भीमराव अंबेडकर

कोई व्यक्ति अपने जीवन मे कितनी कठीनाइयों का सामना कर सकता है, वह भी ऐसे सपने के लिये जिसके सफल होने की एक प्रतिशत भी उम्मीद ना हो और उस एक प्रतिशत उम्मीद के लिये अपना सर्वस्व समर्पित कर दे उसे भीमराव आम्बेडकर कहते हैं।

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इस महान पुरुष को देश के लोग प्यार से बाबासाहब आंबेडकर के नाम से जानते हैं, बाबासाहब बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे उनमे एक विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, समाजसुधारक जैसे और भी कई गुण थे। वे एक दलित समुदाय से आते थे जिस कारण उन्हे भी उस समय उन पिड़ाओं से गुजरना पड़ा था।

उन्होने अछूतों (दलितों) के समर्थन मे सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध दलितों को जागरुक करने के लिये देश मे अभियान चलाया था। इसके साथ ही उन्होने हर उस शोषित लोगों का जैसे श्रमिक, महिला और किसानों के अधिकारों का भी समर्थन किया। उन्होने देश के स्वतंत्रता आदोंलनो मे स्पष्ट रुप से भाग नहीं लिया था परंतु इस दौरान उन्होने समाज के पिछड़े, दबे, कुचले लोगों के अधिकारों के लिये ठोस आवाज उठाई थी।

महात्मा गांधी इन्हे बहंुत पसंद करते थे। जब भारत स्वतंत्र हुआ तब बाबासाहब को भारत के प्रथम विधि एंव न्याय मंत्री, बनाया गया था। बाबासाहब को मंत्री पद दिलाने मे महात्मा गांधी का महत्वपूर्ण योगदान था। इन्हे भारतीय संविधान के जनक के रुप मे देखा जाता है।

भीमराव अंबेडकर का प्रारंभिक जीवन

बाबासाहब भीमराव अंबेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल सन् 1891 को ब्रिटिश भारत के मध्य प्रांत स्थित महू नामक स्थान के सैन्य छावनी में हुआ था। जो वर्तमान समय मे मध्यप्रदेष राज्य के अंर्तगत आती है। उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता भीमाबाई थीं, बाबासाहब अपने माता पिता के 14 वीं एवं सबसे छोटे संतान थे।

भीमराव के दादा जी का नाम मालोजी सकपाल था, भीमराव के मां की मृत्यु सन् 1896 में हुआ था, इस समय उनकी उम्र पांच वर्ष के करिब थी। जिसके कारण कुछ समय तक उनकी देखभाल बुआ मीराबाई ने की थी, जो रामजी की बड़ी बहन थी। कुछ समय पश्चात रामजी ने अपनी बड़ी बहन के कहने पर जीजाबाई से पुनर्विवाह कर लिया।

जिससे भीमराव को मां का प्यार भी मिल सके। कुछ समय पश्चात जब रामजी अपने पूरे परिवार के साथ बंबई आ गये। इसी समय 1906 मे भीमराव की पहली शादी रमाबाई से हुई जिनकी उम्र नौ साल थी, इस समय भीमराव की उम्र लगभग 15 वर्ष रही होगी।

शादी के कुछ समय बाद भीमराव व रमाबाई के पांच बच्चे हुए जिनमें चार बेटा जिनके नाम यशवंत, रमेश, राजरत्न और गंगाधर था, एक बेटी जिसका नाम इन्दु था। भीमराव के पांच संतानो मे से केवल एक ही (यशवंत) जीवित बचा तथा चार बच्चों की बचपन में ही मृत्यु हो गई।

भीमराव का परिवार कबीर पंथ को मानते थे ये मराठी मूल के थे। इनका पैत्रिक गांव वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले का आंबडवे नामक गांव था। बाबासाहब हिंदू थे तथा महार जाति से ताल्लुक रखते थे, उस समय महार जाती को अछुत समझा जाता था और विभिन्न जातियों के बिच उच-नीच, छुआ-छुत बहुंत होती थी।

जिससे बाबासाहब को सामाजिक रूप से अत्यंत भेदभाव सहन करना पड़ता था। भीमराव आम्बेडकर के पिता रामजी सकपाल जब महू मे थे उस समय वह ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना के महू छावनी में कार्यरत थे। जिससे लंबे समय तक सेवा करने के दौरान सेना मे सूबेदार के पद तक पहंुच चुके थे।

बाबासाहब को बचपन मे अपनी दलित जाति के होने के कारण सामाजिक प्रतिरोध का निरंतर सामना करना पड़ रहा था। जब भीमराव स्कूल जाने के योग्य हुये तब स्कूल की पढ़ाई में अच्छे होने के बाद भी बाबासाहब को समाज मे फैले छुआछूत के बिमारी के कारण अनेक प्रकार की कठनाइयों का सामना करना पड़ता था। उस अबोध बालक को समाज के ये भाव बड़े ही विचित्र लगते थे।

जिस उम्र मे बच्चे खिलौनो से खेला करते हैं उस उम्र मे भीमराव ये सोंचने लगे थे की उनके जैसे ही लोग उनके साथ ऐसा बर्ताव क्यों कर रहे हैं। उन्हे उस समय जात-पात, छूआछुत का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था। भीमराव को प्रारंभिक षिक्षा के लिये उनके पिता श्री रामजी सकपाल ने 7 नवम्बर 1900 को सातारा की सरकारी स्कूल में भर्ती करवाया जिसमे उन्होने अपने बेटे का नाम भिवा रामजी आंबडवेकर के नाम से दर्ज कराया था।

बाबासाहब के बचपन का नाम भिवा था। आंबेडकर का मूल उपनाम सकपाल की बजाय आंबडवेकर लिखवाया था, इसका कारण यह था की कोकण प्रांत के जो लोग होते थे वे अपना उपनाम गांव के नाम से रखते थे तथा उनके गाँव का नाम आंबडवे था। अतः आंबेडकर के आंबडवे गांव के होने से आंबडवेकर उपनाम दर्ज करवाया गया था।

भले ही उस समय छूआछुत का प्रचलन बहंुत अधिक था परंतु उच्च वर्ग मे भी बहंुत से ऐसे लोग थे जो इस प्रकार छूआछुत के धारणा को नहीं मानते थे तथा यदि खानपान को छोड़ दिया जाये तो सबसे समान व्यवहार करते थे।

ऐसे लोग मे से एक कृष्णा केशव आंबेडकर थे, जो उसी स्कूल मे एक ब्राह्मण शिक्षक थे भीमराव के व्यवहार और भोलेपन के वजह से उनसे विशेष स्नेह रखते थे, उस ब्राम्हण षिक्षक ने उनके नाम से आंबडवेकर हटाकर अपना आंबेडकर उपनाम जोड़ दिया। उसी समय से बाबासाहब का उपनाम आंबेडकर हो गया, और वर्तमान समय मे हम इन्हे इसी नाम से जानते हैं।

भीमराव अंबेडकर की शिक्षा

भीमराव अंबेडकर जी को बाल्यकाल से ही पढ़ाई मे इतनी रुची थी की उनके शिक्षक भी उनकी सराहना करने से स्वयं को नही रोक पाते थे। बाबासाहब ने बहुंत लंबे समय तक अध्ययन किया इस दौरान उन्होने कई डिग्रियां प्राप्त की भीमराव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कि सुरुआत 7 नवंबर सन् 1900 को सातारा की सरकारी स्कूल से किया जो सातारा के राजवाड़ा चैक के पास स्थित है। 

वर्तमान मे इस स्कूल का नाम प्रतापसिंह हाईस्कूल कर दिया गया है, बाबासाहब ने इसी दिन से स्कूल जाना सुरु किया था, जिससे 7 नवंबर को महाराष्ट्र सरकार द्वारा विद्याथ दिवस मनाया जाता है। स्कूल के समय मे उन्हे भिवा के नाम से जाना जाता था।

कुछ जानकारों का कहना है कि भीमराव जब अंग्रेजी माध्यम मे चैथी कक्षा की परीक्षा अच्छे अंको से पास किया तब उनके परिवार और उनके जाति के लोगों द्वारा सार्वजनिक रुप से समारोह के रूप में मनाया गया था, इसका मुख्य कारण था कि एक दलित समुदाय जिसे उस समय अछुत मानते थे उनके बिच का कोई बच्चा पढ़ाई मे इतना होशियार था कि इस कक्षा तक पढ़ाई कर पास हो गया।

यह उस जमाने मे बहुंत बड़ी बात थी, कहा जाता है कि इसी समय उनके पारिवारिक मित्र दादा केलोस्कर जो एक लेखक भी थे उन्होने स्वयं के द्वारा लिखी बुद्ध की जीवनी उन्हें भेंट किया। इसी बाल्यकाल मे ही उन्होने गौतम बुध्द के बारे मे पढ़ा तथा बुध्द और उसके विचारों के बारें मे जाना इससे वे बहंुत प्रभावित हुये थे। धीरे-धीरे समय बितने लगा भीमराव का पूरा परिवार बंबई (मुंबई) चला आया।

यहां आने के बाद उन्होंने एल्फिंस्टोन नामक रोड मे स्थित एक शासकीय स्कूल में अपनी आगे कि शिक्षा ग्रहण किया। जब उन्होेने 1907 में अपनी हाई स्कूल तक की शिक्षा पूरी कर ली इसके पश्चात अगले ही वर्ष उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्येष्य से एल्फिंस्टन नामक कॉलेज में प्रवेश लिया, यह काॅलेज बॉम्बे विश्वविद्यालय के अधिन था।

यदि उनकी यहां तक की शिक्षा की बात करें तो वे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होने एक दलित समुदाय से होने के बावजूद इस स्तर की शिक्षा प्राप्त किया था। उस जमाने मे सवंर्ण लोगों मे भी इस स्तर की पढाई बहंुत कम लोग ही कर पाते थे। सन् 1912 तक उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में स्नातक डिग्रियां प्राप्त कर लिया।

इस दौरान उन्हे नौकरी भी मिल गई और वे बड़ौदा मे राज्य सरकार के साथ काम करने लगे। इसी समय भीमराव के पिता की तबियत अचानक खराब होने लगी जीस कारण उन्हें अपने पिता जी को देखने के लिए मुंबई वापस आना पड़ा। 2 फरवरी 1913 को उनके पिता जी की मृत्यु हो गई। भीमराव आगे की पढ़ाई जारी रखना चाह रहे थे, और वे कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई करना चाह रहे थे।

जब इस बात के लिये बाबासाहब ने सयाजीराव गायकवाड़ को बताई जो बड़ौदा के गायकवाड़ थे उनके द्वारा उन्हे आर्थिक रुप से सहायता दी गई। यह सहायता छात्रवृत्ती के रुप मे तीन वर्षों तक 11.50 डाॅलर प्रतिमाह प्रदान की गई थी। इस प्रकार भीमराव ने 1915 मे अपनी स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की, उनका प्रमुख विषय अर्थशास्त्र था।

इसके आलावा उन्होने अतिरिक्त विषय के रुप मे इतिहास, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान और दर्शनशास्त्र लिया था। भीमराव ने पढ़ाई के दौरान बहुंत से विषयों पर शोध भी किया जैसे उनके द्वारा स्नातकोत्तर मे प्राचीन भारतीय वाणिज्य विषय पर शोध कार्य की प्रस्तुति, इसी प्रकार 1916 मे भारत का राष्ट्रीय लाभांश।

बाबासाहब को गायकवाड़ जी द्वारा जो छात्रवृत्ती प्रदान की गई थी वह तीन वर्षों के लिये थी। परंतु भीमराव ने अपनी अमेरीका की पढ़ाई दो साल मे पूरा कर लिया उसके पश्चात उन्होने उनके एक वर्ष की छात्रवृत्ती का उपयोग लंदन मे पढ़ाई करने के लिये किया।

इस दौरान 1916 मे उन्होने लंदन के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में स्नातकोत्तर का अध्ययन पूरा किया उनके द्वारा यहां अर्थशास्त्र मे डाॅक्टरेट किया गया था। इसी समय उनके द्वारा ग्रेज इन में बैरिस्टर के लिए भी प्रवेश लिया गया था।

जब गायकवाड़ जी के छात्रवृत्ती सहयोग का समय समाप्त हुआ तो बाबासाहब को आर्थिक रुप से परेशानियों का सामना करना पड़ा वह अपने थीसिस को बिच मे छोड़कर आना नहीं चाहते थे परंतु गायकवाड़ जी के उनपर पहले ही इतने अहसान थे कि वे उन्हे और सहयोग के लिये बोल नहीं पाये इस प्रकार वे बिच मे ही भारत लौट आये। जब वे भारत वापस आ रहे थे वह समय प्रथम विश्वयुध्द का था।

उस समय उनका सामान दूसरे जहाज पर रखवाया गया था, जिसपर जर्मन सैनिकों के हमले से जहाज डूब गया और उनके सामान के साथ उनका पुस्तक संग्रह भी डूब गया। भीमराव भारत आने के पश्चात बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में कार्य करने लगे इस दौरान उन्हे अपने दलित समुदाय के होने के कारण अचानक से छूआछुत का सामना करना पड़ा, इस दौरान उनके साथ ऐसे कई छोटी छोटी घटनायें हुई जिससे उनके मन मे बंहुत गहरी पिड़ा पहुंची।

उन्होने इन सबसे तंग आकर वहां की नौकरी छोड़ दी बाद मे स्वयं का व्यवसाय करना सुरु किया परंतु उन्हे सफलता नहीं मिल रही थी। अपने एक पूराने जान पहचान के अग्रंेजी अधिकारी के सिफारिष पर उन्हे मुंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर की नौकरी मिल गयी।

उन्होने वहां कुछ समय तक पढ़ाने का कार्य किया, बाबासाहब इतने पढ़े लिखे होने के बाद भी उनका अध्ययन के प्रति रुची बिलकुल भी कम नहीं हुई और वे पूनः अपने कूछ अधुरे अध्ययन को पूरा करने इच्छा प्रगट हो गई इसी दौरान 1920 में कोल्हापुर के शाहू महाराज जी और उनके एक पारसी मित्र के सहयोग एवं कुछ स्वयं के बचत से उन्हे एक बार पूनः इंग्लैंड जाने का मौका मिल गया।

1921 में विज्ञान स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की, जिसके लिए उन्होंने प्रोवेन्शियल डीसेन्ट्रलाईज़ेशन ऑफ इम्पीरियल फायनेन्स इन ब्रिटिश इण्डिया खोज ग्रन्थ प्रस्तुत किया था। इस दौरान उन्हें ग्रेज इन ने बैरिस्टर-एट-लॉज डिग्री प्रदान की और उन्हें ब्रिटिश बार एशोसिएसन में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश भी मिल गया। सन् 1923 मे भीमराव ने अर्थशास्त्र में डॉक्टर ऑफ साईंस की उपाधि प्राप्त की।

उनकी थीसिस प्राब्लम आफ दि रुपी इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्यूशन पर थी। जब बाबासाहब लंदन मे अपना अध्ययन पूरा कर भारत वापस आ रहे थे तब उन्होने लौटते हुये लगभग तीन माह जर्मनी में रुके यहां उन्होने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन बोन विश्वविद्यालय में जारी रखा। परंतु उनके पास इतना समय नहीं था कि वे वहां अधिक समय तक रुककर वहां अध्ययन जारी रख सकें।

भीमराव अंबेडकर जी अपनी तीसरी डाॅक्टरेट (एलएल॰डी॰) कोलंबिया विश्वविद्यालय तथा चैथी डाॅक्टरेट सन् 1952 मे डी0लिट0 उस्मानिया विश्वविद्यालय से पूरा किया था। इतने पढ़ेलिखे थे डाॅ. भीमराव अंबेडकर साहब।

इन्हे भी देखें

1. मोदी सरकार के 14 महत्वपूर्ण कार्य
2. बाजीराव प्रथम

डाॅ. भीमराव अंबेडकर एवं संविधान से संबंधित प्रश्न जो लोग पूछते हैं

बीआर अंबेडकर के तीन नारे कौन से हैं?

बाबासाहब ने अपने रैलियों और प्रदर्शनों मे बहुंत से नारे दिये हैं जिनमें से कुछ आज भी प्रचलित हैं जैसे - शिक्षित बनो, संघर्ष करो और संगठित रहो ये तिनों नारे उन्होने एक रैली को संबोधित करते हुये अपने समर्थकों को दिया था।

बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के मुख्य विचार क्या थे?

बाबासाहब का मानना था कि, जीवन लंबा होने की बजाए महान होना चाहिए, इस प्रकार से उनकी सोच थी कि ऐसे जीवन का क्या मतलब जिसका कोई लक्ष्य ना हो।

संविधान के माता पिता कौन हैं?

उनके कुछ भोले भाले अनुयायी जिन्हे संविधान के बारे मे कुछ विशेष जानकारी नहीं है वे बाबासाहब को ही संविधान मानते है इस प्रकार यदि उनके माता पिता की बात करें तो अंबेडकर के माता पिता रामजी मालोजी सकपाल एवं भीमाबाई है।

भीमराव अंबेडकर ने समाज के लिए क्या क्या किया?

भीमराव अंबेडकर ने अपने जीवन मे कई महत्वपूर्ण संस्थानो मे अध्ययन किया उन्होंने अपने इस ज्ञान का उपयोग देश के दिलितों के उत्थान के लिये तथा समाज के लिये किया इन्होने दलित बौध्द आंदोलन का समर्थन करते हुये अछूतों से सामाजिक भेदभाव के विरुध्द अभियान चलाया था। डाॅ. अंबेडकर ने श्रमिक वर्ग, किसान तथा महिलाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था। आगे चलकर उन्हे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद दिया गया। अंबेडकर जी भरतीय संविधान के जनक एवं भारत गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे जिनके द्वारा इसमे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई है।

डाॅ. भीमराव अंबेडकर ने संविधान कब लिखा था?

यदि संविधान की लिखने की बाता करें तो इसमे डाॅ. भीमराव अंबेडकर जी की भूमिका नही थी, परंतु उन्हे प्रारुप समिति का अध्यक्ष बनाया गया था जिसमे उनकी भूमिका संविधान के निर्माण मे अन्य निर्माताओं के द्वारा अपने अपने क्षेत्रों से संबंधित कानूनों का सुझाव दिया जाता था उसे चयन के लिये सूचीबध्द करना था, जो किसी भी कार्य का अंतिम रुप होता है, जिसे उनके द्वारा 25 नवंबर सन् 1949 को उसका अंतिम पृष्ठ पूरा किया गया था।

भीमराव अंबेडकर को किसका जनक कहा जाता है?

डाॅ. भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है। उसका मुख्य कारण यह है कि वे एक दलित समुदाय के होते हुये भी इतने उंचे मुकाम तक पहुंचने वाले एकलौते व्यक्ति थे, 29 अगस्त सन् 1947 को संविधान सभा द्वारा एक मसौदा समिति का गठन किया गया था। जिसके अंतर्गत प्रारुप समिति का गठन किया गया था जिसके अध्यक्ष के रुप मे डाॅ. अंबेडकर जी को चूना गया।

अंबेडकर ने संविधान के बारे में क्या कहा था?

अंबेडकर जी ने कहा था कि, मेरे मित्र कहते हैं कि मैने संविधान बनाया है। लेकिन मैं यह कहने के लिए पूरी तरह तैयार हूं कि, यदि किसी ने इसका गलत तरिके से उपयोग किया तो संविधान को जलाने वाला मैं पहला व्यक्ति होउंगा।

अंबेडकर किस लिए प्रसिध्द है?

डाॅ. अंबेडकर को उनके समर्थक प्यार से बाबासाहब अंबेडकर कहते थे सभी को यह ज्ञात है कि वह भारतीय संविधान के निर्माताओं में से एक थे। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे वह एक प्रसिध्द राजनीतिक नेता प्रख्यात न्यायविद बौध्द कार्यकर्ता दार्षनिक मानवविज्ञानी इतिहासकार वक्ता, अर्थशास्त्री विद्वान तथा संपादक भी थे।

संविधान में कितने आदमी थे?

जब भारत के संविधान का निर्माण किया जा रहा था उस समय 299 सदस्य थे जिनका कार्य प्रारुप तैयार करने का था। इसके अध्यक्ष डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद थे। संविधान सभा ने 26 नवम्बर सन् 1949 तक यह काम पूरा कर लिया जिसके बाद 26 जनवरी 1950 को यह संविधान लागू हुआ।

संविधान लेखक कौन थे?

डाॅ. अंबेडकर जी को संविधान सभा के प्रारुप समिति के अध्यक्ष होने के नाते संविधान निर्माता होने का श्रेय दिया जाता है, परंतु यदि इसकी लिखने कि बात करें तो प्रेम बिहारी नारायण रायजादा के द्वारा हमारा संविधान अपने हाथों से लिखा गया था।

संविधान बनाने वाला व्यक्ति कौन था?

डाॅ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में प्रारुप समिति ने तैयार किया था, जिससे संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ और भारत देष एक गणराज्य बन गया।

अंबेडकर ने छुआछूत का विरोध क्यों किया?

डाॅ. अंबेडकर स्वयं एक दलित जाति से संबंध रखते थे जिसके कारण उन्हे भी इस छुआछूत जैसे कूरीति से गुजरना पड़ा था जिसके कारण उन्होने इसका विरोध करना आरंभ किया अंबेडकर का प्रमुख उद्येश्य शिक्षा और सामाजिक आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने के साथ ही अछूत वर्ग के कल्याण की दिशा में कार्य करना था। इसके लिये उन्होने कई महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया।

अंबेडकर का एक सिध्दांत क्या है?

डाॅ. अंबेडकर भेदभाव के कट्टर विरोधी थे उनका मानना था कि, समानता का अधिकार धर्म और जाति से उपर होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को विकास के समान अवसर उपलब्ध कराना किसी भी समाज की प्रथम और अंतिम नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।

अंबेडकर का पूरा नाम क्या है?

अंबेडकर जी का पूरा नाम डाॅ. भीमराव रामजी अंबेडकर था।

अंबेडकर से पहले भारत का संविधान किसने लिखा था?

भारतीय संविधान के लेखक की बात करें तो डाॅ. बी.आर. अंबेडकर प्रारुप समिति के अध्यक्ष थे, सूरेंन्द्र नाथ मुखर्जी संविधान सभा के मुख्य प्रारुपकार और बीएन राव संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार थे इनमे से किसी ने भी संविधान को पूर्णरुप से नही लिखा था। परंतु प्रेम बिहारी नारायण रायजादा के द्वारा इसे अपने हाथों से लिखा गया था।

अंबेडकर के पास कितनी डिग्री थी?

ऐसा अनुमान है कि डाॅ. भीमराव अंबेडकर के पास उनके छोटे - बड़े सभी प्रकार के स्कूल, काॅलेजों डिग्री और उपाधियों को जाड़कर लगभग 32 डिग्रियां थीं।

भीमराव अंबेडकर संविधान के कौन थे?

डाॅ. भीमराव अंबेडकर संविधान की प्रारुप समिति (ड्राफ्टिंग कमिटी) के अध्यक्ष थे। जिनका संविधान निर्माण मे एक महत्वपूर्ण योगदान था।

संविधान के पहले पन्ने पर किसका चित्र है?

संविधान के पहले पन्ने पर भगवान श्री राम का चित्र है। जिसका अपना एक अलग ही महत्व है।

भीमराव अंबेडकर के गुरु का क्या नाम था?

भीमराव अंबेडकर ने अपने जीवन मे कुछ लोगों को अपनी प्रेरणाश्रोत के रुप मे बताया है, जिनमे से एक ज्योतिबा फूले जी का नाम भी आता है जिन्हे उन्होने अनेकों बार अपना गुरु के रुप में स्वीकार किया है।

अंबेडकर ने संविधान कितने दिनों में लिखा?

अंबेडकर जी के प्रारुप समिति के अध्यक्ष होने के नाते अंतिम कार्य उन्ही का था, जिसके उपरांत ही संविधान को पारित किया जा सकता था। उन्होने अंतिम रुप से संविधान के निर्माण मे 2 वर्ष 11 माह 18 दिवस में कार्य को पूर्ण कर 26 नवम्बर सन् 1949 को राष्ट्र को समर्पित किया।

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