यदि देखा जाये तो भगवान राम से संबंधित सभी घटनाएं प्रमुख ही हैं परंतु भगवान राम के जीवन से संबंधित 7 प्रमुख घटनाएं के बारे में जानेंगे।
1. बाल्यकाल
यदि हम पुराणों की बात करें तो इसमें श्री राम के जन्म के बारे में स्पष्ट रुप से प्रमाण मिलते हैं कि, भगवान राम का जन्म वर्तमान भारत के अयोध्या नामक नगर में हुआ था।
अयोध्या नगर का जो इतिहास है वह भगवान राम के समय से जूड़ा हुआ है, यह उनके पूर्वजों की ही राजधानी थी। श्रीराम के पूर्वज रघु थे। हम अकसर यह कहावत सुनते आयें हैं कि रघुकुल रित सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाई यह रघु उसी कुल को इगिंत करता है।
इतिहास के जानकारों के अनुसार भगवान राम बचपन से ही शान्त स्वभाव के थे। उन्होंने अपने जीवन में मर्यादा को हमेशा सबसे उपर रखा था। यहीं वजह है कि उन्हें पूरा जगत मर्यादा पुरूषोत्तम राम के नाम से भी जानता है।
जब वह अयोध्या में शासन करते थे उस समय उनका राज्य न्यायप्रिय, खुशहाल और सभी प्रकार से संपन्न माना जाता था। भगवान राम ने कभी भी धर्म के मार्ग को नहीं छोड़ा और जीवन पर्यंत हमेषा इसी मार्ग पर चलते रहे।
बाल्यकाल में ही उन्हे षिक्ष प्राप्त करने के लिये तथा ब्रम्हचर्य पालन हेतु अपने भाईयों के साथ गुरू वशिष्ठ के आश्रम जाना पड़ा। जैसे ही वे शिक्षा प्राप्त कर वापस आये तब लगभग किशोरावस्था में गुरु विश्वामित्र जी उन्हें अपने साथ वापस ले गये जहां उन्होने अपने भाई लक्ष्मण के साथ राक्षसों को समाप्त किया।
ब्रम्ह ऋषि विश्वामित्र जी पूर्व में राजा विश्वरथ थे उनकी तपोभूमि वर्तमान बिहार का बक्सर जिला था, उनके कार्य को आगे बढ़ाते हुए भगवान राम ने ताड़का नामक राक्षसी को भी समाप्त कर दिया। इस दौरान मारीच नाम का राक्षस वहां से भागने पर मजबूर हो गया था।
यदि भगवान राम के बचपन को हमें विस्तार पूर्वक जानना है तो इसका विवरण गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड में मिलती है।
2. माता सीता का स्वयंवर
जब भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ ब्रम्ह ऋषि विश्वामित्र जी के साथ राक्षसों को समाप्त करने के लिये गये थे इसी दौरान गुरु विश्वामित्र जी ने उन्हे वहां के विदेह राजा जनक के यहां ले गये जहां उन्होने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिए एक स्वयंवर समारोह का आयोजित किया गया था।
जहां भगवान शिव जी का एक धनुष था जिसकी प्रत्यंचा चढ़ाने वाले शूरवीर से सीता जी का विवाह किया जाना था। बहंुत सारे राजा महाराजा उस समारोह में पधारे थे।
जब बहुत से राजा प्रयत्न करने के बाद भी धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना तो दूर उसे उठा तक नहीं सके, ऐसी परिस्थिति में भगवान राम ऋषि विश्वामित्र जी की आज्ञा से धनुष उठाने के लिये गये इस दौरान उन्होने ना केवल धनुष को उठाया बल्की धनुष को उठाने के बाद जैसे ही उन्होने उसपर प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयत्न किया।
वह भगवान शिवजी का महान धनुष उनकी प्रत्यंचा चढ़ाने के प्रयत्न से टूट गया। टूटने पर इससे बहुंत जोर की ध्वनी उत्पन्न हुई जिसकी गुंज भगवान परशुराम ने सुना जिससे वे क्रोध से भरे हुए इस सभा में पहुंच गये और इस धनुष के टूट जाने पर क्रोध प्रकट करने लगे।
लक्ष्मण जी को यह बात बहंुत बुरा लगा और वह अपने बड़े भाई का यह अपमान सहन नहीं कर पा रहे थे, जिससे दोनो में बात बहुंत बिगड़ गई, परंतु भगवान राम ने बीच-बचाव करके अपने कोमल स्वभाव से भगवान परशुराम का हृदय परिवर्तन कर दिया।
इस प्रकार से वे शांत होकर वहां से चले गये। परंतु इसका वाल्मिकी रामायण में ऐसा कोई प्रसंग नहीं मिलता है। इस प्रकार से माता सीता का विवाह भगवान राम से हो गया।
3. भगवान राम का वनवास जाना
श्रीराम अपने न्यायप्रियता और कोमल स्वभाव जैसे अनेक गुणों के कारण उनके राज्य के जनमानस में बहंुत ही लोकप्रिय थे। महराज दशरथ को इस बात का भली-भांति ज्ञात था।
महराज दशरथ जी ने उनका राज्याभिषेक कराने के लिये नगर में सुचना फैला दिया। जनता में भी इस बात से प्रसन्नता की लहर दौड़ पड़ी। उस समय भगवान राम के दो भाई भरत और शत्रुघ्न अपने ननिहाल गए हुए थे। कैकेयी की एक प्रिय दासी थी जिसका नाम मंथरा था उसने।
कैकेयी को इस बात पर भरमाया कि राजा दशरथ तुम्हारे साथ बहंुत गलत कर रहें है। इसका तर्क उसने यह दिया की तुम महाराज की सबसे प्रिय रानी हो तो तुम्हारी संतान को राजा बनाना चाहिए पर वे तो राम को राजा बनाना चाहते हैं।
भगवान राम के पिता राजा दशरथ ने उनकी सौतेली माता कैकेयी को उनकी किन्हीं दो इच्छाओं को पूरा करने का वचन दिया था जिसके बारे में मंथरा भी जानती थी और उसे यह भी पता था की रघु के कुल में जो राजा होते हैं उन्हे अपने वचन प्राणों से भी अधिक प्रिय होते हैं।
कैकेयी अपनी दासी मंथरा के बहकावे में आकर इन वचनों के रूप में राजा दशरथ से अपने पुत्र भरत के लिए अयोध्या का राजसिंहासन और राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास मांग लिया।
अपने पिता और कुल के वचन की रक्षा के लिए भगवान राम ने खुशी से चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार कर लिया और अपना होने वाले राजसिंहासन को तिनके के समान त्याग दिया। माता सीता ने एक आदर्श पत्नी का उदाहरण देते हुए अपने पति के साथ वन में जाने की आग्रह की जिसे भगवान राम ने मान लिया।
उनके अनुज भाई लक्ष्मण ने भी अपने आदर्श बड़े भाई राम के साथ चौदह वर्ष तक वन में रहकर उनकी सेवा करने का निवेदन किया जिसे भगवान राम ने मान लिया और इस प्रकार वे वन में चले गये।
जब भरत अपने ननिहाल से वापस आये तब उन्हे यह बात पता चली जिससे उन्हे बहुंत पिड़ा पहंुची और उन्होने न्याय के लिए अपने माता का यह स्वार्थ से भरा आदेश ठुकरा दिया अपने पिता राजा दशरथ से अपने बड़े भाई राम को वापस अयोध्या लाने की आज्ञा पाकर वन में चले गये जहां भगवान राम ने अपने कुल के वचन का मान रखते हुये वापस जाने से मना कर दिया।
ऐसे में उन्होने अपने बड़े भाई के चरणपादुका (खड़ाउ) को लाकर राज गद्दी पर रखा और अपने बड़े भाई भगवान राम की अमानत मानकर राजकाज करने लगे।
4. माता सीता का अपहरण
जब भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी माता सीता के साथ वनवास का समय व्यतित कर रहे थे उसके अंतिम दिनों में रावण ने माता सीता जी का हरण कर लिया।
अगर रावण की बात करें तो वह एक बलसाली राक्षस जो लंका नामक एक सुंदर नगर का राजा हुआ करता था। रामायण ग्रंथ के अनुसार जब भगवान राम, माता सीता तथा उनके अनुज लक्ष्मण कुटिया में थे तब एक सोने के समान चमकता हुआ हिरण उनके कुटिया के पास आ पहुंचा अपने पर्णकुटी के पास उस स्वर्ण मृग को देखकर माता सीता अत्यधिक व्याकुल हो गयीं।
जब माता सीता ने उसे पकड़ने का प्रयास किया तो वह दूर भागने लगा। माता सीता ने श्रीराम से उसे पकड़ने का आग्रह किया अपने पत्नी के आग्रह को वे मना नहीं कर पाये और लक्ष्मण जी को माता सीता की रक्षा के लिये छोड़ कर उसके पिछे चले गये। वास्तव में देखें तो यह राक्षसों के द्वारा माता सीता का अपहरण करने के लिये सड्यंत्र था।
वह स्वर्णमृग वास्तव में रावण का मामा मारीच था। उसने रावण के आदेश पर ही सुनहरे हिरण का रूप धारण किया था। जैसे ही श्रीराम जी को छल का पता चला उन्होने उसका वध कर दिया।
इस दौरान अवसर पाकर मारिच ने भगवान राम के स्वर में लक्ष्मण जी का नाम लेकर पूकारा था जिससे माता सीता लक्ष्मण जी के नाम के ध्वनियों को सुन कर अत्यंत चिन्तित हो गईं। लक्ष्मण जी अपने भाई श्रीराम शक्ती से भली भांति परिचित थे।
परंतु माता सीता ने उन्हे बलपूर्वक अपने भाई की रक्षा के लिये जाने का आग्रह किया। लक्ष्मण जी राक्षसों के छल कपट को अच्छे से समझते थे इसलिए लक्ष्मण जी देवी सीता को असुरक्षित अकेला छोड़कर जाना नहीं चाहते थे।
अपने भाई राम जी के पास जाने से पहले अपने बाण से एक रेखा खींचकर माता सीता जी से निवेदन किया कि वे किसी भी परिस्थिति में इस रेखा का उल्लंघन नहीं करें। जैसे ही लक्ष्मण जी वन की ओर गये माता सीता को अकेला पाकर मायावी रावण ने साधु का वेश बना लिया लक्ष्मण रेखा के कारण वह सिधे प्रवेष नहीं कर पाया जिससे कुटिया के बाहरी द्वार पर खड़े होकर भिक्षा मांगने लगा।
आर्यावर्त की परंपरा के अनुसार द्वार पर आये भिक्षुक एवं भूखे को खाली हाथ नहीं लौटाने की बात को सांेच कर वो भोजन – जल आदि लेकर भूल वश लक्ष्मण रेखा के बाहर निकल गई।
जैसे ही सीता जी लक्ष्मण रेखा के बाहर हुई, घात लगाए रावण ने तुरंत अपना रंग दिखाते हुए माता सीता का अपहरण कर लिया। रावण माता सीता जी को पुष्पक विमान में बल पूर्वक बैठाकर ले जाने लगा। तब जटायु नामक एक विशाल गिद्ध ने आकाश मार्ग में उड़ कर माता सीता को छुड़ाने का प्रयास किया।
राक्षसों का राजा रावण अपने खड्ग से जटायु के पंख को काट देता है जिससे जटायु उड़ने में असमर्थ हो जाता है और इस प्रकार वह पृथ्वी पर गिर जाता है। रावण अपने पुष्पक विमान में सीता जी को लेकर आगे बढ़ने लगता है।
पुष्पक विमान में आकाशमार्ग से जाते समय जैसे ही माता सीता को समय मिलता है वह अपने आभूषणों को उतार कर नीचे धरती में फेंकने लगती हैं जिससे श्रीराम जी को उनके लिये साक्ष्य मिल सके।
5. भगवान राम का हनुमान एवं सुग्रीव से मिलन।
जब माता सीता को हरण कर रावण ले गया तब उनकी खोज में भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ वन में इधर-उधर भटकने लगे। ऐसे समय में उनकी माता शबरी से भेंट हुई जो कई वर्षों से उनकी आने की प्रतिक्षा कर रही थी।
इसके संबंध में उनके आने का भेद उनके गुरु मातंग ने दिया था। इस प्रकार उन्हे माता शबरी से वानर राज सुग्रीव के बारे में पता चला जो माता सीता की खोज में उनकी सहायता कर सकते थे।
जब श्रीराम उनके बताये हुये मार्ग पर आगे बढ़ते गये तब उन्हे अपने सबसे बड़े भक्त महाबली हनुमान और वानर राज सुग्रीव से मिले। इन्होने भगवान राम का माता सीता को खोजने में पूर्णं रुप से सहयोग किया। आगे चलकर महाबली हनुमान भगवान राम के सबसे बड़े भक्त बने।
6. लंकापति रावण का वध
जब भगवान राम ने सुग्रिव के बड़े भाई बाली का वध कर उसके किये की सजा देकर सुग्रिव को वानर राज बनाया उसके पश्चात वानर राज सुग्रिव ने चारो दिशओं में माता सीता की खोज शुरु कर दी।
इसमें हनुमान जी भी थे, उन्होने समुद्र को अपने एक छलांग से पार कर लंका नामक नगरी में पहुंच गये जहां उन्हे माता सीता होने की गुप्त सुचना मिली।
इस प्रकार उन्हे माता सीता मिल गईं। यह बात भगवान राम को पता चला तब हनुमान जी के लिये भागवान राम के मन में प्रेम और भी अधिक गहरा हो गया इस प्रकार वह भगवान राम के और भी प्रिय हो गये।
इसके बाद माता सीता को वापस लाने की प्रक्रिया शुरु हुई, रामायण में माता सीता की खोज में लंका (श्रीलंका) जाने के लिए 48 किलोमीटर लम्बे 3 किलोमीटर चोड़े पत्थर के सेतु का निर्माण करने का उल्लेख प्राप्त होता है, जिसको पूरा संसार रामसेतु के नाम से जानते हैं।
माता सीता को को पुनः प्राप्त करने के लिए भगवान राम ने महाबली हनुमान, रावण के छोटे भाई विभीषण, सुग्रिव तथा उसके विषाल वानर सेना की सहायता से रावण के पूरे कुल का नाश तथा पराजीत करके माता सीता को प्राप्त किया वापस लौटते समय रावण के छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बनाया।
7. अयोध्या–वापसी
जैसे ही भगवान राम ने रावण का वध किया लगभग उसी समय उनका वनवास का समय भी समाप्त हो गया और इस प्रकार वे पुष्पक विमान की सहायता से अयोध्या के लिये रवाना हो गये।
अयोध्या के पावन नगरी में पहुंचकर उन्होने वहां पूरे परिवार से भेंट करके अपने वनवास के दौरान बने मित्रों से भेंट कराई सबसे मिलने के बाद भगवान राम और माता सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ।
इस प्रकार पूरा राज्य उनके आने की खुशी में अपने घरों को दीप से रोशन किया जिसे हम आज भी वर्तमान समय में दिवाली के रुप में मनाते हैं।
FAQ
भगवान श्री राम कितने वर्षों तक जीवित रहे?
यदि ब्राम्हण/हिंदू धर्मषास्त्रों के अनुसार भगवान राम के जीवित रहने की बात करें तो यह इसके अनुसार वे लगभग 11 हजार वर्ष तक जीवित रहे। इन धर्मषास्त्रों में द्वापर युग को 864000 वर्ष माना गया है, चूंकि भगवान राम का जन्म त्रेतायुग के अंत में माना गया है, इस तरह अभी कलियुग का केवल 5121 वर्ष से अधिक हो गए हैं यदि इन सबको जोड़ा जाये तो यह 869121 से अधिक का समय भगवान के जन्म को हो जाता है। इसी कारण से भगवान राम का धरती पर 11000 वर्ष तक जीवित रहने की बात कही जाती है। परंतु इसमें कुछ जानकारों की माने तो यह संभव नहीं लगता है, उनका मानना है कि जो गणना की जाती है संभवतः वह संख्याओं में न होकर संस्कृत के प्राचिन शब्दों में लिखी हो सकती है जिसका अर्थ सही अनुमान लगापाना कठीन हो सकता है।
राम को भगवान क्यों कहते हैं?
श्रीराम जी एक असाधारण व्यक्ति थे जिन्होने अपने जीवन में ऐसे कार्य किये जो एक साधारण मनुष्य नहीं कर सकता था। भगवान राम के स्थान पर यदि कोई साधारण मनुष्य होता तो इतने कष्टों और त्याग को कर पाना किसी भी तरह से संभव नही लगता। रामचन्द्र जी भगवान विष्णु के अवतार थे यहीं कारण है कि उन्हे भगवान माना जाता है। उन्हे मनुष्य रुप में इसी लिये जन्म लेना पड़ा क्योंकि रावण को यह वरदान प्राप्त था की उसे कोई नहीं मार सकता था। परंतु उसने अपने घमण्ड वष मनुष्यों की अवहेलना की और वरदान मांगते समय मनुष्य जाति से किसी प्रकार की हानी ना पहुंचा पाने की बात कर निष्चिंत हो गया। यही कारण था की भगवान विष्णु को मनुष्य के रुप में जन्म लेना पड़ा।
राम भगवान असली में कैसे दिखते थे?
यदि भगवान राम की चेहरे की सुंदरता की बात करें तो रामायण में जो वर्णित है उसके अनुसार भगवान राम जी का चेहरा चंद्रमा के समान चमकदार और सौम्य तथा अत्यंत सुंदर था, भगवान राम की दोनो आंखे बड़ी और कमल के समान प्रतित होती थी, उनकी नाक उनके चेहरे के अनुरुप सुडौल तथा हल्की बड़ी थी, उनके होठों के बारे में बताया गया है की उनके होंठ सूर्य के तरह लाल थे। इस प्रकार भगवान राम का चेहरा बहुंत ही सुंदर प्रतित होता था।
राम जी की कितनी पत्नियां थी?
भगवान राम जी का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब राजा महाराजाओं के कई पत्नियां हुआ करती थीं। परंतु भगवान राम ने अपने पूरे जीवन में केवल एक ही विवाह किया था, और उनकी पत्नी माता सीता जी हैं।
राम के आखिरी वंषज कौन थे?
भगवान राम के आखिरी वंषज का सही सही अनुमान लगा पाना थोड़ा कठीन है, परंतु उनके दो पुत्र थे लव और कुष कई राजा महराजाओं को इनके पुत्रों के वंषजो से जोड़ कर देखा जाता है, इनमें सिसोदिया, कुषवाहा जिन्हे कच्छवाहा भी कहा जाता है, इसी के साथ शाक्य, गुहिल जो राजपूत वंष हैं इन सभी को भगवान श्रीराम के वंषज के रुप में देखा जाता है। इसी के साथ ही जयपुर राजघराने की महारानी पद्मिनी देवी और उनका पूरा परिवार स्वयं को भगवार राम के पुत्र कुष के वंष से ताल्लुक रखते हैं।
राम का धर्म क्या था?
भगवान राम जी रघु के कुल से थे, जिनके लंबे वंषावली के बाद रामचंद्र जी का इस वंष में जन्म हुआ था। महर्षि कूर्म कष्यप के वंष से जो सूर्यवंषी हुये उसी के इच्छवाकु कुल में भगवान राम का जन्म हुआ।
राम का धर्म क्या है?
यदि हम भगवान राम के धर्म के विषय में बात करें तो भगवान राम कहते हैं कि धर्म संसार में सबसे महत्वपूर्ण चीज है, धर्म के कारण सत्य स्थापित होता है। भगवान राम कहते हैं कि जिस प्रकार माता और ब्राम्हण की इच्छा का पालन करना धर्म है ठीक उसी प्रकार पिता की आज्ञा का पालन करना भी सबसे बड़ा धर्म है।
राम जी की लंबाई कितने फुट थी?
शास्त्रों की बात करें तो वाल्मीकि रामायण के अनुसार यदि देखा जाये तो, इसके अनुसार श्रीराम जी की लंबाई 7 से 8 फीट के बीच में थी। कुछ जानकारों की माने तो उस समय एक साधारण व्यक्ति की भी लम्बाई संभवतः लगभग 6-7 फीट का होना एक आम बात थी, उस समय लोगों की लम्बाई आज के हिसाब से कहीं अधिक हुआ करती थी।
राम का रियल नाम क्या है?
भगवान राम के वास्तविक नाम की बात करें तो इसमे कई इतिहास के जानकारों का अलग अलग मत है परंतु इसके बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता है जैसे कई लोगों का मानना है की भगवान राम का वास्तविक नाम दषरथ राघव माना जाता है परंतु यदि एक प्रकार से देखा जाये तो यह उसी प्रकार का नाम है जैसे की हम आज के समय में अपने घर के बच्चों को और भी कई नामों से पूकारतें है। यदि भगवान राम जी का पूरा नाम कहें तो गुरु वषिष्ठ ने इनका नाम रामचंद्र रखा था। परंतु संसार के लोग उन्हे राम के नामसे जानने लगे।
विवाह के समय सीता जी की उम्र क्या थी?
भगवान राम और माता सीता जी के विवाह के समय उम्र के संबंध में एक दोहा है वर्ष अठारह की सिया, सत्ताईस के राम। कीन्हो मन अभिलाष तब, करनो है सुर काम।। इस दोहे की अगर हम बात करें तो इसके अनुसार जब इनका विवाह हुआ था तब भगवान राम जी का उम्र 27 और माता सीता जी की उम्र 18 वर्ष थी।
राम जी का गोत्र क्या है?
भगवान राम जी रघु के कुल से थे, जिनका संबंध इक्ष्वाकु कुल से था। इसके अनुसार यदि राम जी के गोत्र की बात करें तो यह विवस्वान था और उनका वंष सूर्यवंषी कहलाता था।
राम कौन से कास्ट थे?
भगवान राम जी को इक्ष्वाकु कुल के राजा दषरथ के पुत्र के रुप में जाना जाता है। भगवान राम को विष्णु के अवतार के रुप में देखा जाता है, यह इक्ष्वाकु कुल सूर्यवंष कहलाता है। और यदि वर्तमान कास्ट सिस्टम में इन्हे देखा जाये तो इस समय के हिसाब से इन्हे क्षत्रिय माना जाता है।
क्या राम सेतु अभी भी है?
यदि हम राम सेतु की बात करें तो राम सेतु अब तक के वैज्ञानिक तथा जो भूवैज्ञानिक अनुसंधानों से सिध्द हुआ है। यह प्राकृतिक चूना पत्थर की चट्टानों से बनी लगभग 48 कि.मी. की लंबी संरचना के रुप में आज भी दिखाई देती है। परंतु इसके बहुंत से स्थान पानी में डुब चुकें हैं। यदि हम इस स्थान की सैटेलाईट इमेज देखते हैं तो हमें यह स्पष्ट प्रतित होता है।
क्या राम सेतु सच में राम ने बनाया है?
यदि हम राम सेतु को इसके ऐतिहासिक महत्व के दृष्टि से देखें तो इसके संबंध में जो रामायण में वर्णन मिलता है, इसमें कहीं से भी किसी प्रकार का संदेह नहीं होता है। परंतु यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोंण से देखें तो विज्ञान साक्ष्य चाहता है, जिसके कारण इसमे संदेह होना एक आम बात है। इस संबंध में 2007 के एएसआई के रिपोर्ट का हवाला देते हुये भारत सरकार ने कांग्रेस के शासन काल में यह कहा था कि राम सेतु एक प्राकृतिक संरचना से ज्यादा कुछ नहीं था। परंतु कुछ जानकारों की माने तो उनके अनुसार कुछ और भूवैज्ञानिकों के द्वारा उस स्थान पर मिले पत्थरों के कार्बन डेटिंग किये जाने पर इसे उतना ही पुराना पाया गया जितना की भगवान राम के समय को माना जाता है। कुछ बुध्दिजीवियों की माने तो यदि किसी स्थान में कोई निर्माण कार्य किया गया है, जहां प्राकृतिक रुप से परिवर्तन होना एक आम बात है, यदि ऐसे स्थान में कुछ वर्षों बाद हम उसके साक्ष्य खोजते हंै तो यह संभव है कि कुछ साक्ष्य मिल सकें, परतुं यदि इतने हजारों वर्षों के पश्चात किसी प्रकार का साक्ष्य प्रमाण खोजें तो यह एक प्रकार से रेत में सुई खोजने के समान होगा। उनका मानना है कि यदि हम रावण के अस्तित्व को नहीं नकार सकते तो भगवान राम और रामसेतु को कैसे नकार सकते हैं, वह भी उस सेतु को जिसे कुछ सौ वर्ष पूर्व श्रीलंका आने जाने के लिये उपयोग में लाया जाता रहा है, जिसके संबंध में कई अतिहासकारों ने अपने लिखे हुये किताबों में जिक्र किया है।
राम कहां पैदा हुये?
भगवान राम के बारे में जो रामायण में समय वर्णित है, उसके अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष के नवमी तिथि को दिन के समय सरयू नदी के किनारे पर बसे अयोध्या नामक सुंदर नगरी में राजा दषरथ के महल में हुआ था।