चिंता को दूर करें इस निबंध के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया गया है कि हम अपने मन को कैसे वश में करें। आज के समय मे यदि कोई मनुष्य सुखी है तो वह वही मनुष्य है जिसके जीवन मे चिंता के बादल नहीं है। मनुष्य के जीवन मे चिंता उस विष के समान है जो उसके शरीर को अदंर से खोखला बना देता है। इसीलिए यह आवश्यक है कि जब भी हम रात्रि को विश्राम करते है उससे पहले मन का कूड़ा करकट निकाल फैंकने की तालीम मन को दी जाय।
मन में सात्विम तथा आध्यात्मिक विचारों की सहायता से दूषित विचार तथा चिंता या भय को निकाल फेंकने में प्रकृति सहायक होती है। इसके लिए मनुष्य को रचनात्मक कल्पना का सहारा लेना पड़ता है। मन को लगातार ऐसे विचारों में व्यस्त रखना चाहिए कि मैं चिंता मुक्त होने के लिए अपने मन में पड़े हुए व्यर्थ के विचार चिंताओं के ढेर को भस्मीभूत कर रहा हूँ। जिस प्रकार बॉथिंग-टब में भरा हुआ पानी उसके बाहर जाने के रास्ते पर लगाई हुई डाट को खोलने से बाहर निकलने लगता है और अगर पुनः उसे भरने के लिए तब तक उपयोग मे नही लाया जा सकता जब तक की उसके डाट को न लगा दिया जाये, उसी प्रकार मन में रचनात्मक विचारों के आधिक्य के बढ़ने से मन व्यर्थ के विचारों से मुक्त होने लगेगा।
इस प्रकार के रचनात्मक विचारों के लिए श्रध्दा व नम्रतापूर्वक दिव्यषक्ति की अथवा अपने किसी भी उपास्य या आराध्य की अवष्य ही सहायता मांगी जा सकती है। इसके लिए अपने मन ही मन मे प्रार्थना करनी चाहिए कि हे प्रभु अब मैं अकेला नहीं हँू। आपकी कृपा की किरण से मेरे मन में प्रकाश हो रहा है। चिंता के बादल समाप्त हो रहे हैं। मेरा मन खाली हो रहा है। मुझे अब किसी भी प्रकार का भय नहीं है। मैं असुरक्षित नहीं हँू। मैं व्यग्र नहीं हूँ। अब मैं अशांत नहीं हूँ। इस प्रकार की प्रार्थना कर हम अपने मन की जो चिंताएं है उसे दूर कर सकते है।
हमें मनुष्य से प्रेम करना आता तो है परंतु सात्विक मन से मुहब्बत करने के लिए हम समय निकालने के लिए हम लेशमात्र तैयार नहीं होते। हम अपने दैनिक जीवन मे इतने व्यस्त हो गये है की इन सब चिजों के लिए थोड़ा सा भी समय नहीं निकालते जो की हमे बिलकुल निकालना चाहिए। मन को तो आपका अभिन्न तथा वफादार मित्र बनना है। परंतु यदि आपका मन रावण के किले में कैद हो तो आपका सबसे पहला काम यह है कि अपने मन को रावण के किले के कंगूरे तोड़कर उसे उस कैद से मुक्त कराएं। बिना इस कार्य को किये आगे बढ़ पाना सभंव नही है।
जिस प्रकार हम कहीं जमे हुए गंदे पानी को निकाल देते हैं उसी प्रकार मन में बहते हुए प्रदूषित जल को उलीचने के बिना मन कभी भी चिंता मुक्त नहीं बन सकता। वह स्वयं मे मलिन अनुभूति करता रहेगा।
चिंता का वृक्ष आसानी से नहीं टूटता। उसके लिए कुछ ऐसे प्रयास करना अति आवश्यक हो जाता है जो आपको अदंर से मजबूत बनाये और आपमे इतनी साहस प्रवाहित करे की उसके लिए चिंता की कोई जगह ना बचे। ऐसी स्थिति उत्पन्न करने के लिए स्वयं को भी कुछ प्रयास करने जरुरी हो जाते है। नही ंतो यह नुकसान दायक भी हो सकता है। अतः यदि आप चिंता के वृक्ष को एकसाथ काटने का प्रयास करेंगे तो उसका धड़ आसपास के छोटे वृक्षों को भी तहस नहस कर देगा। इसका अर्थ यही होता है की इसे सावधानी पूर्वक एवं एक-एक करके ही नष्ट करना उचित होगा। अतः चिंता की डालियाँ व पत्तों को काटकर धीरे-धीरे उसके धड़ के टुकड़े करके अंत में उसे जड़मूल से उखाड़ फेंकना आवश्यक होता है।
डॉ. डेनियल ने चिंतामुक्त होने के लिए एक युक्ति सुझाई है। जब भी आप सुबह सवेरे बिस्तर से उठते है तो बिस्तर में से उठने से पहले ही यह वाक्य तीन बार बोलें मुझे विश्वास है, मुझे विश्वास है, मुझे पूरा भरोसा व श्रध्दा है। इस प्रकार के रचनात्मक तथा सकारात्मक विचार मन में श्रध्दा उत्पन्न करेंगे तथा श्रध्दा का यह बल पूरे दिनभर प्रेरणा, आश्वासन तथा हमदर्दी से मार्गदर्शन करता रहेगा। जिससे आपको एक प्रकार की सकारात्मक उर्जा का अनुभव होगा और आप ऐसे किसी कष्ट से दूर रहेगंे जो आपको चिंतित करता हो।
मनुष्य को अगर देखा जाये तो चिंतामुक्त रहने के लिए उसमे थोड़ा सा पागलपन भी पाल लेना चाहिए। जो उसे क्षणिक मात्र के लिए सायद साहश प्रदान करें। वास्तव में मनुष्य होशियारी के भ्रम में चिंता तथा डर का नर्सिंग करता रहता है। यह भी एक वजह होती है उसके जीवन मे चिंता के होने का। चिंता क्या है? चिंता क्यों होती है? क्या इसे दूर नहीं किया जा सकता? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जो हर मनुष्य के मन मे चलने वाला एक सामान्य सा सवाल है। परंतु इसका जवाब किसी एक वाक्य मे दे पाना लगभग संभव नही हो सकता क्योंकि इसके बहुँत से ऐसे कारण और आयाम हैं जिसमे इसे बाटा जा सकता है। जिसके कारण इसके अलग-अलग माप हो जाते हैं।