सत्यनारायण बाबा कौन हैं?

वैसे तो भारत भूमि को संतों और महात्माओं का देश माना जाता है। यहां पर संतो के चमात्कार भी देखे जाते हैं। ऐसे ही एक तपस्वी छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जिला से लगे एक छोटे से गांव कोसमनारा में है।

वर्तमान समय की और प्राचिनकाल में भी देखें तो ऐसे बहुत कम योगी होते हैं जो सभी भौतिक सुख- सुविधाओं को त्यागकर तपस्या में लीन हो जाते हैं। रायगढ़ के तपस्वी श्री श्री 108 सत्यनारायण बाबा भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं।

वे कलयुग के इस वर्तमान समय में न सिर्फ लोगों की आस्था का केंन्द्र है बल्कि अपने किए जा रहे तप से विज्ञान को भी चुनौती दे रहे हैं। शहर रायगढ़ से इस गांव कोसमनारा की दूरी 6 कि.मी. है इनके प्रति लोगों की आस्था दिनों दिन बढ़ती जा रही है।

सत्यनारायण बाबा परिचय

श्री श्री 108 सत्यनारायण बाबा जी का जन्म 12 जुलाई 1984 को रायगढ़ के कोसमनारा के पास देवरी डूमरपाली नामक गांव में हुआ था। बाबा के पिता किसान थे। बाबा की बचपन से ही रुचि अध्यात्म की तरफ थी।

इनके बचपन का नाम हलधर था, इनके पिता जी इन्हे प्यार से सत्यनारायण कहा करते थे। बाबा जी के पिता का नाम दयानिधी साहू एवं उनके माता जी का नाम हंसमती साहू है। जानकारी के अनुसार उनके पिता जी का बहंुत पहले सड़क दूर्घटना मे स्वर्गवास हो चुका है।

इस समय बाबा जी अपनी साधना प्रारंभ कर चुके थे। बाबा की माता जी बताती हैं कि उनके दो बेटे और एक बेटी है सबसे बड़ा बेटा सन्यासी बन गया है छोटा बेटा खेती किसानी कर परिवार चलाता है, बाबा के माता जी के अनुसार ये बचपन से ही भगवान शिव के भक्त थे।

शिव तपस्या में लीन होने की शुरुआत

श्री श्री 108 सत्यनारायण बाबा जी अपने गांव स्थित शिव मंदिर में 7 दिनों तक लगातार तपस्या करते रहे जिन्हे बाद में उनके घर वालों के द्वारा वापस घर लाया गया। कुछ समय पश्चात 16 फरवरी 1998 को हलधर घर से स्कूल के लिए निकले एवं अपने गांव से लगभग 18 किलोमीटर दूर कोसमनारा गांव में तप करने बैठ गए।

इसी दिन से बाबा एक पत्थर को शिवलिंग मानकर अपनी जीभ काटकर भगवान को अर्पित किया और शिव तपस्या में लीन हो गए। कुछ बुजुर्गों का कहना है कि जब लोगों ने शुरुआत में इन्हे देखा तो कुछ सरारती बच्चों के द्वारा इन्हे कंकड़- पत्थर भी मारा गया था, जैसे ही लोगों को इनके तपस्या में लीन होने का अहसास हुआ तो बाद में उन लोगों को बहुंत पछतावा भी हुआ।

इस प्रकार पूरे गांव वाले उन्हे भगवान की तरह पूजने लगे। यहीं से उनके बाबा सत्यनारायण बनने की कहानी शुरु हुई, कुछ जानकारों की माने तो इसी दौरान संभवतः उनके पिताजी की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई जिसका पता जब बाबा जी को चला तब इतने बड़े दुख के बाद भी वे अपने तपस्या में लीन रहे कहा जाता है कि उनके आंखो से आंसु निकले परंतु उन्होने तपस्या नहीं छोड़ी।

बाबा के माताजी का समर्पण

श्री श्री 108 सत्यनारायण बाबा जब तपस्या में लीन हो गए इधर घर वाले इन्हे खोज रहे थे, कुछ समय पश्चात घर वालों को पता चल गया उनकी माताजी उस समय अपने पूत्र को उस विरान मैदान में जो वर्तमान मे उनका बड़ा आश्रम बन चूका है वहां अकेले नहीं छोड़ना चाहतीं थी।

उस समय उन्होने वहां एक छोटा सा कुटिया बनाकर रहना शुरु कर दिया कुछ समय पश्चात कुछ भले लोगों के द्वारा एवं गांव वालों के सहयोग से दो कमरे का मकान बना दिया गया। इस प्रकार एक कमरे में माताजी और दूसरा कमरा भक्तों एवं अन्य किसी भी कार्य के उपयोग हेतु किया जा रहा था।

कोसमनारा में बाबा जिस दिन से बैठे हैं तब से उनकी मां यहां उनकी पूजा करती हैं और जल्द ही उनके तप के पूरे होने की ईष्वर से कामना भी करती हैं।

जब बाबाजी के भक्तों की संख्या बढ़ने लगी तो माताजी के अपने पूत्र के प्रति जो चिंता थी वह दूर हो गई क्योंकि उनके पास उनकी देखरेख करने के लिए कई भक्तजन वहां मौजूद रहने लगे इस प्रकार वे अपने गृह ग्राम में भी रहने लगीं।

उनकी माताजी बताती हैं कि हर मां की तरह वह भी चाहती थी कि उनका बेटा परिवार चलाए लेकिन सत्यनारायण बाबा तपस्वी बन गए। आज भक्तजन बाबाजी के साथ उनके माताजी का भी बहुंत आदर और सम्मान करते हैं।

राजनेताओं एवं प्रसिध्द व्यक्तियों के द्वारा बाबा जी का दर्शन

वैसे तो बाबा जी बहुंत लंबे समय तक केवल क्षेत्र में ही प्रसिध्द रहे कुछ दूरदराज के लोगों ने इनके बारे में बस सुन रखा था, परंतु रायगढ़ नाम के कारण कुछ लोगों को महाराष्ट्र स्थित रायगढ़ का अपभ्रसं होता था।

वर्तमान समय में बाबा जी छत्तीसगढ़ के साथ साथ देश एवं विदेशों में भी प्रसिध्द हैं छत्तीसगढ़ के होने वाले सभी मुख्यमंत्रियों ने इनका दर्शन किया है और समय समय पर करते रहते है, श्री विष्णुदेव साय जी तो इनके परम भक्त हैं।

कथा वाचक देवकी नंदन, अनिरुध्दाचार्य जी ने भी इनके दर्शन किए हैं। वर्तमान में इनके दर्शन के लिए देश विदेश से लोग आते हैं। कुछ जानकारों की माने तो बड़े-बड़े उद्योगपति भी इनके दर्शन करने आते हैं बहंुत से लोगों का पता इस कारण से नहीं लग पाता क्योंकि बाबा जी 12 बजे रात के बाद अपने ध्यान से आंखे खोलते हैं और भक्तों से मिलते हैं।

यहां पास में ही जिंदल की बहंुत बड़ी फैक्ट्री है जहां प्रईवेट हवाई पट्टी भी है, कभी कभार अचानक से रात को इस आश्रम के आसपास की सुरक्षा कुछ समय के लिए बढ़ा दी जाती है।

आम लोगों को कुछ जानकारी ही नहीं हो पाती है। इस प्रकार कुछ लोगों द्वारा यह अनुमान लगाया जाता है कि संभतः कोई विशेष व्यक्ति दर्शन करने आया था अथवा आने वाले हैं।

मिडिया द्वारा हठयोगी नाम का प्रचार

कई न्यूज चैनलों द्वारा बाबा जी का परिक्षण करवाया गया चूंकि बाबाजी किसी को भी अधिक टोका टाकी नहीं करते जिस कारण उनके भक्त भी न्यूज चैनलों के द्वारा अविश्वास रुपी कार्यों का विरोध नहीं करते जिससे इनके द्वारा कई बार इनका मेडिकल चेकप कराया गया जिसमें सब सामान्य पाया जाता है।

बाबा जी लंबे समय तक कुछ खाते पिते नहीं थे परंतु अब कुछ मात्रा में कभी कभार थोड़ा सा जल अथवा दूध ले लेते हैं जिसका चैनलों द्वारा विश्वास न कर पाने एवं इसपर भी संदेह कर उसकी भी पड़ताल करने की कोसीस कि गई परंतु उन्हे कुछ नहीं मिला।

इन चैनलों के द्वारा श्री श्री 108 सत्यनारायण बाबा को विज्ञान से जोड़ते हुए इन्हे हठयोगी नाम दिया है। जोकि कहीं न कहीं इनके बहंुत से भक्तों को उचित प्रतित नहीं होता है।

40 साल के बाबा लगभग 27 वर्षों से तपस्या में लीन क्या खाते हैं क्या पीते हैं, कब सोते हैं और कब जागते हैं किसी को कोई जानकारी नहीं। जानकारी है तो बस इतना की 12 बजे रात के बाद ध्यान से आंखे खोलेगें और भक्तो से मिलेंगें इसके बाद सुबह पूनः ध्यान में चले जाएगें। यह कहानी है सत्यनारायण बाबा की।

श्री श्री 108 सत्यनारायण बाबा की तपस्या

बाबाजी साल के 12 महीने एक ही स्थान पर बैठे रहते हैं चाहे ठंडी हो या गर्मी अथवा कितनी भी बरसात क्यों ना हो बाबा पर कोई असर नहीं होता है।

जब शुरुआत में लोगों ने उनसे उनके बैठे हुए स्थान के उपर छत बनवाने की आज्ञा मांगी तो भक्तों को बाबाजी ने मना कर दिया परंतु भक्त तो भक्त ही ठहरे उन्होने उनके मना करने पर छत तो नहीं बनाया परंतु उनके लिए चबुतरा बना दिया,

जैसे ही चबुतरा बना भक्तों ने उन्हे उसमें विराजमान होने के लिए विनती करने लगे अब जो स्वयं भोलेनाथ के भक्त हों वे अपने भक्तों को कैसे निराश कर सकते थे। इस प्रकार वर्तमान में जो आसन हैं हम बाबाजी को इसी में बैठे हुए दर्शन करते हैं।

सत्यनारायण बाबा के आश्रम से जुड़े लोगों के अनुसार, बाबा 24 घंटो में केवल एक बार आंख खोलते हैं। इस दौरान बाबा फल (परंतु यह स्पष्ट नहीं है) और कभी कभार थोड़ा सा दूध अथवा जल ग्रहण करते हैं। इस दौरान जितने भक्त आश्रम में मौजूद रहते हैं उनसे मिलते हैं और उनकी समस्यांए सुनते हैं।

बाबा जी अपनी बात केवल इशारों से ही करते हैं। भक्तों को उनकी समस्या का समाधन इशारों से ही बता देते हैं। परंतु वास्तविकता तो यह है कि इनके दर्शन मात्र से ही लोगों में एक अलग ही उर्जा का संचार होता है यदि किसी का काम बिगड़ रहा होता है तो इनके दर्शन से ही बहुंतो के काम बनने लगते हैं। जिसके कई उदाहरण आपको आए हुए भक्तों में ही मिल जाएगें।

कोसमनारा आश्रम

यह स्थान बाबा के साधना करने के पूर्व एक बड़ा सा मैदान हुआ करता था भले ही यह मैदान कोसमनारा गांव में आता है परंतु यह मुख्य गांव से थोड़ी सी दूरी में था।

धिरे धिरे भक्तो एवं गांव के सहयोग से दो कमरे का मकान बनाया गया बाद में सत्यनारायण बाबा जी के लिए चबुतरे का निर्माण किया गया बाद में लोगों की लगातार बढ़ रहे भिड़ को देखते हुए मिले हुए चंदो से भक्तो के ठहरने के लिए व्यवस्था, रसोई, मंदिर का निर्माण एवं अन्य सुविधाओं का निर्माण किया गया और वर्तमान समय में लगातार किया जा रहा है।

अब यहां दिन के साथ साथ रात में भी बहुंत से भक्तो का आना होता है क्योंकि बाबाजी रात में ध्यान से आंखे खोलते हैं और अपने भक्तों से भी मिलते हैं।

मंदिर प्रांगण के पिछे सत्यनारायण बाबा के द्वारा इतने वर्षों से किए जा रहे तप को दिखाने के लिए दिवाल पर सन् 1998 से लेकर अब तक की तस्वीर को लगाया गया है जिससे लोग इनके द्वारा किए जा रहे इस तप के बारे में पढ़कर जानते है और समझते हैं।

श्री श्री 108 की उपाधी

श्रध्दालुओं के अनुसार किसी व्यक्ति के द्वारा सत्यनारायण बाबा के ख्याती के बारे में सुनकर असम राज्य में स्थित कामाख्या मंदिर से जो संभवतः 108 मोनी कलाहारी बाबा हैं उनके द्वारा सत्यनारायण बाबा के दर्शन करने पहुंचे थे।

बाबा जी के द्वारा किए जा रहे इस तप से अत्यंत प्रभावित हुए और अप्रैल 2003 मे इसी स्थान पर 108 सतचंडी महायज्ञ का आयोजन किया कहा जाता है कि इसी दौरान उन्ही के द्वारा बाबा जी को श्री श्री 108 की उपाधी प्रदान किया गया।

इन्हे भी देखें

1. राम मंदिर का इतिहास
2. जगन्नाथ पुरी

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