दूःख ही दूःख निबंध में कुछ ईर्ष्या से भरे लोगों के मनः स्थिति को समझाने का प्रयास किया गया है। विक्टोरिया मेमोरियल में वर्षों पूर्व एक घटना प्रकाशित हुई थी वह आंतरिक खुमारी द्वारा प्रसन्न रहने की प्रेरणा देती है। एक धर्माचार्य की पत्नी ने मिस हाइसी से कहा मैडम! मुुझे यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि अपनी इस बीमारी के कारण आप विक्टोरिया मेमोरियल मेे होने वाले आज संगीत के निर्धारित कार्यक्रम में जा नहीं पाएंगी। मैं आपको यह बताने आई हूॅ कि आप आज भजन संध्या में भजन गाने वाली थीं उसके लिए दुःखी ना हों क्योंकि उसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था कर ली गई है। आज आपकी जगह पर मिस जैरी बेनहॉक भजन प्रस्तुत करेंगी। यह सुनकर मिस हाइसी एकदम बिस्तर में से उठकर बैठ गईं और उंचे आवाज मे। उन्होंने आगन्तुक महिला से पूछा क्या कहा आपने। मेरी जगह पर वो बेसुरी आवाज वाली बूढ़ी स्त्री भजन प्रस्तुत करेंगी। नहीं मै यह नहीं होने दूंगी। भजन गाने की प्रसन्नता का अवसर मै खोना नहीं चाहती। और उसे इसका अवसर भी नही दूंगी।
यह कहकर मिस हाइसी ने अपना डॉक्टर द्वारा बांधा गया पट्टा खोलकर फेंक दिया और दूसरे हाथ से मेज पर रखी हुई दवाईयॉ जमीन पर फेंक दीं फिर मधुर वाणी में उस महिला से कहा की भजन कार्यक्रम के आयोजक डॉ. गुडमैन से कहना कि मेरा भजन मिस जैरी बेनहॉक से गवाने की कोई जरुरत नहीं है। मैं बड़ी प्रसन्नता से भजन गाने के लिए आउॅगी। इससे यही बात सामने आती है की लोग अपने दुःखों को संजोकर बड़े गर्व से घूमते रहते हैं। दुःख को खदेड़ने की फिलॉसफी बस एक ही है जेहि विधि राखे राम तेहि विधि रहिए और सिता-राम कहिए अर्थात हमें जो भी वस्तु प्राप्त है उसे अनासक्तभाव से स्वीकारें। उसकी वास्तविकता को स्वीकार कर सास्वत करें।
बहुत से लोग नकारात्मक दृष्टिकोण के थोक व्यापारी होते हैं। वे दुःख के ऐसे वितरक होते हैं जो आपकी मांग के बिना ही माल घर पर पहुंचाते रहते हें। ऐसे लोगों को केवल दुःखी होने में रस नहीं होता बल्कि उन्हें इसमें रुचि होती है कि दुःखों की जमात कैसे बढ़ती है। इसलिए ऐसे लोग दुःखद समाचार, घटनाएॅ, अफवाहें या किसी की चुगली का लाथ दूसरों के पास तक पहुंचाने में अपना धर्म बिलकुल नहीं चूकते। वे इसमे आनंद की अनुभूति करते है। डॉ. नॉर्मन विन्सेन्ट पीले ने एक उदाहरण देते हुए बताया है कि पॉच में से चार व्यक्ति इतने सुखी नहीं होते जितने कि वे वास्तव में हो सकते हैं। अपनी रेलवे यात्रा के दौरान के एक प्रसंग का वर्णन करते हुए उन्होंने लिखा है कि एक बार वो रेल की डाइनिंग हॉल में बैठे थे उनके सामने एक दम्पति बैठा था। वो दोनों ही उसके लिए अनजान थे। पत्नी जिस प्रकार के वस्त्राभूषण से सुसज्जित थी वो सब बिना बताए ही उनकी रईसी की कहानी बयान कर रहे थे। कोई भी व्यक्ति उन्हे देखकर यह समझ जाता और तब भी जाने क्यों वह स्त्री बेहद दुःखी दिखाई दे रही थी। वह बार-बार उंची आवाज में कह रही थी कि रेल के डिब्बे में कितनी गंदगी है, सर्विस भी ठीक नहीं है, खाना कितना बेकार है आदि। वह प्रत्येक वस्तु के लिए शिकायत कर रही थी और उसके लिए परेशानी महसूस कर रही थी। सब लोग उसे देख रहे थे क्यांकि सब के बिच मे वह एक अलग ही प्रदर्शन कर रही थी।
दूसरी ओर उसका पति बेहद खुशमिजाज जथा जिंदादिल था। उसके मुॅह पर से लगता था कि उसे प्रत्येक वस्तु में आंद खोज लेने की आदत है। डॉ. वीले को महसूस हुआ कि वह अपनी पत्नी के टीका-टिप्पणी वाले व्यवहार से संकोच का अनुभव कर रहा था। वह उसकी वजह से कुछ निराश भी था इसीलिए पत्नी को प्रसन्न करने के लिए वह उसे घुमाने ले जा रहा था। चर्चा बदलने के लिए उसने मुझसे पूछा क्या आप कोई बिजनेस करते है। फिर उसने बताया कि वह स्वयं एक वकील है। उसके बाद उसके मुॅह से कुछ व्यंग्यात्मक शब्द निकले उसने कहा मेरी पत्नी मेन्युफेक्चरिंग के बिजनेस में है।
मुझे आश्चर्य हुआ क्योंकि उस महिला को देखकर और मुख्यरुप से जो उसका लोगों के प्रति व्यवहार दिख रहा था यह आभास नहीं हो रहा था कि वह कोई बिजनेस वुमेन हो सकती है। अतः मैने पूछा आपकी पत्नी किस चीज का उत्पादन करती है। उस आदमी ने उत्तर दिया दुःख का। मेरी पत्नी अपने दुःखों का निर्माण करती है। डॉक्टर विन्सेन्ट ने देखा कि उस मनुष्य की अनावश्यक टिप्पणी से मेज पर अजीब प्रकार की शांति फैल गई। वास्तव में उस आदमी के द्वारा कहे गये वाक्य बहुत से लोगों के लिए सच थे सच मे ही लोग अपने दुःखों का निर्माण स्वयं ही करते हैं।
हमें अपने जीवन के विषय में श्रध्दापूर्वक यह चिन्तन करना चाहिए कि ईश्वर ने हमें सुखी बनाया ही है। पर हम दूःख स्वयं निर्माण करते है। हम प्रभु के टाइमटेबल से अनभिज्ञ हैं परंतु हम ईश्वर के प्रत्येक कार्य में बड़ी प्रसन्नतापूर्वक उसका साथ देंगे जिससे हमारी अप्रसन्नता से ईश्वर को भी अप्रसन्न न होना पड़े। और ईश्वर की हम पर कृपा और अधिक हो।