शिवाजी महाराज का जीवन
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी सन् 1630 को शिवनेरी के दुर्ग में हुआ। पिता का नाम शहंाजीराजे भोंसले था, जो एक शक्तिशाली सामंत राजा थे। शिवाजी महाराज के दादा जी का नाम मालोजीराजे भोसले था। वे अहमदनगर सल्तनत के एक प्रभावशाली जनरल थे।
शिवाजी महाराज की माता जिजाबाई थी जो जाधवराव कुल से संबधं रखती थी। जीजाबाई अत्यतं प्रतिभाशाली महिला थी। शिवाजी महाराज के बड़े भाई का नाम सम्भाजी/सम्भाजीराजे था जो अधिकतर समय अपने पिता शहांजी भोसले के साथ ही रहते थे।
शहंाजीराजे कि दो पत्नी थी पहली जीजाबाई एवं दूसरी पत्नी का नाम तुकाबाई मोहिते थी। उनसे भी एक पुत्र था जिसका नाम व्यंकोजी/व्यंकोजीराजे था। शिवाजी महाराज के चरित्र पर सबसे अधिक किसी का प्रभाव पड़ा था तो वह उनकी माता का था। उनका बचपन का अधिक समय उनकी माता के मार्गदर्शन पर बीता था।
उन्होंने कोई अलग प्रकार की शिक्षा ग्रहण नहीं कि थी उन्होने राजनीतिक ज्ञान एवं युद्ध कौशल की शिक्षा ली थी। उनके मन-मस्तिष्क मे स्वराज्य का दीप बालपन से ही जल चूका था। जैसे ही उन्हे मौका मिला उन्होंने कुछ ऐसे साथियों का संगठन बनाने की कोशिस शुरु कर दिया जो स्वराज मे उनकी सहायता कर सकें।
शिवाजी महाराज की माता जीजाबाई बड़ी धार्मिक विचारों की थी और पूजा-पाठ मे भी विषेष रुची रखती थी महाराज के जीवन पर इसका अत्यधिक प्रभाव पड़।
शिवाजी महाराज के पिता जी एक अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्तित्व एवं शक्तिशाली निडर योध्दा थे जो किसी भी परिस्थिति मे स्वयं को अनुकूल बनाने मे सक्षम थे ये गुण शिवाजी महाराज मे भी दिखाई पड़ता है। जब शिवाजी महाराज 10 वर्ष के थे तब उनकी पहली शादी 14 मई सन् 1640 को साईबाई के साथ हुआ था।
इसके पश्चात सन् 1642 मे शिवाजी महाराज और सोयराबाई का विवाह हुआ। यदि महाराज जी के सबसे पहले किसी दुर्ग को जीतने का प्रमाण है। तो वह 1646 मे पुणे के पास तोरण दुर्ग है, जिसे शिवाजी महाराज ने महज 16 वर्ष की आयु मे जीता था।
परंतु कुछ जानकारो का मानना है कि तोरण दुर्ग से कुछ समय पहले ही महाराज ने रोहिदेश्वर दुर्ग कूटनीति से प्राप्त किया था। इसके पश्चात उन्होने लगातार अपनी शक्ति एवं युध्द कौशल का परिचय दिया है।
सन् 1647 तक महाराज ने चाकन से लेकर नीरा तक के बड़े से भू-भाग को अपने अधिकार मे कर लिया था। इन सभी जीत से उनका मनोबल काफी बढ़ गया था जिससे अपनी बढ़ी सैनिक शक्ति के साथ शिवाजी महाराज ने मैदानी क्षेत्रों कों भी जीतने की इच्छा व्यक्त की।
शिवाजी महाराज ने अपने इस इच्छा को पूरा करने एवं स्वराज के विस्तार के लिये अश्वरोहि सेना का गठन किया और कोंकण के विरुद्ध आबाजी सोन्देर के नेतृत्व में एक सेना भेज दिया।
शिवाजी महाराज के उम्मीद से भी बढ़कर आबाजी ने कोंकण के साथ ही नौ अन्य दुर्गो पर मराठों का अधिकार करने मे सफलता प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त रायटी मोस्माला और ताला के दुर्ग भी शिवाजी के अधीन आ गए।
युध्छ के दौरान जो संपत्ति लूट मे प्राप्त हुई थी रायगढ़ में सुरक्षित रखी गई। कल्याण के गवर्नर को मुक्त कर शिवाजी महाराज ने कोलाबा की ओर रुख किया और यहां के प्रमुखों को विदेशियों के खिलाफ़ युद्ध के लिए उकसाया।
शिवाजी महाराज ने अनेक दुर्ग जिते थे। जब मिर्जाराजा जयसिंह से संधि के पश्चात बिजापुर के क्षेत्रों पर हमला ना करने की शर्त रखी जिसका महाराज ने पालन किया परंतु वह शांत बैठने वालों मे से नहीं थे उन्होने अपने शक्ति का विस्तार दक्षिण-पष्चिम भू-भाग पर करनी चाही इस क्रम में जावली क्षेत्र का राज्य बाधा बन रहा था।
यह राज्य सातारा के उत्तर पश्चिम में कृष्णा और वामा नदी के बीच में था। यहाँ का राजा चन्द्रराव मोरे था जिसने ये जागीर मिर्जाराजा जयसिंह के द्वारा शिवाजी से संधि के पश्चात षिवाजी से ही प्राप्त की थी।
शिवाजी ने मोरे शासक चन्द्रराव को स्वराज में शामिल होने का प्रस्ताव भेजा पर चन्द्रराव ने इस प्रस्ताव को ठुकरातेे हुये स्वयं बीजापुर के आदिलशाह के साथ मिल गया। इस घटना के बाद 1656 में शिवाजी ने मौका पाते ही अपनी सेना लेकर जावली पर आक्रमण कर दिया।
इस दौरान चन्द्रराव मोरे अपने दो पुत्रों के साथ शिवाजी के साथ युध्द किया परंतु उनकी हार हुई जिसके बाद उनके दोनो पुत्रों को बन्दी बना लिया गया। चन्द्रराव युध्द मे स्वयं को हारता देख कर भाग खड़ा हुआ। इसका स्थानीय लोगों ने विरोध किया परंतु महाराज ने विद्रोह को शांत करने मे सफल रहे।
शिवाजी को इस जित से मोरो के वंषजों द्वारा संग्रहित अपार सम्पत्ति मिल गई जिसका उन्होने स्वराज के अपने अभियान मे उपयोग किय। इसके इतिरिक्त कई मावले सैनिक जैसे मुरारबाजी देशपांडे भी शिवाजी की सेना में सामिल हो गये जो आगे चलकर शिवाजी महाराज के लिए बहुंत ही उपयोगी सबित हुए।
1 नवम्बर सन् 1656 को बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह की लंबे समय तक बिमार रहने से मृत्यु हो गई जिसके बाद बीजापुर में अराजकता फैल गई बिजापुर का माहौल इतना खराब हो गया की कुछ भी शासकों के नियंत्रण मे नहीं था।
इस स्थिति को देखते हुए इसका लाभ उठाकर औरंगज़ेब ने बीजापुर सल्तनत पर आक्रमण कर दिया ऐसे समय मे शिवाजी और मुगल के मैत्री वार्ता समझौते के अनुसार शिवाजी को औरंगजेब का साथ देना चाहिये था।
जिसके बजाय शिवाजी ने उसपर आक्रमण कर दिया। शिवाजी महाराज की सेना ने जुन्नार पर आक्रमण करके बहुंत सा धन एवं लगभग 200 घोड़े लुट लिए, अहमदनगर मे भी लुटपाट किया और लगभग 700 घोड़े लुटे इसके साथ और भी कई दुर्गों को लुटा गया था। इससे औरगंजेब शिवाजी महाराज से नाराज था।
इस घटना का पता जब मुगल बादशाह शाहजंहा को पता चली तो उन्होने औरगंजेब को बिजापुर से समझौते करने को कहा। इसी समय एक और घटना हुई इस संधि के कुछ समय पश्चात ही शाहजंहा की तबियत अचानक खराब हो गई जीससे औरंगजेब वापस उत्तर भारत चला गया और अपने पिता को कैद कर स्वयं शहशाह बन गया।
1659 महाराज के लिए बहुंत महत्वपूर्ण साबित हुआ 5 सितबंर 1659 को शिवाजी के पुत्र संभाजी का जन्म हुआ। बिजापुर के सुल्तान को जब शिवाजी के बढ़ती ताकत से भय हुआ तब उन्होने अफजल खान को सैनिको के साथ महाराज के विरुध्द दक्कन भेजा शिवाजी महाराज ने 10 नवंबर 1659 को अपने कुटनीति का परिचय देते हुये अफजल खान के वार से स्वयं को बचाकर शिवाजी महाराज ने अफजल खान का बाघ नख द्वारा वध कर दिया।
आदिलशाह सल्तनत जो पहले से ही सुल्तान के स्वास्थ्य खराब होने के कारण बिखरने लगा था। वह अफजल खान के मारे जाने के पश्चात और भी कमजोर पड़ गया। इसी बात का लाभ उठाकर सन् 1659 मे ही शिवाजी महराज ने बिजापुर पर चढ़ाई कर दी और बिजापुर के सुल्तान के साथ संधि कर के एक बहुंत बड़े भू-भाग को अपने अधिकार मे कर लिया।
औरगंजेब का शहंशाह बनना
औरंगजेब जब स्वयं शहशाह बन गया तब उसे शिवाजी की बढ़ते प्रभाव से और भलिभांति परिचित होने लगा औरगंजेब एक ऐसा व्यक्ति था जीसे हमेशा डर लगा रहता था और उसे किसी पर भी जल्दी विस्वास नही होता, वह अपने लोगों पर भी शक करता था।
ऐसी स्थिति मे उसने शिवाजी पर नजर रखने एवं लगाम लगाने के उद्देश्य से किसी और को ना भेजकर अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण क्षेत्र का सूबेदार नियुक्त कर दिया। शाइस्का खाँ एक विशाल सेना जिसकी संख्या लगभग 1,50,000 फौज की थी लेकर चाकन और सूपन के दुर्गों पर अधिकार कर पूना के पास पहुंच गया था।
उसने तीन सालों तक मावल के क्षेत्रो में लुटपात मचाई थी। शिवाजी महाराज उसके इस कृत्य से बहुंत दुखी थे और मौके की तलाश मे थे। एक रात उन्हे मौका मिला और वे अपने 350 मावलो सैनिकों के साथ रात के अंधेरे मे जोरदार हमला किया इस हमले से शाइस्ता बच गया और उसकी उगंली कट गई परंतु किसी तरह स्वयं को खिड़की के रास्ते जान बचाकर भागने मे सफल रहा।
शाइस्ता खाँ के दोनो बेटे अबुल एवं फतह तथा उनके अगंरक्षक और बहंुत से सैनिकों को मार डाला गया। यहां पर शिवाजी महाराज के साथ एक घटना घटी मराठों ने अंधेरे मे ये जान पाने मे असमर्थ थे की वहां स्त्री भी बड़ी संख्या मे थी।
परिणाम स्वरुप उन्होने अंधेरे मे सबको मार डाला जिसका उन्हे बहंुत पछतावा हुआ था। इस घटना का पता जब औरगंजेब को हुआ तो उसने दक्कन के सुबेदार को बदल दिया।
इस बिच शिवाजी महाराज ऐसे समय का इंतजार करने लगे जिससे मुगलों द्वारा मावले क्षेत्र मे लुटे गये सम्पत्ति का बदला लिया जा सके जब शाइस्ता खां को महाराज ने हराया था, तब उस समय शिवाजी को मौका मिला सूरत को लूटकर अपने क्षेत्र से लुटे हुये धन की भरपाई करने का।
शिवाजी का सूरत पर हमला
दक्कन के जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में अत्यंत वृद्धि हुई थी। 3 साल तक शाईस्ता खान ने अपनी बड़ी सी फ़ौज के बल पर शिवाजी महाराज का पुरा मावल क्षेत्र जलाकर नष्ट कर दिया था। इस लिए इस मौके का फायदा उठाते हुये हर्जाना वसूल करने के लिए शिवाजी ने मुगल क्षेत्रों में भी लूटपाट मचाना आरम्भ किया।
वहीं अगर सूरत की बात करें तो उस समय यह पश्चिम से आने वाले व्यापारियों का गढ़ हुआ करता था। इसके साथ ही मुसलमानों के लिए हज जाने का रास्ता भी था। यह एक प्रकार से अत्यधिक समृद्ध शहर था।
शिवाजी ने चार हजार की सेना लेकर सन् 1664 में छः दिनों तक सूरत के व्यापारियों एवं धनवान लोगों को खूब लूटा। इसमे आम आदमी को उन्होनें किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाया और लौट गए।
शिवाजी और मुगलों के बिच संधि
इस घटना के बारे मे डच तथा पष्चिमी देषों ने अपने लेखों में लिखा है। सूरत में शिवाजी की लूट से झल्लाकर औरंगजेब ने इनायत खाँ के स्थान पर गयासुद्दीन को सूरत का फौजदार नियुक्त कर दिया।
इसके साथ उसने और भी कई परिवर्तन किये और राजा जयसिंह ने इस लुट का बदला लेने के उद्येस्य से बीजापुर के सुल्तान, यूरोपीय व्यापारियों एवं कुछ छोटे सामंतों के सहयोग से शिवाजी महाराज के क्षे़त्रों पर आक्रमण कर दिया।
इस युद्ध मे शिवाजी को बहुंत अधिक हानि होने लगी थी और हार की सम्भावना भी प्रबल थी ऐसी स्थिति को देखते हुए शिवाजी के पास सन्धि के अलावा और कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा था इसके पश्चात शिवाजी ने समय को देखते हुये राजा जयसिंह को संधि प्रस्ताव भेजा।
जून माह सन् 1665 में यह सन्धि हुई जिसके मुताबिक शिवाजी महाराज को अपनी 23 दुर्ग मुग़लों को देना होगा जिससे उनके पास केवल 12 दुर्ग बचेगें। इन 23 दुर्गों से लगभग 4 लाख पण सालाना थी।
इसी प्रकार से कोंकण और बालाघाट के क्षेत्र शिवाजी महाराज को मिलेंगे परंतु इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख पण मुगलों को अदा करने होंगे।
इसके अतिरिक्त 5 लाख पण प्रतिवर्ष का राजस्व भी देना होगा। और यह भी शर्त रखी गई की भले ही शिवाजी महाराज मुगल दरबार मे सेवा नहीं देगें परंतु महाराज के पुत्र संभाजी को उनके दरबार मे सेवा देनी होगी तथा बीजापुर के खिलाफ़ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे।
शिवाजी को आगरा बुलाना
संधि होने के कुछ समय पश्चात शिवाजी महाराज को औरंगजेब द्वारा आगरा बुलाया गया जहंा महाराज को लगा की उन्हें उचित सम्मान नहीं दिया गया।
जिसका उन्होंने भरे दरबार मे अपना रोश निकाला तथा औरंगजेब पर विश्वासघात करने का भी आरोप लगाया। औरंगजेब को अपने ही दरबार मे शिवाजी महाराज के किये गये इस कृत्य से बहुंत बुरा लगा जिससे उसने शिवाजी को कैद कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिये यह सैनिकों कि संख्या की जानकारी कहीं-कहीं 500 बताई गई है।
औरंगजेब कुछ ही दिनों बाद शिवाजी महाराज को मार डालने की इच्छा थी। परंतु उन्होने अपनी चतुराई से अपने पुत्र सम्भाजी के साथ 17 अगस्त 1666 को भागने में सफल रहे।
महाराज ने सम्भाजी को मथुरा स्थित एक विष्वास पात्र ब्राह्मण के यहाँ छोड़ दिया और स्वयं बनारस के रास्ते पुरी होते हुए सही सलामत राजगढ़ पहुँच गए। इससे मराठों को एक नया जीवन मिला।
शिवाजी के कैद से भाग जाने पर औरंगजेब ने राजा जयसिंह पर शक किया और उन्हे जहर देकर मार दिया। औरंगजेब के कहने पर उप सेनापति जसवंत सिंह के द्वारा संधि का प्रस्ताव देने पर 1668 में शिवाजी महाराज ने मुगलों के साथ दूसरी बार संधि किया।
इस संधि के अनुसार औरंगजेब ने शिवाजी महाराज को राजा की मान्यता दे दी। शिवाजी के पुत्र शंभाजी को 5000 की मनसबदारी मिली तथा शिवाजी महाराज को, सूपा, चाकन और पूना का जिला वापस लौटा दिया गया। परंतु मुग़लों ने सिंहगढ़ और पुरन्दर को अपने अधिकार क्षेत्र मे रखा।
शिवाजी का सूरत पर दूसरा हमला
इसके पश्चात एक बार फिर शिवाजी ने 1670 मे सूरत शहर को दूसरी बार लूटा। तब सूरत से 132 लाख की सम्पत्ति शिवाजी को मिली तभी सुरत को लुटकर लौटते समय उन्होंने मुगल सेना को सूरत के पास एक बार पुनः हराया।
दुसरी बार जब सुरत को महाराज ने लुटा तब औरगंजेब चाह कर भी कुछ विशेष नहीं कर पाया क्योंकि उसे शिवाजी महाराज के शक्ति का भलिभांती पता चल गया था। परिणामतः तीन-चार सालों तक छोटे मोटे घटनायें होती रही इस समय शिवाजी महाराज ने 1674 तक फिर से उन सारे क्षेत्रों को वापस अपने अधिकार मे मिला लिया था। जिन्हे राजा जयसिंह के साथ पुरन्दर के संधि के कारण गवंा दिया गया था।
शिवाजी का राज्याभिशेक एवं ब्राम्हणों को निमंत्रण
जब महाराज के द्वारा महाराष्ट्र के पश्चिमी क्षेत्रों को अपने अधिन कर लिया और स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र बना दिया इसके पश्चात शिवाजी ने अपना राज्याभिशेक करने कि इच्छा हुई।
इस बात का पता जब मुगलों को चला तो उन्होने ब्राहमणों को धमकी दी और ये खबर फैला दिया कि जो भी ब्राम्हण शिवाजी का राज्याभिषेक करने का प्रयास करेगा उसकी पुरे परिवार की निर्मम हत्या कर दिया जायेगा।
ये बात जब शिवाजी महाराज तक पहुंची की मुगल सरदारों द्वारा ब्राम्हणों को ऐसी धमकी दी जा रही है। इस बात को महाराज एक बड़ी चुनौती की तरह लिया और उन्होने ये प्रण लिया की वे उसी ब्राह्मण से राज्याभिशेक करायेंगे जो मुगल शासक के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
शिवाजी के अपने एक सेवक बालाजी को इस कार्य को पूर्ण करने का जिम्मा सौंपा बालाजी ने कांशी में तीन दूत भेजे। इसका कारण यह था कि काशी उस समय मुगल साम्राज्य के अतंर्गत आता था।
जब शिवाजी के दूतों द्वारा यह संदेश काशी के ब्राह्मणों को दिया गया तो वे बहंुत प्रसन्न हुये, परंतु इसी गुप्तचर के माध्यम से मुगल सैनिकों को इस बात की जानकारी मिल गई। तब मुगल सैनिकों द्वारा ब्राह्मणों को पकड लिया गया।
जैसे ही ब्राम्हणों को पकड़ा गया उन्होने अपने चतुराई से सैनिकों को अपनी बांतो से विष्वास दिलाया की वे किसी शिवाजी को नहीं जानते ना तो उनके कुल का पता है।
इस प्रकार उन्होने शिवाजी महाराज के बारे मे कुछ बुरा-भला कहा जिससे सैनिकों को ब्राम्हणो के उपर विष्वास हो गया और वे स्वयं को कहीं अन्यत्र तीर्थ यात्रा पर जाने का बहाना बना कर इस प्रकार से वे निकल गये।
मुगल सैनिक ब्राह्मणांे की बातों को सुनकर खुश हो गये जिसके बाद उन्हे छोड दिया परंतु जो दूत आया था उसे पकड़ कर सैनिक बादषाह के पास भेजने की तैयारी कर रहे थे परंतु उन्होने पहले ही भागने की योजना बना रखी थी इस प्रकार वह भी उनके कब्जे से भागने मे कामयाब रहे।
जब दूत वापस आकर ये बात बालाजी एवं महाराज के समक्ष बताई तो उन्हे बड़ी पिड़ा पहुंची की कांशी के ब्राम्हण उनके बारे मे ऐसा कह रहें है।
परंतु इस बात का अदांजा शिवाजी महाराज को भी नहीं था की वह सभी बांते केवल मुगल सैनिकों से बचने की युक्ति मात्र थी इस बात का पता तब चला जब कुछ ही दिनों बाद वही ब्राह्मण अपने अन्य ब्राम्हण सहयोगियों के साथ शिवाजी महाराज के रायगढ पहुचें महाराज ने उनका स्वागत किया और उन्हे इस बात के लिए धन्यवाद किया कि इतनी विपत्ती के बाद भी वे ब्राम्हण अपनी जान की परवाह किये बिना उनका राज्याभिशेक करने के लिये रायगढ़ आये बड़े धुमधाम से महाराज का राज्याभिशेक हुआ।
जब मुगल शिवाजी को नही रोक पाये तो उन्होने कुछ अन्य योजना बनाना प्रारभं कर दिया जिसमे भी उन्हे सफलता नहीं मिली। इसी समय शिवाजी महाराज ने अष्टप्रधान की स्थापना भी की जिसके बारे मे हम आज भी अपने इतिहास के किताबों मे पढ़ते हैं। इस राज्याभिशेक मे विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इसमें आमंत्रण भेजा गया था।
इस समय एक दूखद घटना घटी जैसे ही महाराज का राज्याभिशेक हुआ उसके 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। जिसके कारण शिवाजी महाराज ने 4 अक्टूबर सन् 1674 को दूसरी बार शिवाजी महाराज ने राज्याभिशेक कराया और छत्रपति की उपाधि ग्रहण की। जिसके बाद उनका नाम छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम से जाना जाने लगा।
कहीं-कहीं पे बताया गया है कि इस दौरान लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इसी राज्याभिशेक में महाराज ने हिन्दवी स्वराज का उदघोष भी किया।
यदि दक्षिण मे हिन्दू साम्राज्य की बात करें तो विशाल ख्याति प्राप्त विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद यह पहला हिन्दू साम्राज्य था जिसपर कोई हिन्दू गौरवान्वित महसूस कर सकता था। राज्याभिशेक के बाद महाराज ने अन्य शासकों की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलाया।
इसके बाद मराठा साम्राज्य को कमजोर आंकने की गलती कर बीजापुर के शासक ने कोंकण पर विजय प्राप्त करने के उद्येश्य से शिवाजी के विरुद्ध सेना भेजी परंतु शिवाजी महाराज ने उन्हे आसानी से हरा दिया।
शिवाजी का दक्षिण विजय अभियान
जब बिजापुर सल्तनत व मुगल से मराठा साम्राज्य ने स्वयं को इतना मजबूत कर लिया की ये सल्तनत भी मराठा साम्राज्य पर आक्रमण करने के लिए डरने लगे ऐसी स्थिति मे शिवाजी महाराज ने दक्षिण के क्षे़त्रों को विजय करने के उद्येश्य से बेलगांव, धारवाड़ क्षेत्र, मैसूर, त्रिचूर जैसे कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया। जिससे शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य को टठस्थ करने मे सफल रहे।
शिवाजी महाराज की मृत्यु और मराठा साम्राज्य
जब शिवाजी ने जिंजी पर आक्रमण कर विजय प्राप्त किया उसके पश्चात अचानक से 3 अप्रैल सन् 1680 को शिवाजी महाराज की मृत्यु हो गई। महाराज की मृत्यु छल पूर्वक विश देने के कारण माना जाता है।
इस प्रकार एक महान हिन्दू हृदय सम्राट क्षत्रपति शिवाजी महाराज का निधन मराठा साम्राज्य मे मानो प्रलय आ गई हो। उस क्षेत्र की आम जनता जो मराठो के अधिन था तथा उस क्षेत्र के गैर मुस्लिम जो भले ही मराठो के क्षेत्र मे न आते हों परंतु शिवाजी महाराज के विरता एवं अदम्य साहस के कारण उन्हे अपना नायक मानते थे उन पर दूःख का पहाड़ टूट पड़ा।
परंतु मराठो ने समय को भांपते हुये मराठा साम्राज्य को बिखरने से बचाने के लिए दूःख के इस घड़ी मे भी अपने साहस का परिचय देते हुये शिवाजी महाराज के उत्तराधिकार के रुप मे उनके ज्येष्ठ पुत्र संभाजी को अपना अगला राजा घोषित कर दिया।
जब संभाजी महाराज बने तब उनके छोटे भाई राजाराम की उम्र मात्र 10 वर्ष थी अतः मराठों ने शंभाजी को स्वेच्छा से राजा मान लिया था। जैसे ही शिवाजी महाराज की मृत्यु की सूचना औरगंजेब को मिली उसकी प्रसन्नता का ठिकाना ना रहा उसे ऐसा प्रतित हुआ मानो अब पुरे भारत वर्ष मे उसे चुनौती देने वाला कोई नहीं है।
औरगंजेब का दक्षिण भारत अभियान और उसका अंत
पूरे भारत वर्ष पर राज करने कि इच्छा से इस स्थिति का लाभ उठाने के उद्येश्य से औरंगजेब अपनी 5,00,000 की विशाल सेना लेकर दक्षिण भारत को जीतने के लिये निकल पड़ा।
जैसे औरंगजेब ने दक्षिण भारत मे कदम रखा सबसे महले बिजापुर सल्तनत को महज दो दिनो मे तथा गोलकुण्डा क्षेत्र के कुतुबशाही रियासत को एक ही दिन में समाप्त कर दिया।
परंतु जब बात मराठा क्षेत्र की आई तो सम्भाजी महाराज के नेतृत्व में मराठों ने लगभग 8 सालों के लंबे समय तक युद्ध करते हुये अपनी स्वतन्त्रता बनाई रखी थी। इसी समय औरंगजेब के पुत्र शहजादा अकबर ने जब औरंगजेब के खिलाफ विद्रोह किया तब संभाजी महाराज ने उसे अपने यहां शरण दे दिया।
इस बात से क्रोध से भरे औरंगजेब ने अपनी पुरी शक्ति से संभाजी के विरुध्द युध्द करना प्रारंभ कर दिया। इसी दौरान सन् 1689 में संभाजी के साले (बीवी का भाई) अर्थात गणोजी के विश्वासघात करने से संभाजी को मुकरव खाँ द्वारा बन्दी बनाने मे सफलता मिल गई।
जब संभाजी महाराज को पकड़ लिया गया था, उस समय औरंगजेब ने संभाजी महाराज से बदसलूकी करते हुये अत्यंत निर्ममता पूर्वक उन्हे मार डाला।
अपने राजा संभाजी महाराज के औरंगजेब द्वारा ऐसी बदसलूूूकी कर निर्मम हत्या देखकर पूरा मराठा साम्राज्य क्रोध के अगांरो से इस प्रकार जल उठा मानो वह औरंगजेब की उस विशाल सेना का समूल नाश कर देगी।
संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद उसके छोटे भाई राजाराम को राजा बनाया गया और उनके नेतृत्व में मराठो ने अपनी पुरी ताकत से संघर्ष जारी रखा। इस समय तक इतने विषाल सेना होने के बाद भी औरंगजेब मराठों के क्षेत्रों को पूर्ण रुप से कभी नही जीत पाये और ना ही कभी भी चैन की निंद ले पाया इसका एक कारण यह भी था की मराठो को अपनी मतृभूमि के हर क्षेत्र का ज्ञान था।
जब औरंगजेब मराठो के एक स्थान को अपने अधिकार मे करता तो मराठे दूसरी दिशा से हमला कर उस क्षेत्र को अपने अधिन कर लेते और अपार जन-धन की हानि पहंुचाते थे। यह सिलसिला वर्षों तक चला। जिससे मराठो ने औरंगजेब को इस तरह से तोड़ दिया था की वह शिवाजी महाराज के मृत्यु होने के बाद जब दक्षिण भारत विजय करने निकला था।
उसके पश्चात अपने जीवन काल मे कभी भी उत्तर भारत वापस नही जा पाया। जब सन् 1700 में राजाराम महाराज की मृत्यु हुई। उसके पश्चात राजाराम महाराज की पत्नी ताराबाई ने अपने 4 वर्ष के पुत्र शिवाजी द्वितीय के संरक्षिका के रुप मे मराठा साम्राज्य का बागडोर अपने हाथों मे लिया।
इसी समय आखिरकार 25 साल के मराठांे से लंबे संघर्ष के पश्चात अपनी अधुरी इच्छा के साथ मराठा स्वराज्य से युद्ध लड़ते हुये पुरी तरह से टूट चुके औरंगजेब की बिमारी से मृत्यु हो गई।
शिवाजी महाराज से संबंधित प्रश्न जो लोग पूछते हैं
शिवाजी महाराज अगर प्राचिनतम भारत को छोड़ दिया जाये तो आधुनिक भारत मे सबसे कुशल यदि कोई हिन्दू शासक हुआ तो वह महान मराठा शासक शिवाजी थे यहीं है जिन्होने प्राचिन भारत के चोल शासकों के बाद आधुनिक भारत मे सबसे पहले नौसेना के महत्व को समझा और इस पर कार्य किया। इन्हे भारतीय नौसेना के जनक के रुप मे भी जाना जाता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज अपने पिता शाहजी एवं माता जीजाबाई के दूरसे पूत्र थे। उनका जन्म शिवनेरी दुर्ग मे हुआ था। वे अपने माता पिता के स्वराज के सपने को पूरा करने के लिए एवं पूरे भारत वर्ष को एकछत्र मे लाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। अपने जीवन काल मे बिजापुर सल्तनत और मुगलों से संघर्ष करते हुये सन् 1674 मे मराठा सम्राज्य (स्वराज) की स्थापना किया।
शिवाजी महाराज बाल्यकाल से ही एक वीर साहसी और माता पिता की आज्ञा को मानने वाले बालक थे। उन्हे अपने मतृभूमि से बहुंत प्रेम था। आगे चलकर वे एक कुषल प्रशासक बने, उनमे गजब की कूटनीति एवं संगठन बनाने की काबिलियत थी। उन्हे लोगों को जोड़ना आता था। वे जितने मित्रों के लिए मित्र थे उतने ही शत्रु के लिए घातक भी थे। सिमित सेना होते हुये भी एक समय के बाद उन्होने अपनी ऐसी छवि बनाई थी की बड़े से बड़े शासक भी उन्हे सिधे चुनौती देने से घबराते थे।
शिवाजी महाराज और मुगल सेनापति नासिर खान के बिच 1657 मे जुन्नर के किले पर युध्द हुआ था। नासिर खान मुगल क्षेत्रों पर वापस कब्जा करने गई थी। उनकी सेना मराठो की सेना से बहुंत बड़ी थी छत्रपति शिवाजी के नेतृत्व मे गोरिल्ला युध्द नीति से मुगलों को बहंुत नुकसान पहुंचाया गया परंतु उनकी सेना इतनी बड़ी थी की उन्हे पूरी तरह हरा पाना संभव नहीं हो पा रहा था। जिसके कारण महाराज को पिछे हटना पड़ा। इस प्रकार उन्हे युध्द मे हार का सामना करना पड़ा था। इस हार के बाद मराठों ने बदला लेने के लिए लगातार मुगलों पर आक्रमण करना आरंभ कर दिया जिससे मुगलों को अपने बहुंत से क्षेत्रों को गवाने पड़े।
शिवाजी महाराज ने उस समय प्रशासनिक ज्ञान प्राप्त किया था। इसके अतिरिक्त युध्द कौशल, समय के अनुकुल जैसे शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया था।
शिवाजी महाराज ने वैसे तो बहुंत से दुर्गों का निर्माण किया था परंतु यह निर्माण पहले से उपस्थित दुर्गों मे कुछ परिवर्तन मात्र था। महाराज ने पूर्ण रुप से यदि नया दुर्ग का निर्माण किया था तो वह सिंधुदुर्ग एवं प्रतापगढ़ था जिसे समुद्र तट के सुरक्षा के लिए महाराज की दूरगामी सोंच के कारण निर्माण किया गया था।
शिवाजी महाराज ने अपना पहला किला तोरण को बनाया जिसे प्रचंड गढ़ किला के नाम से भी जानते हंै। यह किला पुणे के पास एक बड़ा किला था जिसके कारण इसे महाराज ने अपने अधिन किया था। कहा जाता है कि शिवाजी ने सबसे पहले 1646 मे इसी किले को अपने 16 साल के उम्र मे जीता था। परंतु कुछ जानकारो का मानना है कि तोरण दुर्ग से कुछ समय पहले ही महाराज ने रोहिदेष्वर दुर्ग को जीता था। चूंकि यह दूर्ग जादा विशेष महत्व का नही होने एवं तोरण दूर्ग से तुलना करें तो बहुंत ही छोटा है जिसके कारण इतिहासकारों के द्वारा इसे प्राथमिकता नहीं दी गई है। और इस प्रकार तोरण किला को शिवाजी द्वारा जिते गये दुर्गों मे सबसे पहला नाम आता है।
शिवाजी महाराज ने कितने किले बनवाये हैं यह ठीक-ठीक बता पाना मुस्किल है। क्योंकि इसकी कोई सटिक जानकारी नहीं मिलती इसका कारण यह है कि महाराज द्वारा किले तो जिते जाते परंतु समय के साथ उसमे अधिकार बदलते रहते थे। परंतु कुछ जानकारों के अनुसार जब शिवाजी महाराज ने मराठा साम्राज्य की निव रखी उस समय उनके नियंत्रण मे उनके अधिन 250 से भी अधिक किले थे। जिनका या तो उन्होने पूर्ण निर्माण किया था अथवा पहले से उपस्थित दुर्गों मे सुरक्षात्मक दृष्टी से कुछ परिवर्तन किया गया था।
शिवाजी महाराज एक हिन्दू शासक थे जिसके कारण उनकी बहुंत से देवी-देवताओं मे आस्था थी जैसे मां दुर्गा, शिव जी, गणपति इत्यादि............। परंतु यदि मुख्य रुप से देखा जाये तो वे भवानी माता अथवा तुलजा भवानी को मानते थे, जो कि मां दुर्गा का ही स्वरुप है। जब भी वे कहीं आक्रमण करते थे तो इन्ही के जयकारों से अपना उदघोस करते थे।
प्राचिनतम भारत के बाद आधुनिक भारत मे सबसे कुषल हिन्दू शासक एवं इसके साथ महान मराठा शासक शिवाजी ही थे। यहीं है जिन्होने प्राचिन भारत के चोल शासकों के बाद आधुनिक भारत मे सबसे पहले नौसेना के महत्व को समझते हुये इस पर कार्य किया। इनमे कूटनीति एवं रणनीति बनाने की विलक्षण प्रतिभा थी। इन्होने अपने मतृभूमि के लिये अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया इसी लिये ये महान हैं।
शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य के राजा थे। इन्होने मुगल और बिजापुर सल्तनत से लंबे संघर्ष के बाद सन् 1674 को रायगढ़ के किले मे अपना राज्याभिशेक कराया एवं स्वयं को स्वतंत्र षासक घोषित किया था।
शिवाजी महाराज के आठ बार शादी राजनीतिक कारणों से किया गया था। इनकी सभी पत्नियां मराठा सरदारों के घरों से ताल्लुक रखती थीं। जिससे विवाह के फलस्वरुप शिवाजी महाराज को इन्हे एक सुत्र मे बांधने मे सफलता मिली। इस प्रकार के वैवाहिक संबंध स्थापित करने से शिवाजी महाराज की सैनिक शक्ति मे वृध्दि के साथ-साथ इनके बिच आपसी भरोसे की एक डोर बन गई जिससे महाराज के स्वराज्य अभियान को बल मिला।
शिवाजी महाराज के सूरत को लूटने का मुख्य कारण मुगल एवं बिजापुर सल्तनत थे। जब महाराज को मुगलों की शर्तें माननी पड़ी ऐसी स्थिति मे उनके द्वारा बहंुत से दुर्गों को अपने नियंत्रण मे लेने के साथ बहुंत सा धन भी मराठों से वसूला गया जिससे उनको आर्थिक रुप से कमजोर किया जा सके। इसी लिए महाराज ने स्वराज अभियान को आर्थिक रुप से मजबूत करने के लिये सूरत को लूटा था।
शिवाजी महाराज का पुरा नाम छत्रपति शिवाजी भोंसले था। जिन्हे बचपन मे शिवाजीराजे के नाम से भी जाना जाता था।
शिवाजी महाराज के पास बहंुत से तलवार थे। उनमे से वे दो तलवार अधिक उपयोग मे लाते थे। उनमे से एक का नाम उन्होने भवानी एवं दूसरे का नाम तुलजा रखा था। इसके अतिरिक्त उनके पास तीसरी और तलवार थी जिसे जगदंबा कहा जाता था। वर्तमान समय मे उनकी तीसरी तलवार इंग्लैण्ड के म्युजियम मे रखा है।
शिवाजी महाराज के समय कई धार्मिक संत प्रसिध्द थे। शिवाजी महाराज जिनसे सबसे अधिक प्रभावित थे वे रामदास स्वामी थे। इन्ही को शिवाजी महाराज के प्रथम आध्यात्मिक गुरु माना जाता है।
शिवाजी के यदि जीतने वाले पहले किले की बात करें तो इसमे सबसे पहले तोरण किला का नाम आता है। जिसे उन्होंने महज 16 वर्ष के उम्र मे जिता था। पंरतु कुछ जानकारों का मानना है कि इससे पूर्व उन्होने रोहिदेष्वर दूर्ग को जिता था। जो अधिक महत्वपूर्ण ना होने के कारण इतिहासकारों ने इसे प्राथमिकता नहीं दिया है।
शिवाजी महाराज के किलों मे यदि सबसे बड़ा किला देखें तो क्षेत्रफल के दृष्टि से प्रतापगढ़ का किला सबसे बड़ा था।
महाराष्ट्र मे किलों कि बात करें तो इसका सही-सही अनुमान नही लगाया जा सकता क्योंकि कुछ किले भले ही इतिहास के पन्नों मे है परंतु वर्तमान अस्तित्व मे नहीं हैं। वहीं कई किले ऐसे हैं जो वर्तमान मे किसी दूसरे राज्य मे आते हैं। परंतु कुछ जानकारों के अनुसार महाराष्ट्र मे किलों की संख्या 300 से भी अधिक हो सकती है।
शिवाजी महाराज ने तोरण का किला 1646 मे अपने 16 वर्ष के उम्र मे जिता था।
शिवाजी महाराज का नारा- जय भवानी जय शिवाजी था।
शिवाजी महाराज के पत्नियों से कुल छः बेटियां थी। जिनका नाम अंबिकाबाई, रानूबाई, राजकुंवरबाई, दीपाबाई, सखुबाई, कमलाबाई थीं।
शिवाजी महाराज के दो बेटे थे पहला संभाजी भोंसले एवं दूसरा राजाराम थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 1630 मे एवं मृत्यु 1680 मे हुआ था। इसके अनुसार उनकी उम्र लगभग 50-51 मानी जा सकती है।
शिवाजी महाराज की शक्ति की बात करें तो शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य के नीव रखने वाले महान योध्दा एवं राजा थे। जिनकी शक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इन्होने अपनी सैन्य और असमान्य युध्द नीति से एक विशाल मराठा साम्राज्य जिसे स्वराज कहा जाता है का निर्माण कर लिया था।शिवाजी महाराज का महत्व क्या है?
शिवाजी महाराज का इतिहास क्या है?
शिवाजी के व्यक्तित्व का क्या विशेषता थी?
छत्रपति शिवजी महाराज को किसने हराया था?
शिवाजी ने कौन सा शिक्षा प्राप्त किया था?
शिवाजी महाराज ने किसका निर्माण किया था?
शिवाजी महाराज ने अपना पहला किला कहां बनवाया था?
शिवाजी महाराज ने कितने किले बनवाये थे?
शिवाजी किस भगवान की पूजा करते थे?
शिवाजी महान क्यों हैं?
शिवाजी कहां के राजा थे?
शिवाजी महाराज ने आठ बार शादी क्यो की?
शिवाजी महाराज ने सूरत को क्यों लूटा?
शिवाजी महाराज का पुरा नाम क्या था?
शिवाजी महाराज के तलवार का क्या नाम था?
शिवाजी के पहले गुरु कौन थे?
शिवाजी ने पहला किला कौन सा जीता था?
शिवाजी महाराज का सबसे बड़ा किला कौन था?
महाराष्ट्र मे कितने किले हैं?
शिवाजी महाराज ने तोरण का किला कब जीता था?
शिवाजी का नारा क्या था?
शिवाजी महाराज की कितनी बेटि थी?
शिवाजी महाराज के कितने बेटे थे?
शिवाजी महाराज की उम्र कितनी थी?
शिवाजी महाराज कितने शक्तिशाली थे?