यदि हम किसी बात को लेकर झूठ बोलते है यह एक आम बात है। झूठ बोलने की कला सीखने के लिए कोई कक्षाएं नहीं चलाई जाती बलकी घर तथा समाज की तालीमशाला इस कार्य के लिए चौबीसों घंटे कार्यरत रहती हैं, अपना उत्तरदायित्व नाम के इस निबंध में इसी बात को स्पष्ट किया गया है।
इच्छाओं को बहकाए या महकाए इसका निर्णय करना जो सिखाता है, वह ही है विवेक आज के भौतिक सुखों के दौड़-भाग वातावरण में मनुष्य सच्चे झूठे का निर्णय करने मे शिथिल बन गया है। वह इस बात की भी परवाह नही करता है कि मुझे इसमे भेद करना चाहिए भी की नहीं। सबसे पहला सवाल जो मनुष्य को स्वयं अपने से पूछना चाहिए वह यह है कि क्या मैं जो प्रबल इच्छा अपने मन में पल्लवित कर रहा हूॅ वह वास्तव में योग्य है। क्या यह सही है। क्या इस मार्ग पर चलने से मेरी प्रतिष्ठा तथा व्यापकता समाज राष्ट्रहित को हानि पहुंचाने की संभावना है। यदि यह उचित न लगे तो स्वयं ही उचित मार्ग बदलने की तथा सजग हो जाने की तैयारी ही संस्कारी व सुनागरिक बनने की निशानी है।
परीक्षा के प्रश्नपत्र बनते हैं, खुलते हैं, बिकते हैं, बांटे जाते हैं। परिश्रम किए बिना ही मार्गदर्शिकाएं या पहचान वाली संस्थाओं के लाभ के लिए सीधे या आड़े-तिरछे प्रकार से प्रश्न लेकर प्रश्नपत्र तैयार करने वाले प्राश्निक अथवा बिना किसी उत्तरदायित्व के उत्तरपुस्तिका को परीक्षण करने वाले परीक्षक समान रुप से सभी लोभ-लालच तथा समस्त प्रपंचलीला के भागीदार हैं। आज जिंदगी में सफल होने के स्थान पर सज्जन बनने की मार्गदर्शन की आवश्यकता है। जो आज के मनुष्य मे दूर-दूर तक कहीं नजर नहीं आती है।
जिस प्रकार से बनों में सिंहों का कम होना चिंता का विषय है उसी प्रकार यह भी चिंता का विषय है कि समाज में सज्जनों का कमी न हो पाये। यह एक दुःखद अनुभूति है कि हमे समाज के एक आयाम मे इस प्रकार की चिंताए करने की आवश्यकता पड़ रही है। जो लोग सज्जन हैं उन्हें अब गुजारे या तारे जगत के पिता तू ही संभालेगा भूलकर अब स्वयं चमत्कार दिखाने के लिए भी सजग तथा तत्पर बनना होगा। बच्चों को नजाकत व अनुकूलन की शिक्षा न देकर कठिन व प्रतिकूल परिस्थितियों में रहकर उत्तरदायित्व की भावना को विकसित करने की तथा केवल प्यारी मम्मी न बनकर सवयं को आज के समय मे विर शिवाजी की माता जीजाबाई जैसी माता बनकर शिक्षा देना मातृत्व के समक्ष एक बड़ी चुनौती है। याद रखें मातृत्व अवसरवादिता का विषय नहीं है। बल्की अपने उत्तरदायित्व को समझने का समय है।
मुझे भली प्रकार याद है एक बार अनुज नाम का एक बच्चा अपने पिता के साथ एक छोटे से पर्वत के एक बेहद खुरदुरे तथा भयानक सड़क पर दौड़कर चढ़ रहा था। उसमे ना तो किसी प्रकार का भय था वह ना ही वह किसी चिज की परवाह कर रहा था। उसके पिता श्याम कुमार जी उसे ऐसा करते हुए अपने बालक को मना भी नहीें कर रहे थे। देखने वालों को भी उसे इस प्रकार भागते हुए देखकर आश्चर्य हो रहा था। उन्हे इस बात पर भी आश्चर्य हो रहा था की उसके पिता पास मे अपने बच्चे की ऐसी क्रिया को देखने के बाद भी चुपचाप खड़े है। एक व्यक्ति से यह सब देखने के बाद जब रहा न गया तो उन्होने उसके पिता जी से पूछ ही लिया की आप अपने बच्चे को मना क्यों नही कर रहे है इसपर उन्होंने उत्तर दिया मर्द बनना हो तो नजाकत के लोभ को छोड़ना पड़ता है। यह सब बातें सुनकर वह व्यक्ति सन्न रह गया। इससे यह सिख मिलती है की अपने आप जो मार्ग पकड़ते हैं वही सर्वोत्तम होता है यदि सही लगे तो उसका अपने आप मूल्यांकन करके अपने उत्तरदायित्व को समझते हुए उसे पकड़े रखकर उसे पक्का निर्णय लेना भी उत्तरदायित्व की भावना का अनिवार्य हिस्सा है।
मार्गदर्शिकाएं या गाईड्स परीक्षा में अच्छे प्रतिशत दिलाकर लक्ष्यांक तो सिध्द कर सकती हैं पर जीवन में टिके रहने में तथा सत्य के मार्ग पर चलने का अहसास करवाने में तो पूरी प्रतिबध्दता के साथ उत्तरदायित्व की भावना ही सहायक सिध्द हो सकता है। इस दुनिया में प्रत्येक जीवन एक अलग इकाई है, दूसरों से अलग अपने हिसाब को जीवन जीने की कला कोई एक दूसरे को नहीं सिखा सकता। यह तो मनुष्य का भीतरी तथा दृढ़ संकल्प वाला मजबूत मन नही उसे सिखा सकता है।
आज की परिस्थिति में घर तथा कुटुंब केवल लोगों का मेला भर हैं। मेले में जाने वाले लोगों का लक्ष्य मेले में जाकर केवल मौज-मस्ती करने का होता है, उनमें कोई उत्तरदायित्व की भावना नहीं होती है। घरों में भी अधिकांशतः एक व्यक्ति पर ही उत्तरदायित्व का गट्ठा होता है। घर के अन्य सदस्य जहॉ तक हो सकता है उसमें भागीदारी लेते हैं और महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से स्वयं को बचाकर रख लेते हैं। उत्तरदायित्व की उत्सुकता ताथा कर्त्तव्य पूरा करने की तत्परता ही घर को परिवार बना सकती है। जिसकी एकता, कर्त्तव्यपरायणता, मेल-मिलाप, उनुशासन देखकर जिस पर समर्पित होने या स्वयं को वार देने का मन हो उसी का नाम परिवार है। इस प्रकार स्वयं के उत्तरदायित्व को समझते हुए अपने कर्त्तव्यों को पूरा करना हर मनुष्य का समाज एवं परिवार के लिए एक आवश्यक लक्ष्य होना चाहिए।
इन्हे भी देखें
1. अपनी मन की सुनो
2. हृदय की गति