शिवाजी महाराज

शिवाजी महाराज

शिवाजी महाराज जिनका पूरा नाम छत्रपति शिवाजी शहांजीराजे भोसले (1630-1680 ) हैं भारत वर्ष के एक महानतम राजा एवं कुशल शासक थे जिन्होंने सन् 1674 में  भारत के पश्चिम भू-भाग पर मराठा साम्राज्य की नीव रखी थी।

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उन्होने अपने जीवन काल मे सबसे अधिक सघंर्ष बिजापुर के आदिलशाह एवं मुगल साम्राज्य के शासक औरगंजेब से किया। इतने संघर्षों के पश्चात 1674 में रायगढ़ में महाराज का राज्याभिशेक हुआ।

शिवाजी महाराज का विवाह

छत्रपति शिवाजी महाराज की कई शादियां हुई थी। शिवाजी महराज की पहला विवाह 14 मई सन् 1640 को महज 10 वर्ष की आयु मे साईबाई निंबालकर के साथ पुणे स्थित लाल महल में हुआ था।

इसके दो वर्ष पश्चात ही सन् 1642 मे शिवाजी महाराज का दूसरा विवाह 12 वर्ष की आयु मे सोयराबाई से हुआ। शिवाजी महाराज ने अपने जीवन काल मे कुल 8 विवाह किए थे। उनके पत्नियों के नाम निम्न हैं:- 1. सईबाई निंबालकर, 2. सोयराबाई मोहिते, 3. सकवरबाई गायकवाड, 4. सगुणाबाई, 5. पुतलाबाई पालकर, 6. काशीबाई जाधव, 7. लक्ष्मीबाई विचारे, 8. गुवांताबाई इंगले,

शिवाजी महाराज का इन सभी से विवाह केवल विवाह नही था, इसका राजनीतिक उद्येश्य था। जब एक शादि के पश्चात शिवाजी महाराज ने अपनी माता जीजाबाई से दूसरी शादि कराने का कारण पूछा तो उन्होने अपने उद्येश्य को शिवाजी के समक्ष स्पष्ट किया।

इसके पश्चात शिवाजी ने कभी भी अपनी माता से इस संबंध मे प्रश्न नहीं किया। उनको भी यह बात समझ मे आ गई थी की इसकी पूर्ती केवल संबंध स्थापित करके ही किया जा सकता था।

इनकी सभी पत्नियां मराठा सरदारों के घरों से ताल्लुक रखती थीं। जिससे विवाह के फलस्वरुप शिवाजी महाराज को इन्हे एक सुत्र मे बांधने मे सफलता मिली।

इस प्रकार के वैवाहिक संबंध स्थापित करने से शिवाजी महाराज की सैनिक शक्ति मे वृध्दि के साथ-साथ इनके बिच आपसी भरोसे की एक डोर बन गई जिससे महाराज के स्वराज्य अभियान को बल मिला।

शिवाजी महाराज की युध्द नीति और व्यक्तित्व

छत्रपती शिवाजी महाराज ने अपनी संगठित सेना को मजबूत एवं अनुशासन से परिपूर्ण कर कुशल प्रशासन स्थापित करने का प्रयास किया जिसमे उन्हे सफलता प्राप्त हुई।

उन्होंने युध्द-नीति में अनेक परिवर्तन किए जिसमे छापामार युध्द (गोरिल्ला युद्धनीति) की नई शैली जिसे शिवसूत्र कहा गया विकसित किया। गोरिल्ला युद्धनीति/छापामार युद्धनीति के जनक के रुप मे मराठों को ही देखा जाता है।

मराठों ने प्राचीन हिन्दू राजनीतिक नीतियों तथा संस्कारों को पुनः जीवित किया और अपने सामान्य राजनीतिक उद्येष्यों के लिये मराठी भाषा एवं संस्कृत को मान्यता दी।

शिवाजी महाराज मुस्लिम आक्रांताओ के बिच ऐसे उठ खड़े हुये थे जो हिन्दूओं के लिए मानो खूब अंधेरे मे एकलौता दीया हो। स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने लोगों मे राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न करने के लिए शिवाजी महाराज के जन्मोत्सव की शुरुआत की।

जब बिजापुर सल्तनत मे विदेशी आक्रमण लगातार हो रहा था। उस समय युध्द मे मराठा सरदार एवं मावले आदिलशाह का साथ देते थे जीससे उसकी सुरक्षा होती थी।

शहांजी के मन मे ऐसे साम्राज्य के सुल्तान की सेवा करने के बदले स्वराज्य के लिये इन्हे संगठित करने का खयाल आया। जिसके लिये उन्होने अपने छोटे बेटे शिवाजी को चुना जिसमे उसके बड़े बेटे सभांजी ने पूरा साथ दिया।

शिवाजी महाराज ने मावलों की ताकत और उनकी अपने मुखिया के प्रति वफादारी से अत्यधिक प्रभावित थे। अतः मावलों को बीजापुर के खिलाफ़ संगठित करना प्रारम्भ कर दिया।

मावल प्रदेश उस समय पश्चिम घाट पर लगभग 150 -200 कि.मी. लम्बा और लगभग 40-50 किलोमीटर चैड़ा हुआ करता था। वे बहुंत ही संघर्षपूर्ण जीवन जीते थे और इन कठिनाई भरी जीवन प्रणाली के कारण कुशल योद्धा थे जो किसी भी परिस्थिति मे रह सकते थे।

यहां मिली-जूली जातियां थीं जीसे शिवाजी महाराज ने मिलाकर मावलों/मावला नाम दिया था। महाराज ने इनके मावल युवाओं के साथ दुर्ग निर्माण करना आरम्भ कर दिया था जिससे वे इनके संपर्क मे आ गये थे।

मावलों का प्रेम एवं विश्वास धीरे-धीरे शिवाजी महाराज के लिये महाराज से मिलने वाले अपनत्व एवं प्रेम, आदर के कारण इतना बढ़ गया की मावले उन्हे भगवान के समान पूजने लगे।

मावलों का सहयोग महाराज के लिए युध्द के दिनों में बहुंत ही महत्वपूर्ण साबित हुआ जिससे वे शिवाजी महाराज से छत्रपति शिवाजी महाराज तक का रोमांच से भरा सफर तय कर पाये।

बीजापुर आंतरिक संघर्ष तथा मुगलों के द्वारा किये जा रहे आकस्मिक आक्रमण से बहंुत परेसान था। इसी दौरान आदिलशाह के बीमार पड़ते ही बीजापुर में अराजकता फैल गई जिससे बीजापुर के सुल्तान ने अपने बहंुत से दुर्गों से जब अपनी सेना बुलाकर उन्हें स्थानीय शासकों/सामंतो को सौंप दिया।

इस अवसर का लाभ उठाकर शिवाजी महाराज ने बीजापुर के दुर्गों पर अधिकार करना आरंभ कर दिया और रोहिदेष्वर के दुर्ग से अपनी सुरुआत की। इस प्रकार से यह समझा जा सकता है कि षिवाजी महाराज को सही समय की अच्छी परख थी।

उनके द्वारा लिये गये हर निर्णय अधिकतर सही साबित हुये हैं। वे एक धर्मपरायण योध्दा थे जिन्हे अपने हिन्दू होने पर गर्व था। और वे यही गर्व हर हिन्दू मे देखना चाहते थे।

उन्हे अपना स्वाभिमान अत्यंत प्रिय था। स्वराज्य कि स्थापना के लिये शिवाजी महाराज हर बलिदान देने को तैयार थे। उन्होने अपना सारा जीवन स्वराज के लिये समर्पित कर दिया।

शिवाजी महाराज की प्रशासनिक व्यवस्था

शिवाजी महाराज मे ऐसी बहुंत सी प्रतिभाएं थी जो उन्हे कुशल संगठनकर्ता तथा प्रशासक बनाती है। महाराज ने शासन की व्यवस्थाओं मे कुछ महत्वपूर्ण परिवर्तन किया था।

जैसे नियुक्तियों को वंशानुक्रम के स्थान पर योग्यता देखकर किया जाता था। जागीरदारी प्रथा को समाप्त कर दिया गया। कर्मचारियों को वेतन के रुप मे नगद राशि दिया जाता था। भूमि का अनुदान केवल धार्मिक कार्यो के लिये दिया जाता था।

शिवाजी महाराज के साम्राज्य को स्वराज के नाम से जाना जाता था। इनके क्षेत्र उस समय महाराष्ट्र के क्षेत्र तक ही सिमित थे। इसके अतिरिक्त मुगलाई उन क्षेत्रों को कहा जाता था जिसे मुगलों से छिना गया था। क्षेत्र के रुप मे सबसे छोटे क्रम से – महाल-प्रांत-संभाग-स्वराज के रुप मे स्थापित किया गया था।

शिवाजी महाराज के राज्य मे 250 से भी अधिक छोटे-बड़े दुर्ग होने की जानकारी मिलती है। परंतु वह स्थाई नही रहे समय के साथ घटते-बढ़ते रहे हैं।

इन्होने अपने प्रशासनिक सहयोग के लिए अष्टप्रधान बनाया था जो आठ अलग-अलग विभाग से संबंध रखने वाले मंत्री थे। वे महाराज को परामर्श देने का कार्य करते थे, जिसमे अंतिम निर्णय महाराज का होता था। ये निम्न थे –

  1. पेशवा

स्वराज के अतंर्गत प्रशासनिक विभाग मे महाराज के बाद कोई प्रमुख था तो वह पेशवा था। यह प्रधान मंत्री होता था।

  1. सर ए नौबत (सेनापति)

यह सैनिक प्रशासन का प्रमुख था। इसके द्वारा पुरे स्वराज के सैनिकों का संचालन किया जाता था। परंतु कहीं-कहीं यह जानकारी मिलती है कि महाराज की सुरक्षा मे जो सैनिक तैनात होते थे उन पर इसका नियंत्रण नही होता था। इसके अतिरिक्त गुप्त विभाग सिधे महाराज के नियंत्रण मे होता था।

  1. मजुमदार (अमात्य)

यह राजस्व विभाग का मुखिया होता था तथा जो भी खर्च या आय होता था उसका उत्तरदायित्व इसी का होता था।

  1. सुरनीस (सचिव)

यह शासन स्तर पर जो भी प्रत्र व्यवहार होता था उस विभाग का प्रमुख था।

  1. वाकनविस

यह छत्रपति के दरबार अथवा अन्य स्थानों मे जो भी योजना बनती थी उसका पूर्व व्यवस्था और जो निर्णय लिया जाता था उन सभी कार्यों को लिपिबध्द करने का कार्य करते थे। यह अधिक से अधिक समय महाराज के साथ व्यतित करते थे।

  1. सुंमत या दबीर

यह विदेश मंत्री का कार्य करते थे। स्वराज के बाहर जो भी स्वराज का प्रतिनिधि का कार्य करते थे वह इन्ही के देख-रेख मे किया जाता था और ये उसके लिए उत्तरदायि थे। यह एक ऐसा विभाग था जिसमे महाराज बहुंत कम ही परिवर्तन करते थे।

इसके साथ ही इसमे कार्य करने का सौभाग्य बहुंत मुस्किल से मिलता था, क्योंकि यह गुप्तचर विभाग भी था। इसके अंतर्गत कितने लोग कार्य करते हैं उनकी संख्या की कोई सही जानकारी छत्रपति के अलावा किसी को नही होता था।

  1. पंडितराव

यह धर्म से संबंधित कर्मकाण्डो एवं कार्यों का प्रमुख था एवं दान आदि का हिसाब इन्ही के द्वारा रखा जाता था।

  1. न्यायाधीश

यह न्यायालय विभाग का प्रमुख था और सभी प्रकार के दीवानी एवं फौजदारी मुकदमों की सुनवाई करता था। इसक साथ जो स्वराज के अंतर्गत जितने भी छोटे न्याय व्यवस्थाऐं थी उन सभी की जिम्मेदारी इसी की होती थी।

शिवाजी महाराज से संबंधित प्रश्न जो लोग पूछते हैं

साईबाई कौन थी?

साईबाई शिवाजी महाराज कि पहली पत्नी थी। जिनका विवाह शिवाजी से 1640 मे हुआ था।

साईबाई की मृत्यु कैसे और कब हुई?

साईबाई की मुत्यु सन् 1659 मे रजगढ़ के किले मे उस समय हुई, जब महाराज प्रतापगढ़ के किले में अफजल खान के साथ अपनी मुलाकात के लिए रणनीति बना रहे थे।

शिवाजी महाराज ने किस भगवान की पूजा करते थे?

शिवाजी महाराज तुलजा भवानी की पूजा करते थै।

शिवाजी क्यों प्रसिध्द थे?

शिवाजी के प्रसिध्दी के कारण की बात करें तो उसके कई कारण है परंतु मुख्य रुप से बात करें तो वे अपने गोरिल्ला युध्द नीति के लिये अत्यधिक प्रसिध्द थे।

शिवाजी महाराज के धार्मिक गुरु कौन थे?

शिवाजी महाराज के धार्मिक गुरु के रुप मे समर्थ रामदास स्वामी जी को माना जाता है।

शिवाजी से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

शिवाजी महाराज से प्रेरण की बात करें तो मुख्यरुप से यह माना जा सकता है कि जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए साहस तथा दृढ़ संकल्प आवष्यक है।

शिवाजी महाराज का उद्येश्य क्या था?

शिवाजी महाराज का उद्येश्य पूरे भारत वर्ष मे स्वराज की स्थापना थी। जिसे उन्होने 1674 मे मराठा साम्राज्य की स्थापना कर इसकी शुरुआत कर दी थी।

शिवाजी महाराज जयंती क्यों मनाया जाता है?

शिवाजी महाराज हिन्दूओं के लिए आज भी एक नायक हैं। स्वराज के लिये उनके द्वारा किये गये महत्वपूर्ण योगदान के याद मे उनके सम्मान के लिये उनकी जयंती मनाई जाती है।

शिवाजी महाराज का मित्र कौन था?

शिवाजी महाराज के जितने शत्रु थे उतने मित्र भी थे। उनके बहंुत से ऐसे मित्र थे जो उन्हे अत्यतं प्रेम करते थे। इनमे यदि सबसे ज्यादा घनिष्ठता की बात करें तो तानाजी मालुसरे थे। जीजाबाई इन्हे अपने पुत्र शिवाजी के समान मानती थी।

शिवाजी महाराज के सेना पति का क्या नाम था?

शिवाजी महाराज के कई सेनापति हुये इनमे से सबसे प्रसिध्द एवं अधिक समय तक सेनापति तानाजी मलुसरे थे।

शिवाजी महाराज कौन से वशं के थे?

वैसे तो शिवाजी मराठा भोंसला वशं के थे परंतु उनका राजवशं राजस्थान स्थित क्षत्रिय जाति के सिसोदिया राजवशं से जोड़ा जाता है।

शिवाजी महाराज ने कौन-कौन से किले जीते थे?

शिवाजी महाराज के जीते गये किलों की सही-सही जानकारी नहीं मिलती है। इसका कारण है उनके क्षेत्र मे लगभग 300 से भी अधिक किले उनके अधिन थे। पंरतु कुछ किले जिनकी चर्चा होती है रिहदेष्वर दुर्ग, शिहंगढ़ दुर्ग, कोंकण किला, जावली का किला, जींजी का दुर्ग, इत्यादी ...........।

शिवाजी महाराज का सबसे सुंदर किला कौन सा था?

शिवाजी महाराज का सबसे सुंदर किला रायगढ़ का किला था जो रायगढ़ की पहाड़ी पर है।

शिवाजी महाराज के माता पिता का क्या नाम था?

शिवाजी महाराज के पिता शाहजी भोंसले एवं माता जीजाबाई थीं।

छत्रपति का मतलब क्या होता है?

छत्रपति एक मराठा संबोधन है जो अपने राजा के लिए था। जिसका सामान्य अर्थ अपने प्रजा को एकछत्र के अधिन रख कर उनकी सुरक्षा और शासन करना है। जिस प्रकार शंहसाह, सुल्तान, सम्राट होता है, इसी प्रकार का यह संबोधन है।

छत्रपति की जाति क्या है?

शिवाजी महाराज की जाति की अगर बात करें तो महाराष्ट्र से पूर्व इनके पूर्वज राजस्थान के राजवंशो से आते थे, जो कि राजपूत कहलाते हैं। ये राजपूत क्षत्रीय हैं। इस प्रकार से षिवाजी महाराज की जाति उनके वंशंज के आधार पर क्षत्रीय है।

शिवाजी महाराज के भाई का क्या नाम है?

शिवाजी महाराज के बड़े भाई का नाम संभाजी शाहजी भोंसले था। और दूसरा एकोजी/व्यंकोजी भोंसले जो उनसे छोटे थे और उनके सौतेली मां के पुत्र थे। परंतु उनके बिच किसी प्रकार का विवाद नाम मात्र भी नहीं था। वे आपस मे बहुंत प्रेम से रहते थे और स्वराज मे सभी शिवाजी महाराज का दृढ़ता से साथ देते थे।

शिवाजी महाराज कहां के रहने वाले थे?

शिवाजी महाराज का जन्म शिवनेरी दूर्ग मे हुआ था जो कि पूणें के नजदिक जुन्नार गांव मे है। इस प्रकार उन्हे पूणें का कहा जा सकता है।

शिवाजी महाराज के कितने भाई थे?

शिवाजी महाराज के दो भाई थे। 1. संभाजी शाहजी भोंसले (बड़े भाई), 2. एकोजी या व्यंकोजी भोंसले (छोटे भाई)

शिवाजी का दूसरा नाम क्या था?

शिवाजी महाराज को उनके जानने वाले उन्हे शिवाजी राजे भी कहते थे। जिससे उनका नाम शिवाजी राजे भोंसले भी कहा जाता है।

छत्रपति शिवाजी के बचपन का क्या नाम था?

शिवजी का लोग बचपन से ही सम्मान करते थे, क्योंकि उनमे कुछ असाधारण व्यक्तित्व था इसी कारण लोग उन्हे शिवाजी राजे के नाम से ही पुकारा करते थे। इस प्रकार उनका बचपन का नाम षिवाजी राजे भोंसले था।

औरंगजेब ने शिवाजी को कैसे हराया था?

शिवाजी महाराज को औरंगजेब के द्वारा हराने की बात करें तो वह सिधे तौर पर कभी हरा नही पाये थे। जब शिवाजी महाराज द्वारा सूरत पर कब्जा किया गया था तब औरंगजेब ने धोखे से उन्हे दरबार मे बुलाकर बंदी बना लिया था, जहां से महराज ने स्वयं और अपने पुत्र को युक्ति से निकाल लाये थे।

शिवाजी की मृत्यु के बाद कौन राजा बना?

शिवाजी महाराज के मृत्यु के बाद उनका बड़ा बेटा संभाजी राजा बना।

औरंगजेब ने शिवाजी को क्यों मारा?

औंरगजेब ने शिवाजी को मारने का प्रयत्न किया जरुर था परंतु मार नहीं पाये। जब शिवाजी महाराज ने सूरत पर कब्जा किया तब महाराज का मुगलों के साथ युध्द हुआ। जिसमे शिवाजी से संधि हुई, इसके बाद जब महाराज को दरबार मे आमंत्रित किया गया, तो उन्हे लगा कि उन्हे उचित सम्मान नही दिया गया। जिसके लिये उन्होने औरंगजेब का भरे दरबार मे विरोध व्यक्त किया जिसके बाद औरंगजेब ने धोखे से शिवाजी को बंदी बना लिया और मारने कि कोसिस की पंरतु वे बचकर निकल गये।

मराठा साम्राज्य का अखिरी राजा कौन था?

मराठा साम्राजय का आखिरी राजा शिवाजी तृतीय थे।

शाहजी कौन थे?

शाहजी भोंसले शिवाजी महाराज के पिता एवं बिजापुर सल्तनत मे आदिलषाह के दरबार मे एक मराठा सेनापति थे।

शाहजी भोसले की कितनी पत्नी थी?

शाहजी भोंसले की कुल तीन पत्नियां थी जिनके नाम जीजाबाई, तुकाबाई, नरसाबाई है।

भोसले कौन से जाति मे आते हैं?

भोंसले जाति क्षत्रिय कुल से आते है, जो एक प्रकार से योध्दा जाति से ताल्लुक रखते हैं।

शिवाजी महाराज का गोत्र क्या था?

शिवाजी महाराज की जाति क्षत्रिय है जो इसी जाति के गोत्र के अंतर्गत आते हैं। कुछ लोग इन्हे जानबूझ कर अन्य जाति विशेष से जोड़ने का प्रयास करते हैं, जो कि बिलकुल गलत है।

शिवाजी के कितने पूत्र थे?

शिवाजी महाराज के कई पूत्र हुये परंतु उनकी मृत्यु हो जाती थी। अगर जिवित पुत्र की बात करें तो उनके दो पूत्र थे।

शिवाजी के बेटों का क्या नाम था?

उनके दो पूत्र थे पहला छत्रपति संभाजी महाराज दूसारा राजाराम।

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