वीर सावरकर

वीर सावरकर

वीर सावरकर एक ऐसा नाम जिसने अपने जीवन के अमुल्य समय स्वतंत्रता सेनानी के रुप मे कार्य किया एवं कई वर्षों तक जेल मे यात्नाएं भी सही। इनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर है, सावरकर जी भारत के महान क्रांतिकारी, स्वतंत्रता सेनानी, इतिहासकार, समाजसुधारक तथा राजनीतिज्ञ थे।

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इसके साथ ही उनका पेशा एक वकील, लेखक तथा कवि का भी था। उनके चाहने वाले उन्हें वीर सावरकर के नाम से पुकारते हैं। यदि भारत मे हिन्दू राष्ट्रवाद की राजनीतिक विचारधारा जिसे हिन्दुत्व कहते हैं इसे विकसित करने का श्रेय वीर सावरकर जी को दिया जाता है।

वीर सावरकर ने उन लोगों को जिन्होने हिंदू धर्म को छोड़कर अन्य धर्मो को अपना लिया था ऐसे लोगों के वापसी के लिये बहंुत प्रयास किये इसके लिये उन्होने कई आन्दोलनों को श्रीजित किया।

अपने प्रयासों को सफल बनाने के लिये हिंदूओं को एक सूत्र मे बांधने के अपने दृढ़ संकल्प के लिये उन्होने हिन्दुत्व शब्द का निर्माण किया। उनके भाषणो की ओर ध्यान दें तो उनके विचारों मे तर्कवाद, प्रत्यक्षवाद, मानवतावाद, यथार्थवाद तथा व्यावहारकुशलता के गुण समाहित होते थे।

ऐसे समय मे जहां सभी अपने धर्म की राजनीति मे व्यस्त थे वीर सावरकर हिन्दू महासभा के प्रमुख चेहरे बने हुए थे। जब सन् 1922 में अग्रेंजी सरकार के द्वारा विर सावरकर को रत्नागिरी में गिरफ्तार किया गया, उसी दौरान वीर सावरकर जी ने हिंदू राष्ट्रवादी राजनीतिक सिद्धांत का निर्माण किया जिसे लोगों द्वारा हिंदुत्व के रूप में जाना जाता है।

वीर सावरकर का हिंदू महासभा में प्रमुख स्थान था। उन्हे कई बार इस सभा के अध्यक्ष के रुप मे कार्य करने का अवसर मिला। जब सावरकर जी ने अपनी आत्मकथा लिखी, तब उनके चाहने वालों के द्वारा जो वीर जैसे सम्मानजनक शब्द का उपयोग उनके लिये करते थे, उन्हे स्वयं के द्वारा अपन

वीर सावरकर का जीवन

विनायक दामोदर सावरकर जी का जन्म वर्तमान महाराष्ट्र राज्य मे नासिक के निकट भागुर नामक गांव में 28 मई सन् 1883 में हुआ था। उनके मातापिता का नाम श्रीमति राधाबाई एवं दामोदर पन्त सावरकर था।

ये कुल चार भाई बहन थे जिनमे तिन भाई जिनके नाम गणेश, नारायण तथा विनायक दामोदर सावरकर (स्वयं) थे तथा एक बहन जिसका नाम नैनाबाई थीं। वीर सावरकर के माता जी की मृत्यु उनके बचपन के समय मे ही हैजा के बिमारी के कारण हो गया था।

उस समय सावरकर जी की उम्र लगभग 9 वर्ष की थी। कुछ  वर्षों के बाद 1899 में उनके पिता जी की भी प्लेग के कारण आकस्मिक मृत्यु हो गई। मातापिता के मृत्यु हो जाने पर सावरकर जी के बड़े भाई गणेश दामोदर सावरकर ने परिवार के पालनपोषण किया।

वीर सावरकर के जीवन पर उनके बड़े भाई के द्वारा माता पिता के मृत्यु के कारण उठा रहे तकलिफ का तथा ऐसे परिस्थिति मे भी घर को संभालने की और अपने कर्तव्य के प्रति सजगता का विनायक पर बहुंत ही गहरा प्रभाव पड़ा।

सावरकर जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नासिक के ही शिवाजी हाईस्कूल से किया था। स्कूल मे पढ़ाई के दौरान वे बहुंत होसियार थे उन्होने बचपन के समय ही कई कविताएं लिखी थी।

जब सावरकर ने 1901 मे अपनी मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की तब उच्च षिक्षा के लिये अपने बड़े भाई गणेश से चर्चा किया आर्थिक स्थिति कमजोर हाने के बावजूद भी उनके द्वारा अपने भाई के पढ़ाई करने की इच्छा को पूरी की इसी दौरान सावरकर जी ने अपने कुछ स्थानीय युवकों को संगठित करके एक मित्र मेलों का आयोजन किया।

देखते ही देखते इन नवयुवकों में राष्ट्रीयता की भावना इतनी भर गई की ये युवक अपने देश के प्रति कुछ भी कर गुजरने का जज्बे से ओतप्रोत हो गये। जैसे ही सावरकर जी ने मैट्रिक की परीक्षा पास की उसी समय सन् 1901 में ही उनके बड़े भाई के परिचित रामचन्द्र त्रयम्बक चिपलूणकर की पुत्री यमुनाबाई के साथ उनका विवाह हुआ।

शादी के बाद उनकी पत्नि यमुनाबाई के पिता जी ने उनके उच्च शिक्षा पूरी करने मे सहायता की। मैट्रिक की पढाई पूरी करने के बाद पुणे के फग्र्युसन कालेज से बी.. मे स्नातक किया। सावरकर जी के दो बच्चे हुये बेटे का नाम विश्वास सावरकर एवं बेटी प्रभात चिपलूनकर थी। इन्होने देश के क्रांतिकारी गतिविधियों मे अपने पढ़ाई के दौरान ही भाग लेना प्रारम्भ कर दिया था।

जब बंगाल विभाजन किया गया उस समय इन्होने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। बाल गंगाधर तिलक ने सावरकर जी के लिये श्यामजी कृष्ण वर्मा छात्रवृत्ति का अनुमोदन किया था जिसके बाद उन्हे छात्रवृत्ति दिया गया।

कहा जाता है कि जब वे पुणे स्थित काॅलेज मे पढ़ाई कर रहे थे उस समय भी राष्ट्रभक्ति से युक्त प्रभावशाली भाषण दिया करते थे। उनके द्वारा लिखे गये लेख कई पत्रिकाओं मे जैसे तलवार, इंडियन सोशियोलाजिस्ट तथा कलकत्ता के युगान्तर पत्र मे छपा करती थी। वीर सावरकर रुस मे हो रहे रुसी क्रांति और उनके क्रांतिकारियों से बहंुत प्रभावित थे।

वीर सावरकर ही थे जिन्होने अपने पुस्तर इंडियन वाॅर आॅफ इंडिपेंडेंस 1857 के माध्यम से 1857 के विद्रोह को गदर की जगह स्वतंत्रता संग्राम सिध्द किया उन्होने इस किताब मे तर्क तथा प्रमाणों का भी वर्णन किया है।

ब्रिटिश सरकार के खिलाफ इस प्रकार आंदोलनो को हवा देने तथा कई क्रांतिकारी गतिविधियों मे संलिप्त होने के कारण उन्हे दो बार आजीवन कारावास काला पानी की सजा सुनाई गई जिसके बाद उन्होने अपने अमुल्य 10 वर्ष अंडमान निकोबार के जेल मे व्यतित किया कुछ जानकारों के अनुसार उन्होने इसके पश्चात अंग्रेजी सरकार से छमा याचना की जिसके बाद उन्हे छोड़ दिया गया परंतु यह बात कहां तक सही सिध्द होता है यह स्पष्ट नहीं है

क्योंकि एक व्यक्ति जिन्होने 10 वर्ष का लंबा समय इन कालकोठरी मे बिताई हो उसके लिये मांफी मांगने की बात को स्वीकार कर पाना थोड़ा मुस्किल लगता है। वीर सावरकर को 1921 मे जब छोड़ा गया तो उन्होने भारत आने के बाद तीन वर्षों का और कारावास झेला। इन सभी कारणों से वीर सावरकर जी इतने प्रसिध्द हो गये की उनके चाहने वालों की संख्या कई गुना बढ़ गई।

यहां तक की लोगों के द्वारा उन्हे उस समय भारत रत्न देने की मांग करने लगे थे। 1925 मे उनकी बेटी का जन्म हुआ इसी वर्ष उन्होने अखिल भारतीय स्वयं सेवक संघ के सस्थाप हेगडेवार से भी आत्मिय मुलाकात की। उन्हे कई सम्मेलनों की अध्यक्षता करने का भी सौभाग्य मिला इसके अतिरिक्त अखिल भारतीय हिंदू महासभा के कई बार अध्यक्ष भी चूने गये।

जब विभाजन की बात सामने आई तब भारत के विभाजन का भी सावरकर जी ने पूरजोर विरोध किया था। उन्होने अखण्ड भारत के लिये बहुंत से आदोंलन किये। कई बार उन्हे आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा जैसे महात्मा गांधी जी के गोली कांड मे उनकी संलिप्तता इत्यादि के आरोप भी उनपर लगे थे।

कहा जाता है कि जब भारत स्वतंत्र हुआ था उस दिन वीर सावरकर जी ने दो झण्डे फहराये थे, एक भारत का और दूसरा हिंदू राष्ट्र का। कुछ जानकारों के अनुसार तींरगा झण्डा के मध्य चक्र का सुझाव वीर सावरकर द्वारा ही दिया गया था, जिसे झण्डा समिति द्वारा मान लिया गया।

कुछ समय बाद उनकी तबियत बिगड़ने लगी थी जिसके बाद संभवतः उन्होने अपने अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष पद से त्याग पत्र दे दिया था क्योंकि उन्हे लग रहा था की कुछ समय के लिये उन्हे आराम की जरुरत है। अपनी अगली राजनीतिक पारी शुरु करने के दौरान कुछ ही समय मे उनकी 26 फरवरी सन् 1966 को बंबई स्थित उनके घर मे मृत्यु हो गई।

इस समय उनकी उम्र लगभग 82 वर्ष की थी। इस प्रकार एक हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा से ओतप्रोत महान व्यक्तित्व का जिन्होने अपने देश के आजादी के लिये ना केवल लड़ाई लड़ी बल्की अपने साथ देश के बहुंत से नवजवानों के दिलों मे देश के प्रति राष्ट्रवाद की जोत जलाई और देश की आजादी के बाद भी देष तथा समाज के लिये समर्पित रहे इस प्रकार वे पंचतत्व मे विलिन हो गये।

वीर सावरकर लन्दन में

जब वीर सावरकर वकालत की पढ़ाई करने के लिये मई 1909 में लंदन से बार एट लाॅ (वकालत) नामक परीक्षा को सफलता पूर्वक उत्तीर्ण कर ली इसके बाद भी उन्हे लंदन मे वकालत करने की अनुमति नहीं दी गई थी।

वीर सावरकर किसी भी परिस्थिति मे लंदन मे रुकना चाहते थे जिससे वे वहां क्रांतिकारियों का संगठन बना सके इसी दौरान उन्हे लन्दन के ग्रेज इन्न लॉ कॉलेज में प्रवेश मिल गया जिसके बाद उन्होने इण्डिया हाउस में रहना शुरु कर दिया। भारत के राष्ट्रवादी विचारधारा को अपनाने वाले लोगों के दृष्टिकोण से देखें तो इण्डिया हाउस उस समय राजनितिक गतिविधियों का केन्द्र था जिसके संचालक श्री श्यामा प्रसाद मुखजÊ थे।

सावरकर जी ने यहीं से फ्री इण्डिया सोसायटी नामक संगठन का निर्माण किया इसके द्वारा वे उनके साथ अध्ययनरत भारतीय छात्रों को संगठन मे सामिल कर भारत की स्वतन्त्रता के लिए कार्य करने को प्रेरित करते थे। इसी दौरान उन्होने भारत के इतिहास मे अंग्रेजो के विरुध्द 1857 मे तथा इसी के आसपास किये गये संग्रामो से आधारित पुस्तकों का अध्ययन करना शुरु किया।

वह इस अध्ययन के द्वारा भारत के जनमानस के मन मे इस प्रकार के आंदोलनों को पहुंचाने और उन्हे प्रेरित करने का प्रयास करना चाहते थे, जिसके बाद उन्होने हिस्ट्री ऑफ़ वॉर ऑफ़ इण्डियन इण्डिपेंडेंस नामक पुस्तक लिखी।

इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने इस बारे में अपनी व्यक्तिगत भावना को भी समाहित किया था कि अंग्रेजों को किस प्रकार से पूर्ण रुप से देश से उखाड़ा जा सकता है। इस प्रकार के कार्यों से भले ही सावरकर जी को इस बात का संभवतः आभास नहीं था कि अंग्रेजी सरकार को उनके द्वारा किये जा रहे ब्रिटिश विरोधी इन कार्यों का कुछ हद तक ज्ञान है।

कुछ समय बितने के बाद लंदन में ही रहते हुये उनकी लाला हरदयाल से मुलाकात हुई जो उन दिनों उसी इण्डिया हाउस की देखरेख करते थे जहां वह रहते थे। इसी दौरान 1 जुलाई 1909 को मदनलाल ढींगरा द्वारा जो वीर सावरकर के संगठन से जूडा़ हुआ था उनके द्वारा एक ब्रिटिश अधिकारी विलियम हट कर्जन वायली को गोली मार दिया गया।

जब यह कांड हुआ उसके बाद यह एक प्रकार का वीर सावरकर के संगठन द्वारा क्रांति की शुरुआत किये जाने का उद्घोष था वीर सावरकर ने अपने संगठन से जूड़े मित्रों को बम बनाना और गुरिल्ला पद्धति से युद्ध करने की कला भी सिखाई थी। मदनलाल ढींगरा द्वारा किये गये इस गोली कांड से भारत के साथ साथ ब्रिटेन में भी क्रांतिकारी गतिविधिया बढ़ गयी।

इसके बाद ढींगरा को पकड़ लिया गया जिससे वीर सावरकर ने मदनलाल ढींगरा को कानूनी सहयोग के साथ ही राजनीतिक सहयोग देने का भी प्रयास किया परंतु यह बात पूर्ण रुप से स्पष्ट थी की ढींगरा द्वारा कर्जन की हत्य की गई है सावरकर जी का प्रयास था की उसे किसी भी तरह से फांसी की सजा से बचाया जा सके परंतु अंग्रेज सरकार द्वारा कुछ गुप्त परीक्षण कर ढींगरा को मौत की सजा सुना दी गई।

यदि देखा जाये तो कानून को अंगे्रजी सरकार अपने हिसाब से चलाया करते थे, यदि उसे किसी को सजा देने की इच्छा होती तो चाहे मुल्जिम मुजरिम हो या ना हो उसे वे किसी भी प्रकार से सजा देते थे संभवतः यही कारण था कि उसे मौत कि सजा दी गई थी। इस प्रकार के मौत की सजा सूनाने से लन्दन में रहने वाले भारतीय छात्र अत्यधिक भड़क गये।

वीर सावरकर ने मदनलाल ढींगरा को अपने भाषणों और लेखनों के माध्यम से एक देशभक्त के रुप मे उसको प्रदर्शित किया जिसके बाद अंग्रेजों के विरुध्द क्रान्तिकारी विद्रोह और भी उग्र हो गया था। इन सब को नियंत्रण करने मे अंग्रेजी सरकार को बहुंत मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था।

वीर सावरकर की गिरफ्तारी और सजा

वीर सावरकर ब्रिटिश सरकार के लिये एक बड़ी बाधा बनते जा रहे थे। अंग्रेजी सरकार उन्हे किसी भी तरिके से गिरफ्तार करना चाह रही थी, जैसे ही 13 मई 1910 को सावरकर जी पैरिस से लन्दन पहुंचे उन्हे गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन उन्होने अपने युक्ति से 8 जुलाई 1910 को एम.एस. मोरिया नामक जहाज से भारत ले जाते समय सीवर होल से भागने मे सफल हो गये।

जब सावरकर को पकड़ना कुश्किल होने लगा तो उन्हे गंभीर अपराधों मे जैसे हत्या शड़यंत्र, पिस्तौल भारत भेजने के जुर्म जैसे अपराधों में फंसाकर गिरफ्तार कर लिया गया जिससे उन्हे अधिक से अधिक कारावास की सजा हो सके। ये सब घटित होने के बाद आगे के अभियोग के लिए सावरकर जी को भारत ले जाने की योजना बनाई गई।

भारत लेजाने की जानकारी सावरकर को पता चल गया, जिसके बाद उन्होने अपने एक मित्र को जहाज के फ्रांस मे रुकते समय भाग जाने की योजना के बारे मे पत्र लिखकर सूचना दी। जैसे ही जहाज फ्रांस मे रुका सावरकर खिड़की से निकलकर समुद्र के पानी में तैरते हुए भाग गए, जिसपर अंग्रेजों ने उन्हे देख लिया और उनका पिछा करके उन्हे वापस पकड़ लिया।

दूबारा पकड़ मे आने का कारण उनके मित्र का जिन्हे उन्होने पत्र के माध्यम से गुप्त सूचना दिया था, उसका समय से नहीं पहंुच पाना था। जब वीर सावरकर को ब्रिटिश सैनिकों द्वारा फ्रांस में पकड़कर गिरफ्तार किया गया तो वहां की सरकार ने ब्रिटिश सरकार का विरोध किया। परंतु उनके लिये यह कोई बड़ी घटना नहीं थी जिसके कारण इसमे कुछ खास विरोध नहीं हुआ।

वीर सावरकर के उपर अभियोग चलाया गया, 24 दिसम्बर सन् 1910 को उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी। इसके कुछ समय बाद दोबारा 31 जनवरी 1911 को आजीवन कारावास की पूनः सजा सुनाई गई। यह पहली बार था जिसमे किसी क्रान्ति के लिए सजा के रुप मे दोदो बार आजन्म कारावास की सजा दी गई हो।

जब उन्हे एक बार गिरफ्तार कर लिया गया उसके बाद उनपर कई छोटे बड़े ब्रिटिष गवर्नमेंट के खिलाफ किये गये कार्यों का इल्जाम उनपर लगाया गया, जिसमे से एक नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए नासिक षडयंत्र काण्ड के इल्जाम के रुप मे इन्हे पूर्व मे दिये गये आजीवन कारावास के साथ ही 7 अप्रैल 1911 को काला पानी की सजा पर सेलुलर जेल (अंडमान निकोबार) भेज दिया गया।

इतिहास के जानकारों के अनुसान यहां स्वतंत्रता सेनानियों को बहुंत कठीन परिश्रम कराया जाता था। यहां कैदियों को कोल्हू में बैल की तरह नारियल आदि का तेल निकालने का काम कराते थे। इसके अतिरिक्त उबड़ खाबड़ भूमियों, जंगलों तथा पहाड़ी क्षेत्रों को साफ और समतल करने का काम भी कराया जाता था।

यदि कैदी कार्य करने मे असमर्थ हो जाता अथवा थक कर रुक जाता तो उसे कड़ी सजा (बेंत कोड़ों से पिटाई एवं अन्य) दी जाती थी। इसके बावजुद उन्हे पेटभर खाना भी नहीं दिया जाता था।

वीर सावरकर ने 4 जुलाई 1911 से 21 मई 1921 तक पोर्ट ब्लेयर के इस जेल में अपना कठीन समय गुजारा। कहा जाता है कि सन् 1920 में सरदार वल्लभ भाई पटेल और प्रतिष्ठित नेता बाल गंगाधर तिलक के कहने पर ब्रिटिश कानून को ना तोड़ने और विद्रोह ना करने की शर्तों पर उनकी रिहाई हो गई।

कुछ लोगों का कहना है कि सावरकर जी ने अपनी रिहाई के लिये अंग्रेजो को माफिनामा लिखा था परंतु इस बात पर संदेह होता है कि जो व्यक्ति दस वर्षों तक लगातार अंग्रेजों के यात्नाओं को झेलते हुये काला पानी की सजा काट रहा था वह इतने वर्षों बाद कैसे इस प्रकार का कृत्य कर सकता है।

कुछ जानकारों कि माने तो इसमे पूर्ण रुप से शड़यंत्र किये जाने बात कही जाती है। जिससे अन्य राष्ट्रवादी सोंच रखने वाले लोग इससे प्रेरित ना हों।

स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान वीर सावरकर

जब 10 वर्ष के काला पानी की कठोर सजा से सावरकर जी को सन् 1921 में छोड़ा गया। तब वे भारत लौटे इसके पश्चात पूनः 3 वर्ष तक जेल मे रहे। इस दौरान जेल में रहते हुये उन्होंने हिन्दुत्व पर एक शोध ग्रन्थ लिखना शुरु किया।

वे जेल से रिहा हो गये कुछ समय बितने के बाद 7 जनवरी 1925 को इनकी बेटी प्रभात का जन्म हुआ। बेटी के जन्म के कुछ माह बाद 1925 में ही उनकी मुलाकात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से हुई। उनका जीवन इसी प्रकार राष्ट्रवादी लोगों से मेल मिलाप और सभाओं मे भाग लेते हुये बित रही थी की 17 मार्च 1928 को इनके बेटे विष्वास का जन्म हुआ।

वीर सावरकर इस समय तक लगभग पूरे देश मे बहुंत प्रसिध्द हो गये थे। उन्हे लोगों के द्वारा उनके आयोजनो मे भाषण देने के लिये बुलाया जाता उनके अनुयाइयों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। वे हिंदू धर्म मे फैले छूआछुत की भावना से आहत थे क्योंकि कई लोग इसका फायदा उठाकर हिंदू धर्म के लोगों को बांटने तथा धर्म परिवर्तन कराने के लिये प्रयासरत थे।

इनके प्रयासों के द्वारा फरवरी सन् 1931 को बम्बई में पतित पावन मन्दिर की स्थापना की गई, जिसमे सभी हिन्दुओं के लिये जातिगत भेदभाव से उपर उठकर समान रूप से प्रवेश की अनुमति थी।

इसकी सफलता के बाद उन्होने और भी कई छोटे बड़े कार्यों मे अपनी भागीदारी निभाई, वीर सावरकर ने 25 फरवरी 1931 को बम्बई प्रेसीडेंसी में हुए अस्पृश्यता उन्मूलन सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। इस प्रकार उनका ओहदा हिंदूओं के बिच बढ़ता ही जा रहा था।

सन् 1937 में इन्हे अहमदाबाद में हुए अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के 19वें सत्र के अध्यक्ष के रुप मे चुना गया था, इसके बाद उन्हे पुनः सात वर्षों के लिये अध्यक्ष के रुप मे चुना गया। 15 अप्रैल सन् 1938 को इन्हे मराठी साहित्य सम्मेलन का अध्यक्ष भी चुना गया।

वीर सावरकर देश के विभाजन और मुस्लिमों के लिये अलग देश की मांग के घोर विरोधी थे उन्होने 13 दिसम्बर सन् 1937 को नागपुर मे हो रहे एक जनसभा में अलग देश के लिये चल रहे प्रयासों को असफल करने की प्रेरणा दी थी।

कुछ समय बाद इनकी मुलाकात 22 जून सन् 1941 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस से हुई जिसका इन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। कुछ जानकारों की माने तो सावरकर जी के अनुसार कुछ लोगों ने केवल सत्ता के लालच मे देश को बांटने मे भी संकोच नहीं किया परंतु सावरकर जी अपने पूरे जीवन भर अखण्ड भारत के पक्ष में रहे थे।

जहां स्वतन्त्रता प्राप्ति के बारे मे गांधी जी का विचार अंहिसा था वहीं सावरकर जी इसके विपरित ही सोंच रखते थे दोनो का बिल्कुल ही अलग दृष्टिकोण था। वीर सावरकर जी के बड़े भाई गणेश का 16 मार्च 1945 को देहान्त हो गया इस घटना के बाद उन्हे अपने परिवार पर भी विषेष ध्यान देना पड़ा।

कुछ समय पश्चात उन्होने 19 अप्रैल सन् 1945 को होने वाले अखिल भारतीय रजवाड़ा हिंदू सभा सम्मेलन की अध्यक्षता की। इसी वर्ष 8 मई सन् 1945 को उनकी बेटी प्रभात का विवाह हुआ। अगले वर्ष अर्थात अप्रैल 1946 में बम्बई सरकार ने सावरकर के द्वारा लिखे गये साहित्य से अपना प्रतिबन्ध हटा लिया।

यह वीर सावरकर जी के लिये अत्यंत ही हर्ष की बात थी क्योंकि इसके लिये उन्होने अथक परिश्रम किया था। सन् 1947 में इन्होने भारत के होने वाले विभाजन का पूरजोर विरोध किया, उनके द्वारा शुरु से ही इसका विरोध किया जा रहा था क्योंकि वे अखंड भारत के पक्षधर थे।

इस पर उन्हे उस समय के कई महान क्रांतिकारियों का समर्थन मिला परंतु इतने प्रयासों के बाद भी विभाजन को नहीं रोका जा सका। और देश के आजादि के समय भारत दो भागों मे बंट गया।

वीर सावरकर के हिन्दू राष्ट्रवाद के प्रति विचार

वीर सावरकर जी अपने समय के सबसे बड़े हिंदूवादी विचारक रहे हैं। इनकी ये रुची अचानक से या एक समय के बाद नहीं आई थी यह उनमे बचपन से ही थी। इन्हे बचपन से ही हिन्दू शब्द से बहुंत लगाव था और अपने हिंदू होने पर गर्व की अनुभूति होती थी।

सावरकर ने अपने पूरे जीवन मे चाहे वह राजनीति हो या कला उन्होने हिन्दू, हिन्दी और हिन्दुस्तान के लिए ही काम किया। उनकी लोकप्रियता को इसी बात से समझा जा सकता है कि अनको 6 बार अखिल भारतीय हिन्दू महासभा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का सौभाग्य मिला।

वीर सावरकर जी को सन् 1937 में पहली बार हिन्दू महासभा का अध्यक्ष चुना गया था। उनके अध्यक्ष पद को संभालने के अगले वर्ष सन् 1938 को हिन्दू महासभा को राजनीतिक दल घोषित कर दिया गया। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। वीर सावरकर जिस प्रकार की राजनीति करते थे वह हिंदूत्व पर ही टिका हुआ था।

उनकी इसी विचारधारा के कारण देश के आजादी के बाद जो भी सरकार मे रहे उन्होने सावरकर जी को थोड़ा भी महत्त्व नहीं दिया जिसके वे वास्तविक रुप से हकदार थे। वास्तव मे यदि हम देंखे तो ये आभास होता है कि जो भी राजनीतिक पार्टी उस समय सत्ता मे थीं वे वीर सावरकर की हिंदूओं के बिच जो छवी बनी हुई थी उससे डरते थे।

सावरकर जी एक प्रखर वाचक थे जो बिना किसी संकोच के तथा बिना किसी की परवाह किये सच को सच और झूठ को झूठ कहने की हिम्मत रखते थे। समय के साथ वे हिंदूओ के लिये एक महत्वपूर्ण सदस्य बन गये थे जो हिंदूओ के लिये उनके हक की बात करते थे।

उन्हे इस बात का बहुंत पहले आभास हो गया था की कुछ लोग हिंदूओ मे व्याप्त छूआछूत जैसे सामाजिक बुराईयों का फायदा उठाकर हिंदूओ को कमजोर करने की कोशिस कर रहें हैं, जिसके लिये उन्होने इससे समाज को बचाने के लिये अपने स्तर पर अनेक प्रयास किये थे। वे भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के पक्ष मे थे और उसके सबसे बड़े समर्थक थे।

वीर सावरकर के महात्मा गांधी पर विचार

जहां तक वीर सावरकर के विचारधारा कों देखें तो उनकी विचारधारा किसी भी तरह से गांधी जी के विचारधारा से मेल खाते हुए नहीं दिखाई देता है।

जहां गांधी जी अंहिसा की बात करते थे वहीं सावरकर का यह मानना था कि बिना हिंसा के आजादी नहीं मिल समती। ऐसा नहीं है कि वीर सावरकर महात्मा गांधी के हर कार्य के विपरित ही थे परंतु उनकी अंहिसा वाली सांेच उन्हे पूर्ण रुप से बकवास लगती थी।

कुछ जानकारों की माने तो सावरकर का मानना था की आजादी छीन कर ली जाती है भीख मे नहीं। वे महात्म गांधी से इस लिये भी समहत नहीं थे क्योंकि अंग्रेजो की परिस्थिती जब खराब थी ऐसे समय मे भी महात्मा गांधी और उनके समर्थकों के कारण देश के सैनिकों ने उनके लिये अपनी जान की आहुती देदी परंतु जब आजादी की बात कही गई तो उन्होने इस पर कोई फैसला नहीं किया ये सब सावरकर के समय ही हो रहा था जिसके कारण वह गांधी जी के विचारों के घोर विरोधी होते चले गये।

सावरकर जी का मानना था की जब देश आजाद हुआ उस समय यदि महात्मा गांधी ने थोड़ी हिम्मत दिखाकर इसका विरोध करते तो कुछ मुठ्ठी भर बगावती लोगों को छोड़कर पूरा देष उनके साथ खड़ा हो जाता और देश अंखण्ड बना रहता।

परंतु गांधी जी ने भारत के विभाजन का विरोध नहीं किया और देश टूकड़ों मे बंट गया। ऐसे और भी कई महत्वपूर्ण पहलू हैं जो यह दिखाते हैं कि वीर सावरकर और महात्मा गांधी जी के विचार कभी मेल नहीं खाते थे।

आजादी के बाद वीर सावरकर

आजाजी के बाद वीर सावरक के मन मे खुशी तो थी परंतु उन्हे देश के बंटवारे का दुख भी था इस दिन अर्थात 15 अगस्त 1947 को इन्होंने सावरकर सदान्तो में भारतीय तिरंगा के साथ भगवा ध्वज भी फहराया था। इस अवसर पर सावरकर जी ने पत्रकारों से बात करते हुये कहा था कि मुझे स्वराज्य प्राप्ति की खुशी है, परन्तु वह खण्डित है, इसका दुःख है।

उन्होंने आगे कहा कि राज्य की सीमायें नदी तथा पहाड़ों या सन्धिपत्रों से निर्धारित नहीं होतीं, वे देश के नवयुवकों के शौर्य, धैर्य, त्याग एवं पराक्रम से निर्धारित होती हैं। जब फरवरी 1948 को महात्मा गांधी जी की हत्या हो गई इसके बाद शक के आधार पर उन्हे भी गिरफ्तार कर लिया गया था।

भले ही सावरकर जी को गिरफ्तार किया गया था परंतु उनके खिलाफ आरोप सिध्द नहीं हो पाया और इन्हे छोड़ दिया गया। अगले वर्ष 19 अक्टूबर 1949 को इनके छोटे भाई नारायणराव की मृत्यु हो गई। जब विभाजन के बाद पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री लियाक़त अली ख़ान के 4 अप्रैल 1950 को दिल्ली आने वाले थे उसके पहले सावरकर जी को नजरबंद किया गया था।

इसका मुख्य कारण उनके विभाजन का समर्थन ना करना था। मई 1952 में पुणे की एक विशाल सभा में अभिनव भारत संगठन को जिसका निर्माण भारत के स्वतंत्रता के पूर्व स्वतंत्रता प्राप्ति के उद्देश्य के लिये किया गया था, भारत के स्वतंत्र होने पर भंग किया गया इसमे सावरकर जी मुख्य रुप से सम्मिलित थे।

सन् 1857 के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का नई दिल्ली में 10 नवम्बर सन् 1957 को शाताब्दी समारोह आयोजित किया गया था जिसमे वीर सावरकर एक मुख्य वक्ता थे। सावरकर जी को भले ही उस समय के सरकारों द्वारा वह सम्मान नहीं दिया गया जो उन्हे मिलना चाहिए था परंतु देष के आम जनता और संस्थाओं ने उन्हे भर भरकर सम्मान दिया इसी कड़ी मे 8 अक्टूबर 1949 को उन्हें पुणे विश्वविद्यालय ने डी0लिट0 की मानद उपाधि से सम्मानित किया।

सावरकर जी की पत्नि श्रीमति यमुनाबाई का सन् 1963 को निधन हो गया। इसके पश्चात वे अक्सर एकांत मे अपना जीवन व्यतित करने लगे थे पुनः वे राजनीति मे वापस आये परंतु इस समय उनका उमर भी हो चला था।

कुछ समय बाद अचानक अधिक तेज ज्वर हो जाने और लगातार बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण पत्नि के देहांत के दो वर्ष बाद ही 1 फ़रवरी 1966 को उन्होंने मृत्युपर्यन्त उपवास करने का निर्णय लिया और इस प्रकार 26 फरवरी 1966 को बम्बई में (वर्तमान नाम मुंबई) इस महान आत्मा ने अपना देह त्याग दिया और सदा के लिये भारत के इतिहास मे अमर हो गये।

वीर सावरकर के धार्मिक विचार

वीर सावरकर के आस्तिक अथवा नास्तिक होने पर लोगों के भिन्न भिन्न मत हैं, यह भिन्नता समय समय पर उनके द्वारा दिये गये वक्तव्यों के कारण है। सावरकर जी ने अपने विचारों मे गाय को पूजनीय नहीं माना है चूंकि हिंदू धर्म मे शास्त्रों मे गाय को बहंुत ही पवित्र औश्र पूजनीय माना गया है।

जबकी सावरकर जी का तर्क था की गाय एक उपयोगी पशु है। सावरकर जी के विचारों से ये आभास होता है कि वे यथार्थ को सर्वोपरी मानते थे। इसके साथ ही यदि कुछ प्रमाणो को देखें तो यह लगता है कि वे ईश्वर में विश्वास रखते थे। उनके द्वारा लिखी मोपला पुस्तक की भूमिका में उन्होंने ईश्वर कृपा जैसे शब्द का प्रयोग किया है।

वीर सावरकर के समकालीन एक प्रतिष्ठित विद्वान जिनका नाम आचार्य अत्रे था उन्होने वीर सावरकर पर एक किताब लिखा है जिसमे उन्होंने सावरकर जी के द्वारा मां दुर्गा देवी की मूर्ति के समक्ष स्वतंत्रता संग्राम में अपनी प्राण आहुति देने तक की प्रतिज्ञा की गई है। यदि इस प्रकार के कुछ वक्तव्यों को देखें तो इससे उनकी आस्तिकता का पता चलता है।

कुछ का यह भी मानना है कि सावरकर जी एक बुध्दिमान व्यक्ति हैं जो अपना विचार बहंुत ही सोच समझकर व्यक्त करते थे, जिस कारण वह धर्म के उन्ही विचारों से सहमत थे जो हिंदूओ को संगठित करे।

वीर सावरकर की रचनाएं

वीर सावरकर ने अपने जीवन मे बहुंत से कविता और लेख लिखे हैं कहा जाता है कि इन्होने 10000 से भी अधिक पन्ने मराठी भाषा में तथा 1600 से भी अधिक पन्ने अंग्रेजी भाषा में लिखा है। यदि हम देखें तो ऐसे मराठी लेखकों की संख्या बहुंत कम है जिन्होने इतनी प्रमुखता से किसी विषयों पर लिखा हो।

उनके द्वारा मराठी मे लिखे गये सागरा प्राण तलमलला हे हिन्दु नृसिंहा प्रभो शिवाजी राजा, जयोस्तुते, तानाजीचा पोवाडा जैसे कई कविताएं बहंुत लोकप्रिय हैं।

वीर सावरकर जी की लगभग 40 पुस्तकें आज भी बाजार में उपलब्ध हैं, जो निम्नानुसार हैंअखण्ड सावधान असावे, 1857 चे स्वातंत्र्यसमर, अंदमानच्या अंधेरीतून, अंधश्रद्धा भाग 1, अंधश्रद्धा भाग 2, संगीत उत्तरक्रिया, संगीत उरूशाप, ऐतिहासिक निवेदने, काळे पाणी, क्रांतिघोष, गरमा गरम चिवडा, गांधी आणि गोंधळ, जात्युच्छेदक निबंध, जोसेफ मॅझिनी, तेजस्वी तारे, प्राचीन अर्वाचीन महिला, भारतीय इतिहासातील सहा सोनेरी पानेभाषा शुद्धी, महाकाव्य कमला, महाकाव्य गोमांतकमाझी जन्मठेप, माझ्या आठवणीनाशिक, माझ्या आठवणीपूर्वपीठिका ; माझ्या आठवणीभगूर, मोपल्यांचे बंड, रणशिंग, लंडनची बातमीपत्रे, विविध भाषणे, विविध लेख, विज्ञाननिष्ठ निबंध, शत्रूच्या शिबिरात, संन्यस्त खड्ग आणि बोधिवृक्ष, सावरकरांची पत्रे, सावरकरांच्या कविता, स्फुट लेख, हिंदुत्व, हिंदुत्वाचे पंचप्राण, हिंदुपदपादशाही, हिंदुराष्ट्र दर्शन, क्षकिरणें

वीर सावरकर द्वारा अंग्रेजी में लिखी गई किताब इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस -1857 जिसमें उनके द्वारा सनसनीखेज खोजपूर्ण इतिहास लिख कर उस समय के ब्रिटिश सरकार को अत्यधिक प्रभावित किया था।

उनके इस किताब से ब्रिटिश सरकार मे भय उत्पन्न हो गया था। इसका मुख्य कारण की बात करें तो अधिकांश इतिहासकारों के द्वारा 1857 के भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम को या तो एक सिपाही विद्रोह अथवा एक भारतीय विद्रोह के नाम तक ही सिमित कर दिया था।

उस समय के कुछ विशिष्ट विश्लेषणकर्ताओं ने इसे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के ऊपर एक योजनाबद्ध राजनीतिक एवं सैन्य आक्रमण कहा था, जो उनपर किया गया था।

समाज सुधारक के रुप मे विर सावरकर

सावरकर जी ने समाज के सुधार के लिये बहंुत से कार्य किये थे। कुछ जानकारों के अनुसार उनका दृढ़ विश्वास था कि सामाजिक एवं सार्वजनिक सुधार बराबरी का महत्त्व रखते हैं और एक दूसरे के पूरक हैं। सावरकर जी के समय में समाज में बहुत सी बुराईयां जैसे छूआछूत इत्यादि व्याप्त थी।

ऐसे कुछ प्रमुख कारणों के वजह से हिन्दू समाज बहुत ही कमजोर हो गया था। इन्होने अपने लेखों से भाषणों से तथा कार्यों से समाज सुधार के लिये लगातार प्रयासरत रहे। वे हिंदूओ को एकजुट करना चाहते थे जिसमे ये सारे समाज के बुराई बाधा बन रहे थे। सावरकर जी द्वारा जो सामाजिक सुधार का प्रयास किया जा रहा था वह केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र के लिये होते थे।

यदि हम देखें तो सावरकर जी का 1924 से 1936 के मध्य का पूरा समय समाज सुधार मे बित रहा था। सावरकर जी का मानना था कि हिंदू समाज सात बेड़ियों में जकड़ा हुआ था।

स्पर्शबंदी निम्न जातियों का स्पर्श तक निषेध, अस्पृश्यता

रोटीबंदी निम्न जातियों के साथ खानपान निषेध

बेटीबंदी खास जातियों के संग विवाह संबंध निषेध

व्यवसायबंदी कुछ निश्चित व्यवसाय निषेध

सिंधुबंदी सागरपार यात्रा, व्यवसाय निषेध

वेदोक्तबंदी वेद के कर्मकाण्डों का एक वर्ग को निषेध

शुद्धिबंदी किसी को वापस हिन्दूकरण पर निषेध

वीर सावरकरजी शुरु से ही हिन्दू समाज में व्याप्त इस जातिगत भेदभाव तथा छुआछूत के विरोधी रहे थे। इसी कारण इन्होने बम्बई (मुंबई) का पतितपावन मंदिर का निर्माण करवाया था। उन्होने समाज के हर वर्ग के लोगों के लिये कार्य करने का प्रयास किया था।

वीर सावरकर द्वारा राष्ट्रभाषा के रुप में हिन्दी का समर्थन

वीर सावरकर मुख्य रुप से पूरे भारत को एकसुत्र मे बांधना चाहते थे उन्होने इसके लिये हर वह प्रयत्न किया जिससे देष जुड़ सके अथवा जुड़ाव महसूस कर सके। इसी क्रम मे उनके द्वारा हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए सन् 1906 से ही प्रयत्न करने की शुरुआत कर दिया था।

जब वे लन्दन स्थित इंडिया हाउस में बनाये गये संस्था अभिनव भारत के कार्यकर्ता के रुप मे रात्रि को सोने के पहले स्वतंत्रता के चार सूत्रीय संकल्पों को हरदिन दोहराते थे। उसमें उनका एक सूत्र हिन्दी को राष्ट्रभाषा देवनागरी को राष्ट्रलिपि घोषित करना होता था।

जब वीर सावरकर काला पानी की सजा के दौरान अंडमान की सेल्यूलर जेल में रह रहे थे उस समय उन्होंने अपने साथी बन्दियों को शिक्षित करने का काम कर रहे थे इसी के साथ वहां उनके बिच हिंदी के प्रचारप्रसार का भी बहुं प्रयास किया था।

कुछ जानकारो के अनुसार जब सन् 1911 में जेल में बंदियों को थोड़ी बहुंत रियायतें देना शुरू किया गया तब सावरकर जी ने उसका लाभ उठाते हुए उन्होने बंदियों को राष्ट्रभाषा को  पढ़ाने में उपयोग किया। उन्होने धिरे धिरे सभी राजबंदियों को हिंदी का शिक्षण लेने के लिए आग्रह करने लगे जिसपर उन्हे कामयाबी भी मिली।

परंतु यहीं एक और घटना घटी जब उनके द्वारा हिंदी के लिये आग्रह किया जा रहा था तब वहां दक्षिण भारत के बंदियों ने इसका बहुंत विरोध किया इसके कई कारण थे उनकी भाषा बिलकुल अलग थी, इसके साथ ही वे उर्दू और हिंदी को एक ही भाषा समझते थे।

ठीक इसी प्रकार जो मराठी तथा बंगाली भाषा के लोग थे वह भी हिंदी के बारे में बहुंत कम जानकारी रखते थे वे जानकारी के अभाव मे अपने स्तर पर इसमे कई प्रकार के खामी निकालते थे। वीर सावरकर जी ने ऐसे सभी विरोधों और निकालने वाले खामियों पर जवाब देते हुए इसके व्याकरण, हिन्दी साहित्य, भविष्य और इसके सभी पहलुओं को क्षमता के साथ इसे निर्देशित करते हुए हिन्दी को ही राष्ट्रभाषा के रुप मे योग्य सिद्ध कर दिया था।

इसी दौरान उन्होने जेल मे हिंदी की बहंुत से पुस्तकें जेल में ही मंगवा ली तथा जो राजबंदि थे उनकी पढ़ाई शुरू करवई। ऐसा नहीं है कि वह उन्हे केवल हिंदी ही सिखाना चाहते थे उन्होने उनसे यह भी आग्रह किया था कि हिन्दी के साथसाथ उन सभी को बांग्ला, मराठी जैसे देष की और भी भाषाओं को सीखी जानी चाहिए।

यह वीर सावरकर जी का ही प्रयास था की उस काले पानी जैसे भयावह सजा काट रहे कालकोठरी मे भी बंदियों के बिच शिक्षा की ज्योति जलने लगी।

कुछ समय बाद राजबंदियों ने अपना पत्र व्यवहार हिंदी मे करना प्रारंभ कर दिया जिससे अंग्रेजो के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। कहा जाता है कि इन पत्रों के जांच के लिये अंग्रेजों को हिंदी भाषा की ज्ञान रखने वाले लोगों को रखना पड़ा।

वीर सावरकर के कुछ प्रमुख कार्य एवं व्यक्तिगत विचार

    वीर सावरकर भारत के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने ब्रिटिश भूमि पर उसके विरुद्ध क्रांतिकारी आन्दोलन संगठित कर उसका क्रियान्वयन किया।

    जब भारत को विभाजन कर बंगाल का निर्माण किया गया तब वीर सावरकर ही थे जिन्होंने सन् 1905 के बंगभंग के बाद सन् 1906 में स्वदेशी का सर्वप्रथम नारा दिया था इसी के साथ विदेशी कपड़ों की होली भी जलाई थी।

    अंग्रेजी सरकार के विरोध करने का सावरकर जी को व्यक्तिगत रुप से बहंुत कष्टों का सामना करना पड़ा जैसे वे भारत के पहले व्यक्ति थै जिनसे उनकी बैरिस्टर की डिग्री रद्द कर दी गई।

    वीर सावरकर ही थे जिन्होने भारत की पूर्ण स्वतन्त्रता की मांग की थी।

    सन् 1857 के संग्राम को वीर सावरकर ने ही भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम बताया था और इसी के संबंध मे सन् 1907 में एक विस्तृत किताब लिखा था।

    वीर सावरकर से इतने भयभित थे की उनके द्वारा लिखे गये किताब को प्रकाशित होने के पहले ही ब्रिटिशों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया। कुछ जानकारों की माने तो वे संभवतः भारत के पहले और दुनिया के एकमात्र लेखक होंगे जिनकी पुस्तक को अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रकाषित होने से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया हो।

    कहा जाता है कि वे दुनिया के पहले राजनीतिक बंदी थे जिनका मामला हेग के अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में चला था। उसका एक कारण यह भी था कि वे ब्रिटिशों के खिलाफ कई देशों मे रहते हुये अपने आंदोलनो को जारी रखते थे।

    वीर सावरकर ने भारत के जातिगत छुआछूत को मिटाने के लिये एक मंदिर का निर्माण कराया था जिसमे सभी का सामान्य रुप से प्रवेष था। वे पहले भारतीय थे जिसने भारत मे एक अछूत समझे जाने वाले जाति के व्यक्ति को मन्दिर का पुजारी बनाया था।

    वीर सावरकर जी का गाय के प्रति उनकी सोंच अन्य हिंदूवादी लोगों से भिन्न थी, वे गाय को पूजनीय मान कर केवल एक उपयोगी पशु मानते थे। और उन्होने इसका अपने जीवन मे कई बार स्वीकारा भी है।

    वीर सावरकर जी ने बौद्ध धर्म द्वारा सिखायी गयी अतिरेकी अहिंसा की आलोचना की है और उन्होने अतिरेकी अहिंसा का शिरच्छेद नाम से एक लेख भी लिखा है।

    वीर सावरकर महात्मा गांधी जी के आलोचक थे। इसका यह मतलब बिल्कुल भी नही है की वह पूर्णरुप से उनके बातों का खण्डन करते थे परंतु अधिकांश बातो पर वे उनके समर्थक नहीं थे। उन्होने अंग्रेजों द्वारा द्वितीय विष्वयुद्ध के समय जर्मनी के विरुद्ध हिंसा को गांधीजी द्वारा समर्थन किए जाने को उनका पाखण्ड कहा था।

    वीर सावरकर ने अपने द्वारा लिखे एक किताबहिन्दुत्व यह स्पष्ट माना है कि कोई भी व्यक्ति बगैर वेद में विश्वास किए भी सच्चा हिन्दू हो सकता है। उनका कहना है कि केवल जातीय संबंध अथवा पहचान हिन्दुत्व को परिभाषित नहीं कर सकता है बल्कि किसी भी राष्ट्र की पहचान के तीन आधार होते हैं भौगोलिक एकता, जातीय गुण और साझा संस्कृति।

    वीर सावरकर का भीमराव आम्बेडकर के प्रति जब उन्होने बौद्ध धर्म स्वीकार किया तब सावरकर ने कहा था, अब जाकर वे सच्चे हिन्दू बने हैं।

    कहा जाता है कि सावरकर ने ही वह पहला भारतीय झंडा बनाया था, जिसे जर्मनी में 1907 की अंतर्राष्ट्रीय सोशलिस्ट कांग्रेस में मैडम कामा के द्वारा फहराया गया था।

    वीर सावरकर जी ही वे प्रथम क्रान्तिकारी बने जिन पर स्वतंत्र भारत की सरकार के द्वारा झूठा मुकदमा चलाया (महात्मा गांधी गोली कांड) और जब बाद में वे निर्दाेश साबित हुए तब उनसे माफी भी मांगी।

    जब भारत स्वतंत्र हो गया उसके बाद भी गोवा देश का हिस्सा नहीं था इसके आजादी के लिये सबसे पहले वीर सावरकर ने ही आवाज उठायी थी।

    वीर सावरकर ने सन् 1903 में नासिक में मित्र मेले की स्थापना की थी बाद में इस समूह ने अपना नाम बदलकर अभिनव भारत सोसाइटी कर दिया।

    सावरकर द्वारा स्थापित अभिनव भारत का मुख्य लक्ष्य ब्रिटिश शासन का पूर्ण रुप से उन्मूलन तथा इसी के साथ हिंदू गौरव का पुनरुद्धार करना था।

    सावरकर जी ने देष मे हिंदू धर्म, हिंदू राष्ट्र और हिंदू राज के बारे में बात करने के अतिरिक्त सिखिस्तान बनाने के लिए पंजाब में सिखों पर भरोसा करने की भी मांग की थी।

वीर सावरकर का निधन

वीर सावरकर जी अब बुढ़े हो चले थे इसी समय इनकी पत्नी श्रीमती यमुनाबाई का 8 नवंबर सन् 1963 को निधन हो गया। इस बिच अब सावरकर जी संभवतः स्वयं को अकेला महसूस कर रहे थे जिससे उनका स्वस्थ्य लगातार खराब रहने लगा।

कुछ समय पश्चात विनायक दामोदर सावरकर जी को सायद यह आभास हुआ की अब वह अधिक दिनो तक जीवित नहीं रह पायेगें तबियत अधिक खराब होने पर उन्होने 1 फरवरी सन् 1966 से अन्न, जल के साथ ही ले रहे दवाओं का भी त्याग कर दिया, इस प्रकार उपवास करते हुए 26 फरवरी सन् 1966 को इस महान आत्मा ने अपनी देह त्याग दी और देष के इतिहास मे हिंदूवादी क्रांतिकारी देशभक्त के रुप मे अपनी छाप छोड़ गये।

उन्होने अपने अंतिम क्षणों मे आत्महत्या नहीं आत्मर्पन नाम से एक लेख लिखा जिसे उनके द्वारा ठीक उनके निधन से पहले प्रकाशित किया गया था उन्होने इसमे कहा है किजब किसी के जीवन का उद्देश्य पूरा हो जाता है और कोई अब समाज को लाभ पहुंचाने में सक्षम नहीं होता है, तब तक मरने तक इंतजार करने के बजाय किसी के जीवन को समाप्त करना बेहतर होता है।

कुछ जानकारों के अनुसार सावरकर जी के अंतिम दिनों मे मृत्यु से पहले उनकी हालत बंहुत ही गंभीर होना बताया गया था। उनके बारे मे ये कहा जाता है कि उन्होने अपने परिवार तथा अपने बेटे से कहा था कि वे पूरी तरह से उन्हें दफन करें और मरने से पहले 10 वें और 13 वें दिनों के लिए हिंदू संस्कारों को छोड़ दें।

जिसके बाद उनके बेटे विश्वास ने उनके मृत्यु के अगले दिन बॉम्बे (मुंबई) के सोनापुर में एक विद्युत शवदाह गृह में सावरकर जी का दाह संस्कार किया था।

विर सावरकर के हिंदूत्व पर विचार

जब सावरकर जी सन् 1923 के समय मे जेल में थे उन्होने जेल मे रहने के दौरान हिंदुत्व शब्द को लोकप्रिय बनाने मे अपना पूरा समय लगाया और जेल मे उनके साथ रह रहे हर उस व्यक्ति को इसके लिये प्रेरित किया जिसे वह कर सकते थे।

वह वीर सावरकर जी थे जिन्होने भारतीय संस्कृति को देष के बहुसंख्यक हिंदू मूल्यों की अभिव्यक्ति के रूप में चित्रित करने की मांग को जोरशोर से उठाया था।

वीर सावरकर जी का यह प्रयास खाली नहीं गया  यह विचार आगे चलकर बाद में हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा के एक केंद्रीय सिद्धांत के रूप में विकसित हुआ जिसका परिणाम आज हम देख सकतें हैं। इन्होने अपना सारा जीवन हिंदी, हिंदू, हिंदूस्तान के लिये समर्पित कर दिया। 

वीर सावरकर पर लगने वाले कुछ आरोप

वीर सावरकर जी के  उपर समय समय मे बहंुत से आरोप लगे थे परंतु उनमे से कितने सही हैं और कितने गलत यह बता पाना कठीन है।

इसका मुख्य कारण उस समय देश का गुलाम होना है, क्योंकि ब्रिटिश राज मे यदि कोई व्यक्ति उनके सरकार के खिलाफ यदि कोई गतिविधियां करता है तो उनके द्वारा कई बार उस व्यक्ति को व्यक्तिगत रुप से बहंुत से परेशानियों का सामना करना पड़ता था चाहे वह आर्थिक हो मानसिक हो अथवा कानूनी हो वे ऐसे राष्ट्रवादी लोगों को कई बार झूठे मुकदमों मे फंसाकर उन्हे सजा दे देते थे जिससे उसके साथ अन्य लोग भी भयभीत रहें।

उनपर कुछ गंभीर आरोप लगाये गये हैं जो एक राष्ट्रवादी होने के कारण भले ही ब्रिटिश सारकार के खिलाफ था परंतु भारतीय लोगों के लिये उनके हित मे था।

    वीर सावरकर पर अंग्रेजो द्वारा नासिक जिले के कलेक्टर जैकसन की हत्या के लिए

षडयंत्र का आरोप लगाया गया था। जिसके बाद उन्हे काला पानी की सजा पर अण्डमान निकोबार के सेल्युलर जेल भेज दिया गया।

    कहा जाता है कि सावरकर जी एक कट्टर हिंदू होने के बावजूद गाय को पूजनीय नहीं मानते थे, उनका कहना था कि गाय हमारे लिये केवल एक उपयोगी पशु है।

    वीर सावरकर के उपर यह इलजाम लगाया जाता है कि उन्होने एक सभा को संबोधित करते हुये सुभाष चंद्र बोस के द्वारा बनाये गये आजाद हिंद फौज को अंग्रेजो के साथ मिल जाने तथा उनकी सेवा करने की नसिहत दि थी।

    कहा जाता है कि वीर सावरकर और गांधी जी एक दूसरे के पूरक थे तथा सावरकर जी गांधी जी के फैसले का हमेसा विरोध करते थे।

    उनपर यह भी आरोप लगाया गया था कि देश की आजादी के बाद जब गांधी जी को गोली मारकर उनकी हत्या कर दिया गया था उसमे सावरकर भी शामिल थे। हांलाकी बाद मे उनके खिलाफ किसी प्रकार की सबूत नहीं होने पर उन्हे रिहा कर दिया गया।

  इसी प्रकार आजादी के पहले उनपर और भी कई गंभीर आरोप लगाये गये थे, परंतु कभी उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिल पाये। यदि हम ये कहें कि वीर सावरकर के साथ जीवन भर उनके उपर किसी किसी बात को लेकर आरोप लगाये गये हैं तो यह कोई अतिशयोक्ति की बात नहीं है।

परंतु इसमे से अधिकांश आरोप कभी सिध्द ही नहीं हो पाये, इससे ऐसा प्रतित होता है कि उनके कटू वचन के कारण तथा सभाओं मे उनके बोलने की शैली के वजह से उन्हे उस समय होने वाले लगभग अधिकांश क्रांतिकारी गतिविधियों मे आरोपी बना दिया जाता रहा होगा।

इन्हे भी देखें

1. सरदार पटेल ;लौह पुरुष
2. शिवाजी महाराज का जीवन

वीर सावरकर से संबधित पूछे जाने वाले प्रश्न

वीर सावरकर क्यों प्रसिध्द हैं?

वीर सावरकर की यदि प्रसिध्दि की बात करें तो इसके कई कारण हैं परंतु मुख्य रुप से उन्हे भारत मे हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा की राजनीति एवं एक स्वतंत्रता सेनानी के रुप मे जाना जाता है और वे इसी के लिये प्रसिध्द हैं।

वीर सावरकर की पुस्तक का नाम क्या है?

वीर सावरकर जी ने अपने समय मे कई पुस्तकों कि रचना कि उनमे से प्रमुख रुप से द इंडियन वाॅर आॅफ 1857 बहुंत प्रसिध्द है।

सावरकर के अनुसार हिन्दू कौन है?

सावरकर जी का मानना है कि हिंदू भारतभूमि मे रहने वाले देशभक्त हैं जिनके द्वारा भारत के इस पावन भूमि को अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि माना जाता है। इससे संबंधित एक स्लोक है:- आसिन्धुसिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिकाः। पितृभूपुण्यभूष्चैव स वै हिन्दुरितिस्मृतः।। इसका अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति जो सिंन्धु से लेकर समुद्र तक के फैले हुये इस भारतभूमि को साधिकार अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि के समान मानता है वह हिंदू है।

सावरकर ने जेल में क्या लिखा?

सावरकर जी को लिखने का बचपन से ही शौक था परंतु जब वे अण्डमान निकोबार के सेल्युलर जेल गये तो उन्हे लिखने पढ़ने के लिये किसी प्रकार की सुविधा नहीं दी गई वीर सावरकर जी ने ककंड़ पत्थर को ही अपना कलम और जेल के दीवारों को कापी बना लिया इस प्रकार उन्होने जेल के दीवारों में कमला काव्य कविता की रचना की।

सावरकर की जीवनी किसने लिखी थी?

सावरकर जी की जीवनी को दो भागों मे लिखा गया है इसे लिखने का श्रेय श्री विक्रम संपत नाम के लेखक को दिया जाता है, इसका प्रकाशन पेंगुइन वाइकिंग के द्वारा किया गया था।

सावरकर को वीर की उपाधि किसने दी थी?

वीर सावरकर जी का पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। उन्हे सबसे पहले वीर से संबोधित एक लेखक जिनका नाम सदाशिव राजाराम रानाडे था, उन्होने 1924 में सावरकर जी से संबंधित अपनी एक मराठी भाषा के पुस्तक जिसका नाम स्वतंत्रवीर विनायकराव सावरकर यान्चे संक्षिप्त चरित्र था उसमे किया गया था।

वीर सावरकर की मृत्यु कहां हुई?

वीर सावरकर जी की मृत्यु 26 फरवरी सन् 1966 को बम्बई जिसका वर्तमान नाम मुंबई है, वहां उनके निवास स्थान पर हुई थी।

सावरकर अंडमान से कैसे भागे थे?

कुछ जानकारों के अनुसार जब सावरकर जी को जेल मे ले जाया गया अगले ही दिन लगभग 7 बजे के आसपास उन्होने बराबदे के पास दिवाल से छलांग लगा दि और वहां से भाग निकले वे किनारे पर पहंुच गये परंतु संभवतः उन्हे फ्रांसीसी समुद्री ब्रिगेडियर ने उन्हे देख लिया और गिरफ्तार कर वापस ब्रिटिस पुलिस को सौंप दिया परंतु इसके संबंध मे कोई सटिक जानकारी नहीं है।

क्या भगत सिंह ने सावरकर की तारीफ की थी?

यदि हम सावरकर जी के संबंध मे भागत सिंह के विचारों की बात करें तो उनके द्वारा लगभग 700 पन्ने से भी अधिक के अपने लेखन में कहीं भी सावरकर अथवा उनके हिंदुत्व के बारे में अलोचना नहीं किया है। परंतु उन्होने ऐसे दंगाइयों की अलोचना जरुर की है जो हिंदुओं का पक्ष लेकर मुसलमानों की हत्याओं का समर्थन करते हैं।

सावरकर कितने दिन जेल में रहे थे?

सावरकर जी कुल मिलाकर लगभग 13 वर्षों तक जेल में रहें है। इसमे 10 वर्ष उन्होने अंडमान के सेल्युलर जेल मे तथा 3 वर्ष रत्नागिरी स्थित जेल में बिताए थे। इसके पश्चात लगभग 13 वर्ष उन्हें नजरबंद भी रखा गया था।

सावरकर अंडमान जेल में कब थे?

सावरकर जी को नासिक के एक अंग्रेजी कलेक्टर जिसका नाम जैक्सन था उसकी हत्या के साजिश का आरोप लगाते हुये 7 अप्रैल सन् 1911 को उन्हें अंडमान के सेल्यूलर जेल भेज दिया गया जो काले पानी की सजा के रुप में प्रसिध्द था। वे यहां सन् 1921 तक सजा काटते रहे, फिर उन्हे रिहा किया गया।

लंदन में अभिनव भारत का संस्थापक कौन था?

लंदन में सावरकर बंधुओं के द्वारा अभिनव भारत समिति जिसे यंग इंडिया सोसायटी भी कहा जाता है सन् 1904 मे किया गया था। यह एक प्रकार का गुप्त समिति बनाई गई थी जिसका मुख्य कार्य अंग्रजों के भूमि में रहकर वहां अंग्रजी सरकार के विरुध्द कार्य कारना था।

अंडमान को काला पानी क्यों कहा जाता था?

भारत में अडंमान को काला पानी कहने के कई कारण थे इनमे से एक इसका भारत के मुख्य भूमि से हजारों किलोमीटर दूर होना था। जहां क्रांतिकारी देशभक्तों को सजा के रुप में यहां लाकर सेल्युलर जेल मे रखा जाता था और यह मान्यता थी की जो भी यहां भेजा जाता था वह वापस नहीं आता था, जिस कारण आम जनमानस मे इसे लेकर उस समय भय व्याप्त था।

काला पानी किसे भेजा गया था?

काला पानी समय समय पर बहंुत से भारत के क्रांतिकारियों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत अथवा काम करने पर उनके द्वारा सजा के रुप में भेजा गया था उनमें से कुछ नाम निम्न हैं:- बटुकेश्वर दत्त, दीवान सिंह कालेपानी, वीर सावरकर, फजल ए हक खराबाबादी, योगेन्द्र शुक्ला, शदानंद चंदन, भाई परमानंद और भी अन्य।

मित्र मेला किसने शुरु किया था?

सन् 1899 में विनायक दामोदर सावरकर और उनके बड़े भाई गणेश सावरकर जी द्वारा मित्र मेला नामक एक क्रांतिकारी गुप्त समुह की स्थापना किया।

अंडमान निकोबार का दूसरा नाम क्या है?

अंडमान निकोबार की दूसरे नाम की बात करें तो यह सुभाष चंद्र बोस जी के द्वारा सुझाव दिया गया था कि अंडमान निकोबार द्वीप का नाम शहिद और स्वराज द्वीप के नाम पर रखा जायेगा यह वह समय था जब इस द्वीप पर जापानी सैनिकों ने कब्जा कर लिया था और नेताजी को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ाई मे उपयोग करने के लिये दिया गया था।

अंडमान निकोबार भारत में कब मिला?

यदि हम देखें तो सन् 1869 में ब्रिटिश सरकार द्वारा इसमे कब्जा करने के दौरान ही यह ब्रिटिश भारत के अधिन आ गया था इस प्रकार यह क्षेत्र भारत का हिस्सा हो गया। इसके बाद जब यह क्षेत्र जापानी सेना द्वारा सुभाष चंद्र बोस को सौंपी गई तब एक बार पूनः यह भारत का हिस्सा बन गया।

अंडमान निकोबार भारत में कब शामिल हुआ?

अंडमान निकोबार अधिकारिक रुप से भारत के आजादी के बाद सन् 1956 मे शामिल किया गया इसे भारत का एक केन्द्रशासित प्रदेश के रुप मे घोषित करते हुये देष का अभिन्न अंग मान लिया गया।

भारत में काला पानी कहां है?

कालापानी एक पानी का ब्रांड है जो गुजरात स्थित डी2सी कंपनी के नाम से जाना जाता है। यह देष का पहला ब्लैक वाटर ब्रांड है।

अभिनव भारत की स्थापना कब हुई थी?

अभिनव भारत की स्थापना सन् 1904 को लंदन में किया गया था।

अभिनव भारत की स्थापना किसने किया था?

अभिनव भारत की स्थापना सावरकर बंधुओं के द्वारा किया गया था। जिसमे वीर सावरकर मुख्य भूमिका मे थे।

क्या वीर सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी?

इस बात पर जानकारों की अलग अलग राय हे परंतु यदि देखा जाये तो वीर सावरकर के द्वारा अंग्रेजों से माफी मांगने की बात एक मिथ्या के अतिरिक्त और कुछ नहीं लगती है। यह इसलिये कहा जा सकता है क्योंकि उन्होने सेल्युलर जेल मे यातनायें सहन करते हुये अपना दस वर्ष बिता दिया था इसके बाद अचानक से उस व्यक्ति द्वारा माफी मांगने की बात मे संदेह उत्पन्न करता है। यहिं कुछ का मानना है कि सावरकर जी ने सोंचा की जेल मे इस प्रकार रहने से वह अपने मातृभूमि के लिए कुछ नहीं कर पा रहें है इससे अच्छा वह वहां से निकलने के बाद संभवतः अपने भूमि के लिये कुछ कर पायेंगें इस प्रकार उन्होने माफी नामा लिखा होगा। परंतु जो लोग सावरकर जी को करिब से जानते थे उनके अनुसार यदि देखा जाये तो वीर सावरकर जी का जो व्यवहार था उस हिसाब से उनसे माफी मांगने की उम्मीद तो नहीं किया जा सकता है।

सावरकर को सजा क्यों हुई थी?

सावरकर जी को नासिक जिले के कलेक्टर जिसका नाम जैक्सन था उसकी हत्या करने के साजिश के इल्जाम पर उन्हे सजा दी गई थी और सजा के रुप मे 7 अप्रैल 1911 को सेल्युलर जेल भेज दिया।

महात्मा गांधी कितनी बार जेल जा चुके हैं?

महात्मा गांधी अपने जीवन काल मे कई बार जेल गयें हैं, भारत मे उन्हे पहली बार 1919 में अंग्रेजी सरकार द्वारा गिरफ्तार किया गया था। इससे पहले वे दक्षिण अफ्रीका में लगभग छः बार गिरफ्तार हो चुके थे।

हिंदू धर्म कितना पुराना है?

हिंदू धर्म के बारे मे कहा जाता है कि यह 90 हजार वर्ष पुराना है। वहीं हिंदू धर्म 9057 ईसा पूर्व में सबसे पहले स्वयंभू मनु हुए, इसी क्रम मे वैवस्वत मनु 6673 ईसा पूर्व में हुये थे। जिनसे हिंदू धर्म अस्तित्व मे आया। यदि इसे पौराणिक दृष्टिकोण से देखें तो भगवान श्री रामचंद्र जी का जन्म 5114 ईसा पूर्व तथा भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म 3112 ईसा पूर्व माना गया है। जो हिंदू धर्म के एक प्रकार से महानायक के रुप मे जाने जाते हैं।

वीर सावरकर की पत्नी कौन है?

वीर सावरकर जी की पत्नी का नाम श्रीमती यमुनाबाई सावरकर था इन्हे माई सावरकर के नाम से भी जाना जाता था। यह गृहिणी थीं।

वीर सावरकर की पत्नी का नाम क्या है?

वीर सावरकर जी की पत्नी का नाम श्रीमती यमुनाबाई था।

सावरकर को काला पानी की सजा क्यों मिली?

वीर सावरकर जी को नासिक के ब्रिटिष कलेक्टर जैक्सन की हत्या करने के साजिश के तहत गिरफ्तार किया गया था। जिस पर उन्हे काला पानी की सजा के रुप मे अंडमान निकोबार स्थित सेल्युलर जेल भेज दिया गया।

क्या सावरकर ने शादी की थी?

सावरकर जी ने मार्च 1901 मे अपने बड़े भाई के कहने पर यमुनाबाई से शादी किया था।

क्या काले पानी की सजा आज भी दी जाती है?

काले पानी नाम की सजा अंग्रेजों द्वारा देश के क्रंातिकारियों अथवा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कार्य करने पर सजा के रुप मे अंडमान निकोबार द्वीप स्थित सेल्युलर जेल मे डाल दिया जाता था। यह जेल आज भी वहां स्थित है परंतु अब इस प्रकार की कोई सजा नहीं दी जाती है अंग्रेजों के साथ ही यह समाप्त हो गई। आज लोग वहां पर्यटक के रुप में वहां घुमने के लिये जाते हैं।

विनायक दामोदर सावरकर ने भारत के लिए क्या किया?

सावरकर जी ने भारत के आजादी की ओर अपना कदम बढ़ाते हुए हिंदी, हिंदू, हिंदूस्तान को अपना ध्येय वाक्य बना लिया उन्होने अंग्रेजों से आजादी के लिये देष के युवाओं को एक होकर लड़ने के लिये प्रेरित किया उन्होने ब्रिटिश भूमि पर जाकर उनके खिलाफ कार्य किया। उन्होने ही 1857 के स्वतंत्रता सग्रांम को इस नाम से प्रचार किया, इससे संबंधित द इंडियन वाॅर आॅफ इंडिपेंडेस प्रकाशित किया गया जिससे डरकर अंग्रेजों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। उन्होने देश के लिये अंग्रेजी सरकार के खिलाफ कार्य करके अपना अमुल्य 13 वर्ष जेल मे बिताये इसी के साथ लंबे समय तक वे नजरबंद भी रहे थे। उन्होने अपना सारा जीवन देश को समर्पित कर दिया।

काला पानी कौन से देश मे है?

काला पानी एक प्रकार की ब्रिटिश सारकार द्वारा प्रचलित एक सजा है जो भारत के अंडमान निकोबार द्वीप के राजधानी पोर्ट ब्लेयर में स्थित है। इसका यह नाम भारत के मुख्य भू-भाग से हजारों किलोमीटर की दूरी होने के कारण कहा जाता था उस समय आम जनमानस के मन मे इसका भय व्याप्त था वे यह सोंचते थे कि यहां जाने के बाद कोई जीवित वापस नहीं आ सकता था।

सावरकर वकील थे?

विनायक दामोदर सावरकर जी एक बहंुत ही अच्छे वकील थे और उन्हे वकालत की हर दांवपेंच आती थी, जिसका उन्होने उनपर लगने वाले हर इल्जाम का बखुबी तोड़ लिकालने मे उपयोग किया। उन्होने कानून की पढ़ाई ब्रिटेन मे पूरी की थी।

भारत की सबसे बड़ी जेल कौन सी है?

भारत की वर्तमान सबसे बड़ी जेल की बात करें तो दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल देश के साथ-साथ दक्षिण ऐशिया की सबसे बड़ी जेल है।

समुद्र के बीच में कौन सी जेल है?

यदि भारत की बात करें तो हिंद माहसागर मे अंडमान निकोबार द्वीप समूह मे बनी सेल्युलर जेल समुद्र के बीच में बनी जेल है। वर्तमान समय मे इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया है।

काला पानी से कौन बच निकला?

वीर सावरकर जी के बारे मे कहा जाता है कि उनको काला पानी की सजा दी गई थी जहां से वे भाग निकले थे परंतु एक फ्रांसिसी अधिकारी ने देख लिया जिससे उनको वापस पकड़के अंग्रेजों को सौंप दिया गया था।

वीर सावरकर का आजादी में क्या योगदान था?

वीर सावरकर जी के आजादी में यदि योगदान को समझना है तो सबसे पहले उनके बारे में जानना जरुरी है। यदि हम ये कहें की उन्होने अपना पूरा जीवन देश के लिये उसके आजादी के लिये समर्पित कर दिया तो इसमे कोई अतिसियोक्ति की बात नहीं है। वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय है जिन्होने अंग्रेजों के खिलाफ उनके अपने भूमि पर क्रांतिकारी आंदोलनों को संगठित किया था। उन्होने 13 वर्ष जेल मे बिताये थे इसके बाद भी उन्हे कई वर्षों तक नजरबंद किया गया था। उन्हे किसी प्रकार की राजनीतिक गतिविधियों के लिये ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था। उनके भाषण देश प्रेम से इतने ओतप्रोत और जोशीले होते थे कि मृत व्यक्ति में भी देश के लिये देशप्रेम जगा दे, यहीं कारण था कि ब्रिटिश सरकार उनसे इतना डरती थी जिससे उन्हे लंबे समय तक जेल मे रहकर प्रताड़ना झेलना पड़ा।

सावरकर ने भारत के लिए क्या किया?

सावरकर जी ने भारत के आजादी की ओर अपना कदम बढ़ाते हुए हिंदी, हिंदू, हिंदूस्तान को अपना ध्येय वाक्य बना लिया उन्होने अंग्रेजों से आजादी के लिये देश के युवाओं को एक होकर लड़ने के लिये प्रेरित किया उन्होने ब्रिटिश भूमि पर जाकर उनके खिलाफ कार्य किया। उन्होने ही 1857 के स्वतंत्रता सग्रांम को इस नाम से प्रचार किया, इससे संबंधित द इंडियन वाॅर आॅफ इंडिपेंडेस प्रकाशित किया गया जिससे डरकर अंग्रेजों ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। उन्होने देश के लिये अंग्रेजी सरकार के खिलाफ कार्य करके अपना अमुल्य 13 वर्ष जेल मे बिताये इसी के साथ लंबे समय तक वे नजरबंद भी रहे थे। उन्होने अपना सारा जीवन देश को समर्पित कर दिया।

स्वतंत्र वीर सावरकर कौन है?

इनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर है, ये देश के एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ, हिंदू राष्ट्रवादी, लेखक, विचारक, और एक कवि भी थे। इनमे और भी कई खूबियां थी।

सावरकर को पेंशन दी गई थी?

जब लाल बहादूर शास्त्री जी देश के प्रधान मंत्री बने तब उनके नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार ने उन्हे मासिक पेंशन देना शुरु किया। इस समय तक उनकी मृत्यु हो गई थी।

वीर सावरकर को काला पानी की सजा कब हुई?

वीर सावरकर पहले ऐसे स्वंतत्रता सेनानी हैं जिन्हे दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाइ गई थी। उन्हे 7 अप्रैल सन् 1911 को काला पानी की सजा पर सेल्युलर जेल भेज दिया गाया।

सावरकर को सजा क्यों हुई थी?

वीर सावरकर जी को नासिक के ब्रिटिश कलेक्टर जैक्सन की हत्या करने के साजिश के तहत गिरफ्तार किया गया था। जिस पर उन्हे काला पानी की सजा के रुप मे अंडमान निकोबार स्थित सेल्युलर जेल भेज दिया गया।

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