मन के हारे हार है मन के जिते जित – ESSAY IN HINDI

मन के हारे हार है मन के जिते जित यह एक ऐसा निबंध है जिसके माध्यम से लोगों के मन अथवा उनके अनुभव को उदाहरण के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया है।
हर रोज हजारों मोटरें तथा गाड़ियाँ दौड़ती हैं, हवा में अनेकों अवाई जहाज उड़ते रहते हैं, पानी में लाखों नावे तथा स्टीमर आवाजाही करते रहते हैं। इनमें से किसी को भी प्रतिकूलता के विषय में विचार करने की फुरसत नहीं होती। जो जीवन में आनंद की चाहना करता है उसे नर्मद या नर्मदा बनना पड़ता है। या होम करके कूद पड़ने वाला झरना या स्त्रोत ही अंत में महानदी बन सकता है। नदी या झरने को मूड देखकर बहने की आदत नहीं होती। वह स्वयं को बहते रहने को ही अपना असली मूड मानता है।

काम से उब जाने वाला व्यक्ति जिंदा तो रहता है प रवह जीवन जीना जानता नहीं है। शुक्राचार्य जी की इस सलाह पर ध्यान देना आवश्यक है ऐसा कोई भी अक्षर नहीं है जो मंत्र न हो ऐसा कोई भी पौधा नहीं है जो औषधि नहीं बन सकता, ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जो किसी भी काम का न हो, मनुष्य को यथायोग्य काम में जुट जाना ही श्रेयस्कर होता है। मन का भी कुछ यही हाल है। इसे काम में व्यस्त करके देखो ये कितने चमत्कारिक परिणाम देने लगता है।

बाहर की परिस्थितियों से शासित होने के स्थान पर बाहरी परिस्थितियों पर शासन करने के लिए सजग बने रहना ही विजय पताका फहराने की पूर्व शर्त है। आर्थर वेलेस्ली की यह उक्ति अत्यंत विचारणीय है घुड़साल में जन्म लेने से टट्टू तो बन सकता है पर घोड़ा नहीं बन सकता। घोड़ा बनने के लिए सीखने के लिए तैयार रहना पड़ता है।

हमारी इच्छानुसार हवा नहीं बहेगी, हमारी इच्छानुसार वर्षा भी नहीं होगी इसलिए अपने अनुकूल या आदर्ष परिस्थितियों के प्रलोभन में फंसने के स्थान पर अपने समक्ष उपस्थित परिस्थिति को ही अपने अनुकूल बनाने के लिए मार्ग में आने वाले विघ्नों को समाप्त करने के साहस को कैसे न कैसे करके बचाए रखना ही कर्मवीर का कर्त्तव्य होता है।

विचारों की नैया को तो डगमगाने की आदत होती है। विचार किनारे बना तो सकते हैं परंतु किनारों तक पहुंचने के लिए दृढ़ संकल्प ही सहायता कर सकता हैं। तूफानों के रुकने की बाट देखने वाले नाविक का नाम ही जवाँमर्दें की सूचि में शामिल होता है। केवल शहीदों के ही नहीं बल्कि ऐसे अडिग साहसियों के स्मृतिस्तंभों की पूजा भी की जानी चाहिए जो खतरों के बीच भी महान प्रयोग करते हैं। खतरों से खेलने वाले समुद्र के नाविक तथा प्रयोगशाला में अपने आपको झौंक देने वाले वैज्ञानिक भी इतने ही महान होते हैं।

विचारों को कार्यान्वित करना भी एक प्रकार की साधना है।
मन दिग्दर्शक भी है और साधक भी, बाधक भी है और घातक भी। केवल मूड के आधीन होने देना मन को घातक छूट देने के समान है। यदि मशीन खराब न हो तो स्विच में लगाते ही काम करने लगती है। मन को भी मूड नामक कमी या खराबी से मुक्त रखना चाहिए जिससे आपका आदेश प्राप्त होते ही वह कार्य में जुड़ जाय। तो पहले तथा जल्दी निर्णय ले वह सियाना, जो पहले घाव करे वह शूरवीर तथा जो व्यर्थ में ही विलंब करे वह बिलकुल पुराना आज की समाप्ति होने पर ही कल का सूर्य उदित होता है। बुध्दिमान मनुष्य इसीलिए कल पर कोई काम नहीं टालता।

मनुष्य को अभी नही ंतो कभी नहीं की संभावना याद करके ही कबीर की सलाह को गांठ बाँधकर अब को याद रखना चाहिए और आपने काम को तुरंत ही प्रारंभ कर देना चाहिए। जो स्वयं काम में नहीं डूबता, काम उसे डुबाने का मौका नहीं छोड़ता। बस इस बात को याद रखकर आप कहीं किसी भी कारण से पप्पू के समान फेल न हो जाएं, यह याद रखने का काम मैं आप पर छोड़ता हूँ। मनुष्य नहीं, भगवान कहे कि पप्पू पास हो गया यही है जीवन की सफलता। भगान तो मनुष्य को प्रत्येक पल यही बात याद कराता है मनुष्य तुम्हारी कोशिश यही होनी चाहिए कि तुम्हारा मन संदल सा महकता रहे।

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