पुरुष की मर्यादा – ESSAY IN HINDI

गाँव मे रहने वाले तीन लोगो के बिच किसी बात को लेकर दुष्मनी थी तीनो एक बार एक मंदिर में मिले उनमे से दो दुश्मन अचानक ही एक दूसरे से टकरा गये। दोनांे ही अपनी-अपनी दुश्मनी की वसूली के लिए उत्तेजित हो गए यह उस पुरुष की मर्यादा ही थी। परंतु मंदिर में भगवान के समक्ष तो हिंसा का आचरण किया नहीं जा सकता था। सो दोनों एक दूसरे के समक्ष कठोर दृष्टि से घूरने लगे मानों एक दूसरे से कह रहे हों बाहर निकल तुझे सीधा न कर दूँ तो मेरा नाम फलाना नहीं।
दूसरा दुश्मन भी कोई दबने वाला व्यक्ति नहीें था। उसने कहा आज मेरे विवाह की वर्षगांठ है, सो मंदिर में चुप रहा मैं नहीं तो तुझे यहाँ से बाहर जिंदा तो जाने नहीें देता। इसी बिच मे तिसरा दुश्मन दोनो को एकसाथ दुर से घुरते हुए देख रहा है और मानो ये सोच रहा हो कि जब तुम दोनो साथ हो तो मै तुम दोनो के बिच मे क्यों आउ जो बचेगा उसे मै देख लुगां।
अहिंसा क्या किसी विशेष स्थान पर किसी खास दिन या खास पर्व या फिर किसी विशेष की उपस्थिति में व्यवहार में लाने की वस्तु है? यदि आप किसी मंदिर किसी उपाश्रय या तीर्थस्थान पर जाते हैं और फिर भी आपका मन शुध्द नहीं होता तो आखिर वहां जाने का क्या अर्थ है? देवदर्षन यानि आत्मदर्शन देवदर्शन यानि अच्छी आदतों का दर्शन देवदर्शन यानि सद्विचार सेवन।
आप मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए जाते हैं परंतु भगवान को मिलने के लिए मनुष्यत्व यानि मानवीय मर्यादाओं को एक ओर रख देना पड़ता है। भक्ति या आध्यात्मिकता की भावना उत्पन्न होना ही पर्याप्त नहीं है वरन भगवान के दर्शन अथवा तीर्थास्थान की उपलब्धि है कि हममें त्याग वस्तुओं को पूर्णतः छोड़ देने का विवेक उत्पन्न हो सके। आज धर्मों तथा विविध संप्रदायों के बीच ईर्ष्या द्वेष तथा बैरवृत्ति है। धर्म की सिध्दि अनुयाइयों की संख्या की वृध्दि में नहीं है वरन अनुयाइयों के भीतर मनुष्यता का विकास हो, इसमें है। जो आज के अनुयाइयों की अगर हम बात करे तो यह विरलय ही दिखता है।
हम देखते है कि विभिन्न क्षेत्रो मे जिस प्रकार विविध प्रकार के सर्वेक्षण होते हैं। उसी प्रकार धर्मक्षेत्र में भी सर्वेक्षण होने चाहिए। कथाश्रवण अथवा ज्ञानसत्र बुध्दि की शुध्द तथा हृदय के विस्तार के निमित्त बनने चाहिए। कथा श्रवण अथवा ज्ञानसत्र बुध्दि की शुध्दि तथा हृदय के विस्तार के निमित्त बनने चाहिए। मनुष्य में दिखाई देने वाले रावणत्व या दुर्योधनत्व की उपेक्षा छिपा हुआ दुष्टत्व अधिक खतरनाक होता है। जिन लोगों में रावणत्व दिखाई दे जाता है उसे तो पुलिस पकड़ कर कोर्ट में उपस्थित कर देती है और उसको उसकी सजा मिल जाती है परंतु छिपे हुए रावण दुर्योधन शकुनि दुःशासन कंस आदि खुले घूमते है और आंनद करते हैं। अक्सर ऐसा भी होता है कि कहीं यदि कोई धार्मिक अनुष्ठान इत्यादि होता है तो ऐसे स्थान पर भी पहले वो ही जा पहुंचते हैं और सबसे पहले आशीर्वाद के अधिकारी बन जाते हैं। इसलिए धर्मसिध्दि के लिए धर्मशुध्दि भी उतनी ही आवश्यक है। यह माना जाता है कि परब्रम्ह या परम ब्रम्ह को जब एक में से अनेक बनने की इच्छा हुई तब उनमें से जगविस्तार तथा जनविस्तार हुआ। जहॉ पर एक के दो होते हैं तबा द्वंद्व अर्थात संघर्ष अत्पन्न हो जाता है। जहॉ जुदाई वहॉ कलह होती है, जहॉ एकात्मता वहॉ सुलह होती है। जहॉ एक के स्थान पर अधिक हो जाते हैं वहॉ झगड़ा फसाद या कलह जन्म ले ही लेते हैं।
आचार्य महाप्रज्ञा जी ने इसीलिए ही परिवार को अहिंसा की प्रयोग भूमि कहा है। मैने इस बात को बहुत अच्छी प्रकार से समझाया है की परिवार में विभिन्न प्रकार की वृत्ति, रस, रुचि, आदत, विचार व व्यवहार वाले लोग होते हैं। जहॉ भेद होता है वहां विवाद, तकरार और टकराहट होनी स्वाभाविक है इसमे कोई दो मत की बात नहीं है। दो बर्तन जब आपस मे एक दूसरे के संपर्क मे आते है तो वे बजते हैं, दो लकड़ियों को जब आपस मे घिसते है तो उनके घिसने से अग्नि प्रगट हो जाती है, जब दो हथेलियों को आपस मे बजाया जाता है तो उनके बजने से आवाज होती है। दो अलग अलग व्यक्तित्व होने के बावजूद भी एक बनकर जीना अग्निपरीक्षा से कम बिल्कुल भी नहीं है। पति पत्नी पिता पुत्र पुत्री दो मित्र, दो भागीदार, शासक शासित संचालक तथा कर्मचारी इन सब के दो होने के उपरांत भी इनमें अभिन्नत्व एकत्व हो उसे आदर्श माना जाता है। परंतु इस प्रकार का आदर्श आखिर कैसे प्रस्थापित किया जाय? और यदि स्थापित हो भी जाय तो वह बना कैसे रहे? ये सोचने वाली बात है। इसमे काम भी करना आवश्यक है क्योंकि जितना हम इसे हल करने की कोसीस करेंगे यह उतना ही बिखरता जाएगा। ऐसा नही है की पति- पत्नी पिता-पुत्र मित्रों के बिच केवल लड़ाई झगड़े इस प्रकार के चिजें ही होती है उनके बिच प्यार भी होती है जो उनके मर्यादा को बनाये रखने के कारण एक दूसरे को समझने के कारण एवं एक दूसरे के भावनाओं को सहन करने के कारण होती है।

इन्हे भी देखें

1.  आओ मेरी निंदा करो

2.  निंदा एक विलक्षण प्रतिभा

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