स्वयं पर विश्वास – ESSAY IN HINDI

किसी व्यक्ति के आगे चाहे कितनी भी प्रतिकूल परिस्थितियाँ क्यों न हों परंतु अपनी शक्ति को सर्वश्रेष्ठ रुप में उपयोग करने वाले लोगों की कार्यक्षमता के सतत स्पंदन तथा सन्निष्ठ प्रयत्नों में भाग्य कहीं आड़े नहीं आता और यह तभी संभव है जब स्वयं पर विश्वास हो। स्वयं को निराधार एवं निरुपाय मानना आत्मिक कायरता की निशानी है। यदि कोई व्यक्ति अपनी कार्यक्षमता का भरपूर उपयोग करता है अपनी कमजोरी को भांप कर उसके विरुध्द निरतंर कार्य कारता है तो ऐसे मनुष्यों पर जो सयोंग का चक्र है वह कमजोर पड़ जाता है।

आप प्रयास के बाद भी यदि आप किसी विशेष क्षेत्र में प्रतिष्ठित नहीं हो पाए या सफल नही हो पाये तो इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है की आप अपने जिंदगी के अन्य क्षेत्रों में सफल होने की संभावना का भी परित्याग कर दे यह कहीं से भी सही नही माना जा सकता है। यह सर्वत्र स्थान भ्रष्ट रहने का आत्मघाती प्रयास है। महाभरत मे भले ही अर्जुन ने चाहे वह संयोग वस हो या परिश्रम से श्रेष्ठ धनुर्धर का स्थान प्राप्त कर लिया हो परंतु संयोगों के विपरीत होने के बावजूद भी कर्ण ने दानधर्म का पल्लू नहीं छोड़ा और वह दानवीर कर्ण के रुप में यशस्वी हुआ यह कोई छोटी बात तो नहीं है। अपनी इस प्रकार की विपरित परिस्थिति के बावजुद स्वयं को किसी भी सर्वश्रेष्ठ ओहदे पर प्रतिस्थापित करना।

अपने आपको यदि कोई मनुष्य रंक माने तो रंक मानने वाले उस मनुष्य को तो परमेश्वर भी अमीर नहीं बना सकता। जिसे स्वयं पर विश्वास न हो ऐसे मनुष्य जो भाग्य को ही सर्वोपरि मानकर उसकी तूती बजाने में मशगूल रहने वाला है ये अपने समक्ष आए हुए अवसर का भी उपयोग नहीं कर सकते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है कि जतनी बार भेड़ बें बें करती है उतनी ही बार वह घास का एक-एक गस्सा गंवा देती है। इसी प्रकार मनुष्य जितनी बार भाग्य को याद करने में समय बर्बाद करता है, उतनी ही बार वह उत्तम अवसरों का लाभ लेने में चूक जाता है ये वे अवसर होते है जो मनुष्य के जीवन मे एक बार निकलने के बाद दुबारा कभी नहीं आते। अपनी ही सुख शांति के शत्रु बनने के प्रयास हमें ही भारी पड़ जाते हैं।

मुनि विश्वामित्र ने भाग्य को एक ओर रखकर अपने पुरुषार्थ को दृढ़ता से पकड़कर रखा और ब्रम्हऋषि की पदवी पर आसीन होने की योग्यता प्राप्त की। ये उनके स्तर पर देखें तो काई छोटी-मोटी बात नहीं थी।

अगर हम भाग्य की बात करें तो भाग्य मनुष्य जाति को भ्रमित करने वाला तथा उसे भड़कानेवाला आतंकवादी है। मनुष्य की करुणा यह है कि वह बिना किसी निमंत्रण के अपने शस्त्रों को मियान में रखकर भाग्य की शरणगति स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाता है। जो उसके लिए ऐसे रास्ते का निर्माण करता है जिसमे चलने का एक ही अर्थ निकलता है की उसके अदंर आत्मविश्वास की कमी है। यदि ऐसा नही होता तो वह समस्याओं को भाग्य के भरोसे नही छोड़ता वह उठ खड़ा होता और समस्याओं को हल करने के लिए परिश्रम करने के लिए जुड़ जाता। वास्तविकता तो यह है की हर व्यक्ति अपने अदंर छुपे उस भय को मन से बाहर नही आने देना चाहता है।

कहा जाता है कि होमर को अपने प्रसिध्द ग्रंथ इलियट के लिए तथा दान्ते को पेरेडाइज के पारिश्रमिक के रुप में केवल सूखी रोटी तथा प्रकाशकों की सीढ़ियों पर चढ़ उतरकर अपने जूते घिसने के अतिरिक्त और कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ था। शेक्सपीयर का हेलमेट पाँच पाउन्ड में बिका था, परंतु इससे निराश होने के स्थान पर वह सदा लिखते रहे और बाद में उनके साहित्य को खरीदने के लिए लोक एक हजार पाउन्ड तक देने के लिए अधीर होते थे।

हमें पत्थर पर उकेरे गये कलाकृति जैसा सुन्दर बनने का चाव तो है, पर हम उस कलाकुति के निर्माण मे उस पत्थर को जो छेनी-हथोड़े की मार की जो वेदना होती है उसे सहने के लिए तैयार नहीं है। मनुष्य को कोई भी आर्ट ऑफ लिविंग सिखा नहीं सकता, हाँ आर्ट ऑफ ब्रेड एंड बटर अर्निंग जरुर सिखा सकता है।

जिंदगी की बात करें तो ये कोई ऐसा विषय नहीं है जिसे किसी कांपते हुए हाथों से लिखा जा सकता है। जिंदगी को सही ढंग से जीने का तरीका यह है कि यदि इसका चित्र बनाते बनाते स्वाभिमान पूर्वक मौत को भी गले लगाना पड़े तो आदमी सहर्ष मरना पसंद करता है। जिंदा लोग बेशुमार हैं पर उनमें से जीवित कितने हैं? अधिकांशतः लोग केवल जिंदा ही रहते हैं। कितने लोगों को जीवन स्वयं ही ग्रास बना देता है। परंतु जो लोग बहादुर सैनिक की भाँति जीवन में जूझते हैं, और भाग्य की उन संयोगो के विपरित स्वयं पर विश्वास करके भाग्य से नही डरते हैं, निष्फलताओं से निराश नहीं होते एवं जो लम्बी-ठंडी साँस भरकर जीवन को लजाना नहीं चाहते, आखिर उन्हें कौन सलाम करना नहीं चाहेगा। क्योंकि यहीं तो हैं जो जीवन मे सफलताओं के सिढ़ी का निर्माण स्वयं करते हैं और अपनी हर परेशानियों का सामना बिना डरे बिना किसी संकोच के करते हैं।

इन्हे भी देखें

1. जीवन को कैसे संवारे
2. आत्मा की पुकार
3. आप बहादुर हैं

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