लगभग हर कोई पारिवारिक जीवन में दूसरों से शिष्टता तथा अनुशासन की अपेक्षा रखते हैं यह उनके मन की दशा पर निर्भर करता है, परंतु वहीं लोग स्वयं को इससे मुक्त रखते हैं। यदि आप अनुशासन व षिष्टता चाहते हैं तो पहले स्वयं शिष्टता बोनी पड़ती है। शिष्टता का पालन करने के लिए मॉनीटर बनने की नहीं बल्कि अनुकरणीय आदर्श बनने की आवश्यकता होती है। परिवार की प्रसन्नता का मूल त्याग है, अधिकार नहीं। जो उम्र में बड़े हों उन्हें बड़े त्याग के लिए तैयार रहना चाहिए। हम यह मानकर चलते हैं कि आभार तो छोटों को मानना चाहिए।
वास्तव में तो जब बड़े छोटों का आभार मानते हैं बड़ों की वह आभार अभिव्यक्ति छोटों के लिए जिंदगी की यादगार निशानी बन जाती है। मन की दशा निबंध में यही बताया गया है।
हमारे कार्य देवदूत भी बन सकते हैं और यमदूत भी। अपने कर्मों को दूध से धोया जाना चाहिए, काजल से नहीं। दूध से धोये गये कार्य वरदानों को निमंत्रित करते हैं तथा काजल से धोये गये कार्य अभिशापों को। मनुष्य का प्रत्येक कार्य उसके चारित्र में या जो कुछ बढ़ाता है अथवा कुछ घटाता है। इस बारे में एक बहुत सटीक दृष्टांत विचारणीय है। एक सीधी गहरी दरार में पत्थर डालें। गुरुत्वाकर्षण के नियम के अनुसार वह पत्थर तेज गति से नीचे चला जाता है। पहले सेकेंड तो वह 15 फीट नीचे जाएगा तो दूसरे सेकेंड 45 फीट नीचे, पांचवी सेकेंड 120 फीट नीचे जाएगा तथा यदि वह दस सेकंेड लगातार गिरेगा तो 304 फीट नीचे चला जाएगा। इसी प्रकार मनुष्य की आदतें भी उत्तरोत्तर वृध्दि प्राप्त करती हैं। प्रत्येक कार्य के बाद वही मनुष्य बिलकुल वैसा नहीं रह जाता वरन् उसमें बदलाव आने से वह कोई दूसरा ही व्यक्तित्व तैयार हो जाता है। अर्थात अपने किये हुए कार्यों के अनुसार हम या तो अधिक अच्छे या फिर अधिक बुरे बन जाते हैं, वैसे ही समान नहीं रह पाते जैसे पहले थे।
यहाँ पर एक स़्त्री का उदाहरण प्रस्तुत किया जा रहा है। जिसका भाग्य बहुत ही खराब था। वह मृत्यु शैया पर पड़ी थी। उसका पति शराबी तथा शराब के नशे में उससे बहुत दुर्व्यवहार करता था। उस स्त्री को यह महसूस हुआ कि अब वह अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहेगी। अतः उसने अपने पति को अपने पास बुलाकर कहा कि आप अपने बच्चों के भले के लिए मुझे वचन दीजिए कि मेरी मृत्यु के बाद आप शराब को हमेषा के लिए छोड़ देंगे। इस स्त्री के पति ने उसे वचन दिया कि यदि वह स्वयं ही उसे अपने हाथ से शराब पिलाएगी, तभी वह शराब पीएगा और किसी के हाथ से शराब नहीं पीएगा। इस बात को सुनने के बाद वह स्त्री प्रसन्न हो गयी। क्योंकि उसे यह यकिन हो गया था की अब उसका पति सायद शराब छोड़देगा।
परंतु उसका पति अपनी आदतों का एक प्रकार से गुलाम बन चुका था तथा अपनी मन की कमजोरी का शिकार बन चुका था। वह अपनी पत्नी को चाहता था और उसे वचन भी दे चुका था तब भी मद्यपान की लत पर काबू नहीं रख सका।
उसने शराब का प्याला भरा और अपनी पत्नी के कमरे में घुस गया। पत्नी तो मर ही चुकी थी। नशाग्रस्त पति ने अपनी पत्नी का हाथ उपर किया, उसके हाथ में शराब का प्याला पकड़ाया और बाद में होठों से लगाकर गटागट शराब गटक गया। मनुष्य जिंदगी के साथ, वचनों के साथ, स्वजनों के साथ किस हद तक प्रवंचना कर सकता है, उसका यह सशक्त उदाहरण है।
लुम्बी नाम का एक चिंतनशील मनुष्य की यह बात याद रखने जैसी है कि वातावरण स्वयं में ही एक विशाल संग्रहालय है। इसके ऑफिस में जो भी मनुष्य जो कुछ बोलता है, भुनभुन करता है या यदि कुछ विचार भी करता है तो वह सब चिरकाल के लिए उसमें नोट हो जाता है।
संसार में दो प्रकार के लोग होते हैं एक ऐसे जो कभी भी असत्य बोलने के बारे में सोचते तक नहीं। उनका चाहे जितना नुकसान हो जाय, वे हमेशा सच ही बोलते हैं। इनसे उल्टे कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन्हें चाहे जितना सिखाओ या उपदेश दो, वे असत्य के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं बोलते। हमारे स्वयं के भीतर एक सिपाही बैठा हुआ है जिसका नाम है अंतःकरण। इस अंतःकरण नामक सिपाही को मनुष्य को चेताना तो आता है पर उसे रिमान्ड पर लेना नहीं आता। परिणाम स्वरुप अंतःकरण चिकना घड़ा बन जाता है।
पहली बार का गुनाह मनुष्य को दूसरी बार का गुनाह करने की खिड़की खोल देता है। पहली बार का गुनाह या अपराध ऐच्छिक होता है, यदि उसे आगे बढ़ाने की छूट मिल जाती है तो वह अनिवार्य हो जाता है।
मनुष्य काटने के मौसम की आतुरता पूर्वक प्रतिक्षा करता रहता है, उसके स्थान पर यदि वह बोने के लिए तत्पर रह सके तो। पूरे विश्व में लगातार, अपराधों की बुआइ होती रहती है तब भी हम सदाचार फलने की राह देखते रहते हैं। संसार केवल एक हाथ से बोने के लिए तत्पर रहता है परंतु काटने के लिए हजार हाथों से तत्पर रहता है।