह सबको याद रखनी चाहिए कि यदि आप किसी की निंदा सुनें तो यदि कोई व्यक्ति निंदा करता है उसके पूरे बात को कभी न सच मानते हुए उसेके केवल आधी बात ही सच मानें और यदि किसी की प्रशंसा सुने ंतो यह मानें कि वह मनुष्य उससे भी कम सम्मान का पात्र है। यदि महान पीटर की उपस्थिति में कोई व्यक्ति किसी दूसरे की निंदा करता था तो पहले तो ध्यानपूर्वक सुनता था परंतु बाद में बीच में ही पूछाता था अच्छा! आप जिस व्यक्ति की बात कर रहे हैं, उसके चरित्र का क्या कोई साफ पहलू नहीं है? आपने उसमें कौन-कौन से सद्गुण देखे हैं, मुझे वो बताओ और यदि आपके पास इससे कुछ अधिक कहने की सामग्री न हो तो अपनी जबान को यहीं विराम दे दें। किसी व्यक्ति मे साहस अत आवष्यक चिज है इसके बिना मनुष्य का कई कार्य अधूरा ही छूट जाता है।

मनुष्य में इतनी नैतिक साहस तो होना ही चाहिए की वह अपना शुध्द दृष्टिकोण प्रस्तुत करके टीका या निंदा करने वाले को अपना प्रतिभाव दे सके और अपनी बात को तटस्थता से नख सके। बहुत बार ऐसे दृष्टांत भी सामने आए है कि ऐसा करने से टीका टिप्पणी करने वाले व्यक्ति और जिसकी निंदा की गई है, वह व्यक्ति उपरोक्त पवित्र सत्कर्म के द्वारा अपना द्वेष भाव भुलाकर मित्र बन गए हैं। परंतु ऐसा विरलय ही देखने को मिलता है।
बहुत बार ऐसा भी होता है कि लोग अपने सत्कर्मों का बखान करके जो लोग ऐसे सत्कर्म में प्रवृत्त नहीं होते उनका ध्यान आकर्षित करके अपने अहं को संतुष्ट करने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार की आत्मश्लाघा यानि कि स्वयं की प्रशंसा करना भी एक तरह का नैतिक अपराध ही है यदि कोई इस प्रकार का कार्य करता है तो उस व्यक्ति और निंदा करने वाले व्यक्ति मे अधिक अतंर नही रह जाता है।

इस संदर्भ में फारसी के द्वारा स्वानुभव से लिखी हुई बात अत्यंत प्रेरणादायक है। उन्होंने लिखा है की मैं युवावस्था में धर्म का पालन बहुत सख्ती से करता था तथा रात में उठकर धार्मिक गं्रथ पढ़ा करता था। एक रात को मैं एकाग्रचित्त होकर कुरान का पठन कर रहा होता हूँ कि एकाएक मेरे पिता जाग गए और मुझे पढ़ते देखकर मेरे पास आए। मैंने पिताजी को संबोधित करके कहा देखा आपने? आपकी दूसरी संतानें धर्म से मुख मोड़कर कैसे खराटे लेकर सो रहे हैं जब कि मैं अकेला ही जागकर खुदा का गुणगान कर रहा हूँ। मेरे पिता ने मेरी बात सुनकर तुरंत ही कहा मेरे प्यारे बेटे तू अपने भाई बहनों की निंदा करने के लिए आधी रात तक जागता रहा, इसकी जगह अगर तू सो गया होता तो अधिक अच्छा रहता।

कोई काम धंधा हो या उद्योग अंगत जीवन हो या सामाजिक जीवन उदात्त समालोचकों को ऐसी रिफायइनरी तैयार करनी चाहिए जो सामाकि स्वास्थ्य को सुधार सके। मनुष्य को न तो जिंदादिली दुश्मन बनना आता है और न ही उसे नमकहलाल मित्र बनना आता है।

मैत्री को चिंरजीव रखने की अनिवार्य शर्त यह है कि उसे टीका टिप्पणी तथा निंदा से मुक्त रखा जाय। हमारी संसद या विधानसभाओं को आक्रामक टीकाखोरों की नहीं बल्कि जिंदादिल समालोचकों की आवश्यकता है। उदात्त तथा दशविहीन समालोचक ही लोकशाही के जाग्रत पहरेदार हैं।

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