अगर हम इनकी बात करें तो शैलजा पाइक भारतीय मूल की –अमेरिकी प्रोफेसर है। हाल ही में मैकआर्थर फाउंडेशन द्वारा भारतीय अमेरिकी प्रोफेसर शैलजा पाइक को $800000 (6.7 करोड़) का जीनियस ग्रांट दलित महिलाओं के बारे में रिसर्च और लेखन के लिए मिला है|
शैलजा पाइक $800000की प्रतिष्ठित जीनियस ग्रांट (मेक आर्थर फैलोशिप) पाने वाली पहली भारतीय दलित महिला बन गई है| मैकआर्थर फेलोशिप को ‘जीनियस’ ग्रांट के तौर पर भी जाना जाता है।
इसे हर साल शिक्षा, विज्ञान, कला और समाज सुधार जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लोगों को दिया जाता है। फाउंडेशन ऐसे लोगों को ग्रांट देकर उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है
शैलजा पाइक वर्तमान में अमेरिका के सिनसिनाटी विश्वविद्यालय में इतिहास के रिसर्च प्रोफेसर हैं शैलजा को मिलने वाली है फैलोशिप आधुनिक भारत में दलित रिसर्च जेंडर और कामुकता की व्याख्या करने पर केंद्रित है।
पाइक ने अपने अध्ययन में जाति के वर्चस्व और इसका दलित महिलाओं पर पड़ने वाला प्रभाव पर प्रकाश डाला है जिसमें उन्होंने बताया कि किस प्रकार लिंग और कामुकता दलित महिलाओं के आत्म सम्मान और गरिमा को काम करती है
महाराष्ट्र में दलित महिलाओं का संघर्ष पर आधारित उनकी पहली किताब आधुनिक भारत में दलित महिलाओं की शिक्षा: दोहरा भेदभाव, 2014 में प्रकाशित हुई और उनके दूसरे किताब जाति की अश्लीलता: आधुनिक भारत में दलित, कामुकता और मानवता है जो महाराष्ट्र के तमाशा कलाकारों के बारे में बताता है जिनमें बहुत सारे दलित महिलाएं हैं|
जीवन परिचय
पाइक का जन्म महाराष्ट्र , भारत के पोहेगांव में एक मराठी भाषी दलित परिवार में हुआ था , जहाँ वह चार बेटियों में से एक थी। परिवार पुणे चला गया, जहाँ पाइक येरवडा में “एक झुग्गी बस्ती में एक कमरे के घर” में पली-बढ़ी । उसके माता-पिता और विशेष रूप से उसके पिता ने लड़कियों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।
पैक ने सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय (1994 बी.ए., 1996 एम.ए.) में अध्ययन किया और 2007 में वारविक विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की ।
भारत के एक दलित परिवार से अमेरिका तक का सफर
नेशनल पब्लिक रेडियो को दिए एक इंटरव्यू में शैलजा ने बताया कि वह दलित समुदाय से आती हैं। उनका बचपन महाराष्ट्र के पुणे शहर की झुग्गियों में बीता है। वह अपने पिता के शिक्षा को लेकर समर्पण से प्रेरित हुई हैं।
पैक ने सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय (1994 बी.ए., 1996 एम.ए.) में अध्ययन किया और 2007 में वारविक विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की ।पैक पहली बार 2005 में एमोरी विश्वविद्यालय से फेलोशिप के तहत अमेरिका आए थे ।
पैक ने पहले यूनियन कॉलेज में इतिहास के विजिटिंग असिस्टेंट प्रोफेसर (2008-2010) और येल यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशियाई इतिहास के पोस्टडॉक्टरल एसोसिएट और विजिटिंग असिस्टेंट प्रोफेसर (2012-2013) के रूप में काम किया है। पैक ने 2010 से सिनसिनाटी विश्वविद्यालय में काम किया है।