बोए पेड़ बबूल का आम कहां से पाये निबंध में इस बात को प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है कि लोग जैसा व्यवहार लोगों को देतें है वहीं व्यवहार उन्हे मिलता है।
अनुज दोस्त के यहां पार्टी मे गया था जाहां एक आदमी अपने बड़े अफसर होने की बड़ी डींगे हांकता हुआ कह रहा था मेरे ऑफिस में पैर रखते सारा ऑफिस कांपने लगता है। चपरासी से लेकर बड़े अफसर तक इधर-उधर हो जाते हैं कि कहीं मेरे क्रोध के भोग न बन जाएं। यदि मैं उन्हें बुलाता हूॅ तो उनके पैरों के नीचे से धरती खिसकने लगती है। आगे कहता है कि दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए।
जो मनुष्य अहंकार को अपनी सिध्दि समझता हो और वक्रता को अपनी विजय समझता हो उसे कौन भीतर से सम्मान दे समता है? ऐसे मनुष्य को संभवतः कोई भी सम्मान नही देना चाहेगा। जो लोग बड़े कहलाते हैं उन्हें मनुष्य का प्रेम प्राप्त नहीं होता लोग उन्हें प्रेम तथा आदर देने का नाटक करते हैं।
जिंदगी का लक्ष्य केवल जन बनना नहीं होना चाहिए बल्कि इसके साथ-साथ सज्जन बनना चाहिए। मनुष्य यह मानकर चलता है कि सौजन्यता कमजोरी है। इसका कारण यह है कि सज्जनों को पूरी दुनिया बेवकूफ बना जाती है। इसका अर्थ ये बिलकुल नहीं है कि सज्जन लोग बेवकूफ होते है। बल्कि उनमे ऐसी भावना होती है कि वे दुसरो के बारे मे भी सोचते हैं। बड़ा आदमी बनने के स्थान पर सच्चा आदमी बनना लम्बे समय के लिए अधिक श्रेयस्कर होता है। संसार बड़े लोगों को भूल जाता है परंतु सच्चे मनुष्य को अपने हृदय के सिंहासन पर बैठाकर शाश्वत स्थान सौंपता है।
जिंदगी यानि उत्तम बीज को बोने का समय। इस बीज को हम आदर से संस्कार नाम से पहचानते हैं। जो मनुष्य मानव मात्र को आनंद दे सकता है वही परमात्मा का लाड़ला पुत्र है।
आपके पास सत्ता हो, पैसा हो, उच्च पद हो तथा इसे पचाए बिना, आपने जिसकी हानि की हो उसे चीज से पाठ पढ़ाने के लिए आप अधीर हो जाएं मन में हीन वृत्तियां पालें तथा धिक्कार व घृणा की कीचड़ में आपका मन खदबदाता हो तो समझ लें कि आपका पतन कुछ अधिक दूर नहीं है। जिस प्रकार जूते में पड़ा हुआ कंकड़ जब तक उसे निकालकर न फेंका जाय, तब तक खटकता रहता है, उसी प्रकार मन में पड़े हुए क्षुद्र तथा हीन विचार मन को चैन नहीं लेने देते। यह व्यक्ति को अदंर ही अदंर हानी पहुंचाते रहते हैं। ईश्वर अपने अपराधियों के मन की शांति का हरण कर लेता है। मानसिक अषांति मनुष्य के दुष्ट व्यवहार के प्रति ईश्वर की नाराजगी का प्रमाण है। ईश्वर जिसे सजा देना चाहता है, उसके मन में अहंकार की आंधी को जन्म देकर उसके विवेक के दीपक को बुझा देता है। जिससे उसके सोचने समझने की जो विवेक होती है उसमे अहंकार की मोटी परत जम जाती है।
हम जैसा बोते हैं वैसा ही काटते हैं इस कहावत का हम बहुत उदारता पूर्वक उपयोग करते हैं, परंतु बीज को पसंद करने में हम सदा ही धोखा खा जाते हैं।
मान लीजिए कि आप परिवार के बड़े हैं। बड़े होने के नाते आप मान-सम्मान तथा आदर के अधिकारी भी हैं। यह बिलकुल सही है परंतु, इसके साथ-साथ आपको यह भी याद रखना चाहिए कि यदि आप केवल उम्र या पद की दृष्टि से यदि आप मान-सम्मान प्राप्त करने की चाह रखेंगे तो आपके परिवार में आपके प्रति सम्मान का दुष्काल होने की पूरी संभवना हो सकती है। क्योंकि यह बात तो ठीक है की आप को यह सम्मान बड़े होने के कारण मिलनी चाहिए परंतु इसके साथ ही आपमे वे गुण भी होने चाहिए जो बड़े होने के नाते आपमे हाने चाहिए।
मान-सम्मान प्राप्त करने के लिए आपको स्नेह, निर्मल भावुकता, बिना किसी शर्त के प्रेम उदारता, सहिष्णुता क्षमा शीलता तथा घर के सदस्यों को समझने का सहानुभूति पूर्ण दृष्टिकोण रखना होगा। ये सब कुछ ऐसे गुण है जो एक व्यक्ति मे बड़े होने और उसे सम्मान प्राप्त करने के लिए उसमे लगभग होने चाहिए संभवतः फर्ज पूरा करने से मान प्राप्त हो भी जाय परंतु मान का आनंद प्राप्त नहीं होगा। जो निष्काम भाव से अपना कर्त्तव्य करता है, उसे मान साम्मान से स्वयं ही दौड़कर मिल जाता है। शांति, स्वस्थता तथा वाणी की मिठास मनुष्य को बड़प्पन के आनंद का हकदार बनाते हैं। नकारात्मक व्यवहार व दृष्टाग्रह संबंधों के बीच पुल के स्थान पर बदले की काटेंदार बाड़ खड़ा कर देते हैं। यदि किसी भी संबंध को सहना पड़ता है तो वह संबंध तथा संबंधी दोनों की पराजय है।
एक कृषक को फसल काटने के लिए उत्तम बुआई यानि स्वयं को सतत बदलने व नवीन रहने की व रखने की तैयारी। बड़ों को हमेषा न्यायाधीष बनने की आदत होती है। इसमे भी कोई पात्र पक्ष-विपक्ष की बात नही हो सकती और न्यायाधीश भी कैसे जो वादी-प्रतिवादी की जगह स्वयं ही सब कुछ बोलते रहे।
किसी निराकरण को न बता पाने वाला व्यक्ति या परिस्थिति का कटु आलोचक बनने वाला, प्रेम के स्थान पर जहर की बुआई करता है, इस प्रकार से हम यहीं कह सकते हैं कि इस कृत्य के खराब परिणाम उसे कभी न कभी भोगने ही पड़ते हैं। यही सत्य है।