एक बार एक सैनिक को नेपोलियन के पास एक महत्वपूर्ण पत्र जल्दी से पहुंचाना था। ऐसी परिस्थिति में उसने जो घोड़ा उसके सामने आया उस पर चढ़ कर वह घोड़े को दौड़ाता हुआ हृदय की गति से नेपोलियन के पास पहुंच गया। घोड़ा कमजोर था अतः जैसे ही वह विश्राम लेने के लिए रुका एक ओर लुढ़क पड़ा और उसी समय उसकी मृृृत्यु हो गई।
नेपोलियन ने पत्र का उत्तर लिखवाया और सैनिक को एक मजबूत व शानदार घोड़े पर बैठाकर आदेश दिया कि वह तुरंत वहा से पत्र लेकर रवाना हो जाय। संदेश वाहक सैनिक ने संकोच करते हुए कहा सेनाध्यक्ष महोदय! मैं रहा एक सामान्य सा सैनिक। ऐसी शानदार सजावट वाला दमदार घोड़ा मुझे शोभा नहीं देता। नेपोलियन ने तुरंत ही कहा सैनिक! तुम फ्रॉस के निवासी हो और इससे भी बढ़कर तुम फ्रॉस के सैनिक हो। फ्रैंच सिपाही को कोई भी ऐसी वस्तु व्यवहार में नहीं लेनी चाहिए जो शानदार न हो। यदि हम सामान्य जीवन में देखें तो लोग अधिकांशतः फ्रैंच सेनिको की सोचवाले होते हैं। भाग्यशालियों को मिलने वाली वस्तुओं के मिलने की उन्हें संभावाना होने पर भी वे स्वयं को उसके योग्य नहीं समझते। मनुष्य को अपने समक्ष याचक न बनकर एक अधिकारी बनकर खड़े रहने का आत्मबल स्वयं मे रखना चाहिए। मनुष्य जाति के पास अपार शक्ति का भंडार है और इस भंडार का बहुत बड़ा हिस्सा आज भी बिना किसी उपयोग के अथवा बिना किसी उपयोग किये पड़ा है। इस प्रकार एक कहावत है कि जो खेत जुताई किए बिना ही फसल की आशा रखता हो उसके भाग्य में निराशा के अतिरिक्त और क्या आ सकता है। फटी हुई झोली लेकर ईश्वर के पास अखूट प्राप्ति का वरदान मांगने जाना मुर्खता नही तो और क्या है।
स्वेट मॉर्डन के अनुसार ए.डी. कॉलरेज बहुत बुध्दिमान था। उसका मस्तिष्क बहुत तेज था परंतु उसके पास कोई निर्धारित लक्ष्य नहीं था। जिसके परिणामस्वरुप उसका मन चंचल बनकर अनेक दिशाओ मे एवं अनेक प्रकार के विचारों में खोया हुआ रहता था। इसी के कारण उसके चित्त की तरंग उसकी शक्तियों का ह्रास कर देता था। इसका परिणाम यह हुआ कि उसका जो जीवन था वह निष्फल तथा दुःखी बन गया। वह प्रतिदिन कुछ न कुछ नया निश्चिय करता पर उस पर स्थिर न रह पाता था। परिणाम स्वरुप अपार शक्ति होने के बाद भी उसमे आत्मश्रध्दा के अभाव के कारण वह कुछ भी नहीं कर सका। जब हुई उसकी मृत्यु के पश्चात उसके कमरे में से तत्वज्ञान तथा मनोविज्ञान विषयक चालिस हजार अधुरे निबंध हाथ लगे जो अधुरे होने की वजह से बेकार हो गये। उनमें से एक भी निबंध पूरा नहीं था। कॉलरिज जब एक निबंध लिखना शुरु करता था जासे ही लिखता कुछ समय बाद उसके मन में दूसरा निबंध लिखने का विचार आ जाता और वह जो निबंध लिख रहा होता उसे छोड़कर दूसरे विषय पर कूद पड़ता। अपनी मानसिक अवस्थाकी इसी डावाडोल आत्मश्रध्दा के कारण न तो वह स्वयं के लिए ही कुछ कर सका और न ही अपनी विद्वता तथा ज्ञान का लाभ संसार को दे सका। इस प्रकार कुल मिलाकर उसका अपने हृदय की उस गति को ठहरावा ना दे पाने की वजह से उसका पूरा जीवन खराब हो गया। आज यह स्थिति प्रायः देखा जा सकता है कई मनुष्य ऐसे हैं जो कार्य तो करना चाहते है शुरुआत भी करते है परंतु अततः कार्य को पूर्ण नहीं करते या कर पाते हैं।
हमें अपने इस जीवन को एक दिग्दर्षक यंत्र की भांति समझना चाहिए। इस यंत्र के समक्ष चमचमाता हुआ सूर्य है, चंद्रमा है, आकाश गंगा है, धूमकेतु है तथा सूर्य से भी अधिक बड़े तथा शक्तिशाली पदार्थ हैं परंतु उसकी सूई तो केवल उत्तर दिशा में एकमात्र ध्रुव तारे को ही महचानती है। चाहे जितने भी आकर्षण या प्रलोभन आए परंतु अपने ध्येय अथवा लक्ष्य के प्रति तो बंधे रहना इस यंत्र की सूई की अटल प्रतिज्ञा है। मनुष्य का जीवन भी कुछ इसी प्रकार का है।
यदि आपको कहीं कोई छोटा सा रोल निभाने को मिल जाय तो क्या आप उससे संतुष्ट होकर आगे के लिए सोचना छोड़ देंगे। यह किसी भी परिस्थिति मे सही नही होगा। यदि हॉ तो आपको कुंती-पुत्र भीम बनने का कभी भी अवसर नहीं मिलेगा और आप अपने हृदय की गति को शांत कर बैठ जाएंगे। मनुष्य मन में जैसे संकल्प करता है, प्रकृति उसकी प्रगति के द्वार खोलने की ताकत उसके हाथों में सौंप देती है। जब हम मनुष्य की योग्यता तथा शक्ति का भरपूर लाभ लेने की आत्मश्रध्दा का जन्मसिध्द अधिकार गुनाने के लिए स्वयं को अधिकारी नहीं मानते तो संसार कैसे हमारे माथे पर तिलक करने के लिए लालायित होगा। यह सोचने वाली बात है और फिर इसमें किसका दोष है। नदी का पानी उसके मूल से कभी उॅचा नहीं चढ़ सकता इस कहावत के अनुसार महान सफलता भी उच्च अभिलाषाओं तथा अपराजेय आत्मश्रध्दा के बिना हासिल नहीं की जा सकती। नदी सागर में जाकर बहने की इच्छा पर पूर्ण विराम लगा देती है अतः उसका नाम ही समाप्त हो जाता है। इसी प्रकार वह अपनी हृदय की गति को शांत कर लेती है।
इन्हे भी देखें
1. जीवन का दुश्मन
2. मन की पराकाष्ठा
3. आप बहादुर हैं