स्वयं की सहायता – ESSAY IN HINDI

अपने कर्म के अनुरुप ईश्वर ने किसी पर भी भेद भाव नही किया है, बशर्ते की स्वयं की सहायता कैसे करें यह पता होनी चाहिए। ईश्वर ने हम सभी को अपना स्वयं का राजा बनने के लिए इस धरती पर भेजा है परंतु हम प्रमोद में भरकर अपने उज्ज्वल भविष्य को अंधकार में धकेल देते हैं। और अपने उस उद्देश्य को भुलकर ऐसे रास्तों पे चलने लगते है जिसका कोई औचित्य ही नही होता।

कहा जाता है कि बोस्टन विश्वविद्यालय का स्थापक केवल सोलह सौ मामूली सा धन लेकर प्रगति के लिए बोस्टन आया था। न तो उसे कोई काम मिलता था और न ही कोई उससे ठीक व्यवहार करता था। उसने एक परिचित से हाथ से चलाने की एक गाड़ी माँग ली। समुद्र में से तीन मील की दूरी से सीपों से लदे हुए एक जहाज से उसने बोरी भरकर सीपिएं खरीदीं और उन्हें गाड़ी में भरकर बाजार में ले गया। इस प्रकार सीपियों का व्यापार शुरु हुआ। कमाई बढ़ने लगी। इसमें से जो बचत हुई उससे उसने घोड़ा व गाड़ी खरीदी इस प्रकार उसका व्यापार खूब बढ़ गया और अंत में वह करोड़पति बन गया। ये सब हुआ उसकी अपनी स्वयं की सहायता से यदि इस परिश्रम के जगह वह हाथ पर हाथ पकड़ कर बैठ जाता तो सायद वह उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाता जिसमे वह पहुंचा है।

कुदरत जिसे भी महान बनाना चाहती है उसकी बहुंत अधिक खूब कड़ी परीक्षा लेती है। जो मनुष्य अपनी दसों उंगलियाँ की ताकत में विश्वास रखता है वह पूरे विश्व को हांक सकता है। वह अपने मस्तिष्क को ठिक प्रकार से गढ़ सकता है तथा श्रेष्ठ सृष्टा एवं जीवन शिल्पी बन सकता है। मनुष्य की वास्तविक पहचान की अगर हम बात करें तो वह तभी होती है जब वह विपरीत परिस्थितियों के सामने हिम्मत तथा साहस से डटकर खड़ा रहता है। आरामप्रिय बनना एक प्रकार से देवताओं को रास आ सकता है, मनुष्यों को नहीं। आरामदायक जीवन की आदत ने ही देवताओं से बहादुरी छीनकर इतना आषक्त बना दिया कि उन्हें पृथ्वी के राजाओं की सहायता लेने के लिए बाध्य होना पड़ा।

अलग अलग समयों में मनुष्य जीवन को सफल बनाने के लिए अलग अलग सूत्र है जैसे प्राचीन सदियों का सूत्र था मनुष्य स्वयं को पहचानो बीसवी सदी का सूत्र था अपनी सहायता स्वयं करों, 21 वीं सदी का सूत्र है अपने आपको शिक्षित करो। 21वीं सदी ज्ञान की सदी है। ज्ञान पिपासा वाला मनुष्य कभी भी परवलंबी नहीं हो सकता। शिक्षण जीवन को योग्य चिंतन से आबाद रखने की युक्ति सिखाता है।

एक बार तेल से चिकनी सड़क पर एक जीप नहीं बढ़ पा रही थी। ड्राईवर ने बहुत रेस दी परंतु जीप के पहिए एक ही स्थान पर गोल-गोल घूमते ही रहे। सड़क बहुत सपाट, चिकनी और लेस वाली थी। यह देखकर एक मजदूर ने पास में पड़े हुए रेती के ढेर से एक-एक फावड़ा भरकर जीप के पहिए के आगे रेती बिछा दी। इससे सड़क की चिकानाई दूर हो गई और घर्षण के कारण जीप सड़क पर दौड़ने लगी।

जिंदगी भी कुछ ऐसी ही है। जब इसमें घर्षण होता हैे तभी इसमें ताकत आती है और वह दौड़ती है। जिंदगी कबूतर की भांति नहीं बल्कि गरुड़ की भांति जीने के लिए मिली है। जिस प्रकार कबूतर निरापद आश्रय ढूंढता है जब कि बाज आसमान को चुनौती देने के लिए स्वाश्रयी बनता है और यह दिखाता है कि स्वयं की सहायता किस प्रकार करनी है। वंश परंपरागत धन के ढेर का वारिस बनने के स्थान पर अपने खून पसीने से कमाया गया धन लाख गुना अच्छा होता है और यह स्वयं को सिध्द कर स्वयं की सहायता करके ही संभव है।

वेन्डेल फिलिप्स ने ठीक ही कहा है कि अपने निर्वाह के साधनों को एकत्रित करने के लिए कमरतोड़ मेहनत से जो शिक्षण हमें प्राप्त होता है, वह सबसे उत्तम कोटि का शिक्षण होता है। आज के कर्मलक्षी युग में कर्मनिष्ठा की बिलकुल उपेक्षा हो रही है, यह चिंता का विषय है। बगीचे में निष्ठा तथा समर्पण की बुआई करे बिना स्वप्नों के पीछे दौड़ना जीवनशिक्षण की निरक्षरता है।

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