महाराणा प्रताप का जीवन

महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 में मेवाड़ के राजा उदय सिंह द्वितीय और जयवंता बाई के यहाँ कुम्भलगढ़ किले में हुआ था, प्रताप बाल्यकाल से ही बहादुर, धार्मिक प्रवृत्ती और स्वाभिमानी स्वभाव के थे। वे अपने माता से बहुंत प्यार करते थे और बचपन मे उनका अधिक समय उनकी माता के देखरेख मे ही गुजरा था।

Table of Contents

महाराणा प्रताम के तीन छोटे भाई और दो सौतेली बहन थी। उनके छोटे भाई शक्ति सिंह, विक्रम सिंह और जगमाल सिंह थे उनके दो सौतेली बहनों के नाम थींरू चंद कंवर और मान कंवर थीं। जिस वर्ष उदय सिंह वनवीर सिंह को हराने के बाद सिंहासन पर बैठे थे उसी समय महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था।

उनका पहला विवाह बिजोलिया के अजबदे पन्वार के साथ हुआ था जो अमर सिंह प्रथम की पुत्री थी । जब सन् 1572 में उदय सिंह की मृत्यु हुई तब रानी धीरबाई चाहती थी कि उनका बेटा जगमाल मेवाड़ का उत्तराधिकारी बने। परंतु दरबार मे जिनका प्रभुत्व था वे महाराणा प्रताप को सबसे बड़ा बेटा होने के नाते राजा बनाना चाहते थे।

इस प्रकार सरदारों के सहयोग से उनकी प्रबल इच्छा के कारण सिसौदिया राजपूतों में मेवाड़ के 54वां शासक के रूप में महाराणा प्रताप सिंहासन पर बैठे।

इन सब से सौतेले भाई (प्रताप से छोटे) जगमाल ने महाराण प्रताप से बदला लेने उद्येष्य से अकबर की सेना में शामिल होने के लिए अपने कुछ वफादार साथियों के साथ अजमेर चला गया इस प्रकार अकबर ने महाराणा प्रताप के विरुध्द मदद के बदले पुरस्कार के रूप में जहाजपुर शहर को जागीर के रूप में जगमाल को दिया।

ये भारत वर्ष का ऐसा समय था जब भारत के अधिकांष राजा मुगल शासक अकबर की अधिनता स्वीकार कर लिया था। परंतु मेवाड़ की धरती पर एक ऐसा साहसी राजा षिंहासन मे विराजमान था जिसके हौंसले के आगे अकबर की विशाल सेना भी बहुंत छोटी प्रतित होती थी।

मेवाड़ और मुगल के मध्य जो संघर्ष है यह महाराणा प्रताप के वीर पराक्रमी राणा सांगा के समय से चली आ रही थी। जंहा 1527 खानवा का युध्द जिसमे राणा सांगा को हार का सामना करना पड़ा इसके बाद छोटी मोटी घटनाएं होती रही, 1568 में चित्तौड़गढ़ की मुगलों के द्वारा घेराबंदी करने के बाद महाराणा के पिता उदय सिंह द्वितीय के पराजय के बाद भी यह जारी रहा।

महाराणा प्रताप का राजा बनना

जब 1572 में महराणा प्रताप के पिता का निधन हुआ जिसके बाद महाराणा प्रताप को फरवरी 28, 1572 राजा बनाया गया। इस समय मुगल शासक अकबर ने यह प्रयत्न किया की अब मेवाड़ के राज उनकी अधिनता स्वीकार कर लें अकबर के द्वारा कई बार प्रयत्न करके दूत भेजे गये जिनमें उनके दूत के रुप मे आमेर के राजा मान सिंह प्रथम को भी भेजा गया था।

जिन्हे महाराणा प्रताप ने अधिनता स्वीकार करने से मना किया था और उनसे कई अन्य राजाओं के जैसे जागीरदार बनने का निवेदन किया था।

इसके पश्चात जब इतने प्रयासों के बाद भी महाराणा प्रताप ने अकबर के सामने समर्पण करने से मना कर दिया और कूटनीतिक रूप से किये गये प्रयास असफल हो गये, तब महाराणा को मिलाने का एक रास्ता बच गया वह था युध्द।

मेवाड़ को मुगलों के अधिन लाने का अकबर की दृढ़ इच्छा इसलिए भी थी क्योंकि मुगल सम्राट गुजरात के लिये एक सुगम मार्ग चाहता था। जो मेवाड़ से होकर गुजरात तक जाता था। इसलिये किसी भी तरह से अकबर मेवाड़ पर अपना आधिपत्य चाहता था।

अकबर भी मेवाड़ के शासकों की शक्ति से परिचित था क्योंकि भले ही अपनी विशाल सेना के बल पर उन्होने कई बार मेवाड़ को पराजित किया था परंतु पूर्ण रुप से उसी कभी अधिन नहीं कर पाये थे। इसके साथ जब भी युध्द हुआ तब मुगल शासकों को भी बहुंत भारी नुकसान उठाना पड़ा था चाहे वह बल से हो या धन से।

मुगल और मेवाड़ के शासकों के बिच संघर्ष भले ही कई पिढ़ी से क्यों न हो परंतु जब अकबर और महाराणा प्रताप की बात हो तो मुगल शासक को प्रताप के बारे मे भली भांति ज्ञात था की वह झुकने वालों मे से नहीं है।

अकबर ने महाराणा प्रताप को युध्द से पहले अपनी अधिनता स्वीकार करने के इतने प्रयत्न करने का एक कारण यह भी था की वह स्वयं व्यक्तिगत रुप से महाराणा प्रताप के वीरता के बहंुत बड़े प्रशंसक थे।

संभवतः यदि वे उनकी अधिनता स्वीकार करते तो उन्हे मुगल दरबार मे अन्य शासको की तुलना मे एक बड़ा ओहदा प्राप्त होता। अकबर को ऐसा प्रतित होता था की यदि महाराणा उनकी अधिनता स्वीकार कर ले तो उसकी ताकत कई गुना बढ़ जायेगी।

हल्दीघाटी का युध्द

जब हर प्रकार का प्रयत्न विफल हो गया तब महाराण प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के मध्य 18 जून 1576 को राजस्थान के वर्तमान राजसमंद जो गोगुंडा के पास हल्दीघाटी है, उसके एक संकीर्ण पहाड़ी दर्रे के आगे दोनो सेनाएं आमने सामने मिली जिससे एक भयंकर युध्द का उदघोष हुआ।

यह हृदय द्रवित युध्द हल्दीघाटी के युद्ध के नाम से जाना गया। इस युध्द मे महाराणा प्रताप के लगभग 3000 घुड़सवार और 400 भील तीरंदाजों की सेना ने भाग लिया।

परंतु कुछ जानकारों का मानना है कि इसमे भील समुदाय के जो लोग थे जिन्होने महाराणा का साथ दिया था, उनकी संख्या 400 से कहीं अधिक थी इसके अतिरिक्त कुछ लोगों को यदि युध्द का परिणाम महाराणा के विपरित हो तो आपातकालिन सहायता के लिये भी कुछ सैनिक तैनात किये गये थे परंतु यह स्पष्ट नहीं है।

इस युध्द मे अकबर की ओर से मुगल सेनापति मान सिंह ने नेतृत्व किया तथा लगभग 10000 की सेना के साथ महाराणा के विरुध्द मोर्चा संभाला। हल्दी घाटी का यह युध्द लगभग तीन घंटे से भी अधिक समय तक चला युध्द के दौरान महाराणा प्रताप को कई जगह चोटें आई और वह घायल हो गये।

महाराण प्रताप की ऐसी स्थिति को देख कर प्रताप के कई सरदारों ने उन्हे युध्द के मैदान से सुरक्षित जगह जाने के लिये विनती की जिसके बाद समय को देखते हुये उन्होने इसे उचित समझकर सुरक्षित जगह पहुंचने का प्रयास किया।

इस युध्द मे उनका प्रिय घोड़ा चेतक  घायल हो गया और उसने अपनी जान की आहुति देकर महाराणा को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने मे अहम भूमिका निभाई। इस प्रकार प्रताप पहाड़ियों की आड़ मे पीछे हटने में कामयाब रहे।

यदि इसमे जीत की बात करें तो भले ही मुगलों को इस लड़ाई के बाद मेवाड़ का मैदानी उपजाउ क्षेत्र प्राप्त हो गया परंतु पहाड़ी क्षेत्र और उसके घाटिंयों पर अब भी पूर्णतः अधिकार नहीं हो पाया।

मेवाड़ पर मुगलों की जीत

हल्दीघाटी की जीत मुगलों के लिए एक प्रकार से निरर्थक रही, क्योंकि युध्द के बाद उदयपुर में मुगलों ने महाराणा प्रताप अथवा उनके परिवार के किसी भी सदस्य को मारने या पकड़ने में सफलता नही मिली थी। महाराणा ने अरावली के पहाड़ियों मे शरण ली, मान सिंह ने हल्दीघाटी के बाद गोगुंदा पर अधिकार कर लिया।

जब मान सिंह ने इसकी सूचना अकबर को दी तो वे बहुंत प्रसन्न हुये इसके पश्चात 1576 के सितंबर महिने मे अकबर ने स्वयं महाराण प्रताप के खिलाफ लगातार अपने नेतृत्व में अभियान चलाते हुये गोगुंडा, कुंभलगढ और उदयपुर को अपने नियंत्रण में कर लिया।

महाराणा प्रताप के कष्ट भरे दिन

मेवाड़ पर विजय प्राप्त करने से अकबर बहुंत प्रसन्न था। यह समय महाराण प्रताप के लिये बहुंत ही कष्ट भरा था, वे राजा तो थे परंतु उनका राज्य नहीं था। इस दुख के समय मे भील समुदाय के लोगों ने प्रताप की बहुंत सहायता की।

कहा जाता है कि एक समय ऐसा भी आया जब प्रताप को भोजन के अभाव मे घास की रोटी भी खानी पड़ी। परंतु यदि देखा जाये तो इसे पूर्णतः सत्य नहीं माना जा सकता। इसका कारण यह है कि महाराणा प्रताप जो कि बचपन से ही भील जाती के बिच मे पले बढ़े थे। यह समुदाय एक आदिवासी समुदाय है।

जो जंगलों और पहाड़ों मे निवास करती है, जिससे इन्हे कई ऐसे खाद्य पदार्थों की जानकारी होती है जिसे मैदानी क्षेत्रों मे सामान्य जीवन व्यतित करने वाले व्यक्ति नही जान पाते हैं। महाराण प्रताप उन्हे बचपन से जानते थे। जिस कारण उन्हे कुछ ऐसे खाद्य पदार्थों की भी जानकारी थी जिसे भील समुदाय भोजन के रुप मे रोटी बनाने मे किया करते थे।

इस प्रकार के घास के बिज को कई क्षेत्रों के लोग भोजन के रुप मे उपयोग करते हैं, जैसे वर्तमान छत्तीसगढ़, झारखण्ड इत्यादी जगहों मे इसे कोदो-कुटकी कहा जाता है। जिसकी जानकारी महाराणा प्रताप को उस समय थी और वे इसकी रोटी भी खाया करते थे।

जिसे इतिहासकार महाराणा को असहाय दिखाने के लिये घास की रोटी खाने की बात कहते हैं, जो कि एक भोजन के रुप मे उपयोग किया जाता था।

महाराण प्रताप द्वारा राज्य पर पुनः अधिकार

धीरे-धीरे समय बितता गया इस बिच महाराणा ने अपनी सेना को गुपचुप तरिके से बढ़ाना आरंभ कर दिया। वे अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिये सही समय का इंतजार करने लगे।

महाराणा ने अपने मुसिबत के दिनों मे छप्पन क्षेत्र में शरण ली थी और मुगल दुर्गों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था। महाराणा प्रताप का इंतजार खत्म हुआ और वह समय आ गया जब मेवाड़ के कुछ क्षेत्रों को वापस अपने अधीकार मे कर पाये। यह समय था सन् 1579 जब बंगाल और बिहार में विद्रोह बहंुत भयंकर रुप ले चुका था।

इसी प्रकार पंजाब प्रांत में मिर्जा हकीम का आक्रमण हो गया। मुगल जब इन समस्याओं से घिरे हुये थे, तब उनका ध्यान मेवाड़ से हट गया और उन्हे ऐसा लगा की महाराणा की शक्ति क्षिण हो गई है।

यही समय था जब मुगल अपने दुसरे क्षेत्रों के प्रांतो की समस्याओं मे व्यस्त हो गये। महाराणा ने मेवाड़ की धरती पर लगा मुगल नामक ग्रहण एक बार पुनः आसानी से हटा दिया और मेवाड़ को फिर से अपना प्रिय राजा मिल गया।

यह समय सन् 1583 का था जब महाराणा ने पश्चिमी मेवाड़ को सफलतापूर्वक अपने अधिन कर लिया था इन क्षेत्रों मे देवर, मदारिया, ज़ावर, आमेट तथा कुंभलगढ़ का किला भी शामिल था।

अकबर द्वारा लाहौर को राजधानी बनाना

जब ये समाचार अकबर को मिला तब उसे यह स्वीकार कर पाना कठीन था की कोई राजा इतने वर्षों से राजकाज से दूर आर्थिक रुप से कमजोर जंगलों मे भटकता हुआ इतने विषाल मुगल सेना को चुनौती देते हुये कैसे पुनः अपना अधिकार कर सकता है।

महाराणा प्रताप जब मेवाड़ मे अपना अधिकार कर लिया उसके कुछ वर्ष पश्चात सन् 1584 में अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए जगन्नाथ कछवाहा को भेजा। मेवाड़ की सेना स्वयं को पहले की तुलना मे बंहुत मजबूत कर चुके थे। इस समय भी छोटे मोटे झड़पें होती रही थी।

जब अकबर ने जगन्नाथ कछवाहा के नेतृत्व मे मुगल सेना मेवाड़ के विरुध्द भेजी तब मेवाड़ की सेना ने महाराणा के नेतृत्व मे मुगलों को बहुंत ही आसानी से हरा दिया। जिससे उन्हें मजबूर होकर पिछे हटना पड़ा।

इस युध्द मे मुगलों को भारी जन-धन की हानी उठानी पड़ी। इससे अकबर को यह बात समझ मे आ गई की अब मेवाड़ के जिस क्षेत्रों को महाराणा ने वापस अपने अधिकार मे कर लिया है उनको पुनः प्राप्त कर पाना पहले से भी कठीन होगा।

अकबर को महाराणा के नेतृत्व मे मेवाड़ी सेना की बढ़ती ताकत और बार-बार महाराणा से मुगल सेना को मिलने वाली हार से बहंुत परेशान हो गया था। उसे अपने साम्राज्य की चिंता होने लगी थी।

जीससे अकबर ने महाराणा के विरुध्द सिधे तौर पर कोई सैन्य अभियान भेजने के बजाये स्वयं महाराणा प्रताप से दुर जाने का फैसला किया और अपने राज्य के उत्तर-पश्चिम के क्षेत्रों को सुरक्षित करने के उद्येष्य से सन् 1585 में अकबर लाहौर चला गया।

इस प्रकार अगले लगभग बारह वर्षों तक वे वहीं रहे और लाहौर को ही अपनी राजधानी बनाकर लाहौर से ही शासन करते रहे। इस अवधि के दौरान अकबर द्वारा यह सुनिश्चित किया गया की मेवाड़ी सेना मुगलों के विरुध्द कोई अभियान ना चलाये जिसके लिये समय-समय पर मुगल और महाराणा के बिच छोटी-छोटी झड़पें होती रही परंतु कोई बड़ा अभियान नहीं भेजा गया।

इस स्थिति का लाभ उठाते हुए महाराण प्रताप ने मुगल सेना को हराकर मेवाड़, चित्तौड़गढ़ तथा मंडलगढ़ क्षेत्रों के उन हिस्सो को भी प्राप्त कर लिया था जो उनके राजा बनने के पूर्व मुगलों द्वारा अपने अधिपत्य मे ले लिया गया था। सन् 1585 से अपने अंतिम समय तक महाराणा ने मेवाड़ के बड़े हिस्से पर पुनः अधिकार कर लिया था।

इस समय ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गई की जो व्यक्ति मेवाड़ से पलायन कर गये थे वह भी वापस लौटने लगे थे।  इस समय वर्षा अच्छी होने से मेवाड़ की कृषि उपजाउ भूमि मे वृध्दि हुई। इस कारण राज्य की अर्थव्यवस्था मे भी सुधार होने लगी और क्षेत्र में व्यापार का विस्तार हाने लगा था।

महाराणा जब आर्थिक रुप से मजबूत हुये तो उन्होने इससे अपनी सैनिक ताकत मे वृध्दि की जिससे उन्होने चित्तौड़ के पश्चिम के प्रदेशों पर अधिकार करना प्रारंभ किया परंतु उनकी चित्तौड़ पर पुनः अधिकार करने का सपना पूरा नहीं कर पाये।

भले ही महाराणा प्रताप मेवाड़ के क्षेत्रों को जीत गये थे परंतु अपनी पूर्व राजधानी को प्राप्त नहीं कर पाये। इसका कारण जब मेवाड़ सिंसोदिया राजवषं के अधिन था तभी से किले को सुरक्षात्मक दृष्टी से इतना मजबूत बनाया गया था की उसका लाभ दुर्ग के मुगलों के अधिन होने से उन्हे मिल रहा था।

उसकी अभेद सुरक्षा व्यवस्था इतनी मजबूत थी की इसे प्राप्त करने की चेष्टा करते तो उन्हे बहंुत नुकसान उठाना पड़ता। अतः महाराणा ने स्थिति को देखते हुये अपने लिये दूसरी राजधानी बनाने का निर्णय लिया और उन्होंने नई राजधानी के रुप मे चावंड को चुना और इस स्थान पर चामुंडा माता का मंदिर का निर्माण करवाया। यह जगह वर्तमान डंुगरपुर के पास स्थित है।

जब अकबर लाहौर मे था तब ये दोनो शक्तिशाली योध्दा एक दूसरे से दूर थे, जिससे इन दोनो की सिमायें भले ही मिलती थी परंतु ये दोनो स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे थे।

ये वह समय था जब महाराणा ने भी अपने राज्य मे आमजन के लिये कई कार्य किये जिससे उसके क्षेत्र मे खुशहाली आये। महाराण प्रताप कला प्रेमी भी थे उन्होने अपने नविन राजधानी चावंड के दरबार में कई कवि, कलाकार और कारीगरों को आश्रय दिया था।

उनके दरबार में नासीरुद्दीन जैसे कई प्रसिद्ध मुस्लिम कलाकार भी थे। जो दरबार की सोभा बढ़ाने का कार्य करते थे।

महाराण प्रताप से संबंधित प्रश्न जो लोग पूछते हैं

अकबर को किसने हराया था?

अकबर अपने जीवन काल मे यदि किसी से बूरी तरह हारा है तो वह महाराणा प्रताप हैं।

महाराणा प्रताप की सेना कितनी बड़ी थी?

महाराणा प्रताप के पास एक विशाल सेना थी इनका ठीक ठीक संख्या बता पाना मुस्किल है। परंतु कुछ जानकारों के अनुसार इनके पास लगभग 20000 की सेना थी। जीनमे घुड़सवार सेना, पैदल सेना, अन्य सामिल थे।

अकबर की सेना कितनी बड़ी थी?

अकबर का राज्य बहुंत बड़ा था उनके अधिन कई बड़े-बड़े रियासत आते थे। उसे अपने राज्य की सुरक्षा के लिये एक बड़ी सेना की आवश्यकता होती थी। कुछ जानकारों के अनुसार अकबर की सेना मे लगभग 85000 सैनिक थे जिनमे घुड़सवार, हाथी दल, पैदल सैनिक, तोपखाना दल इत्यादि सामिल थे।

महाराणा प्रताप का असली नाम क्या था?

महाराणा प्रताप का कोई और नाम नहीं था। उसका नाम प्रताप सिंह ही था।

क्या महाराणा प्रताप हिंदू थे?

महाराणा प्रताप सिसोदिया राजवशं से ताल्लुक रखते थे, जो एक हिंदू राजपूत के अतंर्गत आते हैं।

महाराणा प्रताप का दोस्त कौन था?

महाराणा प्रताप के दूस्मनो की बात करें तो उनकी संख्या बहुंत कम थी, परंतु उनके दोस्तों की बड़ी लंबी सूची है महाराणा का व्यवहार ही ऐसा था की दुश्मन भी उनकी तारिफ करने से स्वयं को नहीं रोक पाते थे। कुछ इतिहासकारों ने महाराणा प्रताप के सबसे अच्छे दोस्त में हकीम खां सूरी को माना है, इसका मुख्य कारण अकबर का भी हकीम खां का शत्रु होना है।

क्या महाराणा प्रताप राजपूत हैं?

म्हाराणा प्रताप सिंसोदिया राजवशं से ताल्लुक रखते थे, जो कि राजपूत हैं।

महाराणा प्रताप का आखिरी वंशज कौन है?

महाराणा प्रताप के वंशजो मे जब तक राजाओं का शासन था अर्थात 1947-48 के समय मे बात की जाये तो भूपाल सिंह रहे थे। इनकी वंशावली बहुंत लंबी है जो वर्तमान समय मे भी जारी है। इस समय अरविंद सिंह जी इनके वंशजो की पिढ़ी मे सबसे आखिरी हैं।

हल्दीघाटी का युध्द क्यों हुआ था?

हल्दीघाटी का युध्द मुगल और मेवाड़ के मध्य का युध्द था। इसमे मानसिंह को लेकर कुछ किवंदतियां है जो कि मानना कठीन है, कहा जाता है कि मानसिंह जो कि जयपुर के महाराजा और अकबर के सेनापति थे वह किसी कारण वश महाराणा प्रताप के पास उदयपुर पहंुचे थे। जब उन्होने महाराणा के साथ भोजन करने की इच्छा प्रकट की तो प्रताप ने इसके लिये मना कर दिया जिससे मानसिंह क्रोधित हो गये और बिना भोजन किये ही वहां से चले गये। माना जाता है कि यहीं से हल्दी घाटी के युध्द की सुगबुगाहट होने लगी थी। परंतु महाराण प्रताप की जीवनी को यदि हम पढ़ते हैं तो इन बातों पर विष्वास कर पाना थोड़ा कठीन हो जाता है। ऐसा प्रतित होता है कि हल्दीघाटी का युध्द अकबर के विस्तारवादी नीति का कारण था।

चित्तौड़ का अंतिम राजा कौन था?

चित्तौड़ का अंतिम राजा रतन सिंह जी थे जो एक हिंदू राजा थे, ये गुहिल वशं से ताल्लुक रखते थे।

सबसे शक्तिशाली राजपूत राजा कौन था?

राजवशं के माहाराणा संग्राम सिंह का नाम सबसे पहले आता है। कहा जाता है कि इनके पूरे शरीर मे लगभग 70-80 घाव के निशान थे उन्होने युध्द मे अपना एक आंख एक हाथ भी खो दिया था। कुछ जगहों मे तो किसी युध्द के दौरान एक पैर का भी घायल होने की जानकारी मिलती है। इतने कष्टों के बावजूद इन्होने कभी भी स्वयं को कमजोर नहीं माना और जीवन भर मेवाड़ की धरती के लिये संघर्ष करते रहे। ये अपने शौर्य एवं साहस के लिये प्रसिध्द थे।

अकबर का सबसे कठीन दुश्मन कौन था?

लगभग पूरे उत्तर भारत मे ऐसा कोई राज्य नहीं बचा था जिन्होने अकबर की अधिनता स्वीकार न कर लि हो, परंतु एक राजा था जिसने अकबर की अधिनता स्वीकार करने से इनकार कर दिया वह है महाराणा प्रताप, यही थे जिन्होने अकबर के मुकाबले एक छोटे से राज्य के शासक होने के बाद भी उन्हे निरंतर युध्द मे मात देते रहे।

महाराणा प्रताप की दूसरी पत्नी का नाम क्या था?

महाराणा प्रताप की कुल 14 रानियां थी परंतु कहीं कहीं इनकी संख्या 11 भी बताई गई है, यदी इनकी दूसरी पत्नी के नाम की बात करें तो उसका नाम फूलबाई राठौर था।

महाराणा प्रताप के घोड़े का क्या नाम था?

महाराणा प्रताप ने अपने जीवन मे यूं तो कई घोड़े उपयोग मे लायें है पंरतु उनके सबसे प्रिय घोड़े का नाम चेतक था।

महाराणा प्रताप के घोड़े की मृत्यु कैसे हुई थी?

महाराणा प्रताप के प्रिय घोड़़े चेतक की मृत्यु हल्दी घाटी के युध्द मे उसके पिछे पैर में चोट लगने से हुई थी।

मेवाड़ का वर्तमान नाम क्या है?

मेवाड़ राजस्थान के दक्षिणी-मध्य भाग मे स्थित है, यह क्षेत्र वर्तमान मे उदयपुर के अतंर्गत आता है।

अजबदे किसकी बेटी थी?

अजबदे पन्वार बिजोलिया के राव ममरख सिंह पन्वार की बेटी थी, ये मेवाड़ के एक प्रतिष्ठित सरदार थे।

महाराणा प्रताप के कितनी रानी थी?

महाराणा प्रताप के कुल 14 रानियां थी परंतु कही कही इनकी संख्या 11 भी बताई गई है।

महाराण प्रताप कौन सी जाती के हैं?

महाराणा प्रताप सिसोदिया राजवशं के है जो राजपूत जाती मे आते हैं।

क्या महाराणा प्रताप के वशंज आज भी हैं?

महाराणा प्रताप के वशंजो की बात करें तो इनके वशंजो की सूची काफी बड़ी है इनके वशंज आज भी राजस्थान मे रहते हंै। वर्तमान समय मे श्री अरविंद सिंह इनके वशंजो मे आते हैं।

महाराणा प्रताप की सबसे प्रिय रानी कौन थी?

महाराणा प्रताप की सबसे प्रिय रानियों मे सबसे पहला नाम अजबदे पन्वार का नाम आता है।

महाराणा प्रताप की मृत्यु कब हुई थी?

महाराणा प्रताप की मृत्यु 19 जनवरी सन् 1597 को शिकार करने के दौरान लगे चोंट से हुई थी।

महाराणा प्रताप की मृत्यु पर अकबर क्यों रोया था?

अकबर भले ही महाराणा प्रताप को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते थे परंतु उनके साहस और बहादूरी के वे स्वयं प्रषंसक रहे हैं, मातृभूमि के लिये प्रताप के मरमिटने का जूनून के वे कायल थे। जब उन्हे सूचना मिली की महाराणा प्रताप की मृत्यु हो चुकी है तब इन बातों को याद कर अकबर की आंखे भी नम हो गई। इस बात के गवाह उनके दरबार मे उपस्थित लोग रहे हैं।

महाराणा का मतलब क्या होता है?

महाराणा का मतलब राजा होता है।

Leave a Comment