रवीन्द्रनाथ ठाकुर

रवीन्द्रनाथ ठाकुर

एक ऐसे महान साहित्यकार जिन्होने भारतवर्ष के साथ-साथ पुरे विश्व मे अपनी एक अलग पहचान बनाई। इनका नाम रवीन्द्रनाथ या रबीन्द्रनाथ दोनो ही लिखा जाता है।

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इसका कारण इनका मुल बंगाली होने के कारण है, बंगाली भांषा मे कहीं-कहीं व के स्थान पर ब उच्चारण किया जाता है। जैसे बांकी भारत मे जल पिना होता है परंतु बंगाली भाषा मे जल को खाया जाता है, ठीक कुछ इसी प्रकार।

रवीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोरासांको में ठाकुरबाड़ी हवेली के एक बंगाली परिवार मे हुआ था जो उस समय ब्रिटिश भारत मे आता था। रवींद्रनाथ ठाकुर के माता पिता का नाम शारदा देवी एवं देवेंन्द्रनाथ टैगोर था।

भाई बहनो की बात करें तो अपने माता-पिता की तेरहवीं संतान थे। इनके सभी भाई-बहनों के नाम 1. द्विजेन्द्रनाथ 2. ज्योतिरिन्द्रनाथ, 3. सत्येंन्द्रनाथ टैगोर, 4. भूदेन्द्रनाथ टैगोर, 5. हेमेन्द्रनाथ टैगोर, 6. बिनेन्द्रनाथ टैगोर, 7. सोमेन्द्रनाथ टैगोर, 8. पून्येन्द्रनाथ टैगोर, 9. स्वर्णाकुमारी टैगोर, 10. सौदामिनी टैगोर, 11. बरनाकुमारी टैगोर, 12. सरतकुमारी टैगोर, 13. सुकुमारी टैगोर, 14. रविन्द्रनाथ टैगोर (स्वयं) थे।

रवीन्द्रनाथ टैगोर को बचपन मे रवि/रबि के नाम से जाना जाता था और घर मे सब इसी नाम से पुकारा करते थे। रवीन्द्र नाथ टैगोर के पिताजी भी एक महान हिन्दू दार्शनिक एवं ब्रम्ह समाज के धार्मिकता से संबंधित आंदोलन के संस्थापकों में से थे।

इनके पिता जी देवेंद्रनाथ टैगोर ब्रह्मसमाज के एक नेता थे। इनके दादा जी द्वारका नाथ टैगोर एक प्रसिध्द एवं अमीर जमीदार तथा समाज सुधारक थे। इनके दादा जी को राजा की उपाधि भी मिली थी।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के माता जी का देहांत उनके बचपन के समय मे ही हो गया था जिसके कारण उन्हे अपनी माता का प्यार नहीं मिल पाया उनके पिता जी हमेसा काम के वजह से बाहर ही रहते थे इस प्रकार उन्हे मां के साथ-साथ पिता जी का भी ठीक से प्यार नहीं मिल पाया इस दौरान उनका लालन पालन उनके घर मे रहने वाले नौकर अथवा आया द्वारा उनकी परवरिश किया गया।

रविन्द्रनाथ टैगोर जी का धर्म हिन्दू एवं जाति बंगाली ब्राह्मण है। रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में बहुंत रुचि थी उन्होने अपनी पहली कविता आठ वर्ष की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी, सोलह साल की उम्र में ही उन्होंने कहानियां और नाटक लिखना प्रारंभ कर दिया था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर की शादी 9 दिसंबर 1883 मे मृणालिनी देवी जी से हुआ इस समय मृणालिनी देवी जी की उम्र 10 वर्ष थी। इन दोनो की उम्र मे बहुंत का अतंर था परंतु उस समय ये एक आम बात थी।

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के पांच बच्चे हुए जिनके नाम रथीन्द्रनाथ टैगोर, शमीन्द्रनाथ टैगोर, मधुरिलता देवी, मीरा देवी, और रेणुका देवी थे। इनकी पत्नी मृणालिनी देवी जी का निधन जवानी मे ही किसी अज्ञात कारणों से हो गई। जब मृणालिनी देवी का निधन हुआ उसके पश्चात उनके दो बच्चों रेणुका और समिन्द्रनाथ का भी निधन हो गया।

उन्होने दूसरी शादी नहीं की। ये समय रविन्द्रनाथ टैगोर जी के व्यक्तिगत जीवन के लिए बहुंत कष्टदायि था। उन्होने अपने दैनिक जीवन मे बहुंत से व्यवहारिक कष्टों का सामना किया चूंकि उनका पूरा परिवार धन संपदा के लिहाज से सम्पन्न था जिससे उन्हे आर्थिक रुप से कभी भी कठिनाईयों का सामना नहीं करना पड़ा वे एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते थे जहां सभी कला प्रेमी थे।

और आर्थिक रुप से मजबूत होने के कारण वे अपना अधिक से अधिक समय केवल अपने रचनाओं मे देते थे। बचपन में रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रारम्भ मे शिक्षा घर पर ही हुई थी बाद ये प्रसिध्द स्कूल सेंट जेवियर मे इन्होने पढ़ाई की परंतु इनकी आगे की शिक्षा इंग्लैंड मे स्थित एक सार्वजनिक स्कूल ब्राईटन, ईस्ट सक्सेस से पूरा हुआ था।

उनके पिता जी उन्हे एक बैरिस्टर बनाना चाहते थे जिसके लिए बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए रविन्द्रनाथ टैगोर को उनके पिता ने 1878 मे इंग्लैंड भेजा था।

टैगोर जी को बैरिस्टरी की पढ़ाई मे बिलकुल भी रुची नहीं थी वे उनके पिता के कहने पर उनकी बात का मान रखने के लिए और परिवार के अन्य सदस्यों के कहने पर इंग्लैंड जाकर काॅलेज मे एडमिशन ले लिया और पढ़ाई करने लगे।

इस दौरान उन्हे अपने मन मे दबे उस कला का प्रेम इस प्रकार से उठा की वे अपनी पढ़ाई छोड़ कर कुछ साहित्य से संबंधित चिजों को सिखने के पश्चात बिना डिग्री के वापस भारत आ गये।

इनकी कला प्रेम की बात कि जाये तो ये अद्भुत साहित्य और कलात्मक उपलब्धि वाले व्यक्ति थे। रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रेरणस़्त्रोत की बात करें तो कालिदास की शास्त्रीय कविता को दिया जा सकता है जिसे पढ़ने के पश्चात इन्होने अपनी स्वयं की शास्त्रीय कविताएं लिखना आरंभ किया।

उन्हे इसके अतिरिक्त अन्य प्रेरणा उनके भाइयों और बहन से मिलीं। टैगोर जी के बड़े भाई द्विजेंद्रनाथ एक कवि और दार्शनिक थे जिनसे वे प्रभावित थे। उनके एक और बड़े भाई सत्येंद्रनाथ एक सम्मानजनक स्थिति में थे।

उनकी बहन स्वर्णकुमारी प्रसिद्ध उपन्यासकार थी। रविन्द्रनाथ टैगोर एक बंगाली भाषा के कवि थे इसके साथ-साथ वे उपन्यासकार, चित्रकार, ब्रह्म समाज दार्शनिक, संगीतकार, समाज सुधारक, कलाकार, नाटककार, लेखक और शिक्षाविद भी थे।

रविन्द्रनाथ जी को बंगाली और अंग्रेजी भाषा का अच्छा ग्यान था। उन्होंने भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय आंदोलनों में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। रवीन्द्रनाथ टैगोर नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई व्यक्ति थे जिन्हे अपने गीतांजलि कविता संग्रह के लिए 1913 में नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

इसके अतिरिक्त और भी ऐसे कई उपाधि हैं जिनसे उन्हे सम्मनित किया गया था जिसमे 1915 में नाईटहुड की उपाधि ब्रिटिश राजा जाॅर्ज पंचम द्वारा, सन् 1940 में ऑक्सफोर्ड यूनवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि भी सामिल है। रवींद्रनाथ टैगारे की मृत्यु प्रोस्टेट कैंसर नामक बिमारी से हुई उनके जीवन के अंतिम चार साल अत्यतं कष्टदायी थे।

लंबे समय बीमारी से पीङित रहने के बाद 7 अगस्त 1941 को कोलकात्ता में जोरासांकी हवेली में उन्होने अंतिम सांस ली और इस संसार को छोड़ गये। इस प्रकार उनका निधन हुआ।

रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा अपनी साहित्य कला के माध्यम से देश की संस्कृति और सभ्यता को इन्होने यूरोपिय देशों मे फैलाया। इन्होने भारत के संस्कृति एवं पश्चिमी संस्कृति के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास किया।

इनके कला के साथ-साथ ऐसे बहंुत से सामाजिक कार्य थे जिनके फलस्वरुप महात्मा गांधी जी ने रविन्द्र नाथ टैगोर को गुरुदेव की उपाधि दी। यदि हम रविन्द्रनाथ टैगोर के और नामों कि बात करें तो प्यार से इन्हे गुरुदेव, कविगुरु, विश्वकाबी जैसे नामों से आज भी संबोधित किया जाता है।

रवीन्द्रनाथ टैगोर दो देश पहला भारत और दूसरा बांग्लादेश के राष्ट्रगान जन-गण-मन तथा आमार सोनार बांग्ला के रचयिता है। रवीन्द्रनाथ टैगोर को मरणोपरांत सन् 1954 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

इनके द्वारा जो गीत लिखे गये थे या यूं कहें की गाये गये थे उन्हें रवीन्द्र संगीत के नाम से पहचान मिली।

रविन्द्रनाथ ठाकुर की शिक्षा

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को बचपन से ही पढ़ाई लिखाई में बहुंत रुचि थी। रविन्द्र नाथ ठाकुर की शिक्षा प्रारंभिक रुप से घर पर ही हुई बाद मे इन्होने प्रसिध्द स्कूल सेंट जेवियर मे पढ़ाई की परंतु इनकी आगे की शिक्षा इंग्लैंड मे स्थित एक सार्वजनिक स्कूल ब्राईटन, ईस्ट सक्सेस से पूरा हुआ था जो एक प्रकार से इनके परंपरागत स्कूल थी।

उनके पिता जी का सपना उन्हे एक बैरिस्टर बनाने का था। जिसके लिए बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए रविन्द्रनाथ टैगोर को उनके पिता ने 1878 मे इंग्लैंड भेजा था।

टैगोर जी को बैरिस्टरी की पढ़ाई मे कोई रुची नहीं थी वे उनके पिता एवं परिवार के अन्य सदस्यों के कहने पर इंग्लैंड जाकर काॅलेज मे एडमिशन ले लिया और पढ़ाई करने लगे इस दौरान कानून की पढ़ाई से उनका मोह भंग हो गया। जिसके बाद वे कानून की पढ़ाई उन्होने बिच मे ही छोड़ दिया।

इसके पश्चात उन्होने कुछ समय इंग्लैण्ड मे ही रहकर कुछ साहित्य से संबंधित चिजों को सिखने के पश्चात बिना बैरिस्टर डिग्री के वापस भारत आ गये। इसके पश्चात इन्होने पिछे मुड़कर नहीं देखा और अपने साहित्य प्रेम को सवांरने लगे।

रविन्द्रनाथ ठाकुर का साहित्य प्रेम

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को बचपन से ही पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ सहित्य में भी बहुंत रुचि थी। इनकी साहित्य प्रेम इस बात से ही झलकता है कि इन्होने आठ साल की उम्र मे ही अपनी पहली कविता लिखी थी इसके साथ ही 1877 मे मात्र सोलह वर्ष की उम्र मे ही उनकी लघुकथा प्रकाशित भी हुई थी यह उनकी प्रथम लघुकथा थी। 

इनकी कला प्रेम की बात कि जाये तो ये अद्भुत साहित्य और कलात्मक उपलब्धि वाले व्यक्ति थे। रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रेरणस़्त्रोत कालिदास की शास्त्रीय कविता है। जिसे पढ़ने के पश्चात इन्होने अपनी स्वयं की शास्त्रीय कविताएं लिखना आरंभ किया। उन्हे इसके अतिरिक्त अन्य प्रेरणा उनके भाइयों और बहन से मिली थी।

टैगोर जी के बड़े भाई द्विजेंद्रनाथ एक कवि और दार्शनिक थे जिनसे वे प्रभावित थे। उनके एक और बड़े भाई सत्येंद्रनाथ समाज मे एक सम्मानजनक महत्व के व्यक्ति थे। उनकी बहन स्वर्णकुमारी प्रसिद्ध उपन्यासकार थी।

रविन्द्र नाथ टैगोर उपन्यासकार, निंबधकार, लघु कथाकार, नाटककार, कविकार, कहानिकार जैसे कई विलक्षण गुणों के धनी थे। इन्ही कि द्वारा शान्ति निकेतन की स्थापना किया गया था।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1901 में शांति निकेतन आश्रम चले तथा वहीं से उन्होंने उपनिषदों से पारंपरागत गुरु-शिष्य शिक्षण विधि पर आधारित एक प्रकार की प्रायोगिक स्कूल की स्थापना की।

गुरुदेव का प्रकृति से विशेष लगाव था जिस कारण उन्होने शांतिनिकेतन मे प्राकृतिक माहौल बनाया और बहुंत से पेङ-पौधे लगवाये तथा इनके बिच पुस्तकालय का निर्माण कराया था।

रविन्द्रनाथ टैगोर ने लगभग 60 वर्ष के उम्र मे चित्र बनाना प्रारंभ किया इससे यह सिध्द होता है कि उनमे सिखने की ललक उम्र के साथ कभी कम नहीं हुइ।

रविन्द्रनाथ ठाकुर की रचनाएं

रविन्द्र नाथ ठाकुर बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। वे नाटक, उपन्यास, निबंध, कविता, लघु कथाएँ, गद्य एवं पद्य दोनो की रचनाएं करते थे, साथ ही चित्रकला मे भी निपूर्णं थे इस प्रकार उन्होने बहुंत सी रचनाएं की हैं जिसमे से कुछ निम्न हैं:-

रविन्द्र नाथ टैगोर के मुख्य लेख –

  1. गीताजंली
  2. शिशु भोलानाथ
  3. महुआ
  4. वनवाणी
  5. परिषेष
  6. पूरबी प्रवाहिन
  7. पुनश्च
  8. वीथिका शेषलेखा
  9. क्षणिका
  10. चोखेरबाली
  11. नैवेद्य मायेर खेला
  12. कणिका
  13. गीतिमाल्य

    इसके अतिरिक्त टैगोर ने लगभग 2200 गीतों की रचना किया है। उनकी जो संगीत है उसे रवीन्द्र संगीत कहा जाता है। उनके संगीत मे बंाग्ला संस्कृति पूरी तरह दिखाई पड़ती है।

वर्तमान समय मे देखा जाये तो उनके द्वारा जो रचनाएं की गई थी उनमें अधिकतर तो अब उनके गीतों मे शमिल हो गई हैं। इनकी रचनाएं मनुष्य के अंदर एक अलग ही प्रभाव डालता है। रविन्द्रनाथ टैगोर प्रकृति प्रेमी भी थे जो उनकी रचनाओं मे दिखाई पड़ता है।

इन्होने 60 वर्ष की उम्र मे चित्र मनाना सिखा। जीस प्रकार उनके रचनाओं से लोग प्रभावित थे उसी प्रकार उनकी चित्रकला भी किसी व्यक्ति विशेष के मन मे एक अलग ही छाप छोड़ता है।

रविन्द्रनाथ टैगोर या रविन्द्रनाथ ठाकुर

रविन्द्रनाथ टैगोर या रविन्द्रनाथ ठाकुर ये दोनो अलग-अलग नहीं हैं। रविन्द्रनाथ टैगोर के पिता एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे इससे भी पूर्व इसके दादा जी भी बहुंत धनवान थे इन्हे राजा की उपाधि प्राप्त थी ये अपने क्षेत्र के जमीदार थे बंाग्ला मे ठाकुर एक सम्मान जनक उपाधि है।

यदि टैगोर की बात करें तो यह ठाकुर का अंग्रेजी संस्करण माना जा सकता है। बंाग्ला मे यदि टैगोर जी के नाम का उच्चारण करें तो यह राॅबिन्द्रनाथ ठाकुर है।

औपनिवेशिक काल के दौरान भारत मे अंग्रेजो का प्रभाव था जिसके लिए वे भारत के कई नामो को अपने सहुलियत के हिसाब से बोला करते थे।

जैसे औपनिवेशिक काल के दौरात ही चट्टोपाध्याय का उच्चारण चटर्जी हो गया बोशु – बोस हो गया ठीक इसी प्रकार ठाकुर को भी उनके द्वारा टैगोर कहा गया समय बितने के उपरांत यह उनका नाम हो गया है।

रविन्द्रनाथ टैगोर की विदेश यात्रा

रविन्द्रनाथ ठाकुर अपने पिता देवेन्द्रनाथ ठाकुर के साथ 11 वर्ष की आयु से ही बहुंत से जगह की यात्रा किये हैं। उनके पिता ब्रम्हसमाज के एक नेता होने के साथ व्यापार भी करते थे जिसके कारण उनका अधिक समय यात्राओं मे ही गुजरता था इसी कारण जब टैगोर जी थोड़े बड़े हुए तो उनको भी अपने पिता के साथ यात्रा करने का मौका मिलने लगा।

रविन्द्रनाथ टैगोर कि यदि यात्रा की बात करें तो ऐसा माना जाता है कि उन्होने अपने जीवन काल मे लगभग 37 देशों की यात्राएं कि हंै। परंतु आधिकारिक रुप से देखा जाये तो उन्होने 1878 से 1932 के समय में कुल 30 देशों कि यात्रा की थी।

सन् 1878 मे 17 वर्ष की उम्र मे वे पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गये। इसी प्रकार रविन्द्रनाथ टैगोर जी ने 1932 में अपने अंतिम यात्रा के रुप मे शिलोन (श्रीलंका) का यात्रा किया था।

रविन्द्रनाथ टैगोर के परिवार

रविन्द्र नाथ टैगोर के दादा जी का नाम द्वारकानाथ ठाकुर था। वे बहुत धनी व्यक्ति थे और उन्हे राजा की उपाधि भी प्राप्त थी जो उन्हे अधिक धनी होने के कारण मिला था।

रविन्द्र नाथ टैगोर के माता पिता का नाम शारदा देवी एवं महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर था। इनके पिता उस जमाने के प्रसिध्द सामाजिक एवं धार्मिक नेता थे।

रविन्द्रनाथ टैगोर कुल 14 भाई बहन थे परंतु कहीं-कहीं इन्हे 13 बताया गया है जो उनके मृत्यु हो जाने के कारण बताया जाता है। उनके नाम इस प्रकार हैं इनके सबसे बड़े भाई

1. द्विजेन्द्रनाथ टैगोर थे ये एक दार्शनिक एवं कवि थे।

2. ज्योतिरिन्द्रनाथ ये भी कला प्रेमी थे और संगीतकार एवं नाटककार थे।

3. सत्येंन्द्रनाथ टैगोर ये उस समय के आईसीएस अधिकारी थे।

4. भूदेन्द्रनाथ टैगोर, 5. हेमेन्द्रनाथ टैगोर, 6. बिनेन्द्रनाथ टैगोर, 7. सोमेन्द्रनाथ टैगोर, 8. पून्येन्द्रनाथ टैगोर, 9. स्वर्णाकुमारी टैगोर, 10. सौदामिनी टैगोर, 11. बरनाकुमारी टैगोर, 12. सरतकुमारी टैगोर, 13. सुकुमारी टैगोर, 14. रविन्द्रनाथ टैगोर (स्वयं) थे।

इनकी पत्नी का नाम – मृणालिनी देवी थी।

रविन्द्रनाथ टैगोर के पांच बच्चे थे जिनका नाम – 1. रथीन्द्रनाथ टैगोर, 2. शमीन्द्रनाथ टैगोर, 3. मधुरिलता देवी, 4. मीरा देवी, 5. रेणुका देवी थी।

रविन्द्रनाथ टैगोर से जूड़ा विवाद

1.    कुछ जानकारों का ऐसा मानना है की रविन्द्रनाथ टैगोर के पूर्वज ब्राम्हण थे। हम यह जानते हैं कि हमारे यहां हर जाती का उपनाम होता है इसी प्रकार इन्हे पिराली ब्राम्हण कहते हैं यह शब्द कहां से आया इसकी कोई ठीक जानकारी उपलब्ध नहीं है।

लेकिन कुछ लोगों का मानना है की मुसलमानो के शासन काल मे कुछ ब्राम्हणों ने मुसलमान धर्म अपना लिया था जिसके बाद उन्हे पिर अली जाती मीला जिससे इन्हे अन्य ब्राम्हणों के द्वारा इसे पिराली ब्राम्हण कहा जाने लगा, कहा जाता है कि रविन्द्रनाथ टैगोर इसी परिवार से ताल्लुक रखते हैं।

2.   जब जाॅर्ज पंचम भारत आये तब उनके द्वारा दो महत्वपूर्ण घोषणा करने वाले थे प्रहला देश की राजधानी दिल्ली को बनाना और दूसरा बंगाल विभाजन को समाप्त करना इसी दौरान एक सरकारी अधिकारी ने जो उनके मित्र भी हुआ करते थे।

जाॅर्ज पंचम की प्रशस्ति मे एक देश से सबंधित गीत लिखने का आग्रह किया जीसे टैगोर जी ने आंदोलन के समर्थक होने के बावजूद उन्होने इसे स्वीकार कर लिया और जन-गण-मन की रचना की परंतु इसी दौरान कुछ क्रांतिकारियों के द्वारा दुर्गा माता के रुप मे भारत माता के रुप को मिलाकर नये रुप मे दुर्गामाता की पूजा सार्वजनिक रुप से मनानी चाही।

जिसके लिए उनसे गित लिखने का आग्रह किया तो रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा की दुर्गा में मेरी किसी प्रकार की आस्था नहीं है और इस प्रकार का गीत लिखना तो मेरे लिए पाप होगा।

3.    रविन्द्रनाथ टैगोर को जो नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ उसमे कुछ लोगों का मानना है कि टैगोर जी को नोबल पुरस्कार जन-गण-मन गीत के कारण मिली क्योंकि इस गीत को जाॅर्ज पंचम की प्रशस्ति गान के रुप मे देखा गया।

जहां तक साहित्य का नोबल की बात है तो इसमे विश्व भर के पुरस्कार योग्य पुस्तकों की एक बड़ी सुची बनाई जाती है जिसमे से काट-छांट करके उसे छोटी और फिर अंतिम रुप दिया जाता है। चूंकि गीतांजति का नाम तो पहली सूची मे ही नहीं था।

4.    हमने ये पढ़ा है कि महात्मा गांधी जी को महात्मा की उपाधि रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा दिया गया है, परंतु कुछ तथ्यों से ये साबित होता है कि उन्हे सर्वप्रथम महात्मा से संबोधन स्वामी श्रध्दानंद द्वारा किया गया था। जो हरिद्वार स्थित गुरुकुल कांगड़ी के संस्थापक थे।

 

इस प्रकार और भी कई विवाद रविन्द्रनाथ टैगोर के साथ जूड़ा हुआ है। जिसमे कितनी सच्चाई है यह तो सोध का विषय है। परंतु इसका अर्थ यह बिलकुल नहीं लगाया जा सकता की गुरुदेव मे कोई विलक्षण प्रतिभा नहीं थी।

ये एक सम्मानित और प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के धनी थे इन्होने अपनी रचनाओं और कार्यो से देष के साथ-साथ विश्व मे अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा दिया गया नारा

इन्होने नारा दिया था कि – जब तक जिंदा हूं मानवता के उपर देशभक्ति कि जीत नही होने दूंगा

रविन्द्रनाथ टैगोर को मिलने वाला सम्मान

 

1.    1913 मे श्री रविन्द्रनाथ टैगोर को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला जो उनकी  काव्यरचना गीतांजलि के लिये दिया गया था।

2.    20 दिसंबर 1915 मे कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा साहित्य के लिए डाॅक्टर की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

3.    3 जून 1915 मे तात्कालिन ब्रिटिष शासक जाॅर्ज पंचम द्वारा नाइटहुड की पदवी से सम्मानित किया गया था। इस पुरस्कार को         गुरुदेव  ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध मे लौटा दिया था।

4.    रवीन्द्रनाथ टैगोर को मरणोपरांत सन् 1954 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।

इन्हे भी देखें

1. नरेन्द्र मोदी
2. महाराणा प्रताप

 

रविन्द्रनाथ ठाकुर/रविन्द्रनाथ टैगोर से संबंधित प्रश्न जो लोग पूछते हैं

रविन्द्रनाथ टैगोर का जन्म कहां हुआ था?

रविन्द्रनाथ टैगोर का जन्म कोलकाता के जोरासांको में ठाकुरबाड़ी हवेली के एक बंगाली परिवार मे हुआ था।रविन्द्रनाथ टैगोर का जन्म कोलकाता के जोरासांको में ठाकुरबाड़ी हवेली के एक बंगाली परिवार मे हुआ था।

रविन्द्रनाथ टैगोर का जन्म कब हुआ था?

रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता मे हुआ था।

रविन्द्रनाथ टैगोर को नोबेल पुरुस्कार कब मिला था?

इंग्लैण्ड के लंदन शहर मे 1913 में प्रकाषित होने वाले गीतांजलि पर उन्हे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

रविन्द्रनाथ टैगोर को नोबेल पुरुस्कार क्यों दिया गया था?

1913 में प्रकाशित गीताजंलि के लिए उन्हे नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। क्योंकि उनकी यह कविता भारत के साथ-साथ विदेशों में भी विख्यात हुई थी।

रविन्द्रनाथ टैगोर को पहली बार गुरुदेव किसने कहा था?

रविन्द्रनाथ टैगोर को सर्वप्रथम गुरुदेव महात्मा गांधी द्वारा कहा गया था।

रविन्द्रनाथ टैगोर के माता पिता का नाम क्या था?

रविन्द्रनाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेन्द्रनाथ टैगोर एवं उनकी माता का नाम श्रीमति शारदा देवी था।

रविन्द्रनाथ टैगोर के पिता क्या करते थे?

इनका परिवार धनी था रविन्द्रनाथ के पिता श्री द्वारकानाथ जंमिदार थे तथा इतने धनी व्यक्ति थे कि उन्हे राजा की उपाधि प्राप्त थी। जिसके कारण इन्हे आर्थिक रुप से कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा इसलिए रविन्द्रनाथ टैगोर के पिता उस जमाने के प्रसिध्द सामाजिक एवं धार्मिक नेता थे इसके साथ ही वे ब्रम्ह समाज से जूड़े थे।

रविन्द्रनाथ टैगोर कि पत्नी का क्या नाम था?

रविन्द्रनाथ टैगोर कि पत्नी का नाम - मृणालिनी देवी थी।

रविन्द्रनाथ टैगोर कि शादि कब हुई?

रवीन्द्रनाथ टैगोर की शादी 9 दिसंबर 1883 मे मृणालिनी देवी से हुआ जिस समय मृणालिनी देवी जी की शादी हुई थी उस समय उनकी उम्र 10 वर्ष थी। और रविन्द्रनाथ टैगोर की उम्र 22 वर्ष थी।

रविन्द्रनाथ टैगोर के कितने बच्चे थे?

रवीन्द्रनाथ टैगोर के पांच बच्चे थे।

रविन्द्रनाथ टैगोर के बच्चों के क्या नाम थे?

रविन्द्रनाथ टैगोर के बच्चों के नाम 1.रथीन्द्रनाथ टैगोर, 2. शमीन्द्रनाथ टैगोर, 3. मधुरिलता देवी, 4. मीरा देवी, 5. रेणुका देवी था।

रविन्द्रनाथ टैगोर को भारत रत्न कब मिला?

रवीन्द्रनाथ टैगोर को सन् 1954 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। इस समय इनकी मृत्यु हो चुकी थी।

रविन्द्रनाथ टैगोर को नोबल पुरुस्कार कौन से क्षेत्र मे मिला था?

रविन्द्रनाथ टैगोर को साहित्य के क्षेत्र मे नोबेल पुरस्कार दिया गया था।

रविन्द्रनाथ टैगोर को गुरुदेव क्यो कहा जाता है?

जब महात्मा गांधी को रविन्द्रनाथ टैगोर जी ने महात्मा की उपाधि दी तब गांधी जी ने भी उनके सम्मान मे उन्हे गुरुदेव की उपाधि दी।

रविन्द्रनाथ टैगोर क्यों प्रसिध्द थे?

रविन्द्रनाथ टैगोर अपनी रचनाओं काव्यों, उपन्यास, निबंधो इत्यादि अपने विलक्षण प्रतिभा के लिये प्रसिध्द थे। परंतु अतंराष्ट्रीय रुप से विष्व मे ख्याती प्राप्त अपने महाकाव्य गीतांजलि के रचना के लिये जब उन्हे साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया तब उनकी प्रसिध्दी अत्यधिक बढ़ी।

रविन्द्रनाथ टैगोर कि सबसे प्रसिध्द कविता का क्या नाम है?

1913 में प्रकाशित गीताजंलि रवीन्द्रनाथ टैगोर की सबसे प्रसिद्ध कविता है।

रविन्द्रनाथ टैगोर को और किस नाम से जाना जाता है?

रविन्द्रनाथ टैगोर कई उपनाम है उनमे से कुछ निम्न हैं - कविगुरु, गुरुदेव, बचपन का नाम रबि/रवि

रविन्द्रनाथ टैगोर का पूरा नाम क्या है?

रविन्द्रनाथ टैगोर का पूरा तथा वास्तविक नाम रबिन्द्रनाथ ठाकुर है।

भारत के राष्ट्रगान के रचना किस ने की थी?

श्री रविन्द्रनाथ टैगोर जी ने किया था।

रविन्द्रनाथ टैगोर ने नाइटहुड की उपाधि क्यो त्याग दिया?

जलियावाला बाग हत्याकांड के विरोध मे गुरुदेव ने अंग्रेजों द्वारा दिये गये नाइटहुड की उपाधि का त्याग किया था।

रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा किसका स्थापना किया था?

रवींद्रनाथ टैगारे द्वारा सन् 1901 में शांति निकेतन आश्रम का स्थापना किया गया था।

भारत का राष्ट्रगान कहां से लिया गया है?

भारत का राष्ट्रगान जन-गण-मन रविन्द्रनाथ टैगोर द्वारा रचित गीतांजलि से लिया गया है।

बांग्लादेश का राष्ट्रगान क्या है?

बांग्लादेष का राष्ट्रगान आमार सोनार बांग्ला है।

बांग्लादेष का राष्ट्रगान किसने लिखा है?

बांग्लादेष का राष्ट्रगान रविन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है।

विश्व भारती के संस्थापक कौन हैं?

विश्व भारती के संस्थापक रवीन्द्रनाथ टैगोर है।

 

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