यदि हमारी इच्छा हो तो हम जिंदगी में आए हुए अनेक अवसरों से कुछ न कुछ सीख सकते हैं इसमें से एक है जीवन को कैसे संवारे क्योंकि जिंदगी स्वयं ही एक पाठशाला है। मनुष्य केवल अपने ही नहीं वरन् दूसरों के अनुभवों से भी बहुत कुछ सीख सकता है। जीवन को कैसे संवारे निबंध में हम यही देखने वाले हैं। वास्तव में प्रत्येक खुली हुई आंख देखने योग्य वस्तुओं को नहीं देख पाती। चलते समय प्रत्येक कदम की दिषा तो निर्धारित होती है परंतु लक्ष्य ध्ंाुधला होता है। नये-नये संबंध नियत की दृष्टि से शुध्द नहीं होते। जिंदगी किसी को ठगने का अधिकार प्रदान नहीं करती।
जिंदगी जीने की कला की गाईड बाजार से नहीं खरीदी जा सकती और यदि मिलती भी है तो उसमें किसी और की जीवन दृष्टि की छूत का रोग होता है। इसलिए मनुष्य को जिंदगी की पगडंड़ी स्वयं ही तरासनी होती है। मनुष्य को अपनी दृष्टि का विस्तार करना चाहिए न कि किसी लीक पर जो चलना शुरु किया जो बस उसी पर चलते रहो, जीवन को कैसे संवारे इसमें इसे ही बताया गया है। मनुष्य का स्वभाव क्षुद्र वस्तुओं में फंसकर अपने चारों ओर क्षुद्रता का ऐसा घेरा बना लेता है, जिसमें से वह बाहर नहीं निकल पाता। मनुष्य अपनी अधिकांश शक्ति बेकार की बातों में खर्च कर बैठता है इसलिए वास्तव में जो होना चाहिए उन बातों के बारे में विचार करने का उसके पास समय ही नहीं रहता ऐसे में जीवन को कैसे संवारे। श्रीमती बाबरा बुश ने जिंदगी में जुड़े हुए बहुत से शिक्षा देनेवाले रत्नों के बारे में बताया है। उन्होने प्रत्येक मां-बाप को स्वयं जीवन में आचरण करने के तथा अपनी संतानों को सिखाने वाली दस बहुमूल्य बातों को संक्षेप में प्रस्तुत किया है। श्रीमती बार्बरा बुश के पर्सनल एक्सीलेन्स में संकलित लेसन्स इन लाइफ लेख इस दृष्टि से अत्यंत प्रेरक हैं। इनका आधार लेकर मुख्य बात पर विस्तृत चर्चा की गई है।
1- लोगों में अच्छाई खोजें दोष भूल जाएं-
जब मनुष्य की अपेक्षाएं दूसरों के द्वारा फलीभूत होती हैं तब वह प्रसन्न हो जाता है और यदि उसकी चाह के अनुसार काम नहीं होता तो उसकी भावुकता समाप्त हो जाती है। लेखिका ने अपनी माता के द्वारा इस प्रकार की संवेदनशीलता को ठेस लगने के संदर्भ में ग्रस वॉकर की सलाह दी है। अपनी माता की अच्छी बातें याद रखें आप जो स्वयं चाहते है वे सब अपनी माता के बारे में याद करके गौरव का अनुभव करें। हमें मनुष्य के दोष गिनने की आदत है। यदि इसकी जगह हम मनुष्य के गुण गिनने शुरु करें तो मनुष्य के गुणों की सूचि देखकर हम आश्चर्य में पड़ जाएंगे। दुनिया में कोई भी संपूर्ण नहीं है] न तो हम और न ही और कोई। अतः हमेश दूसरे की अच्छाई पर ही ध्यान दें। जीवन को कैसे संवारे इस निबंध में यही बताया गया है।
2- अपने मित्र बनाएं दुष्मन नहीं –
रैड क्रॉस के स्थापक तथा अध्यक्ष क्लेरा बार्टन से उनके एक मित्र ने भूतकाल में हुई किसी खराब घटना के बारे में याद कराते हुए पूछा] क्या आपको वह बात याद है। क्लेरा ने उन्हें साफ मना कर दिया क्योंकि शत्रुता को भूलने के लिए कड़वी बातों का भूल जाना जरुरी होता है। मनुष्य को मधु संचय के लिए मन मिला है] न कि विष एकत्रित करने के लिए। यदि एक और मित्र देर में बने तो कोई बात नहीं परंतु एक शत्रु तो जल्दी कम होना ही चाहिए। शत्रुता को औदार्यपूर्ण क्षमाभाव से ही समाप्त किया जा सकता है। मनुष्य के होठों से तो मैत्रीभाव का पवित्र झरना बहता है परंतु यदि यह हृदय से बहता तो इस संसार की तस्वीर ही कुछ अलग होती।
3- धन होने या न होने की बात लोगों के समक्ष न करें-
मनुष्य धन को जिंदगी का लक्ष्य बनाकर धन की प्र्रदक्षिणा करता है। उसके पास धन हो तो बड़प्पन और यदि न हो तो रोदन! धन के लिए बड़प्पन का प्रदर्शन और धन के न होने पर संताप करना दोनों ही निन्दनीय हैं। इस प्रकार जीवन को कैसे संवारे] अतः ऐसी चर्चा से अलग रहना ही उचित है।
4- पैसा न होने पर खरीदारी न करें-
आज के मनुष्य को धनवान होने की जगह धनिक जिने का चसका लग गया है। बहुत से लोग देखादेखी ऐसी वस्तुएं खरीद लेते हैं जो उन पर भारी पड़ जाती हैं और वे कर्जदार बन जाते हैं तथा आर्थिक दृष्टि से चौपट हो जाते हैं। ऐसे में जीवन को कैसे संवारे।
5- पड़ौसी की तुलना में बड़ा दिखने की कोषिश न करें-
टेलिविजन,फर्नीचर, बड़ा मकान या जीवन की आवष्यकता की वस्तुओं को पड़ोसी के साथ तुलना करन कि हमारे पास उनसे अधिक है] इस विचार से प्रेरणा लेकर बेकार की वस्तुओं को खरीद लेना निरर्थक है। जिन के पास आपसे अधिक होता है उन्हें उसकी मालिकी में रुचि होती है। आप क्या खरीदते हैं कि नहीं खरीदते हैं उन्हे उसकी लेशमात्र भी परवाह नहीं होती।
6- दूसरे से प्राप्त वस्तु के बदले उसे भी देने का प्रयत्न करें –
मनुष्य के संबंध वसूली पर न चलकर श्रेष्ठ व्यवहार से चलते हैं। आपका कोई रिस्तेदार या स्नेही आपको यदि भोजन के लिए आमंत्रित करता है या घुमाने ले जाता है तो उससे संतुष्ट होकर बैठ जाने में संबंधो की शान नहीं होती। हमें जो प्राप्त होता है उसके फलस्वरुप हमें लौटाना भी आवश्यक होता है। प्राचाीन भारतीय समाज में इसीलिए लेनदेन को महत्वपूर्ण माना जाता था। आप अपने आप जो कुछ भी बढ़िया बना सकते हों अपने घर में पका सकते हों उससे भी अपने स्नेहीजनों का भावपूर्ण स्वागत किया जा सकता है। महत्व भावना का होता है] न कि वस्तु का। एक तरफा व्यवहार या लाभ लेने की नियत संबंध को दीर्घजीवी नहीं बना सकती।
7- मित्रता का मूल्य समझें –
मित्र मनुष्य की सबसे मूल्यवान संपत्ति हैं। मित्रता में वफादारी बहुत महत्वपूर्ण है। वफादारी की ताली एक हाथ से नहीं बजती] उसे तो दोनों हाथों से बजाना पड़ता है। इस मित्रता में उतार-चढ़ाव भी आते हैं परंतु जो मित्र आपके लिए वफादार हों उनके प्रति वफादारी में लेषमात्र भी ढिलाई न बरतें। बडे़ बुजुर्गों के द्वारा की गई ववफादारी की घटनाएं संतानों के लिए प्रेरणा स्वरुप बन सकती हैं। मित्रता में प्रतिष्ठा नापने के स्थान पर यदि केन्द्रस्थन में केवल प्राप्त केरने की नियती हो तो मित्रता को नुकसान पहुंचता है।
8- संतानों को प्रेम करें –
संतानों को भरपूर प्रेम करके हमेषा जिंदगी को खुसियों से सराबोर रखें। अपने प्रेम या चाहना के लिए संतानों को आज्ञाकिंत बनाने या अरमान नही रखना चाहिए। अपनी संतानों को महत्वपूर्ण तथा उरश्रत्तम मानकर उन्हें स्नेह के स्त्रोत से सराबोर कर देना उत्तम माता-पिता का कर्तव्य है और जीवन को कैसे संवारे इसका एक उदाहरण भी है। रॉबर्ट फलद लिखते हैं – आप इस बात पर ध्यान न दें कि आपकी संतान आपकी बात सुनती है या नहीं वरन् इस बात का ध्यान रखें िक वे लगातार आपका निरीक्षण कर रहें है।
9- प्रभु के उपकार के लिए भी जिंदगी को प्यार करें- जो कभी था और जो अब नहीं है, उसके लिए जिंदगी में बेकार का उपद्रव मत करों। जो आपको मिला हुआ है उसे पूरी शिद्दत से स्वीकार करो। मनुष्य के पास दो विवकल्प है] आपको जो अच्छा लगता हो उसे पसंद करें यह अधिक उचित है। आनंद का पूर्ण पल वह है कि जो लोग आपको अच्छे न भी लगते हों उन्हें सहायता करके उन्हें अपना बना लेना] उनके दोषो को समझकर उस पर अमल करना ही आपके हित में है।
10- ईश्वर में श्रध्दा रखें –
भक्तिपूर्ण श्रध्दापूर्ण हृदय से सोचे तो हरि को भजते हुए किसी की लाज जाती हुई नहीं देखी। मनुष्य को इस बात मे श्रध्दा रखनी चाहिए तथा अपने बच्चों को भी ऐसी ही श्रध्दा में विश्वास रखना सिखना चाहिए। रीमती बाबेरा बुश स्वयं अपने तथा अपने पति यू एस प्रेजिडेन्ट जॉर्ज बुश के उपर ईश्वर की बहुत कृपा तथा करुणा से ओतप्रोत भग्यशाली मानती हैं। जीवन में ऑधी-तूफान या उल्टा-सीधा समय तो सभी का आता-जाता रहता है परंतु ईश्वर में विश्वास तथा परिवार एवं मित्रों का जिंदगी में सदा ही महत्व रहता है। इस बारे में बुश दंपत्ती ईश्वर की असीम कृपा तथा करुणा के लिए स्वयं को धन्य मानतें हैं। उनके कम्प्यूटर में कंपोज किए गए परंतु प्रेषित न किए गए पत्रों को रीडर डाइजेस्ट ने उनकी अनुमति से वाचकों के लिए प्रकाशित किया है। ये विचार जिवन को श्रध्दापूर्ण तथा भरा देने वाले उदात्त विचार हैं।
यदि जीवन को कैसे संवारे निबंध में वास्तविकता की बात करें तो हम यह मान सकते है कि जो लोग ईश्वर के प्रति श्रध्दा रखते हैं उनके जिवन मे दुःख स्वयं ही समाप्त हो जाता है।