भीमराव अंबेडकर का संविधान निर्माण मे योगदान

डाॅ. भीमराव अंबेडकर जी का संविधान निर्माण मे बड़ी अहम भूमिका थी, वे ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष थे जिसका मुख्य कार्य था जो विभिन्न सदस्यों द्वारा कानून का निर्माण किया जा रहा है उसे किस प्रकार से सूचीबध्द किया जाना है, यह कार्य अंबेडकर जी का था।

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इस प्रकार से अंबेडकर जी ने संविधान के अंतिम कार्य को 25 नवंबर 1949 को संविधान निर्माण के अध्यक्ष डाॅ. राजेन्द्र प्रसाद को पेश किया।
जब भारत को आजादी मिली तब अंबेडकर जी की छवि एक बुध्दिमान व्यक्ति तथा सबसे बड़े दलित नेता के तौर पर बन चूका था।

इसका परिणाम यह हुआ कि भारत को जैसे ही आजादी मिली तब कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने अस्तित्व में आने पर अंबेडकर को देश के पहले क़ानून मंत्री के रूप में सेवा करने का अवसर प्रदान किया। कांग्रेस द्वारा यह पद देने पर भीमराव ने इसे स्वीकार कर लिया।

अंबेडकर जी को कानून मंत्री का पद दिलाने मे सबसे अहम भूमिका महात्मा गांधी जी का था, वे अंबेडकर के दलित समुदाय के लिये किये जा रहे कार्यों से बहुंत ही प्रसन्न थे, यही कारण था की अंबेडकर जहां हमेसा गांधी जी की दलितों के प्रति उदासिन रवैये की बात पर आलोचना करते थे, परंतु गांधी जी ने कभी उनकी आलोचनाओं का प्रतिउत्तर नही दिया।

इसी लिये जब कांग्रेस के मंत्री मंडल का गठन हुआ तो गांधी जी ने अंबेडकर को कानून मंत्री बनाये जाने के लिये कांग्रेस पार्टी को सहमत कर लिया। जब सभी लोगों द्वारा पदभार ग्रहण कर लिया गया इसके पश्चात सबसे पहली प्राथमिकता थी कानून निर्माण की।

इसी कड़ी मे 29 अगस्त सन् 1947 को अंबेडकर जी को स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण के लिए संविधान की मसौदा तैयार करने वाले समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया।

स्वतंत्र भारत का कानून बनाने के लिये अंबेडकर जी ने विचार किया कि कई देशों के द्वारा कानून बनाये गये हैं, उनका अध्ययन करके उनमे से जो हमारे लिये उपयोगी हो उन कानूनों को हम अपने सविधान मे जगह दे सकते हैं, इसके लिये उन्होने लगभग 60 देशों के संविधानों का अध्ययन किया।

जब संविधान के मसौदे मे विभिन्न सदस्यों को कानून के निर्माण मे दिये गये भूमिका को पूर्णं कर सूचीबध्द करने के लिये अंबेडकर जी को सौंपा गया तब उन्होने अंबेडकर जी के विभिन्न देषों के संविधानों के अध्ययन का पूरा सहयोग लिया।

इसमे अंबेडकर द्वारा किया गया शोध बहंुत ही लाभदायक सिध्द हुआ क्योंकि संविधान के मसौदा तैयार करने के लिये जिन व्यक्तियों को अंबेडकर के साथ-साथ सदस्य बनाया गया था वे सरकार के अन्य महत्वपूर्ण पदों मे भी कार्यों का निर्वहन कर रहे थे, जिस कारण वे स्वयं डाॅ. अंबेडकर जी से जिन क्षेत्रों मे कानून निर्माण का कार्य उन्हे सौंपा गया था।

उसके संबंध मे उनसे पूरा सहयोग ले रहे थे, तथा इस पर अंबेडकर जी द्वारा भी उनका पूर्णं सहयोग किया गया था। संविधान के निर्माण मे नागरिको के स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी और सुरक्षा के संबंध मे विस्तृत रुप से वर्णन है, इस संबंध मे किसी धर्म को मानने की आजादी, छुआछूत की समाप्ती जैसे सभी रूपों का उल्लंघन करना भी शामिल है।

इसके अतिरिक्त महिलाओं के लिए आर्थिक और सामाजिक अधिकार तथा अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग के सदस्यों के लिए विभिन्न क्षेत्रों में आरक्षण के लिये सांसद का समर्थन प्राप्त कर लिया, जो कि दस वर्षों के लिये किया जाना था।

परंतु राजनीतिक पार्टियों द्वारा इसे वोटबैंक के लालच मे आज तक विभिन्न क्षेत्रों मे आरक्षण का जहर घोल कर देश मे अपनी सरकार चलाने का जरिया बना लिया गया है। जिससे आज देश की बहुंत बड़ी आबादी आरक्षण का लाभ तो ले रही है परंतु देश का जो मौलिक नौकरशाही स्तर है वह गिरता जा रहा है। इसके साथ ही विभिन्न वर्गों के मध्य कटूता कम होने के बजाय यह बढ़ता जा रहा है।

जिसका परिणाम धिरे-धिरे दिखाई पड़ रहा है। अंबेडकर जी ने कहा था की मै महसूस करता हूं कि संविधान, साध्य है, यह लचीला है पर साथ ही यह इतना मज़बूत भी है कि देश को शांति और युद्ध दोनों के समय जोड़ कर रख सके।

वास्तव में, मै कह सकता हूँ कि अगर कभी कुछ गलत हुआ तो इसका कारण यह नही होगा कि हमारा संविधान खराब था बल्कि इसका उपयोग करने वाला मनुष्य अधम था।

भीमराव अंबेडकर द्वारा अनुच्छेद 370 का विरोध

जब देश मे कानून का निर्माण की प्रक्रिया हो रही थी, ऐसे समय मे भारत मे उस समय सरकार चला रहे लोगों के द्वारा जम्मू-कश्मीर के लिये अनुच्छेद 370 लाया गया, अंबेडकर ने भारत के संविधान के इस अनुच्छेद का विरोध किया, जिसके द्वारा जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया था, इस अनुच्छेद को डाॅ. भीमराव अंबेडकर के इच्छाओं के खि़लाफ़ संविधान में शामिल किया गया।

अंबेडकर जी ने शेख अब्दुल्ला को जोकि उस समय कष्मिरी नेता थे उन्हे साफ-साफ शब्दों मे यह कह दिया था कि देश के कानून मंत्री होने के नाते ऐसा करना मेरे लिये देश से विश्वसघात करने के बराबर होगा।

जिसके बाद अब्दुल्ला ने नेहरु जी से संपर्क किया और उन्होने सरदार पटेल एवं अयंगर साहब से यह स्पष्ट करवाया की नेहरु जी इसके लिये सहमत हैं। जिसके बाद सरदार पटेल ने भी बिना किसी परामर्श के इसे अनुच्छेद मे शामिल कर लिया।

आर्थिक नियोजन

डाॅ. भीमराव अंबेडकर विदेश से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री लेने वाले पहले भारतीय बने जिन्होने इसे 1950 मे प्राप्त किया था।

उनके द्वारा आर्थिक नियोजन के रुप मे तर्क दिया कि औद्योगिकीकरण तथा कृषि के क्षेत्र मे विकास करने से भारतीय अर्थव्यवस्था मे वृद्धि किया जा सकता है।

अंबेडकर जी ने देश में प्राथमिक उद्योग के रूप में कृषि के क्षेत्र में निवेश करने के लिये बल दिया था।

भीमराव अंबेडकर के हिन्दू धर्म के प्रति विचार

डाॅ. भीमराव अंबेडकर जी एक बहुंत ही प्रतिभाषाली व्यक्तित्व थे उन्होने अपने जीवन मे बहुंत से समस्याओं का सामना किया वे चुनौति को सहजता से स्वीकार करने वाले व्यक्ति थे उन्हे बचपन से ही एक अछूत जाति के होने के कारण जात पात, भेद भाव, जैसे पिड़ा से गुजरना पड़ा था।

जिसका उनके द्वारा समय समय पर लिखे गये किताबों से उनका दर्द को समझा जा सकता है। अंबेडकर ने अपनी पुस्तक हू वर द शुद्रास? नामक किताब लिखी थी, इसके द्वारा उन्होने हिंदू जाति व्यवस्था में सबसे नीची जाति अर्थात शुद्रों के अस्तित्व मे आने के बारे मे विस्तार से वर्णन किया है।

उन्होंने हिंन्दू जाति व्यवस्था मे शुद्रों से भी नीचे एक अलग जाति वर्ग का वर्णन किया है जो अतिशुद्र (अछूत) वर्ग के होते है उनके अनुसार ये शुद्रों से भी अलग हैं। अंबेडकर जी ने 1948 में हू वेयर द शुद्रास़? मे हिंदू धर्म का बहंुत विरोध किया है।

यदि अंबेडकर जी के दृष्टि से देखें तो उनके साथ जो हुआ उसके अनुसार उनके द्वारा हिंन्दू मे व्याप्त जाति व्यवस्था का अलोचना करना पूर्णतः सही है। परंतु यदि दूसरे पहलु से देखा जाये तो पूरा हिंन्दू समाज ऐसा नही था क्योकि जब अंबेडकर द्वारा हिंन्दू धर्म का विरोध किया गया तो एक विशाल जन समूह होने के बावजूद हिंन्दू समाज द्वारा बहुंत ही कम विरोध देखने को मिला।

इसी प्रकार यदि प्राचीन भारत की बात करें तो इसमे वर्ण व्यवस्था जरुर मिलता है, परंतु यदि इसकी गहराई मे जायें तब यह स्पष्ट हो जाता है कि, यह वर्णं व्यवस्था कर्म के आधार पर था न की जाति के आधार पर।

ऐसा प्रतित होता है कि समय के साथ कुछ भोगी लोगों के द्वारा समाज से परे अपने निहित स्वार्थ के लिये इसे धिरे धिरे जाति के आधार पर परिवर्तित किया गया होगा। जिसका ऐसी व्यवस्था का डाॅ. भीमराव अंबेडकर जैसे महामानव द्वारा ऐसी व्यवस्था का पूरजोर विरोध किया गया।

भीमराव अंबेडकर के मुस्लिम धर्म के प्रति विचार

अंबेडकर द्वारा जब अपना धर्म परिवर्तन करने का ऐलान किया गया था उस समय कई वर्षों तक उन्होने अनेक धर्म के बारे मे जानकारी प्राप्त किया था, इसी दौरान कुछ जानकारों के अनुसार यह कहा जाता है कि, कुछ मुस्लिम प्रचारकों द्वारा उन्हे मुस्लिम धर्म अपनाने का आग्रह किया गया था परंतु उन्होने मुस्लिम धर्म मे हिंन्दू धर्म से भी अधिक भेद भाव होने की बात कहकर इसे नकार दिया था।

अंबेडकर जी इस्लाम धर्म मे फैले भेदभाव के भी बड़े आलोचक थे। उनके द्वारा मुस्लिम समाज में होने वाले बाल विवाह की प्रथा तथा इसके अलावा महिलाओं के साथ होने वाले दुव्र्यवहार की भी घोर निंदा किया था।

डाॅ. भीमराव अंबेडकर ने मुस्लिम समाज मे बहुविवाह और रखैल रखने के कारण मुस्लिम महिलाओं को होने वाले दुख को भी स्पष्ट किया। उनका मानना था कि यदि इस्लाम मे गुलामी खत्म भी हो जाये तब भी मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था खत्म नहीं होगी।

अंबेडकर जी ने अपने लेखों मे हिंन्दू और मुस्लिम समाज के बिच तुलना करके यह लिखा कि मुस्लिम समाज मे हिंदू समाज से भी अधिक सामाजिक बुराइयां होती हैं और मुसलमान समाज इसे भाईचारा जैसे नरम शब्दों के प्रयोग से ढकने का प्रयास करते हैं।

उन्होंने मुसलमानो द्वारा उनके एक वर्गों के खिलाफ़ भेदभाव जिन्हें मुसलमान निचले दर्जे का मानते हैं उसकी भी आलोचना की। इसके अलावा महिलाओं के अधिकार के विरुध्द पर्दा प्रथा की भी आलोचना की। भीमराव जी का कहना था कि, हालांकि पर्दा हिंदुओं मे भी होता है पर उसे किसी प्रकार की धार्मिक मान्यता नहीं दी गई है।

परंतु मुसलमानों द्वारा इसे धार्मिक मान्यता दी गई है, यहां हिंन्दूओं मे पर्दा प्रथा का अर्थ घुंघट से था। उन्होंने इस्लाम धर्म मे व्याप्त कट्टरता की भी खुलकर आलोचना की जिसके कारण मुस्लिम समाज अत्यधिक कट्टर हो गया है।

उन्होंने इसके संबंध मे यह भी कहा की भारत के जो मुसलमान हैं वे अपने मुस्लिम समाज का सुधार करने में विफल हो गये हैं, जबकि इसके ठीक उलट यूरोपीय भूभाग मे स्थित इस्लामिक देष जैसे तुकÊ ने समय के साथ स्वयं को बहुत बदल लिया है।

भीमराव अंबेडकर का बौद्ध धर्म अपनाना

डाॅ. अंबेडकर ने बचपन से हिंन्दू दलित समुदाय मे जन्म लेने के कारण सामाजिक भेद-भाव का दंश झेलते रहे जिससे वे परेशान होकर 13 अक्टूबर सन् 1935 को येवला नासिक में धर्म परिवर्तन की घोषणा कर दी।

यदि देखा जाये तो डाॅ. भीमराव अंबेडकर जी ने धर्म परिवर्तन करने की घोषणा तो कर दी परंतु वे लंबे वर्षों तक यह प्रयास करते रहे की वह समुदाय जो उन्हे हिन्ंदू धर्म मे बराबर का दर्जा देने का विरोध कर रहें है वे उन दलितों को सम्मान देने के लये सहमत हो जायें। अंबेडकर जी ने धर्म परिवर्तन के घोषणा करने के बाद भी लगभग 20-21 वर्षों तक अपना धर्म परिवर्तन नहीं किया था।

कुछ लोगों का मानना है कि इन वर्षों मे डाॅ. अंबेडकर ने अन्य धर्मों के बारे मे अध्यन किया की उनके लिये कौन सा धर्म सही होगा, परंतु यदि इस बात पर गौर किया जाये कि उन्होने इतने वर्षों तक का समय अन्य धर्मों के बारे मे अध्यन मे लगा दी तो यह मिथ्या प्रतित होता है।

कुछ जानकारों का मानना है कि वास्तव मे बाबासाहब उन दलितों को अपने धर्म मे ही सम्मान दिलाना चाहते थे क्योंकि उनको यह आभास हो गया था कि धर्म परिवर्तन कर लेना इसका कोई समाधान नहीं हो सकता। घोषड़ा करने के कई सालों बाद भी हिन्दू धर्म में ही रहते हुए बाबासाहब आम्बेडकर ने हिन्दू धर्म तथा समाज को सुधारने और दलितों को सम्मान दिलाने के लिए अथक प्रयास किया।

परंतु हिंन्दू समाज मे उन मुठ्ठी भर सवर्ण हिन्दुओं का हृदय परिवर्तन नही कर पाये। यदि देखा जाये तो इसमे बाबासाहब की कोई हार नहीं हुई बल्की उनके इस प्रयास से दलित समुदाय के लोगों मे भी अपने धर्म के प्रति चेतना का विस्तार हुआ। वे अपने अधिकारों को जानने मे सफल हुये और बाबासाहब का मुख्य लक्ष्य भी यही था।

परंतु सवर्णों मे भी हम सभी लोगों को दलितों के अधिकारों के विरोधी नहीं मान सकते क्योंकि उस समय मे भी ऐसे कई महापूरुष हुए जिन्होने दलितों के उध्दार के लिये कई बड़े प्रयास किये और उनका साथ बड़ी संख्या मे सवर्णं समुदाय के लोग दे रहे थे।

जब इतने प्रयासों के बाद भी डाॅ. अंबेडकर सफल नहीं हुये तब उन्होने हिन्दू समाज में असमानता के खिलाफ और प्रखर रुप से विरोध करना शुरु किया। हिंन्दू समाज का मानना था कि मनुष्य धर्म के लिए हैं जबकि अंबेडकर जी का मानना था कि धर्म मनुष्य के लिए होता है।

अंबेडकर जी ने अपने दिल मे दबे उस पिड़ा को व्यक्त करते हुये कहा कि ऐसे धर्म का कोई मतलब नही है जिसमें मनुष्यता का कोई मूल्य ना हो। जो अपने ही धर्म के मानने वालों को धर्म की शिक्षा प्राप्त नहीं करने देता, रोजगार के अवसरों मे बाधा पहुंचाता है, अपमानित करता है और यहां तक की पानी भी नहीं मिलने देता ऐसे धर्म में रहने का कोई मतलब नहीं है।

अंबेडकर जी ने हिन्दू धर्म त्याग करने की घोषणा अपने धर्म के विनाश के लिए नहीं किया था, बल्कि उन्होंने कुछ मौलिक सिद्धांतों को लेकर यह बात कही थी। जिसे किसी के द्वारा भी गलत नहीं ठहराया जा सकता।

उन्होने जब धर्म परिवर्तन करने की घोषणा की थी उस समय कहा था की मैं एक अछूत हिन्दू के रूप में पैदा हुआ हूँ, लेकिन मैं एक अछूत हिन्दू के रूप में हरगिज नहीं मरूँगा।

कहा जाता है कि उन्होंने अपने अनुयायियों से भी हिंदू धर्म छोड़ कर अन्य धर्म अपनाने का आहवान किया। उन्होने कई जगह अपने भषणों मे यह बात दोहराई थी जिसके बाद कई धर्मों के लोगों ने उन्हे अपना धर्म अपनाने के लिये संपर्क किया था परंतु बाबासाहब एक ऐसे धर्म की खोज कर रहे थे जिसमे ना तो भेदभाव हो और ना ही आडंबर हो।

इसी प्रकार उनकी खोज तब पूरी हुई जब उन्होने बौध्द धर्म का अध्ययन किया चूंकि वे हिंन्दू थे और हिंन्दू बौध्द धर्म को भी स्वयं से जोड़कर देखते है, भले ही यह हिंन्दू धर्म से अलग धर्म हो परंतु हिंन्दू भगवान बूध्द को विष्णू अवतार मानते है, इसके अतिरिक्त उन्हे बचपन मे उपहार के रुप मे बुध्द से संबंधित पुस्तक दिया गया था जिसका उन्होने अध्ययन किया था।

जिससे बाबासाहब को भी बौध्द धर्म का ज्ञान था। नागपूर के बौद्ध धम्म दीक्षा समारोह में अपने अनुयायियों को संबोधित करते हुए डाॅ. भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 कुशीनारा के भिक्षु महास्थवीर चंद्रमणी द्वारा दीक्षा ग्रहण करते हुए दीक्षाभूमि स्तूप, जहां पर डाॅ. भीमराव अपने लाखों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गये।

यदि बाबासाहब की बात करें तो उन्हे 1950 मे बौध्द धर्म के प्रति आकर्षण हुआ, यह वह समय था जब उनके द्वारा धर्म परिवर्तन के लिये दूसरे धर्म की खोज जारी थी।

इस समय उन्होने ऐसे देषों का दौरा किया जहां बौध्द धर्म को मानने वाले लोग रहते थे जैसे श्रीलंका, म्यामार और इसी समय वे बुध्द से संबंधित किताब लिख रहे थे, इसके बारे मे उन्होने कहा था कि, जैसे ही यह किताब पूरी हो जायेगी वे बुध्द धर्म को अपना लेंगे।

डाॅ. भीमराव ने सन् 1955 मे बुध्दिस्ट सोसायटी आॅफ इंडिया की स्थापना की, इसी दौरान उनकी प्रसिध्द किताब (बुध्द एंड हिज धम्म) जिसके पूरा होने पर वह बौध्द धर्म अपनाने की बात करते थे, वह भी पूरा हो गया। और इस प्रकार एक महान व्यक्तित्व ने अपने मूल का त्याग कर अपने बहुंत से लोगों के साथ दूसरे धर्म मे परिवर्तन कर लिया।

यह एक प्रकार से उस धर्म के चिंतको की बहुंत बड़ी हार थी, क्योंकि डाॅ. भीमराव अंबेडकर ने यदि देखा जाये तो स्वयं को हिंन्दू धर्म मे बने रहने के लिये कई वर्षों का समय दिया, उन्होने अपने जीवन के इतने वर्ष हिंन्दू धर्म के कुछ मुठ्ठी भर हठी सवर्णों के हृदय मे जगह बनाने के लिये जिससे वे भी उनके स्वाभिमान की रक्षा कर सकें।

परंतु इतना समय देने और जतन के बाद भी बाबासाहब जैसे महामानव के पास सिवाय अपने स्वाभिमान के रक्षा करने के कुछ शेष न था, और उन्हे बौध्द धर्म मे परिवर्तन होना पड़ा।

भीमराव अंबेडकर का दूसरा विवाह

डाॅ. भीमराव अंबेडकर जी की दूसरी शादि एक संयोग था, बाबासाहब की पहली पत्नी जिनाक नाम रमाबाई था वे लंबी समय से बिमारी से ग्रषित थीं जीसके बाद सन् 1935 मे उनका निधन हो गया था।

जब वे भारतीय संविधान की रुपरेखा तैयार करने मे लगे थे उस समय अधीक काम करने से रात रात भर कार्य करने से उन्हे अनिंन्द्रा की बिमारी के लक्षण दिखाई दे रहे थे जिसके वजह से वे बिमार रहने लगे थे इसके साथ ही उन्हे और भी कई शारीरिक परेशानियों ने जकड़ लिया था।

इसी दौरान उन्होने अपना उपचार कराने के लिये बबंई (मुंबई) गये जहंा उन्हे डाॅक्टर शारदा कबीर मिली, ईलाज के दौरान हुई मुलाकात जान पहचान मे बदल गई और दोनो 15 अप्रैल 1948 को नई दिल्ली स्थित अपने आवास मे विवाह कर लिया।

डॉ. शारदा कबीर ने बाबासाहब से विवाह करने के पश्चात अपना नाम सविता अंबेडकर रखा, इस प्राकार उन्होने अपना जीवन बाबासाहब की देखभाल मे गुजारी।

सविता अंबेडकर को माई या माइसाहेब के नाम से भी जाना जाता था, इनका निधन लगभग 93 वर्ष की आयु मे 29 मई 2003 को नई दिल्ली के मेहरौली मे हुआ।

भीमराव अंबेडकर का निधन

डाॅ. अम्बेडकर जी को लगातार काम करने एवं अन्य कारणो से कई प्रकार के बिमारियों ने जकड़ लिया था। सन् 1948 से बाबासाहब मधुमेह से पीड़ित हो गये थे। सन् 1954 मे कुछ महिने उनकी तबियत अत्यंत खराब हो गई थी।

जिससे उनका शरीर पहले की तुलना मे काफी कमजोर हो चुका था। कहा जाता है कि उनकी आंखे भी कमजोर हो गई थी। राजनीतिक मुद्दों पर ऐसी स्थिति होते हुये भी लगातार उनके द्वारा किये जा रहे कार्य के कारण उनकी तबियत और खराब होते जा रही थी।

जब वे अपने अंतिम किताब भगवान बुध्द और उनका धम्म को पूर्ण करने के केवल तीन दिवस के बाद ही 6 दिसम्बर 1956 को डाॅ. भीमराव अंबेडकर जी का निधन हो गया। जीस दौरान उनकी मृत्यु हुई वह नींद मे थे और उसी अवस्था मे उनका देहांत हो गया। इस समय बाबासाहब की आयु लगभग 65 वर्ष थी।

इसके पश्चात उनका पार्थिव शरीर दिल्ली से एक विशेष विमान के द्वारा मुंबई स्थित उनके घर लाया गया। घर लाने के अगले दिन 7 दिसंबर को मुंबई में दादर चैपाटी नामक समुद्र तट पर बौद्ध शैली में बाबासाहब का अंतिम संस्कार किया गया था।

उनके अंतिम संस्कार मे लाखों की संख्या मे समर्थकों ने भाग लिया था, डाॅ. भीमराव ने अपने मृत्यु के कुछ दिन पहले ही आने वाले 16 दिसंबर 1956 को मुंबई में एक बौध्द धर्मांतरण का आयोजन रखा था।

परंतु कुछ दिन पहले ही उनकी मृत्यु हो जाने की वजह से वे उसका आयोजन नहीं कर पाये थे, परंतु उनके अनुयायीओं ने उनके पार्थिव को साक्षी मानकर भदन्त आनन्द कौसल्यायन द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा ली थी, और लगभग 1000000 लोगों ने बौध्द धर्म को अपनाया था।

डाॅ. भीमराव अंबेडकर एवं संविधान से संबंधित प्रश्न जो लोग पूछते हैं

संविधान सभा के पहले अध्यक्ष कौन है?

संविधान सभा के पहले अध्यक्ष के रुप मे तात्कालिक कार्ययोजना के संचालन हेतु सच्चिदानंद सिन्हा जी को चुना गया था। जिन्हे संविधान सभा के पहले अध्यक्ष होने का गौरव प्राप्त हुआ।

बीआर अंबेडकर को दलितों का मसीहा क्यों कहा गया?

डाॅ. अंबेडकर स्वयं एक दलित समुदाय से आते थे जिन्हे दलितों और वंचितो के उपर होने वाले सामाजिक भेदभाव की पिड़ा से गुजरना पड़ा था और उन्होने अपनी कठीन परिश्रम से उस मुकाम पर पहुंच चुके थे जिससे वे इन दबे कुचले लोगों की बातों को दुनिया के सामने पंहुचा सकते थे, जिस कारण अंबेडकर जी ने दलितों और अन्य सामाजिक रुप से पिछड़े वर्गों के अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष किया। जिससे दलितों और वंचितों के बीच उन्हे एक मसीहा के रुप मे जाना जाने लगा।

भीमराव अंबेडकर ने कौन सा आंदोलन चलाया?

डाॅ. भीमराव अंबेडकर जी ने अपने जीवन काल मे बहुंत से आंदोलनो का नेतृत्व किया, जिनमे से उन्होंने अधिकांस दलितों और पिछड़ों के हक के लिये चलाया था, इसी मे से एक इनके द्वारा जाति पूर्वाग्रह के विरोध में मंदिर प्रवेष आंदोलन बहुंत प्रचलित है।

भारत में छुआछूत के खिलाफ किसने लड़ाई लड़ी?

एक किताब रिलिजन्स इन द माॅडर्न वल्र्ड के अनुसार डाॅ. अंबेडकर जो इस अधिनियम का समर्थक भी थे उनको अछूत नेता माना जाता था, जिनके द्वारा जाति व्यवस्था के विशेषाधिकार को खत्म करने के लिए अत्यधिक प्रयत्न किया गया। इसमे सभी प्रकार के त्यौहार, रस्मे, एवं मंदिरों मे प्रवेश भी सामिल थे। इनके अतिरिक्त और भी कई महापुरुष हुये है जिन्होने संवर्ण जाति के होते हुये भी समाज के पिछड़े एवं दलित समुदाय के लिये संघर्ष किया।

भीमराव अंबेडकर का उद्येष्य क्या था?

भीमराव अंबेडकर का मुख्य उद्येश्य समास के दलित और पिछड़े लोगों तथा सवर्णों के मध्य फैले छुआछूत को दूर कर उन्हे भी समाज मे सम्मान दिलाना था, जिसके लिये उन्होने अनेको प्रयत्न किये, उन्होने दलित बौध्द आंदोलन को प्रेरित किया तथा अछूत माने जाने वाले लोगों से सामाजिक भेदभाव के विरुध्द अभियान चलाया था। श्रमिक, किसान, तथा मलिाओं के अधिकारों का समर्थन भी किया था।

अंबेडकर ने संविधान कब लिखा था?

4 नवम्बर सन् 1948 को प्रारुप समिति के अध्यक्ष डाॅ. भीमराव अंबेडकर ने औपचारिक रुप से संविधान सभा में मसौदा संविधान पेश किया था। परंतु यदि संविधान लिखने की बात कि जाये तो इसे श्री प्रेम बिहारी नारायण रायजादा द्वारा लिखा गया था।

अंबेडकर का बेटा कौन है?

डाॅ. भीमराव अंबेडकर के कई बच्चे थे परंतु उनमे से जीवित केवल एक ही बचा जिनका नाम यशवंत भीमराव अंबेडकर है। बांकि बच्चों की बचपन मे ही मृत्यु हो गई थी।

अंबेडकर किस लिए प्रसिध्द है?

अंबेडकर एक दलित समुदाय मे जन्म लेने के बाद भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, उन्होने अपने जीवन मे दलितों और पिछड़ों के लिये अनेको आंदोलनो का नेतृत्व किया था। वे एक अर्थशास्त्री, न्यायविद, लेखक, वाचक, और देश के प्रथम कानून मंत्री भी थे उनमे और भी कई खूबियां थी जिसके कारण वे प्रसिध्द थे।

अंबेडकर को संविधान सभा का अध्यक्ष क्यों बनाया गया था?

कुछ जानकारों का मानना है कि शेड्यूल कास्ट फेडरेशन पार्टी की ओर से अंबेडकर ने राज्यों तथा अल्पसंख्यकों को मौलिक अधिकारों पर संविधान सभा की उप समिति को पत्र लिखा और प्रस्तुत किया। इस प्रकार वह एक लघु संविधान के रुप मे दिखाई पड़ रहा था, जिससे संविधान सभा के वरिष्ठ व्यक्तियों ने उन्हे उनके सबसे ज्यादा शिक्षित होने के कारण बिना किसी जातीगत भेदभाव के प्रारुप समिति के अध्यक्ष बनाने का निर्णय लिया। परंतु इसमे लोगों का अलग अलग मत है, कुछ जानकारों का कहना है कि गांधी जी अंबेडकर के उपर बहुंत भरोसा करते थे इसके साथ ही वे दलितों का भरोसा भी जीतना चाहते थे, चूंकि अंबेडकर जी स्वयं दंलित समुदाय से आते थे जिस कारण उन्हे प्रारुप समिति का अध्यक्ष तथा कानून मंत्री भी बनाया गया था।

अंबेडकर का नाम कैसे पड़ा?

डाॅ. अंबेडकर जी का बचपन मे मूल उपनाम सकपाल हुआ करता था परंतु उनके पिता रामजी ने स्कूल में उनका नाम अंबाडावेकर दर्ज कराया था, जोकी उनके पैतृक गांव अंबाडावे से लिया गया था जो संभवतः उस समय मे कुछ इस प्रकार के प्रचलन हुआ करते थे। संयोगवश उस समय उसी स्कूल मे उनके एक मराठी ब्राम्हण षिक्षक कृष्णाजी केषव का उपनाम अंबेडकर था जिन्होने स्कूल रिकाॅर्ड में उनका उपनाम अंबाडावेकर से बदलकर भूलवस अथवा जानबूझकर उनका उपनाम अंबेडकर कर दिया जिसके बाद उनका सरनेम अंबेडकर ही पड़ गया।

दुनिया मे सबसे ज्यादा शिक्षित व्यक्ति कौन है?

डाॅ. भीमराव अंबेडकर जी अपने समय मे सबसे ज्यादा शिक्षित व्यक्ति थे जिनके पास 32 डिग्री थी तथा जिन्हे 9 भाषाओं का ज्ञान भी था।

अंबेडकर की मूर्ति कितने देशों में है?

डाॅ. भीमराव अंबेडकर जी को आज विष्व पटल पर लगभग सभी लोग बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से भी जानते हंै। यदि भारत की बात करें तो देश के हर कोने में सभी प्रमुख शहरों और गाओं में अंबेडकर जी की मुर्तियां मिल जाती है। अंबेडकर की सबसे बड़ी प्रतिमा भारत के तेलंगाना राज्य के हुसैनसागर के तट पर तैयार किया गया है, जिसकी उंचाई 125 फीट की है।

संविधान लिखने वाला व्यक्ति कौन है?

संविधान को दिल्ली के रहने वाले श्री प्रेम बिहारी नारायण रायजादा ने अपने हांथो से इटैलिक रुप मे लिखा है।

अंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक क्यों कहा जाता है?

डाॅ. भीमराव अंबेडकर को भारतीय संविधान के जनक के रुप में जाना जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि, वे संविधान निर्माण के एक अहम प्रारुप समिति के अध्यक्ष थे जिसका कार्य सबसे अंतिम रुप से संविधान के मसौदा को तैयार कर पेष किया जाना था। जिस कारण उनके सबसे ज्यादा शिक्षित एवं संविधान निर्माण में योगदान के वजह से उन्हे भारतीय संविधान का जनक कहा जाता है।

संविधान में कितने चित्र हैं?

जब संविधान निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी उस समय कुछ जानकारों के अनुसार बहुंत से चित्रों को इसमे शामिल करने की प्रक्रिया चल रही थी, परंतु अंतिम रुप मे इसमे 22 चित्रों को शामिल किया गया।

पहला संविधान कब बना था?

डाॅ. भीमराव अंबेडकर प्रारुप समिति के अध्यक्ष होने के नाते संविधान को अंतिक रुप देना उनका मुख्य कार्य था, जिसे उनके द्वारा संविधान सभा को सौंपा गया जिसके बाद 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा द्वारा इसे ग्रहण किया गया तथा 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।

डाॅक्टर भीमराव अंबेडकर किसकी पूजा करते थे?

डाॅ. भीमराव अंबेडकर प्रारंभिक जीवन मे हिंदू धर्म को मानने वाले थे तथा उनके परिवार के लोग संत कबीर दास जी को मानते थे, बचपन मे वह भी इनका उनुसरण करते थे। परंतु एक हिंदू होते हुये उनके मूर्ति पूजा के बारे मे कुछ खास जानकारी नहीं मिलती है। उन्होने आगे चलकर अपने धर्म मे दलित जाती के होने के कारण भेदभव पूर्ण व्यवहार से तंग आकर 14 अक्टूबर 1956 को अपने लगभग चार लाख अनुयायी के साथ बौध्द धर्म स्वीकार कर लिया था। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि, वे भगवान बुध्द की पूजा करते थे।

संविधान के पहले पन्ने पर किसकी फोटो है?

संविधान के सबसे पहले पन्ने पर भगवान श्री राम का चित्र है जिससे संविधान प्रारंभ होता है।

संविधान पर हस्ताक्षर करने वाला पहला व्यक्ति कौन था?

जब 29 अगस्त 1947 को प्रारुप समिति गठित की गई इसके उपरान्त संविधान सभा कि अंतिम बैठक 24 नवम्बर 1949 को आयोजित की गई। इस दिन संविधान पर 284 लोगों ने हस्ताक्षर किया था। जिसमे सबसे पहला हस्ताक्षर प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु जी ने किया था।

बाबासाहेब अंबेडकर का नारा क्या है?

बाबासाहेब अंबेडकर जी ने अपने आंदोलनो का नेतृत्व करते हुये कई महत्वपूर्ण भाषण दिया जिनमे से उनका कहना था कि, अगर मुझे लगता है कि संविधान का दुरुपयोग हो रहा है तो मैं इसे जलाने वाला पहला व्यक्ति होउंगा, मन की खेती मानव अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। उनका कहना था कि, जीवन लम्बा होने के बजाय महान होना चाहिए। उन्होने यह भी कहा था कि, मनुष्य नश्वर है।

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