जीवन यानि सुंदरता के साथ-साथ शुभत्व तथा शिवत्व की परिशोध। प्रभु ने तो मनुष्य का चेहरा प्रसन्न रखने के लिए ही गढ़ा है और यह तभी संभव है जब अपनी आत्मा की पुकार सुने। हम ही अपने चेहरे को क्रोध, भय, शंका से बिगाड़ लेते हैं। इसका अर्थ यही है की हमारी जो स्थिति बनी है अथवा परिस्थिति बनी है उसका कारण हम स्वयं है।
काका कालेलकर ने पुराने तथा नये जमाने का भेद बताने के लिए एक मार्मिक बात कही है। पुराना जमाना तो पुराना ही था। बेशक उस जमाने में संकुचितता हो, छोटे विचार हों, वहम भी क्यों न हो परंतु उसमें एक व्यवस्था थी। जो अगर आज वर्तमान की बात करे तो यह किसी भी प्रकार से नही दिखाई पड़ता है। ये सिधा-सिधा अंतर है जो भूतकाल एवं वर्तमान काल के इसी अतंर को प्रदर्शित करती है। पूराने जमाने मे सभी लोगों के स्थूल विचार लगभग एक से ही थे। ऐसा नहीं था कि समाज में दुराचार नहीं था परंतु लोग दुराचार को पहचान सकते थे।
वहीं अगर आज की बात करें तो एक व्यक्ति कई चेहरे लिए फिरता है, यह समझ पाना संभव नही है कि कौन मनुष्य कैसा व्यवहार का है अथवा उसकी सोंच कैसी होगी सोंच का अर्थ केवल उसके विचार से ही नही है सोंच का अर्थ उसके बड़ों-छोटों, बुजूर्ग, जवान इनसे उसका व्यवहार साथ ही आचरण, कर्म सभी से है। यदि इसमें विविधता है तो उसका मूल कारण अपनी आत्मा की पुकार को नजरअंदाज करना है।
पूराने समय मे अच्छा क्या है और, बुरा क्या इसका भेद स्पष्ट रुप से प्रतिस्थापित था। अतः जिंदगी का व्यवहार ठीक रुप से चलाने में कोई कठिनाई नहीं होती थी। यदि सब कुछ स्पष्ट होता है तो मनुष्य अगर गिरे भी तो खुली ऑखों से गिरे। यदि किसी नुकसान को भी उठाना पड़े तो भी उसे देख-समझकर उठाए न की अंधेरे मे तीर चलाने वाला कार्य हो। उस समय व्यवहार का चलन सबके लिए एक सा ही था। इसी चलन को संस्कृति कहा जाता है। जो वर्तमान समय मे दिखाई नहीं पड़ता है और इसी चलन में गड़बड़ हो गई है। अब समाज में अनेक प्रकार के चलन शुरु हो गए हैं ये चलन ना केवल हमारे परिवार तक सिमित है इसकी व्यापकता इस प्रकार से बढ़ गई है की आप आजा के क्रियाकलापो के संबंध मे ये समझ ही नही पायेंगे की यह चलन पुरानी है अथवा एकाएक हमारी जीवन मे आई है। ऐसा लगता है मानों आज का पूरा जमाना ही अराजकता का हो गया है। आज बड़े मे बड़प्पन नही है और न छोटो मे छोटापन और न ही जवान मे मेहनत करने की लालसा बची है। आज अगर घर की महिलाओं की बात करें तो वह पुरुषो से दो कदम आगे है। मनुष्य की यह अशांति स्वयंनियंत्रित है। शांति हमारे दरवाजे पर बैठकर चापलूसी करती है कि मुझे कम से कम भीतर तो आने दो। ऐसी स्थिति मे आपकी जो आत्मा की पुकार है वह धुंधला सा प्रतित होता है, जिससे अषांति आपकी आत्मा मे घर तो कर गई है पर इसने आप पर कब्जा करने के बदले आपकी बुध्दि पर कब्जा कर लिया है। यही कारण है की आप अपनी अंतरात्मा से भटक गये है। बुध्दि को नाचना भी आता है और नचाना भी परंतु इसे आत्मा की गहराई पर रास रचाना नहीं आता है। आज की हैवानियत का कारण भी यही है। मनुष्य का संबंध शुभत्व तथा शिवत्व से टूट गया है। घर हो या कार्यालय, व्यापार हो या व्यवसाय जब तक अपने कार्यों में पवित्रता तथा ईष्वरत्व की उपस्थिति आत्मा की गहराई तक नहीं होती अपने हाथ में अषांति तथा क्लेश के अतिरिक्त कुछ भी नहीं आ पाता।
संसार को जीतने की दौड़ में वह स्वयं हारता ही गया है। जीतने के लिए जिद नहीं आयोजन बध्द दीर्घदृष्टि की आवश्यकता होती है। इसके लिए आत्मिक स्वस्थता तथा संतुलन की आवश्यकता होती है। धन के पास पंख तो होते हैं पर ऑख नहीं होती आज का समाज अर्थ नियंत्रित समाज बन गया है जो अपनी आत्मा की पुकार को ना सुनकर भौतिकता हे पिछे चल पड़ा है। मनुष्य धन उपार्जित करने की दौड़ में जिंदगी का संतुलन खो बैठा है। जिंदगी का यंत्र हमें पुकार पुकारकर कहता है कि आपकी व्यस्तता, भीड़, भागदौड़, स्वजनों के प्रति विमुखता ने आपको बेदिल बना दिया है इसलिए जिंदगी संवादिता खोकर किचुड-किचुड़ की आवाज से आपको बेचैन कर रही है। जिंदगी में निराशा, थकावट, हार तथा निष्फलता जीवन के वाद्य को बेसुरा बना दिया है इसका मुख्य कारण अपनी आत्मा की पुकार को न सुनना ही है। इसे दूर करने के लिए अंदर की शांति खोजने के लिए संकल्पबध्द बनें। परमात्मा के साथ टूटते हुए संबंध को जोड़ने का प्रयास करें।
आप इस धरती पर महाकल्याण के लिए आए हैं, न कि महाविनाशक के भयानक पलों को निरखने के लिए। ईश्वर हम पर कोई टिप्पणी करना नहीं चाहता। यदि हम स्वयं ही खुद को बेचारा बना लें तो इसमें आखिर ईश्वर का क्या दोष है। मनुष्य न तो स्वयं स्थिर रहता है और न ही ईश्वर को स्थिर रहने दिता है। मनुष्य का ध्यान इस बात की ओर नहीं जाता की ईश्वर की नजर केवल मेरे उपर ही नही बलकी उसकी नजर मेरे साथ-साथ हर व्यक्ति की ओर है। इसका कारण यह है कि ईस्वर की दृष्टि मे सभी व्यक्ति एक समान है। यहां हम मनुष्य के अलावा सभी जीवों को भी सामिल कर सकते हैं।