मन की पराकाष्ठा – ESSAY IN HINDI

एक बगीचे में बहुत से लोग आपस में बातें करते हुए बगीचे मे घूम रहे थे। वहीं पर पास मे ही एकांत में एक बच्चा बैठा था जो बिलकुल अकेला था। परंतु वह स्वयं से कुछ इस प्रकार बातें कर रहा था जैसे मानों किसी और व्यक्ति अथवा बच्चे से वार्तालाप कर रहा हो, यह मन की पराकाष्ठा है। कितना संुदर प्रभातकाल है। सूर्य की सुनहरी किरणें मदमाते फूलों की खुशबू की खैरात आंखों में सपनों का कारवॉ लेकर घूमते हुए नर-नारी! मुझे भी आज का पूरा दिन आनंद का अनुभव कराता है तथा शाम के समय से पहले आज के दिन को कुछ न कुछ देना है। आज चाहे जितनी कठिन कसौटी क्यों न हो मै अपने आत्मसंयम को हिमालय सा अडिग रखूंगा। आज मैं वैसा कोई काम नहीं करुंगा जिससे मेरा मनुषत्व लज्जित हो। यह समय चाहे मुझे कैसी भी परिस्थिति दिखाए परंतु मैं चिंता, क्लेश, विषाद या तकरार में पड़कर अपनी शक्ति का दुर्व्यय नहीं होने दूंगा। हे दिवस रुपी ईश्वर! तुझे मै प्रणाम करता हूॅ।
विश्व रुपी देवता कोई बहरे तो नहीं हैं जो अपनी स्वयं की संतान अर्थात मनुष्य के उद्गार को न सुन पाएं। प्रकृति मनुष्य के जोश पर भी घ्यान देती है और उसके क्रोध पर भी ध्यान देती है यदि दुःखद घटनाओं की अगर हम बात करें तो वह प्रकृति के द्वारा मनुष्य को इसलिए दी जाती हैं जिससे उसकी परीक्षा हो सके। आत्मश्रध्दा हमारे प्रतिकूलता के क्षणों में अपने साथ रहने वाली माता है जो हमारी विजयशक्ति को और भी दृढ़ करने के लिए हमें हमेेशा ही प्रोत्साहित करती रहती है। अतः मनुष्य को स्वयं का अवमूल्यन करने की दुष्टवृत्ति से दूर रहना चाहिए। मैं अपनी कमजोरियों को जीतने में समर्थ हॅू अपने आपको यह बात बताएं तो परमपिता अवश्य ही अपनी कृपा की किरणें आपके अंतःकरण में फैलाना शुरु कर देंगे। दिव्य शक्ति हमारी सहायता के लिए तत्पर होती है, बस हमे उसे पहचानना होता है, जिसके लिए श्रध्दा अतिआश्यक है। हमारी अश्रध्दा ही उनके मार्ग में अवरोध उत्पन्न करके उन्हें अपने से अलग रखती है।

भर्तृहरि के कथनानुसार दुनिया में तीन प्रकार के लोग होते है। जो इस प्रकार है –

1. वे तुच्छ लोग जो विघ्नों के डर से काम प्रारंभ ही नहीं करते और बिना किसी काम के पूरा जीवन खराब कर लेते हैं।

2. वे मध्य प्रकार के लोग जो कार्य प्रारंभ करते हैं पर विघ्न आते देखकर काम या तो छोड़ देते हैं या जितना किया होता है वहीं पर आकर रुक जाते         हैं।

3. वे लोग जो विघ्नों के तमाचे बारंबार खाने पर भी अपराजेय बनकर अपने हाथ में लिए हुए काम को कभी भी नहीं छोड़ते ये वे व्यक्तित्व होते है जो         जीवन के किसी भी परिस्थिति मे मेहनत करना नहीं छोड़ते चाहे परिस्थिति कितनी भी इनके विपरित हो जाये।

मैं स्वयं ही सद्भाग्य हंू क्योंकि सफलता प्राप्त कराने वाले परमेश्वर ने मुझे अपना माध्यम चुना है। एक बार ऐसी प्रबल आत्मश्रध्दा जरा करके तो देखो आप यदि अंदर से खाली रहेंगे तो प्रकृति आपके भाग्य में खालीपन ही लिख देगी यदि भीतर से भरे-भरे रहेंगे तो प्रकृति आपका जीवन भरा-भरा ही रखेगी। इसका अर्थ यही निकलता है कि मनुष्य का जैसा कर्म करने का स्वभाव है या उसके मन की जैसी पराकाष्ठा है उसका जीवन उसी दिशा मे आगे बढ़ता है। मनुष्य की सबसे बड़ी कमजोरी है कि उसे सदा तुरंत ही सब कुछ प्राप्त करने की प्रबल इच्छा रहती है। जो उसे गहरे खाई रुपी अधंकार मे गिराने के लिए बहुंत है। उसकी ऐसी भी इच्छा होती है की उसकी प्रार्थना भी तुरंत ही फलित होनी चाहिए सफलता भी तत्काल मिलनी चाहिए तथा अपने किए हुए सत्कर्मों का पुरस्कार भी तुरंत ही मिल जाना चाहिए। यह मानकर मनुष्य स्वयं ही अपने हाथों से धैर्य का गला टीप देता है। आग को पूर्ण रुप से पकने का तथा दुश्मन को सुधरने का पर्याप्त समय तो देना ही चाहिए। प्रकृति को शायद शब्द ही मंजूर नहीं है। यदि कुछ प्राप्त करने में शायद का विचार किया जो प्रकृति परिणाम में देरी कर देगी। ऐसा प्रतित होता है की शायद में हमारी निर्बलता का स्वर होता है। बिलकुल में हमारी शक्ति की गूंज होती है।
जब भी प्रकृति मनुष्य को अपने न्याय के पलड़े पर तौलती है तब एक और मनुष्य की आंतरिक पवित्रता तथा आत्मश्रध्दा रखती है और दूसरी ओर उसे फल देने के लिए पात्र अंत में मनुष्य को उसकी श्रध्दा के प्रमाण में फल की प्राप्ति होती है। ढ़ली ढ़ाली महत्वाकांक्षाओं के पीछे मानवबल कमजोर कदमों से दोड़ता रहे प्रकृति को ऐसी कमजोरी पसंद नहीं है यदि मनुष्य को अपनी महत्वाकांक्षाओं को यदि प्राप्त करना है तो उस स्तर का उसमे शक्ति और विश्वास होना चाहिए अतः कहा गया है कि श्रध्दा ही मनुष्य के मानसिक पराकाष्ठा को स्पष्ट करती है।

इन्हे भी देखें

1. जीवन का दुश्मन
2. कर्तव्य मे आनंद की अनुभूति

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