जिंदगी शानदार कैसे बने- ESSAY IN HINDI

जिंदगी शानदार कैसे बने  इसमें आप अपने जिवन के कुछ उन पहलुओं को अनुभव करेगें जिसे आपने जिया होगा। जब हम छोटे बच्चे थे तब गांॅव में होने वाली रामलीला देखने के लए पूरी-पूरी रात का रतजगा करते थे। और सब तो ठीक ही था परंतु एक बात हमारी समझ में नही आती थी कि हरमोनियम बजाने वाला आदमी अचानक खड़ा होकर राजा के समान युध्द करने लगता था। अपना किरदार निभाकर वही आदमी आरती के लिए दीपक की बत्ती भी तैयार करने बैठ जाता था। महिला का पात्र करने वाला पुरुष पात्र कोने में जाकर खड़ा-खड़ा ही धूम्रपान करने लगता था।

आज की बात अलग है। आज यदि यह दृष्य रोजमर्रा की जिंदगी में दिखाई दे तो आश्चर्य नहीं होगा। जिंदगी शानदार कैसे बने इसमें यहीं बताया गया है। उस जमाने के ड्रामा-कंपनी के मालिक बेचारे अपना पेट भरने के लिए एक ही आदमी से भिन्न-भिन्न प्रकार के अभिनय करवाते थे परंतु आज का आदमी तो पूरे दिन भर में नजाने कितने प्रकार के विभिन्न अभिनय करता है। घर में पत्नी के सामने चिल्लाता हुआ वही पुरुष अपने ऑफिस में अपने कठोर उच्च अधिकारी के समक्ष बिल्ली बन जाता है। चपरासी की छोटी सी गलती पर उसे उघेड़ देने वाला अधिकारी अपने बड़े साहब के समक्ष पूॅछ हिलाता रहता है।

किसी संत कथाकार के द्वारा किसी करुण प्रसंग का वर्णन करने पर गदगद होते हुए कथा के श्रोता भीख मांगने वाले को धक्के देकर निकाल देते है। मंदिर धार्मिक उत्सव को मनाने के लिए दान का स्त्रोत बहा देने वाले लोब अपने गरीब या मध्यम वर्ग के कर्मचारी को पॉच दस दिन वेतन पहले देने या कर्ज के रुप में देने के लिए स्पष्ट रुप से मना कर देते है। जिंदगी शानदार कैसे बने ये शब्द उसी बात को स्पष्ट करता है] प्रतिदिन धार्मिक पुस्तक का पठन करने वाले लोग भी कामचोरी हरामखोरी बहानेबाजी या शोषणवृत्ति से मुक्त नहीं हो पाते।

जिंदगी शानदार कैसे बने यह प्रत्येक के मन में उठा हुआ सवाल है] लोग छुट्टीयांॅ मनाने प्राकृतिक स्थानों पर जाते हैं परंतु] वहां जाकर भी ऐसे रहते हैं मानो प्रकृति से उन्हें छूत का भय हो। प्रकृति के साथ कुछ शुध्द वायु का आंनद लेने के स्थान पर वो एसी कमरों में रहना पसंद करते हैं] इस प्रकार जिंदगी शानदार कैसे बने। एसी कमरे के बाहर कोयल मधुर स्वर से कूकती रहे] निर्दोष कबूतर गुटर गू करते हुए इधर से उधर घूमते हों] नदी अपनी ही मस्ती में बहती रहे] आकाष में उषाकाल में सूर्य की किरणें बेषक रंग बिरंगी रंगोली सजाती रहें परंतु मनुष्य न तो प्रकृति के साथ रह पाता है और न ही स्वयं अपने साथ। और इसके बाद भी वह यहीं सोंचता है कि जिंदगी शानदार कैसे बने।

समाज के साथ भी मनुष्य का संबंध बनावटी होता जा रहा है। किसी की स्मशान यात्रा में वह इसलिए सम्मिलित होता है कि उसके सगे-संबंधियों को खराब न लगे। किसी बड़े आदमी की मृत्यु में वह दुःख के लिए नहीं जाता वरन् दिखाने के लिये जाता है या फिर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने जाता है तो ऐसे में जिंदगी शानदार कैसे बने। ऐसे दिखावटी लोगों की संख्या बहुत बड़ी होती है। दूसरी ओर कोई विरला ही ऐसा मिलता है जो अपने घर के नौकर या नौकरानी के पिता के अवसान पर आष्वासन दे पाता है।

मेरे एक स्नेही जन हैं जो दिखने में बहुत भोले लगतें हैं। उनकी धूर्तता देखकर एक बार मैंने उनसे कहा मैं जो आपको बिलकुल भोला समझता था पर आप तो बहुत कपटी निकले, उन्होंने हंसते-हंसते उत्तर दिया अरे भले आदमी मैं भोला बेशक लगता हूॅ पर वास्तव मे हूॅ नहीं। वास्तव में जिंदगी शानदार कैसे बने यह इसी भाव को आम लोगों के समक्ष लाने का एक प्रयास है।

आज का आदमी अपने भीतर और बाहर के दोनों अलग-अलग व्यक्तियों को छिपाकर जीता है। आदमी को काली चौदस भी महत्वपूर्ण लगती है और नागपंचमी भी। काली चौदस मना मनाकर थका हुआ मनुष्य आखिर यह क्यों नहीं सोच पाता कि प्रत्येक चौदस श्वेत] धवल चौदस बन सके] मंत्र तंत्र के साथ भी मनुष्य का बस स्वार्थ का ही संबंध है। काली चौदस तो साधन है, साध्य तो केवल लाभ है। उसे यह लाभ लाभ पांचम को प्राप्त होता है या फिर सातम को मिलता है। इस बात से उसका कुछ लेना देना नहीं है] तो बताओ भला जिंदगी शानदार कैसे बने।

पहले जमाने के आदमी को ऐसे उपयोगी धन की चाह होती थी जो जीवन को धन्यता प्रदान कर सके। आज के आदमी को अपने वैभव और विलास के लिये धन की आवष्यकता होती है। पहले के लोग थोड़े में ही अधिक का आभास करते थे परंतु आज का आदमी बहुत अधिक में भी और अधिक हो के लिए सांसे भरता रहता है ऐसे में जिंदगी शानदार कैसे बने। यदि मनुष्य भीतर से भरा भरा होता है तो उसे चुटकी भर प्रसाद भी छप्पन भोग के हल की सी तृप्ति प्रदान करता है।

जिंदगी शानदार कैसे बने इसके लिये को-ऑपरेटिव सोसाइटी] अपार्टमेन्ट्स] फ्लैट्स आदि वास्तव में तो सहयोग तथा सहजीवन की अदात्त भावना की ही उपज है। सब साथ में मिलकर रहें, परेषानियों को दूर करके भी प्रेम की उदात्त भावना को दिखाकर रखें] गरीबों को अमीरों का प्रोत्साहन प्राप्त हो तथा अमीरों को गरीबों की स्नेहिल दृष्टि मिले। ईर्ष्या द्वेष तथा संकुचितता से मुक्त प्रेममय] सहानुभूति तथा सहिष्णुता से महकता व सहयोग से छलकता जीवन जीने की जहां पर स्पर्धा होती हो] उसी का नाम है को-ऑपरेटिव सोसाइटी और इसी से ही जिंदगी शानदार बन सकती है। परंतु] दुर्भाग्यवश कोऑपरेटिव या सहकारी सोसाइटी में इस प्रकार का वातावरण नहीं बन पाता। त्याग तथा सहिष्णुता की साफ उपेक्षा आज के शिक्षित मनुष्य के अशिक्षित मन की पैदाइश है। परिणाम स्वरुप आज के मनुष्य का जीवन बाहर से बिलकुल बंद परंतु अंदर से टूट-फूट गया है। इसके पास न तो चैन है] न ही शांति और न ही कोई उत्साह। इसलिए वह चैन तथा शांति प्राप्त करने के लिए धर्म की ओर दौड़ता है। परंतु वहंा पर भी रुपये का राज देखकर वह नाराज हो जाता है। भारतीय संस्कृति का आदर्ष केवल मैं सुखी रहू ऐसा संकुचित न होकर सर्वे जनाः सुखीना भवन्तु है।

सामाजिक तथा राष्ट्रीय जीवन में अभिमुखता वरदान है तो विमुखता घोर अभिशप। आज वृध्दि है, रिध्दि है, समृध्दि है परंतु शुध्दि नहीं है तो ऐसे में फिर वहीं बात आ जाती है कि जिंदगी शानदार कैसे बने। इसका कारण यह है कि आज का जीवन केवल सहवास है यह सहजीवन नही बन पाया है। सहवास तो कैदियों का भी होता है। एक ही जेल में रहकर वे अपनी निर्धारित सजा भुगतते हैं। परंतु इनका जीवन सजीवन नहीं बन पाया है। इनका जीवन सहजीवन नही बन सकता। यदि यह सहजीवन बने तो कैदी दोषों को भुलाकर सद्गुणों के आराधक बन जाएॅ। इस दृष्टिकोण से व्ही-शाताराम की दो ऑखें बारह हाथ फिल्म दृष्टिगत हो जाती है। जिंदगी शानदार कैसे बने इस निबंध का यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि इसके सभी पहलु आम जनमानस के जीवन में प्रभाव डालते ही हैं।

त्यौहार के पवित्र दिनों में मनुष्य में जब कभी करुणा की गंगा उभरती है तब यह सहजीवन की उपज नहीं होती वरन् पुण्य प्राप्ति का अवसर होता है। जहॉ कहीं प्राप्ति के लिए कुछ किया जाता है तब कार्य होता तो है पर उस कार्य में शुध्दता नहीं रहती।

ठस संदर्भ में क्रांति और साधना में एक बहुत बढ़िया बात कही। उसके अनुसार पॉच वर्ष तक एक डिब्बी में कपूर तथा हींग रखी गई परंतु पॉच वर्ष बाद भी कपूर की महक हींग में तथा हींग की महक कपूर में नही  आई । कपूर में कपूर की ही सुगंध रही तथा हींग में हींग की सुगंध बनी रही। जो परस्पर अलिप्त रहे उसे कहते है सहवास।

एक दूसरा उदाहरण दूध तथा शक्कर का है। कॉच के एक प्याले में दूध तथा शक्कर एक साथ रहा । परिणाम स्वरुप दूध शक्कर में व शक्कर दूध में घुल मिल गए। दूध शक्कर के साथ एकाकार हो गया तथा शक्कर दूध में मिल गई इसको कहते है सहजीवन।

आज का आदमी एक दूसरे के साथ रहता हो है पर उनमें निकटता नहीं है। हॉ मिल जाने का, निकटता का दिखावा जरुर करता है। स्नेहमिलन के कार्यक्रम होते हैं, उत्सव मनाए जाते हैं पर फिर भी ये आज का आदमी है बिलकुल अलग-अलग ही। यह मानवता के समक्ष एक बहुत बड़ी चुनौती है कि आज का आदमी किस प्रकार अनोखा बन सकता है। यदि आज के आदमी का यह एकाकीपन या अलग रहने मे उदात्तता हो तो यह एक सिध्दि है परंतु यदि यह संकुचित दायरे को जन्म दे तो मानवता की बहुत बड़ी पराजय है। यदि हम अलग रहने पर भी शालीन व्यवहार से अनोखेपन को चरितार्थ कर सकें तो बहुत अच्छा है, यह करने में कुछ खोना भी पड़ता है। परंतु कभी खोने में भी असाधारण प्रात्पि की अनुभूति होती है। जो भी कोई केवल प्राप्त करने या कुछ पा लेने का लक्ष्य अपने सम्मुख रखता है, उसे भुला दिया जाता है। परंतु जांहा खोने में भी पीछे नहीं हटता, उसे पूजा जाता है तथा भविष्य में भी वह पूजा ही जाएगा। अब कौन किस प्रकार का बनना चाहता है, यह फैसला तो उसे स्वयं ही करना होगा। जिंदगी शानदार कैसे बने इसमें इसी बात का वर्णन किया गया है।

 

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