चिंता चिता समान है – ESSAY IN HINDI

चिंता चिता के समान है परंतु क्या कंरु भाई मेरा तो स्वभाव ही वैसा है। मैं तो एक पल के लिए भी चिंता से मुक्त नहीं रह पाता। मुझे तो चिंता ऐसे चिपकी रहती है जैसे किसी को कोई भूत-प्रेत चिपक जाता है। और भाई अगर जिंदा आदमी जीवन के लिए चिंता नहीं करेगा तो क्या मरा हुआ आदमी चिंता करेगा। यह एक चिंताग्रस्त बुजूर्ग थे जो इस प्रकार अपनी प्रस्तुति कर रहे थे।

विचार करने योग्य बात तो यह है कि वास्तव में चिंता हमारा पीछा करती है या हम चिंता का पीछा करते हैं? यह दोनो अलग-अलग बातें हैं मनुष्य यानि चिंता नामक चोर को आमंत्रित करने वाला प्राणी होता है। मनुष्य का मन कोई चिंता का शिक्षण लेकर तो जन्मा नहीं है। चिंता का शिक्षण तो हम अपना स्वयं का पैसा खर्च करके दुस्साहस से लेते हैं। हमें चिंता आधुनिक युग का खतरनाक प्लेग है।

जब मनुष्य ने जन्म लिया है तो समस्याएं तो रहेंगी ही। ये समस्याएं आधि, व्याधि, उपाधि यानि किसी न किसी स्वरुप में मनुष्य को घेरने का प्रयास करती हैं जो एक चिंता को बढ़ाने का कार्य करती है। इनका कारण रोजी-रोटी हो, बेटे-बेटी का विवाह हो, पदोन्नति या चुनाव में जीतने की हो या फिर किसी से दुश्मनी का बदला लेना हो जितने लोग होते हैं उतनी ही विविध चिंताएं। चाहे वो अपने आप मान ली गई हों या फिर वास्तविक हों।

आर्थिक नुकसान, मानसिक तनाव, अकेलापन, बेवफाई या दंगा प्रपंच का आघात एवं अतृप्त इच्छाएं आदि ऐसी बातें हैं जो मनुष्य को स्थिर नहीं रहने देतीं। जिससे उसके जीवन मे कष्ट बढ़ते जाते है।
एक वैज्ञानिक ने लगभग 500 ऐसे लोगों के जीवन के बारे में रिसर्च कर जानकारी हासिल की जो सौ वर्षों तक जीवित रहे थे। सर्वेक्षण से उनके सुखी तथा दीर्घायु जीवन की सात बातें पता चलीं

1.   दीर्घायु जीवन जीने वाले लोग हमेशा अपने आपको किसी न किसी काम में व्यस्त रखते थे अथवा ये कहें की रहते थे।

2.  वे लोग हर बात में संयम से रहते थे और किसी प्रकार के कोलाहल से बचने का प्रयास करते थे।

3.  वे कम तथा सादा भोजन करते थे या ये कहें की जिने के लिए खाते थे ना की खाने के लिए।

4.  उन्हें जीवन जीने में खूब आनंद आता था वे छोटी-छोटी बातों मे खुशियां ढ़ूंढ लेते थे।

5.  वे रात में जल्दी सोकर सुबह जल्दी ही उठ जाते थे उनका दिनचर्या नियमित होता था।

6.  वे चिंता तथा डर से मुक्त रहते थे किसी प्रकार का मस्तिष्क पर बोझ नही डालते थे।

7.  वे खासकर मृत्यु के डर से बिलकुल भी भयभीत नहीं होते थे उनका सोच कुछ इस प्रकार था की मृत्यु तो सभी को आनी है वह अटल सत्य है।

उनके मन में अपार शांति थी तथा वे ईश्वर के प्रति श्रध्दा रखते थे। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि मनुष्य शांत रहे, देवोपासना में अपने मन को मग्न रखे तथा चिंतामुक्त रहे तो दीर्घायु का आनंद ले सकता है।

आज का मनुष्य भीड़ में रहने के बावजूद भी भीतर से बिलकुल अकेला है। इस अकेलेपन को दूर करने के लिए वह टी.वी. सिनेमा महफिल तथा सभाओं का आसरा लेता है। वह टोले में रहता हो परंतु ऐसे टोले या भीड़ में लोगों के पास कहने के लिए अपनी आपबीती ही बहुत होती है इसलिए वो दूसरों की बात सुनने की जगह अपनी बात कहने के लिए तत्पर रहते हैं। परिणाम स्वरुप होता यह है कि तुम्हें गैरों से कब फुरसत, हम अपने गम से कब खाली, चलो बस हो चुका मिलना, न तुम खाली न हम खाली। उनके बिच कुछ इसी तरह के संबंध बनते हैं।

आज के मनुष्य के पास भावनाओं को पूछने वाली जबान नहीं है। आज के मनुष्य को यदि हृदय की बात का सब्र से समझने वाले दो संवेदनशील कान तथा भावपूर्ण स्नेहिल आँखो के लिए आदम हव्वा की संतानों को कितने हाथ पैर मारने लगते हैं।

चिंतामुक्त रहने के लिए डॉ. नॉर्मन विन्सेट नीले ने एक बुनियादी सूचना दी है। उनका कहना है कि आप अपने दिमाग को हर रोज खाली करने का अभ्यास करें।
चिंतारहित नींद के लिए यह अभ्यास आवष्यक है। नींद से पहले का समय दिमाग के व्यर्थ भार को खाली करने का श्रेष्ठ समय होता है। इस समय मन सबसे अधिक ग्रहणषील होता है। यही वह समय होता है जब मनुष्य अपनी जागृत चेतना में जो कुछ भी उसने उत्तम विचार किया हो, उसे अत्मसात कर लेता हैं। इसीलिए सोने से पहले ईश्वर का नाम स्मरण प्रार्थना आदि को महत्व दिया गया है।

नींद से पहले के इस पवित्र समय में टी.वी. सीरियल, भूत-प्रेत तांत्रिकों आदि के नीच प्रयोग, सनसनीभरी घटनाएं, सास-बहू, ननद-भौजाई तथा बैरवृत्ति से भरे हुए इष्ट मित्र या दुश्मनों के प्रपंच तथा छल-कपट आदि के दृष्य दिखाकर मानव मन की पवित्रता तथा शांति को भंग करने का अक्षम्य पाप किया जाता है तथा भौतिक आकर्षणों में फंसा हुआ आज का मनुष्य भी इस प्रकार के जहर के कटोरों को आराम से गटक जाता है। जो उसे अधिक चिंतित एवं चिंतायुक्त बना देता है।

इन्हे भी देखें

1. जीवन की समस्याएं
2. चिंता और चुनौती

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