समय का महत्व – ESSAY IN HINDI

समय-समय की बात होती है कुछ चिजों मे परिवर्तन ओ ही जाता है जो कार्य अथवा वस्तु यदि आज के समय मे उपयोगी है इसका अर्थ ये नही की भविष्य मे भी उसकी वही उपयोगिता बनी रहेगी ऐसे स्थिति में ही समय का महत्व पता चलता है, इसके कई कारण हो सकते है, उसमे से एक यह भी हो सकता है की उस वस्तु की उपयोगित भले ही क्षिण ना हुआ हो लेकिन समय के साथ लोगों का स्वभाव ऐसा नही रहा हो की समय बित जाने के बाद उसकी उपयोगिता वहीं हो। एक आदमी नौकरी से स्वैच्छिक निवृत्त लेता है और अपना समय आनंद से व्यतीत करने के लिए घर पर रहता है। परंतु कुछ दिनों के पश्चात वह अपने दैनिक जीवन से एवं क्रियाकलाप से उबने लगता है और फिर नौकरी के लिए आवेदन पत्र भेजना शुरु करता है परंतु नये समय के हिसाब से वह कहीं पर नौकरी प्राप्त नहीं कर पाता। अभी तक तो पहली नौकरी में उसने जैसे तैसे काम करके किसी भी उल्टी सीधी तरह से प्रमोषन प्राप्त किए थे। सभी जगह रिसेस के बहाने सवा घंटे कैरम खेल पाने की कोई सुविधा नहीं है। ऑफिस के समय में गपची मारकर ऑफिस के काम के बहाने अपना बाहर का काम करने की सुविधा भी नहीं है। अब वह अपनी पहली नौकरी छोड़कर निवृत्ति लेने के लिए मन ही मन पछताता है। यहां एक कहावत फिट बैठती है कि बाद पछताए होत क्या जब चिड़िया चुक गई खेत।

मैंने कहीं पर पढ़ा था कि एक कर्मचारी किसी दूसरे कर्मचारी से कह रहा था की अरे दोस्त। मैं बीस दिन की छुट्टी पर घर पर हूँ। दूसरे कर्मचारी ने छूटते ही पूछा पर तुमने तो दस दिनों की अरजी दी है सायद? इस बात पर उसके उस दोस्त ने मुस्कुराते हुए तथा थोड़ हंसते-हंसते कहा की हाँ मैने दस दिना के लिए आवेदन किया है और उसके बाद दस दिनों के लिए मेरे साहब छुट्टी पर जाएगें।

पहले कर्मचारी के इस बात को सुनकर वह चौक गया। मुझे इमर्सन के शब्दों का स्वरण हो आया। उन्होंने कहा था अब काम करने वालों के हाथों में यह संसार मिट्टी के स्वरुप में नहीं रहा अब उसे अपने मन मुताबिक आकार दे दिया जाय बल्कि लोहे के समान कठोर हो गया है जिस पर हथौड़ा मार मारकर अपना स्थान यानि आकार देना होता है।

आज अगर वर्तमान समय की बात करें तो आज बहुत से युवा को यह शिकायत रहती है या वे शिकायत करते रहते हैं कि उन्हें काम नहीं मिलता परंतु वास्तविकता तो यह है कि जो इस प्रकार की शिकायत करते हैं वे काम को गंभीरता से संभालने की वे जरा भी परवाह नहीं करते। बी.ए. करने के बाद बी.एड. की पदवी लेकर बिना किसी पूर्व तैयारी के कोर्स में लगने वाली नयी पुस्तकों के दर्षन किए बिना ही इंटरव्यू के लिए जाकर खड़े हो जाते हैं इसे उनकी लापरवाही भी कहा जा सकता है। ऐसे ही व्यक्ति जब इंटरव्यू होता है और इंटरव्यू में उत्तर न दे पाने पर जब उनका चयन नहीें हो पाता तब वे अपने मन की भड़ास निकालते हैं। परंतु इससे कौन उनके प्रति सहानुभूति रख सकता है? यदि किसी को क्लर्क बनना हो तो उसे अपने में क्लर्क की काबिलियत तैयार करनी पड़ती है और यदि अफसर बनना हो तो अफसर के अनुरुप तैयारी करनी पड़ती है।

जो मनुष्य मिले हुए अवसर को ऐसे ही खो देता है उसकी भाग्य भी आखिर कैसे सहायता कर सकता है। वास्तव में अवसर हाथी के पैरों से धीमे-धीमे चलते हुए वहां तक आते हैं और घोड़े की भांति तेज गति से भाग जाते हैं।

इकबाल ने बिलकुल ठीक कहा है नहीं कोई चीज निकम्मी, कुदरत के कारखाने में। इस दुनिया में कुछ भी बेकार नहीं है। रद्दी कागज का टुकड़ा फेंक देने वाली किसी भी धातु का टुकड़ा या पट्टी रुई या चमड़े का कोई टुकड़ा इन सबका पुनः उपयोग हो सकता है। अवसर को मुट्ठी में कैद करने वाला उसे पकड़ने के समय कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखता। अवसर को तेजी से झपटने के लिए उसके पीछे दौड़ना पड़ता है।

कहा जात है कि चार वस्तुएं जो चली जाती हैं, वे कभी भी वापिस नहीं आतीं। एक-मुँह से निकले हुए शब्द, दूसरा-छोड़ा हुआ तीर, तीसरा शरीर में से निकले हुए प्राण व चौथा-हाथ से निकल गया मौका। बहानेबाज लोगों को इस धरती पर जीने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि धरती को उनका भार ढोना पड़ रहा होता है। वास्तविकता यही है की इनके रहने या नही रहने से संसार मे कोई फर्क नहीं पड़ता है।

नई पीढ़ी को केवल आत्मकेन्द्रित बनने के स्थान पर उस समाज तथा देश व दुनिया भर का ऋण याद रखना चाहिए जिसने उसे अनेक प्रकार से उपकृत किया है। कविवर रामदरष मिश्र जी ने अपनी रचनाकृति सृजन के रंग में बहुत मार्मिक रुप मे निम्न पंक्तियां लिखी है – मैंने क्यों स्वीकार नहीं किया कि कोई मेरे लिए कपड़ा बुनता है, कोई अन्न उपजाता है, कोई कागज और कलम गढ़ता है, कोई पहाड़ चढ़ता है। ये जीवन की सच्चाई है जिसे हमे समझना आवश्यक है।

इन्हे भी देखें

1. मन की दशा
2. बोए पेड़ बबूल का आम कहां से पाये

 

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