मनुष्य एक सामाजिक प्राणि है समाज मे विभिन्न प्राकर के लोग रहते है सभी की अपनी अपनी आकांक्षाए होती है जिसे हमारे द्वारा पुरी करने की लालसा भी होती है। मनुष्य की आकांक्षाए कभी पुरी नहीं होती इसी को उदाहरण द्वारा बताया गया है। कहा जाता है कि अकबर बादशाह नमाज अदा करने के बाद हमेशा याचकों अथवा बादशाह से मांगने आये हुये लोगों को मन मुताबिक खैरात देते थे। जब वे नमाज पूरी करते थे उसके पश्चात जो कोई भी व्यक्ति कुछ भी मांग करता था, वो तुरंत ही उसकी आकांक्षा पूरी करते थे।
एक दिन जब बादशाह अकबर ने अपनी सुबह की नमाज पूरी करने के बाद पीछे मुड़कर देखा कि संभवतः कोई अभ्यागत खैरात के लिए आया हो तो। वहाँ उन्हे एक फकीर दिखाई तो दिया परंतु उन्हें बहुत आष्चर्य हुआ कि वह फकीर बिना कुछ मांगे ही वापिस लौट कर जाने लगा था। अकबर ने अपने सैनिकों को आदेश दिया जो आदमी बिना मांगे वापिस जा रहा है उसे बुलाकर मेरे सामने ले करके आओ। सैनिकों ने तुरंत बिना खैरात लिए जाते हुए फकीर को पकड़कर बादशाह के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। बादशाह अकबर ने पूछा फकीर! आप बिना कुछ मांगे ही वापिस लौट गये! क्या आपको यह लगा कि मैं आपकी मनोकामना पूरी नहीं कर पाउंगा? क्या मै इसका कारण जान सकता हूॅ?
फकीर ने बादशाह की ऐसी बातें सुनकर बादशाह की ओर देखा और धीमी मुस्कान से उत्तर दिया बादशाह मै यहां आपके पास दरगाह बनाने के लिए जमीन मांगने आया था।
बादशाह ने कहा जब आप मांगने आये थे तो फिर आने के बाद मांगनो में संकोच क्यों किया? आप जानते हैं न कि मैं नमाज के बाद किसी को भी खाली हाथ नहीं जाने देता? बताइये कितनी जमीन चाहिए और कहाँ ? बादशाह अकबर ने कहा।
तब उस फकीर ने जवाब दिया जहाँपनाह! अब मुझे आपसे कुछ नहीं चाहिए। मैं तो आपको शहनशाह समझकर आपके पास आपसे दरगाह के लिए जमीन मांगने आया था। परंतु मैने देखा की आप तो खुद ही नमाज के समय परवरदिगार से भीख की याचना कर रहे थे कि अल्लाह! मेरी सल्तनत कायम रहे। मुझे पारावार धनःदौलत और सैन्यबल दें। मुझे लग रहा था कि मैं आपके पास आपसे भीख लेने आया था परंतु आप तो स्वयं ही खुदा से भीख मांग रहे थे। ऐसे मे मै आपसे कैसे भीख मांगु इस प्रकार तो मैं छोटा भिखारी और आप बड़े भिखारी! उस फकीर के ये बातें सुनकर बादशाह उस फकीर को देखता रहा गया इस लिए नही की उसने बादशाह को भिखारी कहा वो इस लिए क्योंकि फकीर ने जो परवरदिगार से भीख मांगने के बात कही थी वह सत्य थी। फकीर ने आगे कहा की भिखारियों का भी एक अपना उसूल होता है कि वे एक दूसरे से भीख नहीं मांगते। इसलिए आप मुझे माफ कर दें और मुझे यहां से जाने दें। मुझे आपका दिया हुआ कुछ भी नहीं फलेगा।
अकबर बादशाह एक फकीर की धर्म तथा कर्त्तव्य के विषय में इतनी गहरी समझ देखकर दंग रह गये। उन्होंने उस फकीर को सम्मान पूर्वक विदा किया।
आज के समय मे अगर हम बात करें तो मनुष्य मे आज ऐसी नियम पूर्वक उदारता भरी सोंच नहीं मिलती। परन्तु जीवन की करुणता यही है। मनुष्य ने जिंदगी से मांगने में अपनी आकांक्षाओं को बहुत अधिक फैला दिया है और इतना फैला लिया है की अब उसे सिमित कर पाना मुस्किल सा हो गया है। वर्तमान स्थिति तो कुछ इस प्रकार है कि आज के मनुष्य को संतोषावस्था में नहीं बल्कि जीवन की मोहावस्था में ही जीना है। परिणाम स्वरुप वह अपने भीतर राजा के समान खुमारी रखने के बदले जिंदगी के समक्ष भिखारी के समक्ष प्रस्तुत होता है। जिंदगी को स्वाभिमानहीन भिखारी नहीं वरन् स्वावलंबी संतुष्ट पसंद हैं।
धर्म क्या क्या है? क्रियाकांड, पूजा-प्रार्थना, कथा-श्रवण तथा कीर्ति के लिए दिया जाने वाला दान? ये सब तो बिलकुल नहीं है। धर्म की अगर बात करें तो धर्म यानि अल्प साधनों का उपयोग करने पर भी भीतर की समृध्दि की अनुभूति करना।
आज का मनुष्य सुखी होने के लिए भ्रामक सुखों को खोजने का प्रयास करता है। उसका मन अतृप्त है। उसकी वासनाएं मर्यादाहीन हैं। यह अतृप्त है, परितृप्त नहीं! जीवन से अमर्यादित सुखों की लोभ की धन की पद की तथा मान-सम्मान की इच्छाओं से ही उसकी अधिकांश आधि-व्याधि उपाधियों ने जन्म लिया है। मनुष्य का लोभ, लालच, मोह दिनोंदिन बढ़ता जाता है और इसीलिए उसके जीवन में असंतोष क्रोध तथा भ्रमों का बढ़ना स्वाभाविक है। वासनाएं एक प्रकार से कीचड़भरा तालाब हैं, न कि यह मान सरोवर है। इसमें पड़ने वाला निष्कलंक इनमें से निकल सके यह संभव ही नहीं है। जिस प्रकार एक कहावत है कि जो व्यक्ति काजल की टोकरी मे हाथ डालेगा तो बिना काला हुए नही रह सकता यही स्थिति उस मनुष्य की भी होती है। अतः मनुष्य को अपनी आकाक्षांए सिमित करनी चाहिए यह एक समझदार व्यक्तितव की पहचान भी कराता है। आकांक्षाए कुछ इस प्रकार होनी चाहिए जो उस सिमा तक बनी रहे जिससे मर्यादा और उस मर्यादा से मिलने वाली संतुष्टि स्पष्ट करें।
इन्हे भी देखें
1. आनंद की अनुभूति
2. अंतःकरण