मनुष्य जब स्वंय को मशीन बनाने का प्रयास करता है और इस रुप मे स्वयं को ढालता है तब उसके जीवन में यदि देखें तो यांत्रिकता के अतिरिक्त और क्या बांकी रह सकता है। परंतु इसके परे जो मनुष्य स्वयं को पहचानता है, वह कभी भी स्वयं को बासी नहीें होने देता। यहां बासी का अर्थ उस रुप से है जहां मनुष्य स्वयं को उस असहजता की ओर ले जाता है जहां उसके जीवन मे लेशमात्र उत्साह नही रहता और यहीं तो जीवन का दुश्मन है।
मध्यम वर्ग के नौकरीपेशा लोग अधिकांषतः बासी बन जाते है। सुबह-सवेरे उठना, अखबार पढ़ना, चाय पीना, छोटी-मोटी पूजा या पाठ करना, रुपये-पैसे का हिसाब-किताब करना, भोजन करना, ऑफिस जाना थोड़ा हंसी-मजाक, थोड़ा काम थोड़ा – बहुॅत फाइलों मे जमा काम करना, अपने बॉस सहकर्मचारियों के साथ जमाने के बिगड़जाने की शिकायत बढ़ती हुई महंगाई तथा भ्रष्ट होती हुई राजनीति पर टीका टिप्पणी, शाम को मंदिर का एक चक्कर या फिर साग-सब्जी आदि की खरीद फरोख्त घर पहुंचकर एक प्याला चाय या थोड़ा-बहुत नाश्ता शाम का भोजन टी.वी. पर धारावाहिक देखकर छोटी-मोटी प्रार्थना और फिर नींद। यह जीवन का ऐसा माध्यम बन जाता है जिसे हम रोजमर्रा का जीवन भी कह सकते है जो लगभग यही उपरोक्त हम मनुष्य का नित्यकर्म बन गया है और यहीं जीवन का दुश्मन है। परिणाम स्वरुप जिंदगी नवीनता ताजगी तथा उमंग खो बैठती है। बहूत से लोग अपने जीवन में परेशानी या कठिनाई का समय आने पर मर गये लुट गए बरबाद हो गए। मै ही हूं जो इतना बोझ सहन कर सकता हूं। ये सब रोना रोने की आदत डाल लेते हैं। और जब भी समस्या से घिर जाते है यही चलता रहता है। अपनी समस्याओं का विष्लेशण करके उनके निराकरण के लिए किसी मार्ग को खोज निकालने का सही दृष्टिकोण विकास करना ही कसौटीपूर्ण क्षणों की मांग होती है। जो मनुष्य नींबू की केवल खटास देखता है वह उसका उपयोग नहीं कर पाता। परंतु जो नींबू की खटास में थोड़ी सी चीनी मिलाकर उसका शर्बत बनाने का कौशल्य दिखा सकता है, उसे खटास का वहम नहीं रहता और जो मनुष्य मे ये कौशल्य नही होता यही उसके जीवन का दुश्मन है।
जो मनुष्य स्वयं को पहचानता है, वह अपनी आसक्तियों का गुलाम नहीं बन पाता। वह यह समझ पाता है कि आसक्तियां ही असंतोष उत्पन्न करती हैं तथा इस आसक्ति रुपी अपने बैरी को किस तरह से हराना है।
यहां पर मुझे एक ऐसे मस्तमौला मनुष्य का प्रसंग याद आ रहा है जिसने राजगद्दी से इनकार कर दिया था।
एक बार एक राजा ने दूसरे राजा के राज्य पर चढ़ाई कर दिया और चढ़ाई करके उस राजा को मार डाला और उसकी गद्दी हथिया ली। उसने कुछ समय वहां पर शासन किया और जब शासन करते हुए बोर हुआ तो एक दिन उसने अपने मंत्री को बुलाया और दरबार लगाने का आदेश दिया उसके बाद वहां के दरबारियों तथा अधिकारियों से कहा – इस राजा के वंष का यदि कोई व्यक्ति हो तो उसे उपस्थित करो, हम उसे गद्दी पर बैठाएंगे। यह सुनकर सब चौक गये पंरतु राजा सत्य कह रहा था।
अधिकारियों ने कहा – राजा के वंश में तो कोई नहीं है। हॉ उसके गोत्र का एक व्यक्ति है परंतु वह फकीर जैसा है। बैरागी है और अकेला ही श्मशान में पड़ा रहता है। उसके बारे मे और अधिक जानकारी नही है उसके लिए उससे मिलने जाना पड़ेगा दरबारियों ने आगे कहा की राजा बनने की बात सुनते ही उसका वैराग्य अपने आप भाग जाएगा। सत्ता की तो बहुत पुरानी आदत है कि वह मनुष्य के सद्विचारों का शोषण कर ही देती है। चलो, उससे मिलकर आते हैं।
अगले ही दिन विजेता राजा मृत राजा के सगोत्री जो वैराग्य जिवन व्यतित कर रहा था उस वैरागी वंशज को मिलने पहुंचा और उसके पास पहुॅच कर उससे कहा – बोल तुझे मुझसे क्या चाहिए, तु जो मुझसे मांगेगा मैं वही तुझे दूंगा। इस बात को सुनकर वैरागी ने राजा की ओर देखा और मंद-मंद मुस्कुराते हुए साधारण भाव से वैरागी ने उत्तर दिया – नहीं राजन मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए। राजा को आश्चर्य का ठिकाना न रहा और उन्होन पूनः उससे आग्रहपूर्वक कहा – मुझे तो आपको कुछ न कुछ देना ही है और मै आपको देकर ही जाउंगा। वैरागी ने कहा – ठीक है तो यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहते है तो यदि आप दे सकते है तो मुझे ऐसा जीवन दें कि मैं जन्म-मरण के चक्र में से मुक्त हो जांउ! मुझे ऐसा आनंद दे कि उसे मिलने के बाद मुझे किसी चीज की भी इच्छा न रहे। तीसरी बात यह है कि मुझे ऐसा वरदान दे कि मुझे वृध्दावस्था स्पर्ष भी न कर सके। राजा ने आश्चर्य भरे नजरों से वैरागी की ओर देखते हुए उत्तर दिया – इन तीनों में से तो मैं कुछ भी नहीं दे सकता। ये सब तो ईश्वर के हाथ में हैं। वैरागी खिलखिलाकर हंस पड़ा और उसने कहा – हे राजा! इसीलिए तो मैंने ईष्वर का सहारा लिया है। मैं जानता हूॅ की आप अपना राज्य मुझे देने आये हैं परंतु मै इस तुच्छ राज्य को लेकर क्या करुंगा। जो मनुष्य हार-जीत का भेद न पा सके वह जीवन- संग्राम में शूरवीर कैसे बन सकता है। इस जीवन में अधिकांशतः लोग अपनी छिपी हुई हार को ही जीत मानकर चलते रहते हैं और यही उनका सबसे बड़ा दुश्मन होता है।