चरित्रशीलता नाम के इस निबंध में आज के परिस्थिति के अनुरुप समाज में हो रहे कुछ घटनाओं को प्रदर्शित किया गया है। बारिश का मौसम उपर से उफान मारती यह नदी ना जाने कितनो को बहा ले जाती होगी। उस दिन गांव के होने वाले उस सभा में एक आश्चर्यजनक घटना हुइ जिसे देखकर लोग सोच में पड़ गए थे। एक लोकसेवी संस्था ने गांव एवं आसपास के क्षेत्र के पराक्रमी बच्चों को सम्मानित करने के लिए एक समारोह का आयोजन किया था। इस सम्मान समारोह मे जो भी खर्च हो रहा था उन सभी का व्यय वहन करने वाले एक धनी सामाजिक कार्यकर्ता को मुख्य अतिथि के रुप में आमंत्रित किया गया था। कार्यक्रम प्रारंभ होने पर सबसे पहले तो जो मुख्य अतिथि बुलाये गये थे उसकी भरपेट प्रशंसा की गई जब उसकी प्रशंसा पूरी हुई उसके उपरातं बाद में उस बच्चे को सम्मान करने की घोषणा की गई जिसने बारिश के उस मौसम मे साथ खेल रहे अपने मित्र को नदी में डूबने से बचाया था।
वह सोनू नाम का बच्चा स्टेज पर गया, मुख्य मेहमान ने सोनू को इनाम दिया और उद्घोष करने सोेनू को कुछ बोलने के लिए माइक के आगे भेज दिया। बच्चे ने स्टेज पर जाकर माइक लिया और कहा की मुख्य अतिथि जैसे नीच इनसान से अपनी बहादुरी के लिए इनाम लेकर उस इनाम को मै लज्जित नहीं करना चाहता हूॅ। आज का मुख्य अतिथि गरीबों का शोषक है, चुंगी की चोरी करता है और न जाने कितने कुकर्मों में सम्मिलित रहता है। इसने जो इनाम मुझे दिया है, वह मैं इसे वापिस करता हुॅ। मुख्य अतिथि के रुप मे आये हुए उस व्यक्ति के बारे मे इस प्रकार की बांतो को सुनकर सब चौक गये।
आयोजक संस्था का प्रमुख मंत्री आदि उस पर टूट पड़े और उससे माइक छिन लिया। बच्चे ने रोते-रोते कहा भ्रष्ट लोगों का बचाव करने वाले भी भ्रष्ट ही होते हैं। जिंन्हे पाप का पैसा नहीं खटकता, ऐसे लोग तो मुर्दे होते हैं। इस बात मे कितनी सच्चाई थी यह तो उस क्षेत्र मे रहने वाले लोगों को सायद पता ही हो जो उस व्यक्ति की चरित्रशीलता पर प्रश्न चिन्ह लगाता है। ये सब होने के बाद बच्चा रोते हुए वहॉ से चला गया।
धन से बड़ा कोई और लुटेरा नहीं है क्योंकि यह मनुष्य के चरित्र को ही अपने छापे का लक्ष्य बनाता है। हम अपने दैनिक जीवन मे टी.वी. या अखबारों आदि में आये दिन मनुष्य के खो जाने की खबरें सुनते रहते हैं परंतु यदि हम इसमे हृदय की गहराइयों मे जाकर सोंचे तो हम पायेगें की वास्तव में मनुष्य नहीं खोता। वास्तव में तो मनुष्यता ही खो गई है। यदि आज के समय मे मुझसे कोई यह प्रष्न पूछे कि आजादी के पश्चात भारत ने क्या खोया है। तो मै इसका सीधा सा दो टूक उत्तर देना चाहुॅगा भारत ने आजादी के बाद अपना चरित्र खो दिया है। बुध्दि बढ़ी है, बुध्दिशाली बढ़े हैं। समृध्दि बढ़ी है समृध्दिषाली भी बढ़े हैं परंतु बुध्दि की सुषोभित करने वाली ऐसी चरित्रशीलता नहीं बढ़ी जो चरित्र तथा धन को गौरव प्रदान कर सकती है। फिषर आर्म्स नामक ब्रिटिश पार्लामेन्टरियर ने रोजर शर्मन नाम के संसद के विषय में लिखा है जब भी कहीं पर कभी किसी विषय की चर्चा शुरु हो चुकी हो और चर्चा शुरु होने के बाद उस समय यदि मैं देर से पहुंचता हूॅ तो जब कभी मुझे समझ में नहीं आता कि किस पक्ष को मत देना चाहिए तब मैं किसी कि भी परवाह किये बिना, बिना किसी झिझक के केवल अपने प्रिय मित्र शर्मन की ओर ही देखता हूॅ और वह जिस पक्ष को अपना मत देता हैं उसके उपर पूरे विष्वास के साथ मै भी उसी को ही अपना मत दे देता हूॅ और मैने ये देखा है की मेरे द्वारा जो निर्णय लिया जाता है मैं हमेशा उसमे ठीक ही होता हूॅ। और मेरा यह मानना है कि रोजर शर्मन सत्य के अरिक्त कभी भी दूसरे किसी का पक्ष नहीं लेता।
इसी को हम मनुष्य का वास्तविक चरित्रशीलता मान सकते है, और यहि है मनुष्य की वास्तविक चरित्र। दिन तो बहुरुपिए होते हैं। क्षण से बड़ा जादुगर कोई नहीं होता। क्षण की झोली में से अनेक प्रकार के प्रलोभन मनुष्य की परीक्षा लेने के लिए बाहर निकलते हैं। क्षण मनुष्य के चरित्र को लूटकर गायब हो जाता है परंतु भ्रष्ट लोगों की सूचि में बढ़ोतरी होती ही रहती है। जो सायद कभी खत्म भी नहीं होगी।
पहले के लोग कम बोलते थे इसका अर्थ यह नही की पहले के लोगों को बोलना नही आता था या वे अपने चरित्रशील जीवन के प्रति उत्तरदायी नहीं थे वे कम बोलते थे क्योंकि पहले उसके कर्म बोलते थे। आज का आदमी अधिक बोलता है क्योंकि आज वह इतना सक्षम नहीं रह गया कि उसके कर्म बोल सकें।
छोटे लोगों की ओर कोई ध्यान नहीं देता कि उनकी चरित्रशीलता व महानता से इतिहास बने और उन्हें याद रखा जाय। ऐसी मूक महानता ही आज के दुर्गंधपूर्ण वातावरण में चुपचाप महक फैलाकर दुर्गंध को कम करने का प्रयास करती है। जो एक छोटे लोगों को अपने जीवन को गौरवपूण बनाने मे बाध के रुप मे कर्य करती है।