राम मंदिर का इतिहास-
अयोध्या मे बने भगवान राम मंदिर का इतिहास बहुंत ही पुराना है। सनातन को मानने वाले और मुख्यरुप से हिंदूओ के लिये यह एक बड़े त्यौहार से कम नहीं है।
यदि हम राम मंदिर का इतिहास को देखें तो 16वीं सताब्दी में भी बहुंत से ऐसे सनातन को मानने वाले लोग थे, जिनका सपना था की वे अयोध्या मे बने भगवान राम मंदिर को बनते हुये वहां देखें।
यहीं नहीं 18वीं सताब्दी में भी बहुंत से लोगों का यही सपना था, परंतु उनके जीवित रहते यह संभव न हो सका।यहीं वह समय था जब पहली बार कानूनी रुप से अपना हक पाने के लिये रामभक्त अदालत गये।
जब आज ही के दिन 22 जनवरी 2024 को इसका उद्घाटन हो रहा है, तब लगभग 150 साल पहले ऐसे भी लोग थे जिन्होनें इस राम मंदिर के लड़ाई में अपनी जान गवां दी। और ऐसे भी लोग थे जिन्होने कोर्ट में कानूनी लड़ाई लड़ते हुये अपने 40-50 साल बिता दिये।
ये वो लोग हैं जिन्होने अयोध्या मे बने भगवान राम मंदिर के लिये अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया, परंतु उनके जीवित रहते उन्होने इस भव्य राम मंदिर को देख नहीं पाये। और वर्तमान में हम लोग हैं जो बिना किसी परिश्रम के केवल इस लिये कि हमारा जन्म इस समय हुआ है, 500 वर्षों के कठीन संघर्ष के बाद इसे बनते देख रहें हैं।
यह वहीं राम मंदिर का इतिहास है जिसे आज से लगभग 492 वर्ष पूर्व 1528 में बाहरी मुगल आक्रांता ने जेहाद के नाम पर बलपूर्वक राम मंदिर का इतिहास नष्ट कर दिया और वहां एक मस्जीद का निर्माण करा दिया था।
परंतु राम मंदिर का इतिहास केवल यहीं से शुरु नहीं होती, इसके लिये इतिहास के उन पहलुओं को भी जानना जरुरी है जिसे हम लोग नहीं जानते हैं।
राम मंदिर का पुराना इतिहास-
राम मंदिर का इतिहास भगवान श्रीराम के पुत्र कुश से शुरु होता है जिसने अयोध्या के इसी स्थान पर उनका एक मंदिर बनवाया था। इसी प्रकार समय के साथ भगवान श्रीराम के अयोध्या में 3000 से भी अधिक मंदिर बनाये गये थे।
कुछ जानकारों के अनुसार 5वीं सताब्दी ई.पूर्व इनमें से बहुंत से मंदिरो की स्थिति खराब होने लगी। अचानक से किसी कारण वश उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या से गुजर रहे थे, जहां उनकी नजर इस खण्डहर होते हुये मंदिर की ओर गई।
उन्हे इसे देखकर यह समझने में बिल्कुल भी देर नहीं लगी की यह अतिप्राचिन हिंदू मंदिर है। जिज्ञासा वश वहां के आसपास के लोगों से पूछने पर राम मंदिर का इतिहास के बारे में उन्हे जानकारी हुई।
इसके बाद राजा विक्रमादित्य ने इनमें से जो प्रमुख मंदिर थे उनका जिर्णोंध्दार कराया। आने वाले कई सौ वर्षों तक यह ऐसे ही बने रहे जिसके बाद यहां लोग भगवान राम की पूजा करने के लिये आया करते थे जिससे यह क्षेत्र पूनः राममय हो गया।
राम मंदिर का अधुनिक इतिहास-
इसके पश्चात राम मंदिर का इतिहास मुस्लिम आक्रांताओ द्वारा बदला गया जब सन् 1526 को बाबर और इब्राहीम लोदी के बिच युध्द हुआ। इस प्रकार से बाबर की सेना 1528 तक अयोध्या पहुंच जाती है।
बाबर ने जैसे ही राम मंदिर को देखा अथवा राम मंदिर का इतिहास सुना, हिंदूओ के बिच उसके महत्व के बारे में जानकारी मिलते ही जेहाद के नाम पर उसके सेनापति मीर बाकी को मंदिर नष्ट करने का फरमान दे दिया।
जिसके बाद उसे नष्ट कर दिया गया और वहां एक मस्जिद का निर्माण करा दिया असहाय हिंदू लोग अपने भगवान के मंदिर का यह अपमान देखते रहे। जिन लोगों ने इसका विरोध करने का साहस किया क्रूर आक्रातांओ ने उन्हे मौत के घाट उतार दिया।
अपने सैनिकों के बल पर उसने यह कार्य कराया इस समय उसे रोकने वाला कोई नहीं था।
इसके पश्चात लगभग 150 वर्षों तक यहां बाबार के द्वारा बनाया गया यह मस्जिद बिना किसी विरोध के खड़ा रहा। यह वह दौर था जब उत्तर भारत में मुगलों की जड़े बहुंत ही मजबूत थीं।
परंतु हिंदू जनमानस के मन में अपने आराध्य के मंदिर के साथ किया गया यह बर्बर कृत्य वे इतने वर्षों के बाद भी नहीं भूले थे। इस समय तक मुगलों की जड़ें धीरे-धीरे कमजोर हो चली थीं।
राम मंदिर के लिये किया गया प्रथम प्रयास-
इसी दौरान सन् 1717 को बाबरी मस्जिद बनने के लगभग 190 वर्ष बाद जयपुर के राजा जयसिंह ने यह प्रयत्न किया की बाबरी मस्जिद और उसके आसपास का क्षेत्र उन्हे मिल जाये।
राजा जयसिंह जी को राम मंदिर का इतिहास भली-भांति ज्ञात था की हिंदूओ के लिये यह जगह कितना महत्वपूर्ण है। राजा जय सिंह ने यह प्रयत्न इस लिये भी किया था क्योंकि उस समय के मुस्लिम शासकों से उनके अच्छे संबंध थे।
इसके बाद भी वे सफल न हो सके परंतु वे मस्जिद के पास ही अपने हिंदूओं के आग्रह पर राम चबूतरा बनवा देतें है, जिससे सनातनी अपने भगवान राम की पूजा कर सकें। इस बात की पूष्टी यूरोपीयन भौतिकषास्त्री जोषेफ टेफेंथेलर जो उस समय इसी जगह पर रह रहे थे, उन्होने अपने लेख में यह पुष्टि की थी।
यह वह समय था जब मुसलमान मस्जिद के अदंर नमाज पढ़ते थे और हिंदू बाहर बने चबूतरे पर भगवान राम की पूजा किया करते थे। परंतु मंदिर गिराये जाने के 250 वर्षों के बाद भी हिंदू राम मंदिर का इतिहास भूले नहीं थे और जो नई पीढ़ी थी उन्हे भी राम चबूतरे मे पूजा करने पर बाबरी मस्जिद के बारे में पता चलने लगा।
ऐसे तो पूरे अयोध्या में भगवान राम के हजारों मंदिर थे, परंतु लोग राम मंदिर का इतिहास नहीं भूल पा रहे थे की कैसे उनके ईष्ट के जन्म स्थान पर मंदिर को तोड़कर वहां बलपूर्वक मस्जिद बना दी गई।
लोग ये सोंचने पर मजबूर हो गये की क्या मुस्लिम आक्रांताओ को मस्जिद बनाने के लिये जगह की कमी हो गई थी, की इसका कोई और कारण था।
हिंदू संगठनो द्वारा किया गया दावा-
सन् 1813 में पहली बार कुछ हिंदू संगठनों ने यह दावा करना प्रारंभ किया की सन् 1528 में मुगल आक्रांता बाबर ने बलपूर्वक हिंदू मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई थी।
फैजाबाद के अंग्रेज अधिकारियों ने भी वहां मस्जिद पर कुछ हिंदू चिन्हो के मिलने की बात स्वीकार किया था। इस बात की पूष्टी पूर्व आईपीएस अधिकारी रहे किषोर कुनाल ने अपनी पूस्तक अयोध्या रीविजिटेड में किया था।
इसके कुछ वर्षों के बाद सन् 1838 में ब्रिटिश सर्वेयर जिनका नाम मॉटिगोमेरी मार्टिन था उन्होने एक रिपोर्ट दी की बाबरी मस्जिद में जो पिल्हर हैं संभवतः वह मंदिर के ही अवषेश हैं।
जैसे ही यह रिपोर्ट आई इसके बाद बहुंत हगांमा हुआ इसी के दूसरी ओर हिंदू संगठनों ने भी यह दावा किया था की यह मस्जिद मंदिर को तोड़कर बनाइ गई है। इसके बाद यहां नमाज के साथ ही हिंदूओं द्वारा पूजा भी करना प्रारंभ कर दिया गया।
सन् 1853 में पहली बार बाबरी मस्जिद को लेकर अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय सांप्रदायिक हींसा हुई इसके बाद भी लगभग 1855 तक हिंदू और मुसलमान एक ही जगह पर नमाज और पूजा करते रहे।
इसी समय मुस्लिमों को मस्जिद के अंदर जाने की इजाजत मिली जबकी हिंदूओं को नहीं मिली जिससे वे पूनः पास के उसी राम चबूतरे पर पूजा करना प्रारंभ कर दिया।
राम मंदिर के लिये कोर्ट में पहली अर्जी-
भगवान राम मंदिर विवाद में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब निर्मोही अखाड़ा के महंत रघुवर दास जी ने सन् 1885 में राम चबूतरे पर छत बनवाने की अर्जी दी जिसे अदालत के द्वारा ठूकरा दिया गया।
इससे इस बात की तो पुष्टि हो जाती है कि इतने वर्षों के बाद भी अपने भगवान के इस मंदिर को वापस पाने की आश टूटी नहीं थी।
सन् 1934 में अयोध्या में फिर दंगे होते हैं और इसी समय बाबरी मस्जिद की एक दिवार टूट जाती है, इस दिवार को पूनः बनवाया जाता है, परंतु इसके बाद मुसलमानों द्वारा यहां नमाज बंद हो जाता है।
यह वह दौर था जब देश में अंग्रेजों का शासन चलता था। यह लड़ाई देश के सनातनी जो आम लोग थे उनके द्वारा अपने धार्मिक हक के लिये लड़ा जा रहा था, उस समय के भारतीय रजनीतिक पार्टियों का इसमें दूर-दूर तक कोई सहयोग नहीं था।
देश के आजादी के बाद राम मंदिर-
समय बितने के साथ जब सन् 1947 को देश आजाद हो गया इस समय बाबरी मस्जिद केवल शुक्रवार के दिन ही खुलती थी और हिंदू अपने राम चबूतरे पर भगवान राम की मूर्ति की पूजा करते थे।
कुछ लोगों को यह लग रहा था की अब देश आजाद हो गया है तो अब यहां राम मंदिर बन जायेगा। परंतु समय बितता गया और लोगों की यह आश टूटती गई।
उस समय कांग्रेस की सरकार थी और किसी भी बड़े नेता के द्वारा भगवान राम के मंदिर बनाने की तो दूर राम मंदिर का इतिहास के बारे में बात तक नहीं किया जाता था।
भगवान राम के मूर्ति का प्रकट होना-
देश के आजादी के बाद 23 दिसंबर सन् 1949 को मस्जिद के अंदर से घण्टी की आवाज आने लगी क्योंकि वहां पूजा हो रही थी लोगों द्वारा बताया गया की बिते रात को यहां भगवान राम की मूर्ति प्रकट हो गई है।
इस पर मुस्लिम पक्ष का कहना था की रात के अंधेरे में यह मूर्ति रखा गया है। जैसे ही इस बात का पता आसपास के लोगों को होता है वह यहां आने लगते हैं, इस प्रकार दोनो पक्ष के लोगों की भिंड़ बढ़ने लगती है।
यह बात इतना बढ़ जाता है कि उस समय के प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु तक पहंुच जाती है, उनके द्वारा एक मजिस्ट्रेट के के नयर को यह आदेश दिया जाता है कि वहां से मूर्ति को हटाकर पहले जैसी स्थिति बनाई जाये।
इस बात पर के के नायर ने यह कहकर अपने हाथ खड़े कर दिये की यदि मूर्ति को वहां से हटाया गया तो स्थिति हाथ से निकल जायेगी और भिड़ बेकाबू हो जायेगी उनका कहना था की उस मूर्ति को वहां से हटाने के लिये कोई पूजारी तैयार भी नहीं होगा।
इसके बाद उनके पास 26 दिसंबर 1949 को प्रधान मंत्री का दूसरा पत्र आता है जिसमें यही बात दोहराई जाती है, तब उन्होने इसमें हस्तक्षेप करने के बजाये अपना स्तिफा देना उचित समझा और इसी के साथ उन्होने यह सुझाव भी भेजा कि मूर्ति को विवादित स्थान से हटाने के बजाये वहां जाली नुमा गेट लगा दिया जाये।
यह बात नेहरु जी को सही लगा और उन्होने उनका इस्तिफा मंजूर नहीं किया बलकी उनके सुझाव को मान लिया गया।
आगे सन् 1950 में हिंदू महासभा के वकील गोपाल विसारद जी ने फैजाबाद के जिला अदालत में अर्जी डालकर रामलला की पूजा का अधिकार देने की मांग की। इसके बाद लगभग 35 वर्षों तक हिंदू महासभा और सुन्नी वक्फबोर्ड अपने-अपने दलिलों के द्वारा अदालत से उस स्थान का हक मांगते रहे।
सन् 1980 में देश में भाजपा के सामने आने पर यह चींजे बदलने लगीं यह वह समय था जब संघ, भाजपा, और विष्व हिंदू परिषद राम मंदिर के लिये देश में इस आंदोलन को अपने अपने तरिकों से तेज करने में लग जाते हैं।
सन् 1984 में दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम करके राम मंदिर के लिये सीतामढ़ी से अयोध्या तक रथ यात्रा निकालने का कार्यक्रम बनाते हैं। परंतु इसी समय इंदिरा गांधी जी के अचानक हत्या कर देने से यह कार्यक्रम कुछ समय के लिये टाल दिया जाता है।
1986 को राम मंदिर का ताला खुलना-
इसके बाद सन् 1986 को राम मंदिर की पूरी दिषा ही बदल जाती है, इस समय राजीव गांधी जी प्रधान मंत्री होते है, जब उस समय के चर्चित साबानों केश होता है, जिससे हिंदू पक्ष नाराज हो जाते हैं।
हिन्दूओं को खुश करने के लिये वे राम मंदिर का ताला खुलवा देतें हैं जिससे मुस्लिम पक्ष नाराज हो जाते हैं। अब मुस्लिम पक्ष 6 फरवरी 1986 को बैठक करके बाबरी मस्जिद ऐक्सन कमेटी बनाते हैं।
रथ यात्रा-
कुछ समय बितने के बाद भाजपा ने लालकृष्ण आडवाड़ी और मुरली मनोहर जोषी जैसे उस समय के बड़े नेताओं के नेतृत्व में सोमनाथ से अयोध्या तक लगभग 10000 किमी तक की रथयात्रा निकाली।
रथयात्रा निकालने के बाद लालकृष्ण आडवाड़ी जी को अयोध्या पहुंचने से पहले ही बिहार के समस्तीपुर नामक जगह पर गिरफ्तार कर लिया गया।
इसके बाद भी यह रथयात्रा जारी रहता है और जिस दिन रथयात्रा को अयोध्या पहंुचना होता है उस दिन बहुंत बड़ी संख्या में कार सेवक अयोध्या पहंुचकर इस विवादित ढंाचे में सनातन का भगवा झण्डा फहरा देते हैं।
इसी दौरान भिड़ को काबू करने के लिये उस समय की उत्तर प्रदेश की मुलायम सिंह यादव की सरकार भिड़ पर गोली चलवा देती है, जिसमें कई कार सेवकांे की मृत्यु हो जाती है। इसके बाद 6 दिसंबर 1992 को लगभग दो लाख से भी अधिक संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंच जाते हैं।
इस समय उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह कि सरकार थी, कुछ जानकारों की माने तो उन्होने अदालत को यह भरोसा दिलाया था कि विवादित ढांचे को कोई नुकसान नहीं पहुंचायेगा।
परंतु इसके उलट 6 दिसंबर सन् 1992 को दोपहर लगभग दो बजे एक गुंबद, लगभग 3.30 बजे दूसरा गुंबद और सध्यां होते होते लगभग 5.00 बजे तक तीनो गुंबद गिरा दिया गया।
जैसे ही यह घटना हुई महज कुछ घण्टो के भीतर ही उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपती शासन लगा दिया गया, कल्याण सिंह जी ने अपना इस्तिफा दे दिया। इसके बाद कई दंगे हुये जिसमें हजारों लोगों ने अपनी जान गवां दी इसके साथ ही यह दंगे देश के कई जगहों में हुये।
आर्कियोलॉजिकल ऑफ सर्वे की रिपोर्ट-
जब देश में पूनः भाजपा का शासन केन्द्र में आई तब राम मंदिर का कार्य एक बार फिर तेज हो गई, इस समय देश भर में चल रहे अलग अलग जगह के केश को एक जगह लाया गया इसके साथ ही आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को इस मामले की जांच करने को कहा गया, जिससे वहां की वस्तुस्थिति के बारे में पता चल सके।
ए.एस.आई. ने अपनी रिपोर्ट पर यह साफ कर दिया कि विवादित ढांचे के निचे पूराने हिंदू मंदिर के अवषेश मिले हैं। यह रिपोर्ट ही अभी तक के राम मंदिर का इतिहास में पहला वैज्ञानिक रिपोर्ट था जो यह स्पष्ट बता रहा था की वहां मस्जिद बनाने से पहले प्राचिन मंदिर ही था।
कोर्ट द्वारा राम मंदिर का पहला फैसला-
आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के रिपोर्ट को आधार मानते हुये अदालत ने इस विवादित भूमि को तीन भागों में बांटकर रामजन्म भूमि ट्रस्ट, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फबोर्ड में बांटने का आदेश दे दिया। इस फैसले से तीनो ही पक्ष संतुष्ट नहीं होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला-
2011 में यह विवाद देश के उच्चतम न्यायालय (सुप्रिम कोर्ट) में पहंुच जाता है। इसके सात वर्षों तक इसके संबंध में कोई सुनवाई नहीं हो पाती है। कोर्ट इसे आपसी सहमती में विचार करने का प्रयास करती है।
जब यह सभी प्रयास विफल हो जाता है तब 2019 अगस्त को इसके सभी पक्षों की सुनवाई पूरी होने के बाद यह विवादित ढांचा रामजन्म भूमि ट्रस्ट को सौंप दी जाती है।
इसी के साथ मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही दूसरे जगह पांच एकड़ की भूमि भी मस्जिद निर्माण के लिये दिया जाता है।
भव्य राम मंदिर का निर्माण कार्य-
फैसला आने के बाद अयोध्या मे बने भगवान राम मंदिर के लिये 5 फरवरी 2020 को ट्रस्ट का गठन किया गया, जिसके बाद भागवान राम के जन्म स्थान पर भव्य राम मंदिर का निर्माण प्रारंभ होता है।
यह राम मंदिर का इतिहास उन भगवान राम के भक्तो की है जिन्होने इतने लंबे वर्षांे तक इस अत्याचार को सहन किया परंतु अपना धैर्य नहीं खोया।
जिसके बाद 22 जनवरी को देश के प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी जी को अयोध्या मे बने भगवान राम मंदिर उद्घाटन करने का सौभाग्य मिला।
इन्हे भी देखें
1. जीवन का दुश्मन
2. कर्तव्य मे आनंद की अनुभूति
Very useful content 👌
achhi jankari hai
Very deep knowledge
Its all about raam mandir
Thank you for this information